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19 साल बाद भी नहीं बन पाया सपनों का उत्तराखंड!, लगातार खाली हो रही तिबारी डंडियाली - Uttarakhand News

राज्य आंदोलनकारियों ने साफ तौर पर कहा कि अलग राज्य का गठन इसलिए किया गया था कि प्रदेश का विकास होगा, पहाड़ की बात होगी, रोजगार के अवसर खुलेंगे लेकिन इन 19 सालों में ऐसा कुछ नहीं हुआ.

19 साल बाद भी नहीं बन पाया सपनो का उत्तराखंड!
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Published : Nov 4, 2019, 6:27 PM IST

Updated : Nov 4, 2019, 8:54 PM IST

देहरादून: 9 नवंबर 2000 को कई सालों के संघर्ष और आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश से अलग होकर पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड का गठन हुआ था. आने वाले कुछ दिन में उत्तराखंड राज्य के गठन को 19 साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन इन 19 सालों में आज भी एक सवाल मौजूद है कि क्या हम अपने सपनों का उत्तराखंड बना पाएं हैं? क्या जिन हक-हकूकों के लिए अलग प्रदेश की मांग की गई थी वो आज प्रदेशवासियों को मिल पाया है ?

19 साल बाद भी नहीं बन पाया सपनों का उत्तराखंड!

बता दें कि उत्तराखंड राज्य गठन का मुद्दा सबसे पहले साल 1938 में श्रीनगर में आयोजित भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में उठाया गया था. जिसके बाद ये मुद्दा साल दर साल और भी उग्र रूप लेता चला गया. उत्तराखंड राज्य गठन के आंदोलन में कई ऐसी घटनाएं भी घटीं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता.

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बात चाहे 2 अक्टूबर 1984 में हुए रामपुर तिराहा कांड की हो या फिर 1994 में हुए खटीमा और मसूरी गोलीकांड की हो, ये वे सभी घटनाएं हैं जिन्हें याद करके आज भी सिहरन पैदा हो जाती है. इन घटनाओं में कई 40 राज्य आंदोलनकारी शहीद हुए तो कई गंभीर रूप से घायल भी हुए. राज्य स्थापना दिवस के मौके पर जब ईटीवी भारत ने राज्य आंदोलन का हिस्सा रहे आंदोलनकारियों से बात तो वो काफी हताश नजर आये.

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ईटीवी भारत से बात करते हुए राज्य आंदोलनकारियों ने साफ तौर पर कहा कि अलग राज्य का गठन इसलिए किया गया था कि प्रदेश का विकास होगा, पहाड़ की बात होगी, रोजगार के अवसर खुलेंगे. लेकिन इन 19 सालों में ऐसा कुछ नहीं हुआ. आज भी प्रदेश विकास के नाम पर लगातार ठगा जा रहा है, पहाड़ खाली हो रहे हैं, युवा रोजगार की तलाश में मैदानी इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं.

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प्रदेश की निवर्तमान और वर्तमान की त्रिवेंद्र सरकार पर कटाक्ष करते हुए राज्य आंदोलनकारियों ने कहा कि राज्य गठन के बाद चुनी गई सभी सरकारों ने केवल प्रदेशवासियों को ठगने का काम किया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि 19 साल बीत जाने के बाद भी आज तक प्रदेश को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है. हालांकि राज्य गठन के दौरान गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाए जाने का वादा किया गया था लेकिन इसे आज तक पूरा नहीं किया गया है.

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राज्य स्थापना के इन 19 सालों में हुए विकास पर प्रदेश के जाने- माने साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने भी सवाल खड़े किए हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी का कहना था कि प्रदेश में 19 सालों में काफी धीमी गति से विकास हुआ है. इन सालों में जो विकास हुआ भी है वह भी सिर्फ मैदानी इलाकों तक ही सिमट कर रह गया है.

पढ़ें-छात्रवृत्ति घोटाला: 2 दलाल गिरफ्तार, अब बड़ी 'मछलियों' पर SIT की नजर

अपने पैतृक गांव धंनगड़ का उदाहरण देते हुए साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी का कहना था कि इन 19 सालों में अब तक प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों तक सड़क और स्वास्थ्य सुविधांए नहीं पहुंच पाई हैं. इसमें उनका अपना पैतृक गांव धंनगड़ भी शामिल है. आज भी उन्हें अपने पैतृक गांव धंनगड़ पहुंचने के लिए 20 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है.

देहरादून: 9 नवंबर 2000 को कई सालों के संघर्ष और आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश से अलग होकर पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड का गठन हुआ था. आने वाले कुछ दिन में उत्तराखंड राज्य के गठन को 19 साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन इन 19 सालों में आज भी एक सवाल मौजूद है कि क्या हम अपने सपनों का उत्तराखंड बना पाएं हैं? क्या जिन हक-हकूकों के लिए अलग प्रदेश की मांग की गई थी वो आज प्रदेशवासियों को मिल पाया है ?

19 साल बाद भी नहीं बन पाया सपनों का उत्तराखंड!

बता दें कि उत्तराखंड राज्य गठन का मुद्दा सबसे पहले साल 1938 में श्रीनगर में आयोजित भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में उठाया गया था. जिसके बाद ये मुद्दा साल दर साल और भी उग्र रूप लेता चला गया. उत्तराखंड राज्य गठन के आंदोलन में कई ऐसी घटनाएं भी घटीं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता.

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बात चाहे 2 अक्टूबर 1984 में हुए रामपुर तिराहा कांड की हो या फिर 1994 में हुए खटीमा और मसूरी गोलीकांड की हो, ये वे सभी घटनाएं हैं जिन्हें याद करके आज भी सिहरन पैदा हो जाती है. इन घटनाओं में कई 40 राज्य आंदोलनकारी शहीद हुए तो कई गंभीर रूप से घायल भी हुए. राज्य स्थापना दिवस के मौके पर जब ईटीवी भारत ने राज्य आंदोलन का हिस्सा रहे आंदोलनकारियों से बात तो वो काफी हताश नजर आये.

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ईटीवी भारत से बात करते हुए राज्य आंदोलनकारियों ने साफ तौर पर कहा कि अलग राज्य का गठन इसलिए किया गया था कि प्रदेश का विकास होगा, पहाड़ की बात होगी, रोजगार के अवसर खुलेंगे. लेकिन इन 19 सालों में ऐसा कुछ नहीं हुआ. आज भी प्रदेश विकास के नाम पर लगातार ठगा जा रहा है, पहाड़ खाली हो रहे हैं, युवा रोजगार की तलाश में मैदानी इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं.

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प्रदेश की निवर्तमान और वर्तमान की त्रिवेंद्र सरकार पर कटाक्ष करते हुए राज्य आंदोलनकारियों ने कहा कि राज्य गठन के बाद चुनी गई सभी सरकारों ने केवल प्रदेशवासियों को ठगने का काम किया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि 19 साल बीत जाने के बाद भी आज तक प्रदेश को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है. हालांकि राज्य गठन के दौरान गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाए जाने का वादा किया गया था लेकिन इसे आज तक पूरा नहीं किया गया है.

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राज्य स्थापना के इन 19 सालों में हुए विकास पर प्रदेश के जाने- माने साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने भी सवाल खड़े किए हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी का कहना था कि प्रदेश में 19 सालों में काफी धीमी गति से विकास हुआ है. इन सालों में जो विकास हुआ भी है वह भी सिर्फ मैदानी इलाकों तक ही सिमट कर रह गया है.

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अपने पैतृक गांव धंनगड़ का उदाहरण देते हुए साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी का कहना था कि इन 19 सालों में अब तक प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों तक सड़क और स्वास्थ्य सुविधांए नहीं पहुंच पाई हैं. इसमें उनका अपना पैतृक गांव धंनगड़ भी शामिल है. आज भी उन्हें अपने पैतृक गांव धंनगड़ पहुंचने के लिए 20 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है.

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Special story on 19 th Rajya Sthapna Diwas.

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देहरादून- 9 नवंबर साल 2000 को कई सालों के संघर्ष और उग्र आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश से अलग होकर पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड का गठन हुआ था । वर्तमान में उत्तराखंड राज्य गठन को 19 साल पूरे हो रहे है । लेकिन अहम सवाल यही है कि क्या इन 19 सालों में प्रदेश वासियों के वह सपने पूरे हो पाए हैं । जिन सपनो के लिए अलग राज्य उत्तराखंड की लड़ाई लड़ी गई थी ।

बता दें कि उत्तराखंड राज्य गठन का मुद्दा सर्वप्रथम साल 1938 में श्रीनगर में आयोजित भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में उठा था । इस दिन के बाद यह मुद्दा साल दर साल और उग्र रूप से उठता चला गया ।

उत्तराखंड राज्य गठन के आंदोलन में कई ऐसी घटनाएं भी घटी जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता। बात करें 2 ऑक्टोबर 1984 में हुए रामपुर तिराहा कांड की, या 1 सितंबर 1994 को हुए खटीमा गोलीकांड की या 2 सितंबर 1994 को हुए मसूरी गोलीकांड की । यह सभी कुछ ऐसी घटनाएं हैं जिसमें कई राज्य आंदोलनकारी गंभीर रूप से चोटिल हुए तो 40 से भी ज्यादा राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए ।

उत्तराखंड राज्य गठन के 19 साल पूरे होने पर जब ईटीवी भारत ने राज्य गठन के लिए उग्र आंदोलन करने वाले राज्य आंदोलनकारियों से बात की तो राज्य आंदोलनकारी प्रदेश की वर्तमान स्थिति और प्रदेश में हो रहे विकास कार्यों से काफी हताश नजर आए ।




Body:ईटीवी भारत से बात करते हो राज्य आंदोलनकारियों का साफ तौर पर कहना था कि उत्तर प्रदेश से अलग कर उत्तराखंड राज्य का गठन इन सपनों के साथ किया गया था कि इससे यहां के पहाड़ों का विकास होगा और स्थानीय निवासियों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे । लेकिन 19 साल बीत जाने के बावजूद प्रदेश के पहाड़ों तक विकास नहीं पहुंच पाया है । जो एक बड़ा कारण है प्रदेश के पहाड़ी जनपदों से लगातार हो रहे पलायन का।

वहीं प्रदेश की निवर्तमान और वर्तमान की त्रिवेंद्र सरकार पर कटाक्ष करते हुए राज्य आंदोलनकारियों का कहना था कि राज्य गठन के बाद चुनी गई सभी सरकारों ने प्रदेशवासियों को सिर्फ ठगने का कार्य किया है । इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि 19 साल बीत जाने के बावजूद आज भी उत्तराखण्ड की कोई स्थाई राजधानी नही है । हालांकि राज्य गठन के दौरान गैरसेंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाए जाने का वादा किया गया था । लेकिन यह वादा अब तक भी पूरा नहीं हो पाया है ।

वही राज्य स्थापना के इन 19 सालों में हुए विकास पर प्रदेश के जाने- माने साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने भी सवाल खड़े किए हैं । ईटीवी भारत से बात करते हुए पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी का कहना था कि प्रदेश में 19 सालों में काफी धीमी गति से विकास हुआ है । इन सालों में जो विकास हुआ भी है वह भी सिर्फ मैदानी इलाकों तक सिमट कर रह गया है ।

टिहरी जनपद स्थित अपने पैतृक गांव धंनगड़ का उदाहरण देते हुए साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी का कहना था कि इन 19 सालों में अब तक प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रो तक सड़क और स्वास्थ्य सुविधांए नही पहुँच पाई हैं । इसमें उनका अपना पैतृक गांव धंनगड़ भी है । आज भी उन्हें अपने पैतृक गांव धंनगड़ पहुंचने के लिए 20 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है ।


Conclusion:
Last Updated : Nov 4, 2019, 8:54 PM IST
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