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होली से पहले 10 मार्च को उत्तराखंड में कौन उड़ाएगा अबीर-गुलाल ? जानिए पूरा गणित - उत्तराखंड चुनाव में बीजेपी कांग्रेस आमने सामने

इस बार होली 18 मार्च को है. लेकिन उत्तराखंड में 10 मार्च को राजनीतिक होली होगी. दरअसल 10 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 का परिणाम आएगा. जो पार्टी जीतेगी वो होली से पहले ही अबीर-गुलाल उड़ाएगी.

Uttarakhand elections BJP and Congress
उत्तराखंड चुनाव की मतगणना
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Published : Feb 15, 2022, 12:24 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में 12 फरवरी की शाम प्रचार का शोर थम गया था. 14 फरवरी को मतदान हो गया. अब सबको 10 मार्च का इंतजार है. 10 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 की मतगणना होगी. 10 मार्च को जिस पार्टी के पक्ष में चुनाव परिणाम जाएगा उसकी होली होगी. हालांकि इस बार होली 18 मार्च को है, लेकिन जो राजनीतिक दल 10 मार्च को चुनाव जीतेगा उसकी होली उसी दिन हो जाएगी. उत्तराखंड में 10 मार्च को ही राजनीतिक अबीर-गुलाल उड़ने लगेगा.

वोटिंग प्रतिशत पिछली बार जितना है: इस बार हुए मतदान में वोटिंग प्रतिशत 64.29 रहा है. यानि ये प्रतिशत करीब-करीब पिछली बार जितना ही है. पिछली बार यानी 2017 में उत्तराखंड में 65.60 प्रतिशत मतदान हुआ था. तब बंपर जनसर्थन से बीजेपी ने 57 सीटें जीत ली थी और उत्तराखंड में उसकी सरकार बनी थी.

ये भी पढ़ें: उत्तराखंड में पड़े 64.29 फीसदी वोट, मतदान में हरिद्वार अव्वल तो अल्मोड़ा फिसड्डी

क्या इस बार एंटी इनकंबेंसी थी ? : चुनाव से पहले उत्तराखंड में बड़ी चर्चा थी कि इस बार बीजेपी सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है. ज्यादातर देखा गया है कि एंटी इनकंबेंसी में मतदान प्रतिशत पिछली बार की तुलना में बढ़ जाता है. हालांकि इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. इस बार का मतदान भी पिछली बार के आसपास ही है. ऐसे में साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इस बार एंटी इनकंबेंसी फैक्टर काम किया है या नहीं.

पिछली बार के मतदान प्रतिशत से तुलना: अगर मतदान प्रतिशत की तुलना करें तो पिछली बार यानी 2017 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में 65.60 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस बार 64.29 फीसदी मतदान हुआ है. हालांकि अभी चुनाव आयोग अपने आंकड़े दुरुस्त करेगा तो ये प्रतिशत एक या दो नंबर बढ़ सकता है.

उत्तराखंड में बारी-बारी बदलती रही है सत्ता: उत्तराखंड की राजनीति की एक खास बात ये रही है कि यहां हर चुनाव में सत्ता रोटेट होती रही है. 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड बना तो बीजेपी की अंतरिम सरकार बनी थी. फिर 2002 में उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस बाजी मार ले गई थी. 2002 में 54.21 फीसदी वोट पड़े थे. एंटी इनकंबेंसी के लिए कहा जाता है कि बंपर वोटिंग होती है. लेकिन 2002 के मतदान प्रतिशत को देखकर लगा नहीं कि एंटी इनकंबेंसी हुई थी. इसके बावजूद उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने का श्रेय लेने वाली बीजेपी चुनाव हार गई थी.

ये भी पढ़ें: चुनावी भागदौड़ से मिला समय तो बजरंग बली की शरण में पहुंचे हरीश रावत, फोटो की साझा

2007 दिखी एंटी इनकंबेंसी: 2007 में पांच साल चली नारायण दत्त तिवारी की सरकार चुनाव हार गई थी. इस बार 63.72 फीसदी मतदान हुआ था. यानि 2002 के मुकाबले करीब 9 फीसदी ज्यादा. एंटी इनकंबेंसी का मामला था तो नारायण दत्त तिवारी को सत्ता गंवानी पड़ी थी. बीजेपी ने सरकार बना ली थी.

2012 में भी बढ़ा था मतदान: 2012 के विधानसभा चुनाव में फिर मतदान का प्रतिशत बढ़ गया था. इस बार उत्तराखंड में 67.22 प्रतिशत मतदान हुआ था. इसे भी एंटी इनकंबेंसी माना गया और मतदाताओं ने बीजेपी को सत्ता से उतार दिया था. इस बार 2007 के मुकाबले करीब चार फीसदी ज्याद वोट पड़े थे.

2017 में मोदी लहर में उड़ी थी कांग्रेस: 2017 में देशभर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जबरदस्त लहर चल रही थी. तब अनेक राज्यों में प्रधान नहीं बनने लायक नेता भी विधायक बन गए थे. इस बार 65.60 प्रतिशत मतदान हुआ था. यानी पिछली बार से करीब 2 फीसदी कम वोट पड़े थे. अगर वोट प्रतिशत का बढ़ना एंटी इनकंबेंसी माना जाता है तो 2017 के परिणाम को राजनीतिक विशेषज्ञ परिभाषित ही नहीं कर पाए थे.

2017 में बीजेपी ने किया था क्लीन स्वीप: दरअसल उस समय मोदी लहर ऐसी जबरदस्त थी कि सारे मिथक, सारे विश्लेषण और सारे कयास धरासायी हो गए थे. बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था. उत्तराखंड की 70 में से 57 सीटें जीतकर बीजेपी ने इतिहास रच दिया था.

इस बार क्या होगा ? : इस बार अंदरखाने उत्तराखंड में एंटी इनकंबेंसी बताई जा रही है. किसान आंदोलन ने भी अपना कुछ ना कुछ असर दिखाया होगा. पहाड़ में नहीं तो मैदानी इलाकों जहां सिख बहुत आबादी है वहां तो किसान आंदोलन का असर दिखा ही होगा. इसका असर 10 मार्च को आने वाले चुनाव परिणाम में देखने को मिल जाएगा.

बीजेपी भी मानती थी एंटी इनकंबेंसी है: बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व और रणनीतिकार भी मानते थे कि उत्तराखंड में सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है. हालांकि उनके नेता अपनी जुबान से इसे नहीं कहते थे. लेकिन सरकार के एक कार्यकाल में तीन-तीन मुख्यमंत्री ऐसे ही नहीं बदले जाते हैं. चुनाव से ठीक 6 महीने पहले मुख्यमंत्री नहीं बदला जाता है.

मतदान के आंकड़े क्या कहते हैं ? : जिलेवार मतदान के आंकड़ों पर गौर करें तो ये भी काफी रोचक दिखाई दे रहे हैं. हरिद्वार जिले में सबसे ज्यादा 74.06 फीसदी मतदान हुआ है. 2017 में हरिद्वार में 75.68 फीसदी मतदान हुआ था. यानी हरिद्वार की 11 सीटों पर मतदान प्रतिशत इस बार सबसे ज्यादा तो है, लेकिन 2017 के मुकाबले कम है.

ये भी पढ़ें: गले में BJP का पटका डाल CM धामी ने डाला वोट, कांग्रेस ने बताया आचार संहिता का उल्लंघन

उधम सिंह नगर जिला इस बार मतदान में पूरे प्रदेश में दूसरे नंबर पर है. यूएस नगर में 9 सीटों का वोटिंग प्रतिशत 71.45 फीसदी है. पिछली बार यानी 2017 में उधम सिंह नगर का वोटिंग प्रतिशत 76.01 फीसदी था. ऐसे में राजनीतिक पंडित चक्कर में पड़ गए हैं कि कम मतदान क्या गुल खिलाएगा.

देहरादून जिले की 10 सीटों का वोटिंग एवरेज 62.40 प्रतिशत है. 2017 में इस जिले की 10 सीटों का मतदान प्रतिशत 63.53 प्रतिशत रहा था. यानी इस बार पिछली बार से करीब एक फीसदी कम मतदान हुआ है. ऐसे में इसे किस मायने में एंटी इनकंबेंसी माना जाए इसे लेकर राजनीतिक विशेषज्ञ उलझन में हैं.

पहाड़ी जिलों में उत्तराखंड में ज्यादा वोटिंग: मैदानी जिलों में अगर हरिद्वार वोटिंग में अव्वल है तो पहाड़ी जिलों में बाजी उत्तरकाशी ने मारी है. गंगोत्री और यमुनोत्री धाम वाला उत्तरकाशी जिला तीन विधानसभा सीटों वाला जिला है. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में उत्तरकाशी की तीन सीटों पर 67.32 प्रतिशत मतदान हुआ है. आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि पिछली बार उत्तरकाशी की तीन सीटों पर 69.38 फीसदी वोट पड़े थे. इस वोटिंग प्रतिशत से भी साबित नहीं हो पा रहा है कि एंटी इनकंबेंसी थी या नहीं.

बीजेपी को नुकसान होगा ये तय है: उत्तराखंड में आम चर्चा थी कि लोग राज्य सरकार के कामकाज से खुश नहीं थे. खासकर स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन की सुविधाओं का अभाव इस नाराजगी का कारण रहा है. 10 मार्च को जब चुनाव परिणाम घोषित होगा तो तय है कि 2017 की तरह बीजेपी को 57 सीटें नहीं मिलने वाली हैं. अब ये सीटें कितनी घटेंगी ये चुनाव परिणाम ही बता पाएंगे.

ये भी पढ़ें: Uttarakhand Election 2022: मतदान प्रतिशत देख गदगद हुईं राजनीतिक पार्टियां, जनता का जताया आभार

कांग्रेस को पाना है खोने को कुछ नहीं है: 2017 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मोदी लहर में कांग्रेस के परखच्चे उड़ गए थे. 2012 में सत्तासीन हुई कांग्रेस की 2017 में ऐसी दुर्गति हुई थी कि 31 से 11 सीटों पर सिमट गई थी. इस चुनाव में 2017 वाली मोदी लहर नहीं दिखाई दी है. ऐसे में कांग्रेस 11 सीटों वाली स्थिति से आगे तो बढ़ेगी ही. पार्टी सत्ता के कितने पास पहुंच पाती है ये 10 मार्च को ही पता लग पाएगा.

देहरादून: उत्तराखंड में 12 फरवरी की शाम प्रचार का शोर थम गया था. 14 फरवरी को मतदान हो गया. अब सबको 10 मार्च का इंतजार है. 10 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 की मतगणना होगी. 10 मार्च को जिस पार्टी के पक्ष में चुनाव परिणाम जाएगा उसकी होली होगी. हालांकि इस बार होली 18 मार्च को है, लेकिन जो राजनीतिक दल 10 मार्च को चुनाव जीतेगा उसकी होली उसी दिन हो जाएगी. उत्तराखंड में 10 मार्च को ही राजनीतिक अबीर-गुलाल उड़ने लगेगा.

वोटिंग प्रतिशत पिछली बार जितना है: इस बार हुए मतदान में वोटिंग प्रतिशत 64.29 रहा है. यानि ये प्रतिशत करीब-करीब पिछली बार जितना ही है. पिछली बार यानी 2017 में उत्तराखंड में 65.60 प्रतिशत मतदान हुआ था. तब बंपर जनसर्थन से बीजेपी ने 57 सीटें जीत ली थी और उत्तराखंड में उसकी सरकार बनी थी.

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क्या इस बार एंटी इनकंबेंसी थी ? : चुनाव से पहले उत्तराखंड में बड़ी चर्चा थी कि इस बार बीजेपी सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है. ज्यादातर देखा गया है कि एंटी इनकंबेंसी में मतदान प्रतिशत पिछली बार की तुलना में बढ़ जाता है. हालांकि इस बार ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. इस बार का मतदान भी पिछली बार के आसपास ही है. ऐसे में साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इस बार एंटी इनकंबेंसी फैक्टर काम किया है या नहीं.

पिछली बार के मतदान प्रतिशत से तुलना: अगर मतदान प्रतिशत की तुलना करें तो पिछली बार यानी 2017 में उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में 65.60 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस बार 64.29 फीसदी मतदान हुआ है. हालांकि अभी चुनाव आयोग अपने आंकड़े दुरुस्त करेगा तो ये प्रतिशत एक या दो नंबर बढ़ सकता है.

उत्तराखंड में बारी-बारी बदलती रही है सत्ता: उत्तराखंड की राजनीति की एक खास बात ये रही है कि यहां हर चुनाव में सत्ता रोटेट होती रही है. 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड बना तो बीजेपी की अंतरिम सरकार बनी थी. फिर 2002 में उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस बाजी मार ले गई थी. 2002 में 54.21 फीसदी वोट पड़े थे. एंटी इनकंबेंसी के लिए कहा जाता है कि बंपर वोटिंग होती है. लेकिन 2002 के मतदान प्रतिशत को देखकर लगा नहीं कि एंटी इनकंबेंसी हुई थी. इसके बावजूद उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने का श्रेय लेने वाली बीजेपी चुनाव हार गई थी.

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2007 दिखी एंटी इनकंबेंसी: 2007 में पांच साल चली नारायण दत्त तिवारी की सरकार चुनाव हार गई थी. इस बार 63.72 फीसदी मतदान हुआ था. यानि 2002 के मुकाबले करीब 9 फीसदी ज्यादा. एंटी इनकंबेंसी का मामला था तो नारायण दत्त तिवारी को सत्ता गंवानी पड़ी थी. बीजेपी ने सरकार बना ली थी.

2012 में भी बढ़ा था मतदान: 2012 के विधानसभा चुनाव में फिर मतदान का प्रतिशत बढ़ गया था. इस बार उत्तराखंड में 67.22 प्रतिशत मतदान हुआ था. इसे भी एंटी इनकंबेंसी माना गया और मतदाताओं ने बीजेपी को सत्ता से उतार दिया था. इस बार 2007 के मुकाबले करीब चार फीसदी ज्याद वोट पड़े थे.

2017 में मोदी लहर में उड़ी थी कांग्रेस: 2017 में देशभर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जबरदस्त लहर चल रही थी. तब अनेक राज्यों में प्रधान नहीं बनने लायक नेता भी विधायक बन गए थे. इस बार 65.60 प्रतिशत मतदान हुआ था. यानी पिछली बार से करीब 2 फीसदी कम वोट पड़े थे. अगर वोट प्रतिशत का बढ़ना एंटी इनकंबेंसी माना जाता है तो 2017 के परिणाम को राजनीतिक विशेषज्ञ परिभाषित ही नहीं कर पाए थे.

2017 में बीजेपी ने किया था क्लीन स्वीप: दरअसल उस समय मोदी लहर ऐसी जबरदस्त थी कि सारे मिथक, सारे विश्लेषण और सारे कयास धरासायी हो गए थे. बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया था. उत्तराखंड की 70 में से 57 सीटें जीतकर बीजेपी ने इतिहास रच दिया था.

इस बार क्या होगा ? : इस बार अंदरखाने उत्तराखंड में एंटी इनकंबेंसी बताई जा रही है. किसान आंदोलन ने भी अपना कुछ ना कुछ असर दिखाया होगा. पहाड़ में नहीं तो मैदानी इलाकों जहां सिख बहुत आबादी है वहां तो किसान आंदोलन का असर दिखा ही होगा. इसका असर 10 मार्च को आने वाले चुनाव परिणाम में देखने को मिल जाएगा.

बीजेपी भी मानती थी एंटी इनकंबेंसी है: बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व और रणनीतिकार भी मानते थे कि उत्तराखंड में सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है. हालांकि उनके नेता अपनी जुबान से इसे नहीं कहते थे. लेकिन सरकार के एक कार्यकाल में तीन-तीन मुख्यमंत्री ऐसे ही नहीं बदले जाते हैं. चुनाव से ठीक 6 महीने पहले मुख्यमंत्री नहीं बदला जाता है.

मतदान के आंकड़े क्या कहते हैं ? : जिलेवार मतदान के आंकड़ों पर गौर करें तो ये भी काफी रोचक दिखाई दे रहे हैं. हरिद्वार जिले में सबसे ज्यादा 74.06 फीसदी मतदान हुआ है. 2017 में हरिद्वार में 75.68 फीसदी मतदान हुआ था. यानी हरिद्वार की 11 सीटों पर मतदान प्रतिशत इस बार सबसे ज्यादा तो है, लेकिन 2017 के मुकाबले कम है.

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उधम सिंह नगर जिला इस बार मतदान में पूरे प्रदेश में दूसरे नंबर पर है. यूएस नगर में 9 सीटों का वोटिंग प्रतिशत 71.45 फीसदी है. पिछली बार यानी 2017 में उधम सिंह नगर का वोटिंग प्रतिशत 76.01 फीसदी था. ऐसे में राजनीतिक पंडित चक्कर में पड़ गए हैं कि कम मतदान क्या गुल खिलाएगा.

देहरादून जिले की 10 सीटों का वोटिंग एवरेज 62.40 प्रतिशत है. 2017 में इस जिले की 10 सीटों का मतदान प्रतिशत 63.53 प्रतिशत रहा था. यानी इस बार पिछली बार से करीब एक फीसदी कम मतदान हुआ है. ऐसे में इसे किस मायने में एंटी इनकंबेंसी माना जाए इसे लेकर राजनीतिक विशेषज्ञ उलझन में हैं.

पहाड़ी जिलों में उत्तराखंड में ज्यादा वोटिंग: मैदानी जिलों में अगर हरिद्वार वोटिंग में अव्वल है तो पहाड़ी जिलों में बाजी उत्तरकाशी ने मारी है. गंगोत्री और यमुनोत्री धाम वाला उत्तरकाशी जिला तीन विधानसभा सीटों वाला जिला है. उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में उत्तरकाशी की तीन सीटों पर 67.32 प्रतिशत मतदान हुआ है. आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि पिछली बार उत्तरकाशी की तीन सीटों पर 69.38 फीसदी वोट पड़े थे. इस वोटिंग प्रतिशत से भी साबित नहीं हो पा रहा है कि एंटी इनकंबेंसी थी या नहीं.

बीजेपी को नुकसान होगा ये तय है: उत्तराखंड में आम चर्चा थी कि लोग राज्य सरकार के कामकाज से खुश नहीं थे. खासकर स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन की सुविधाओं का अभाव इस नाराजगी का कारण रहा है. 10 मार्च को जब चुनाव परिणाम घोषित होगा तो तय है कि 2017 की तरह बीजेपी को 57 सीटें नहीं मिलने वाली हैं. अब ये सीटें कितनी घटेंगी ये चुनाव परिणाम ही बता पाएंगे.

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कांग्रेस को पाना है खोने को कुछ नहीं है: 2017 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मोदी लहर में कांग्रेस के परखच्चे उड़ गए थे. 2012 में सत्तासीन हुई कांग्रेस की 2017 में ऐसी दुर्गति हुई थी कि 31 से 11 सीटों पर सिमट गई थी. इस चुनाव में 2017 वाली मोदी लहर नहीं दिखाई दी है. ऐसे में कांग्रेस 11 सीटों वाली स्थिति से आगे तो बढ़ेगी ही. पार्टी सत्ता के कितने पास पहुंच पाती है ये 10 मार्च को ही पता लग पाएगा.

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