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जलवायु में हो रहे बदलाव से लगातार पिघल रहे ग्लेशियर, बड़े खतरे का संकेत

ग्लोबल वार्मिंग कई सालों से पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. माना जाता है कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर जलवायु पर पड़ता है.

जलवायु में हो रहे बदलाव से लगातार पिघल रहे ग्लेशियर
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Published : Feb 28, 2019, 11:58 PM IST

देहरादून: ग्लोबल वार्मिंग कई सालों से पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. माना जाता है कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर जलवायु पर पड़ता है. जिसके चलते पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी जीवों को मौसम की अनियमितता और समुद्री तापमान में वृद्धि होने के दुष्परिणामों का सामना करना पड़ेगा. ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम में लगातार हो रहे बदलाव को साफ देखा जा सकता है. जिसे लेकर पर्यावरणविद खासे चिंतित हैं.

जलवायु में हो रहे बदलाव से लगातार पिघल रहे ग्लेशियर

देश के पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की बात करें तो बीते कुछ सालों में यहां भी मौसम के बदलते मिजाज का असर साफ देखा जा सकता है. गौरतलब है कि कुछ सालों पहले तक प्रदेश में दिसंबर और जनवरी महीने में सबसे अधिक बर्फबारी हुआ करती थी. लेकिन वर्तमान में फरवरी महीने के अंत में प्रदेश में सबसे अधिक बर्फबारी दर्ज की गई है. जलवायु में हो रहे इस परिवर्तन को लेकर सूबे के जाने माने पर्यावरणविद और पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने चिंता व्यक्त की है.

पढ़ें:राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर आयोजित सेमिनार में बाल वैज्ञानिकों ने दिखाया हुनर

पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी ने ग्लोबल वार्मिंग के चलते पर्यावरण में हो रहे बदलाव को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि दिसंबर या जनवरी महीने के मुकाबले प्रदेश में फरवरी महीने में बर्फबारी और बारिश का सिलसिला जारी है. जो मौसम के बदलते मिजाज का एक बहुत बड़ा संकेत है. उन्होंने बताया कि दिसंबर और जनवरी महीने के मुकाबले फरवरी के महीने में तापमान में काफी इजाफा दर्ज किया जाता है. जिसके चलते इस दौरान गिरने वाली बर्फ धूप निकलते ही पिघल जाती है.

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पढ़ें:हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने गई टीम के साथ व्यापारियों की नोकझोंक, जिला प्रशासन ने दी वार्निंग

डॉ. अनिल जोशी ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है जो ग्लेशियर्स लगातार पिघलते जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि ग्लेशियर्स धरती पर मौजूद हर एक जीवित प्राणी के लिए पानी का एक बहुत कीमती स्रोत है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों से निकलने वाली जितनी भी नदियां हैं उनमें ग्लेशियर्स या बरसात का पानी ही बहता है. ऐसे में यदि ग्लेशियर्स ही नहीं रहेंगे तो भविष्य में नदियां भी नहीं रहेंगी और नदियां ही नहीं रहेंगी तो धरती पर जीवन अपने आप ही समाप्त होने लगेगा.

देहरादून: ग्लोबल वार्मिंग कई सालों से पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. माना जाता है कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे ज्यादा असर जलवायु पर पड़ता है. जिसके चलते पृथ्वी पर निवास करने वाले सभी जीवों को मौसम की अनियमितता और समुद्री तापमान में वृद्धि होने के दुष्परिणामों का सामना करना पड़ेगा. ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम में लगातार हो रहे बदलाव को साफ देखा जा सकता है. जिसे लेकर पर्यावरणविद खासे चिंतित हैं.

जलवायु में हो रहे बदलाव से लगातार पिघल रहे ग्लेशियर

देश के पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की बात करें तो बीते कुछ सालों में यहां भी मौसम के बदलते मिजाज का असर साफ देखा जा सकता है. गौरतलब है कि कुछ सालों पहले तक प्रदेश में दिसंबर और जनवरी महीने में सबसे अधिक बर्फबारी हुआ करती थी. लेकिन वर्तमान में फरवरी महीने के अंत में प्रदेश में सबसे अधिक बर्फबारी दर्ज की गई है. जलवायु में हो रहे इस परिवर्तन को लेकर सूबे के जाने माने पर्यावरणविद और पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने चिंता व्यक्त की है.

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पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी ने ग्लोबल वार्मिंग के चलते पर्यावरण में हो रहे बदलाव को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि दिसंबर या जनवरी महीने के मुकाबले प्रदेश में फरवरी महीने में बर्फबारी और बारिश का सिलसिला जारी है. जो मौसम के बदलते मिजाज का एक बहुत बड़ा संकेत है. उन्होंने बताया कि दिसंबर और जनवरी महीने के मुकाबले फरवरी के महीने में तापमान में काफी इजाफा दर्ज किया जाता है. जिसके चलते इस दौरान गिरने वाली बर्फ धूप निकलते ही पिघल जाती है.

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डॉ. अनिल जोशी ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है जो ग्लेशियर्स लगातार पिघलते जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि ग्लेशियर्स धरती पर मौजूद हर एक जीवित प्राणी के लिए पानी का एक बहुत कीमती स्रोत है. उच्च हिमालयी क्षेत्रों से निकलने वाली जितनी भी नदियां हैं उनमें ग्लेशियर्स या बरसात का पानी ही बहता है. ऐसे में यदि ग्लेशियर्स ही नहीं रहेंगे तो भविष्य में नदियां भी नहीं रहेंगी और नदियां ही नहीं रहेंगी तो धरती पर जीवन अपने आप ही समाप्त होने लगेगा.

Intro:देहरादून- ग्लोबल वार्मिंग के चलते देश और दुनिया में दिन पर दिन मौसम में बदलाव साफ देखने को मिल रहा है। जिसे लेकर पर्यावरणविद खासे चिंतित हैं ।

देश के पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड की बात करें तो बीते कुछ सालों में यहाँ भी मौसम के बदलते मिज़ाज़ का असर साफ देखा जा सकता है । गौरतलब है की कुछ सालों पहले तक प्रदेश में दिसंबर और जनवरी माह में सबसे अधिक बर्फबारी हुआ करती थी । लेकिन वर्तमान स्थिति कुछ यह है कि इस बार फरवरी माह के अंत में प्रदेश में सबसे अधिक बर्फबारी दर्ज की गई है । जिसे लेकर सूबे के जाने माने पर्यावरण विद और पद्मश्री डॉ. अनिल जोशी ने चिंता जाहिर की है ।




Body:ईटीवी भारत से बात करते हुए पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी ने ग्लोबल वार्मिंग के चलते पर्यावरण में आ रहे बदलाव को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की । उनके मुताबिक दिसंबर या जनवरी माह के मुकाबले प्रदेश में फरवरी माह में बर्फबारी और बारिश का सिलसिला जारी है। जो मौसम के बदलते मिजाज का एक बहुत बड़ा संकेत है। उनके मुताबिक दिसम्बर और जनवरी माह के मुकाबले फरवरी माह में तापमान में काफी इजाफा दर्ज किया जाता है । जिसके चलते इस दौरान गिरने वाली बर्फ धूप खिलते ही तुरंत पिघल जाती है।




Conclusion:पर्यावरणविद डॉक्टर अनिल जोशी के मुताबिक यह ग्लोबल वार्मिंग का ही असर है जो ग्लेशियर्स दिन पर दिन पिघलते जा रहे हैं । उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि क्लैशेस धरती पर मौजूद हर एक जीवित वस्तु के लिए पानी का एक बहुत कीमती स्रोत है । उनके मुताबिक ऊंच हिमालयी क्षेत्रों से निकलने वाली जितनी भी नदियां हैं उनमें ग्लेशियर्स या बरसात का पानी ही बहता है । ऐसे में यदि ग्लेशियर्स ही नहीं रहेंगे तो भविष्य में नदियां भी नहीं रहेंगी । वही जब नदिया ही नहीं रहेंगी तो धरती से जीवन अपने आप समाप्त होने लगेगा।

बाइट-पद्मश्री डॉ अनिल जोशी पर्यावरणविद
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