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देवभूमि में तेजी से किसानों का खेती से हो रहा मोहभंग, चौंकाने वाले हैं आंकड़े

उत्तराखंड में 80 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या कृषि पर आधारित है. वहां अब किसान खेती से नाता तोड़ रहे हैं. करीब 2 लाख से ज्यादा किसान खेती छोड़ चुके हैं.प्रदेश में लगातार कृषि भूमि तेजी से कम हो रही है.

किसान
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Published : Jul 19, 2019, 6:30 AM IST

Updated : Jul 19, 2019, 11:52 AM IST

देहरादूनः 80 प्रतिशत से ज्यादा लोगों के लिए आजीविका का साधन बनने वाली खेती उत्तराखंड में धीरे धीरे बिसराई जा रही है. खेती में तमाम दिक्कतों ने किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर कर दिया है. किसानों का खेती मोह भंग होता जा रहा है जो काफी चिंताजनक है. उत्तराखंड में पलायन का सबसे गंभीर रूप किसानों के खेती से विमुख होने से जुड़ा है. आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन राज्य में लाखों किसान अब तक खेती से नाता तोड़ चुके हैं. उत्तराखंड की खेती पर ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट.

उत्तराखंड में 2 लाख से ज्यादा किसानों ने खेती छोड़ी.

उत्तराखंड में पलायन पर ईटीवी भारत की अब तक कई रिपोर्ट आ चुकी हैं. इसमें खाली होते गांव से लेकर मूलभूत सुविधाओं की कमी तक को बयां किया गया, लेकिन आज हम पलायन से जुड़े खेती के उस पहलू को बताएंगे जो राज्य के लिए सबसे गंभीर चिंता बन गया है.

दरअसल उत्तराखंड जहां 80% से ज्यादा जनसंख्या कृषि पर आधारित है. वहां अब किसान खेती से नाता तोड़ रहे हैं. इसकी वजह पहाड़ों में खेती के लिए विपरीत परिस्थितियां हैं. मसलन पहाड़ों में किसानों को न तो उपज का वाजिब मूल्य मिल पाता है और न ही उसको आसानी से बाजार उपलब्ध हो पाता है.

यह भी पढ़ेंः उधम सिंह नगर: फसल बीमा योजना पर भड़के किसान, जमकर किया प्रर्दशन

इससे भी बड़ी परेशानी किसान के लिए खेती के दौरान फसल को जंगली जानवरों से बचाना है. यही नहीं पहाड़ों पर सिंचाई की कोई व्यवस्था न होने के कारण भी किसान पूरी तरह से मानसून पर ही निर्भर करता है.

आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में दो लाख से ज्यादा किसान अब तक खेती छोड़ चुके हैं जबकि राज्य में पहाड़ी जिलों में महज 20% कृषि भूमि मौजूद है जिसमें करीब 10% भूमि ही सिंचित है. इससे भी बड़ी परेशानी यह है कि प्रदेश में लगातार कृषि भूमि तेजी से कम हो रही है जहां राज्य स्थापना के दौरान प्रदेश में करीब 7.50 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि मौजूद थी वहीं अब यह घटकर 6.30 लाख हेक्टेयर तक पहुंच चुकी है.

किसानों के खेती से पलायन को लेकर यह आंकड़े जितने गंभीर हैं कृषि विभाग का रवैया इनको लेकर उतना ही उदासीन दिखता है. चौंकाने वाली बात यह है की कृषि विभाग एक तरफ पिछले कुछ सालों में खेती में रिवर्स माइग्रेशन के दावे कर रहा है तो दूसरी तरफ विभाग के पास यह आंकड़ा भी नहीं है कि कितने किसानों ने खेती छोड़ी और कितने अब रिवर्स माइग्रेशन के तहत खेती से जुड़ गए.

खास बात यह है कि इससे पहले नैनीताल हाई कोर्ट भी खेती से हो रहे पलायन को लेकर चिंता जाहिर कर चुका है.

इतने किसानों ने छोड़ी खेती-

शहरी किसान

  • देहरादून 20,000 से अधिक
  • चमोली 18,000
  • टिहरी 33,000
  • पिथौरागढ़ 22,000
  • नैनीताल 15,000
  • उत्तरकाशी 11,000
  • चंपावत 11,000
  • रुद्रप्रयाग 10,000
  • बागेश्वर 10,000

उत्तराखंड में किसानों का खेती छोड़ना एक गंभीर विषय है, जिस पर कृषि विभाग की गंभीरता बहुत ज्यादा नहीं दिखाई देती है. ऐसे में किसानों का पलायन रोकने के लिए जरूरी है कि सरकार किसानों के लिए बेहतर योजनाएं तैयार करें.

देहरादूनः 80 प्रतिशत से ज्यादा लोगों के लिए आजीविका का साधन बनने वाली खेती उत्तराखंड में धीरे धीरे बिसराई जा रही है. खेती में तमाम दिक्कतों ने किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर कर दिया है. किसानों का खेती मोह भंग होता जा रहा है जो काफी चिंताजनक है. उत्तराखंड में पलायन का सबसे गंभीर रूप किसानों के खेती से विमुख होने से जुड़ा है. आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन राज्य में लाखों किसान अब तक खेती से नाता तोड़ चुके हैं. उत्तराखंड की खेती पर ईटीवी भारत की ये खास रिपोर्ट.

उत्तराखंड में 2 लाख से ज्यादा किसानों ने खेती छोड़ी.

उत्तराखंड में पलायन पर ईटीवी भारत की अब तक कई रिपोर्ट आ चुकी हैं. इसमें खाली होते गांव से लेकर मूलभूत सुविधाओं की कमी तक को बयां किया गया, लेकिन आज हम पलायन से जुड़े खेती के उस पहलू को बताएंगे जो राज्य के लिए सबसे गंभीर चिंता बन गया है.

दरअसल उत्तराखंड जहां 80% से ज्यादा जनसंख्या कृषि पर आधारित है. वहां अब किसान खेती से नाता तोड़ रहे हैं. इसकी वजह पहाड़ों में खेती के लिए विपरीत परिस्थितियां हैं. मसलन पहाड़ों में किसानों को न तो उपज का वाजिब मूल्य मिल पाता है और न ही उसको आसानी से बाजार उपलब्ध हो पाता है.

यह भी पढ़ेंः उधम सिंह नगर: फसल बीमा योजना पर भड़के किसान, जमकर किया प्रर्दशन

इससे भी बड़ी परेशानी किसान के लिए खेती के दौरान फसल को जंगली जानवरों से बचाना है. यही नहीं पहाड़ों पर सिंचाई की कोई व्यवस्था न होने के कारण भी किसान पूरी तरह से मानसून पर ही निर्भर करता है.

आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में दो लाख से ज्यादा किसान अब तक खेती छोड़ चुके हैं जबकि राज्य में पहाड़ी जिलों में महज 20% कृषि भूमि मौजूद है जिसमें करीब 10% भूमि ही सिंचित है. इससे भी बड़ी परेशानी यह है कि प्रदेश में लगातार कृषि भूमि तेजी से कम हो रही है जहां राज्य स्थापना के दौरान प्रदेश में करीब 7.50 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि मौजूद थी वहीं अब यह घटकर 6.30 लाख हेक्टेयर तक पहुंच चुकी है.

किसानों के खेती से पलायन को लेकर यह आंकड़े जितने गंभीर हैं कृषि विभाग का रवैया इनको लेकर उतना ही उदासीन दिखता है. चौंकाने वाली बात यह है की कृषि विभाग एक तरफ पिछले कुछ सालों में खेती में रिवर्स माइग्रेशन के दावे कर रहा है तो दूसरी तरफ विभाग के पास यह आंकड़ा भी नहीं है कि कितने किसानों ने खेती छोड़ी और कितने अब रिवर्स माइग्रेशन के तहत खेती से जुड़ गए.

खास बात यह है कि इससे पहले नैनीताल हाई कोर्ट भी खेती से हो रहे पलायन को लेकर चिंता जाहिर कर चुका है.

इतने किसानों ने छोड़ी खेती-

शहरी किसान

  • देहरादून 20,000 से अधिक
  • चमोली 18,000
  • टिहरी 33,000
  • पिथौरागढ़ 22,000
  • नैनीताल 15,000
  • उत्तरकाशी 11,000
  • चंपावत 11,000
  • रुद्रप्रयाग 10,000
  • बागेश्वर 10,000

उत्तराखंड में किसानों का खेती छोड़ना एक गंभीर विषय है, जिस पर कृषि विभाग की गंभीरता बहुत ज्यादा नहीं दिखाई देती है. ऐसे में किसानों का पलायन रोकने के लिए जरूरी है कि सरकार किसानों के लिए बेहतर योजनाएं तैयार करें.

Intro:स्पेशल रिपोर्ट

summary-उत्तराखंड में पलायन का सबसे गंभीर रूप किसानों के खेती से विमुख होने से जुड़ा है.. आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन राज्य में लाखों किसान अब तक खेती से खुद का नाता तोड़ चुके हैं...


अस्सी प्रतिशत से ज्यादा लोगों के लिए आजीविका का साधन बनने वाली खेती उत्तराखंड में धीरे धीरे बिसराई जा रही है। खेती में तमाम दिक्कतों ने किसानों को खेती छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। उत्तराखंड की खेती पर ईटीवी भारत की ये स्पेशल रिपोर्ट....




Body:उत्तराखंड में पलायन पर ईटीवी भारत की अब तक कई रिपोर्ट आ चुकी है... इसमें खाली होते गांव से लेकर मूलभूत सुविधाओं की कमी तक को बयां किया गया.. लेकिन आज हम पलायन से जुड़े खेती के उस पहलू को बताएंगे जो राज्य के लिए सबसे गंभीर चिंता बन गया है। दरअसल उत्तराखंड जहां 80% से ज्यादा जनसंख्या कृषि पर आधारित है..वहां अब किसान खेती से नाता तोड़ रहे हैं.. इसकी वजह पहाड़ों में खेती के लिए विपरीत परिस्थितियां हैं... मसलन पहाड़ों में किसानों को न तो उपज का वाजिब मूल्य मिल पाता है और ना ही उसको आसानी से बाजार उपलब्ध हो पाता है। इससे भी बड़ी परेशानी किसान के लिए खेती के दौरान फसल को जंगली जानवरों से बचाना है। यही नहीं पहाड़ों पर सिंचाई की कोई व्यवस्था ना होने के कारण भी किसान पूरी तरह से मानसून पर ही निर्भर करता है।  


आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में दो लाख से ज्यादा किसान अब तक खेती छोड़ चुके हैं जबकि राज्य में पहाड़ी जिलों में महज 20% कृषि भूमि मौजूद है जिसमें करीब 10% भूमि ही सिंचित है। इससे भी बड़ी परेशानी यह है कि प्रदेश में लगातार कृषि भूमि तेजी से कम हो रही है जहां राज्य स्थापना के दौरान प्रदेश में करीब 7:50 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि मौजूद थी वहीं अब यह घटकर 6:30 लाख हेक्टेयर तक पहुंच चुकी है। 


किसानों के खेती से पलायन को लेकर यह आंकड़े जितने गंभीर है कृषि विभाग का रवैया इनको लेकर उतना ही उदासीन दिखता है। चौंकाने वाली बात यह है की कृषि विभाग एक तरफ पिछले कुछ सालों में खेती में रिवर्स माइग्रेशन के दावे कर रहा है तो दूसरी तरफ विभाग के पास यह आंकड़ा भी नहीं है कि कितने किसानों ने खेती छोड़ी और कितने अब रिवर्स माइग्रेशन के तहत खेती से जुड़ गए। 


बाइट सुबोध उनियाल कृषि मंत्री उत्तराखंड


खास बात यह है कि इससे पहले नैनीताल हाई कोर्ट भी खेती से हो रहे पलायन को लेकर चिंता जाहिर कर चुका है... जारी आंकड़ों के अनुसार देहरादून में ही करीब 20,000 से ज्यादा किसान खेती छोड़ चुके हैं जबकि पहाड़ी जनपदों में चमोली में 18000 किसान, टिहरी में 33000 किसान, पिथौरागढ़ में 22000 किसान, नैनीताल में करीब 15000 किसान, उत्तरकाशी में 11000 तो चंपावत में भी ग्यारह हजार के करीब किसानों ने खेती छोड़ी है। इसी तरह रुद्रप्रयाग और बागेश्वर में भी करीब 10000 किसान खेती छोड़ चुके हैं।




Conclusion:उत्तराखंड में किसानों का खेती छोड़ना एक गंभीर विषय है जिसपर कृषि विभाग की गंभीरता बहुत ज्यादा नहीं दिखाई देती है... ऐसे में किसानों का पलायन रोकने के लिए जरूरी है कि सरकार किसानों के लिए बेहतर योजनाएं तैयार करे।


पीटीसी नवीन उनियाल देहरादून
Last Updated : Jul 19, 2019, 11:52 AM IST
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