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अमरिंदर का इस्तीफा: सही साबित हुई हरक की आशंका, हरीश रावत के लिए कहा था ये - Congress government fell in Punjab

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने शनिवार को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस महासचिव हरीश रावत जिन्हें पंजाब का प्रभारी बनाया गया था और ये झगड़ा सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, वो फेल साबित हुए. दरअसल उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने तो ढाई महीने पहले ही आशंका जताई थी कि हरीश रावत पंजाब में भी गुटबाजी को बढ़ा रहे होंगे. हरक ने कहा था कि हरीश रावत की गुटबाजी के कारण ही उन्होंने कांग्रेस छोड़ी थी.

Harak Singh Rawats fears came true
हरीश रावत
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Published : Sep 18, 2021, 7:09 PM IST

Updated : Sep 18, 2021, 7:33 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने आज से ठीक ढाई महीने पहले एक आशंका जताई थी. तब कांग्रेस महासचिव और पंजाब प्रभारी हरीश रावत पहली बार पंजाब कांग्रेस की गुटबाजी सुलझाने पंजाब गए थे. हरक सिंह रावत ने तब कहा था कि हरीश रावत पंजाब कांग्रेस की गुटबाजी को सुलझा नहीं पाएंगे. उन्होंने कहा था कि हरीश रावत तो खुद गुटबाजी के माहिर हैं.

हरक ने हरीश रावत को बताया था गुटबाज: हरक सिंह रावत ने कहा था कि हरीश रावत नवजोत सिद्धू से कह रहे होंगे कि तुम सही हो. कैप्टन अमरिंदर सिंह से भी कह रहे होंगे कि आप सही हो. पंजाब प्रभारी हरीश रावत की बातें सुनकर दोनों नेता झाड़ पर चढ़ जाएंगे. हरक ने कहा था कि हरीश रावत पंजाब कांग्रेस में गुटबाजी को और बढ़ा देंगे.

हरक का शक सही निकला.

हरक बोले थे हरीश रावत पंजाब में भी करा देंगे गुटबाजी: आज 18 सितंबर 2021 को उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की 2 जुलाई 2021 को कही गई बात सच साबित हो गई. कांग्रेस ने जिस भरोसे पर हरीश रावत को पंजाब कांग्रेस का विवाद सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी थी हरीश रावत उसमें बुरी तरह फेल साबित हुए. इतनी बुरी तरह फेल हुए कि पंजाब में अच्छी-खासी चल रही कैप्टन अमरिंदर की सरकार ही आज गिर गई. कैप्टन अमरिंदर ने अपनी पूरी कैबिनेट के साथ इस्तीफा दे दिया.

विवादों से हरीश रावत का चोली-दामन का साथ: दरअसल विवाद और हरीश रावत एक-दूसरे का पर्याय हैं. इसलिए वो समय-समय पर खुद भी झटके खाते रहते हैं. 2016 में हरीश रावत जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तो उनकी पार्टी के 9 विधायकों ने बगावत कर दी थी. इन विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. कांग्रेस ये झटका सह नहीं पाई. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ कर दिया था.

ये भी पढ़ें: एक ही दिन में 'बरगद' से 'गुटबाज' बने हरदा, कांग्रेस छोड़ने पर हरक ने लगाया ये इल्जाम

पिछले करीब पांच साल से कांग्रेस उत्तराखंड में विपक्ष में है, लेकिन कांग्रेस कभी एक पार्टी की तरह विपक्ष की भूमिका नहीं अदा कर पाई. जब तक इंदिरा हृदयेश जीवित थीं, हरीश रावत की उनसे कभी नहीं बनी. प्रीतम सिंह जब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे तब हरीश रावत का उनसे 36 का आंकड़ा था. इसका खामियाजा कांग्रेस ने उत्तराखंड में हर समय भुगता.

उत्तराखंड कांग्रेस में भी भयंकर गुटबाजी: दिल्ली में बैठे कांग्रेस आलाकमान को भी समझ में नहीं आया कि उत्तराखंड में पार्टी को कैसे संभाला जाए. थक-हारकर कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखंड में 5 कार्यकारी अध्यक्ष बना डाले. अब उत्तराखंड में पार्टी के पास कार्यकारी अध्यक्षों को मिलाकर कुल 6 अध्यक्ष हैं, लेकिन गुटबाजी अभी भी जस की तस है.

परिवर्तन यात्रा में दिखी गुटबाजी: उत्तराखंड कांग्रेस की गुटबाजी उनकी परिवर्तन यात्रा के समय भी साफ दिखी. जब ये यात्रा रामनगर पहुंची तो वहां प्रीतम और गणेश गोदियाल के गुट अलग थे. हरीश रावत का गुट अलग था. रामनगर में तो स्थिति इतनी विस्फोटक थी कि रणजीत रावत और हरीश रावत गुट के कार्यकर्ता एक-दूसरे का सिर फोड़ने को उतारू थे.

बयान के बाद गुरुद्वारे में लगाया झाड़ू: परिवर्तन यात्रा से पहले बड़बोले हरीश रावत ने बिना सोचे-समझे एक ऐसी टिप्पणी कर दी थी कि फिर उन्हें प्रायश्चित के लिए गुरुद्वारे में झाड़ू लगानी पड़ी और जूते साफ करके माफी मांगनी पड़ी.

दरअसल हरीश रावत ने पंजाब कांग्रेस भवन में नवजोत सिंह सिद्धू से मुलाकात के बाद प्रदेश प्रधान और चार कार्यकारी अध्यक्षों को 'पंज प्यारे' की संज्ञा दे दी थी. उन्होंने कहा कि यह मेरे पंज प्यारे हैं. रावत के इस बयान पर शिरोमणि अकाली दल और श्री अकाल तख्त साहिब ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी. शिअद प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा था कि रावत को अपने इस बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए. वहीं, श्री अकाल तख्त साहिब से भी रावत के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया आई थी.

ये भी पढ़ें: 'इतवारी लाल' कहने का खामियाजा भुगत रहे हैं हरीश रावत, बलूनी ले रहे बदला !

अनिल बलूनी से आत्मघाती नोकझोंक: बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी से हरीश रावत की नोकझोंक किसी से छिपी नहीं है. दोनों के बीच हरिद्वारीलाल और इतवारीलाल वाले कमेंट अभी ज्यादा पुराने नहीं हुए हैं. हरीश रावत की इस टिप्पणी का कांग्रेस को दोहरा नुकसान हुआ. हरीश रावत के बयान से तिलमिलाए अनिल बलूनी ने एक के बाद एक उत्तराखंड के दो विधायकों को बीजेपी में शामिल करा दिया. इनमें एक निर्दलीय प्रीतम सिंह पंवार थे तो दूसरे खुद कांग्रेस के राजकुमार थे.

हरीश रावत का प्रारंभिक जीवन: हरीश रावत का जन्‍म 27 अप्रैल 1947 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के मोहनरी में एक राजपूत परिवार में हुआ. उत्तराखंड से अपनी स्‍कूली शिक्षा प्राप्‍त कर उन्होंने उत्तर प्रदेश के लखनऊ विश्‍वविद्यालय से बीए और एलएलबी की उपाधि प्राप्‍त की.

हरीश रावत का राजनीतिक जीवन: हरीश रावत ने अपनी राजनीति की शुरुआत ब्‍लॉक स्‍तर से की थी. वे ब्‍लॉक प्रमुख बने. इसके बाद वे जिला अध्यक्ष बने. इसके तुरंत बाद ही वे युवा कांग्रेस के साथ जुड़ गए. लंबे समय तक युवा कांग्रेस में कई पदों पर रहते हुए जिला कांग्रेस अध्‍यक्ष बने.

1980 में वे पहली बार अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए. उन्हें लेबर एंड इम्प्‍लॉयमेंट का कैबिनेट राज्‍यमंत्री बनाया गया. उसके बाद 1984 व 1989 में भी उन्होंने संसद में इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1990 में वे संचार मंत्री बने और मार्च 1990 में राजभाषा कमेटी के सदस्‍य बने. 1992 में उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद संभाला, जिसकी जिम्मेदारी वे 1997 तक संभालते रहे. 1999 में हरीश रावत हाउस कमेटी के सदस्‍य बने. 2001 में उन्‍हें उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस का अध्‍यक्ष बनाया गया.

ये भी पढ़ें: कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में दिखी गुटबाजी, हरदा बोले- खेलुए और टेहलुए के चक्कर में मत पड़ो

2002 में वे राज्‍यसभा के लिए चुन लिए गए. 2009 में वे एक बार फिर लेबर एंड इम्प्‍लॉयमेंट के राज्‍यमंत्री बने. वर्ष 2011 में उन्‍हें राज्‍यमंत्री, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण इंडस्ट्री के साथ संसदीय कार्यमंत्री का कार्यभार सौंपा गया. 1 फरवरी 2014 को हरीश रावत ने विजय बहुगुणा से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली.

देहरादून: उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने आज से ठीक ढाई महीने पहले एक आशंका जताई थी. तब कांग्रेस महासचिव और पंजाब प्रभारी हरीश रावत पहली बार पंजाब कांग्रेस की गुटबाजी सुलझाने पंजाब गए थे. हरक सिंह रावत ने तब कहा था कि हरीश रावत पंजाब कांग्रेस की गुटबाजी को सुलझा नहीं पाएंगे. उन्होंने कहा था कि हरीश रावत तो खुद गुटबाजी के माहिर हैं.

हरक ने हरीश रावत को बताया था गुटबाज: हरक सिंह रावत ने कहा था कि हरीश रावत नवजोत सिद्धू से कह रहे होंगे कि तुम सही हो. कैप्टन अमरिंदर सिंह से भी कह रहे होंगे कि आप सही हो. पंजाब प्रभारी हरीश रावत की बातें सुनकर दोनों नेता झाड़ पर चढ़ जाएंगे. हरक ने कहा था कि हरीश रावत पंजाब कांग्रेस में गुटबाजी को और बढ़ा देंगे.

हरक का शक सही निकला.

हरक बोले थे हरीश रावत पंजाब में भी करा देंगे गुटबाजी: आज 18 सितंबर 2021 को उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की 2 जुलाई 2021 को कही गई बात सच साबित हो गई. कांग्रेस ने जिस भरोसे पर हरीश रावत को पंजाब कांग्रेस का विवाद सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी थी हरीश रावत उसमें बुरी तरह फेल साबित हुए. इतनी बुरी तरह फेल हुए कि पंजाब में अच्छी-खासी चल रही कैप्टन अमरिंदर की सरकार ही आज गिर गई. कैप्टन अमरिंदर ने अपनी पूरी कैबिनेट के साथ इस्तीफा दे दिया.

विवादों से हरीश रावत का चोली-दामन का साथ: दरअसल विवाद और हरीश रावत एक-दूसरे का पर्याय हैं. इसलिए वो समय-समय पर खुद भी झटके खाते रहते हैं. 2016 में हरीश रावत जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तो उनकी पार्टी के 9 विधायकों ने बगावत कर दी थी. इन विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. कांग्रेस ये झटका सह नहीं पाई. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ कर दिया था.

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पिछले करीब पांच साल से कांग्रेस उत्तराखंड में विपक्ष में है, लेकिन कांग्रेस कभी एक पार्टी की तरह विपक्ष की भूमिका नहीं अदा कर पाई. जब तक इंदिरा हृदयेश जीवित थीं, हरीश रावत की उनसे कभी नहीं बनी. प्रीतम सिंह जब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे तब हरीश रावत का उनसे 36 का आंकड़ा था. इसका खामियाजा कांग्रेस ने उत्तराखंड में हर समय भुगता.

उत्तराखंड कांग्रेस में भी भयंकर गुटबाजी: दिल्ली में बैठे कांग्रेस आलाकमान को भी समझ में नहीं आया कि उत्तराखंड में पार्टी को कैसे संभाला जाए. थक-हारकर कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखंड में 5 कार्यकारी अध्यक्ष बना डाले. अब उत्तराखंड में पार्टी के पास कार्यकारी अध्यक्षों को मिलाकर कुल 6 अध्यक्ष हैं, लेकिन गुटबाजी अभी भी जस की तस है.

परिवर्तन यात्रा में दिखी गुटबाजी: उत्तराखंड कांग्रेस की गुटबाजी उनकी परिवर्तन यात्रा के समय भी साफ दिखी. जब ये यात्रा रामनगर पहुंची तो वहां प्रीतम और गणेश गोदियाल के गुट अलग थे. हरीश रावत का गुट अलग था. रामनगर में तो स्थिति इतनी विस्फोटक थी कि रणजीत रावत और हरीश रावत गुट के कार्यकर्ता एक-दूसरे का सिर फोड़ने को उतारू थे.

बयान के बाद गुरुद्वारे में लगाया झाड़ू: परिवर्तन यात्रा से पहले बड़बोले हरीश रावत ने बिना सोचे-समझे एक ऐसी टिप्पणी कर दी थी कि फिर उन्हें प्रायश्चित के लिए गुरुद्वारे में झाड़ू लगानी पड़ी और जूते साफ करके माफी मांगनी पड़ी.

दरअसल हरीश रावत ने पंजाब कांग्रेस भवन में नवजोत सिंह सिद्धू से मुलाकात के बाद प्रदेश प्रधान और चार कार्यकारी अध्यक्षों को 'पंज प्यारे' की संज्ञा दे दी थी. उन्होंने कहा कि यह मेरे पंज प्यारे हैं. रावत के इस बयान पर शिरोमणि अकाली दल और श्री अकाल तख्त साहिब ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी. शिअद प्रवक्ता डॉ. दलजीत सिंह चीमा ने कहा था कि रावत को अपने इस बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए. वहीं, श्री अकाल तख्त साहिब से भी रावत के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया आई थी.

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अनिल बलूनी से आत्मघाती नोकझोंक: बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख अनिल बलूनी से हरीश रावत की नोकझोंक किसी से छिपी नहीं है. दोनों के बीच हरिद्वारीलाल और इतवारीलाल वाले कमेंट अभी ज्यादा पुराने नहीं हुए हैं. हरीश रावत की इस टिप्पणी का कांग्रेस को दोहरा नुकसान हुआ. हरीश रावत के बयान से तिलमिलाए अनिल बलूनी ने एक के बाद एक उत्तराखंड के दो विधायकों को बीजेपी में शामिल करा दिया. इनमें एक निर्दलीय प्रीतम सिंह पंवार थे तो दूसरे खुद कांग्रेस के राजकुमार थे.

हरीश रावत का प्रारंभिक जीवन: हरीश रावत का जन्‍म 27 अप्रैल 1947 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के मोहनरी में एक राजपूत परिवार में हुआ. उत्तराखंड से अपनी स्‍कूली शिक्षा प्राप्‍त कर उन्होंने उत्तर प्रदेश के लखनऊ विश्‍वविद्यालय से बीए और एलएलबी की उपाधि प्राप्‍त की.

हरीश रावत का राजनीतिक जीवन: हरीश रावत ने अपनी राजनीति की शुरुआत ब्‍लॉक स्‍तर से की थी. वे ब्‍लॉक प्रमुख बने. इसके बाद वे जिला अध्यक्ष बने. इसके तुरंत बाद ही वे युवा कांग्रेस के साथ जुड़ गए. लंबे समय तक युवा कांग्रेस में कई पदों पर रहते हुए जिला कांग्रेस अध्‍यक्ष बने.

1980 में वे पहली बार अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए. उन्हें लेबर एंड इम्प्‍लॉयमेंट का कैबिनेट राज्‍यमंत्री बनाया गया. उसके बाद 1984 व 1989 में भी उन्होंने संसद में इसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1990 में वे संचार मंत्री बने और मार्च 1990 में राजभाषा कमेटी के सदस्‍य बने. 1992 में उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस सेवा दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का महत्वपूर्ण पद संभाला, जिसकी जिम्मेदारी वे 1997 तक संभालते रहे. 1999 में हरीश रावत हाउस कमेटी के सदस्‍य बने. 2001 में उन्‍हें उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस का अध्‍यक्ष बनाया गया.

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2002 में वे राज्‍यसभा के लिए चुन लिए गए. 2009 में वे एक बार फिर लेबर एंड इम्प्‍लॉयमेंट के राज्‍यमंत्री बने. वर्ष 2011 में उन्‍हें राज्‍यमंत्री, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण इंडस्ट्री के साथ संसदीय कार्यमंत्री का कार्यभार सौंपा गया. 1 फरवरी 2014 को हरीश रावत ने विजय बहुगुणा से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली.

Last Updated : Sep 18, 2021, 7:33 PM IST
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