देहरादून: 9 नवंबर 2000 को कई सालों के संघर्ष और आंदोलन के बाद उत्तर प्रदेश से अलग होकर पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड का गठन हुआ था. आने वाले कुछ दिन में उत्तराखंड राज्य के गठन को 19 साल पूरे होने वाले हैं. लेकिन इन 19 सालों में आज भी एक सवाल मौजूद है कि क्या हम अपने सपनों का उत्तराखंड बना पाएं हैं? क्या जिन हक-हकूकों के लिए अलग प्रदेश की मांग की गई थी वो आज प्रदेशवासियों को मिल पाया है ?
बता दें कि उत्तराखंड राज्य गठन का मुद्दा सबसे पहले साल 1938 में श्रीनगर में आयोजित भारतीय राष्ट्र कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में उठाया गया था. जिसके बाद ये मुद्दा साल दर साल और भी उग्र रूप लेता चला गया. उत्तराखंड राज्य गठन के आंदोलन में कई ऐसी घटनाएं भी घटीं जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता.
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बात चाहे 2 अक्टूबर 1984 में हुए रामपुर तिराहा कांड की हो या फिर 1994 में हुए खटीमा और मसूरी गोलीकांड की हो, ये वे सभी घटनाएं हैं जिन्हें याद करके आज भी सिहरन पैदा हो जाती है. इन घटनाओं में कई 40 राज्य आंदोलनकारी शहीद हुए तो कई गंभीर रूप से घायल भी हुए. राज्य स्थापना दिवस के मौके पर जब ईटीवी भारत ने राज्य आंदोलन का हिस्सा रहे आंदोलनकारियों से बात तो वो काफी हताश नजर आये.
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ईटीवी भारत से बात करते हुए राज्य आंदोलनकारियों ने साफ तौर पर कहा कि अलग राज्य का गठन इसलिए किया गया था कि प्रदेश का विकास होगा, पहाड़ की बात होगी, रोजगार के अवसर खुलेंगे. लेकिन इन 19 सालों में ऐसा कुछ नहीं हुआ. आज भी प्रदेश विकास के नाम पर लगातार ठगा जा रहा है, पहाड़ खाली हो रहे हैं, युवा रोजगार की तलाश में मैदानी इलाकों की ओर रुख कर रहे हैं.
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प्रदेश की निवर्तमान और वर्तमान की त्रिवेंद्र सरकार पर कटाक्ष करते हुए राज्य आंदोलनकारियों ने कहा कि राज्य गठन के बाद चुनी गई सभी सरकारों ने केवल प्रदेशवासियों को ठगने का काम किया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि 19 साल बीत जाने के बाद भी आज तक प्रदेश को स्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है. हालांकि राज्य गठन के दौरान गैरसैंण को प्रदेश की स्थाई राजधानी बनाए जाने का वादा किया गया था लेकिन इसे आज तक पूरा नहीं किया गया है.
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राज्य स्थापना के इन 19 सालों में हुए विकास पर प्रदेश के जाने- माने साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने भी सवाल खड़े किए हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी का कहना था कि प्रदेश में 19 सालों में काफी धीमी गति से विकास हुआ है. इन सालों में जो विकास हुआ भी है वह भी सिर्फ मैदानी इलाकों तक ही सिमट कर रह गया है.
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अपने पैतृक गांव धंनगड़ का उदाहरण देते हुए साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी का कहना था कि इन 19 सालों में अब तक प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों तक सड़क और स्वास्थ्य सुविधांए नहीं पहुंच पाई हैं. इसमें उनका अपना पैतृक गांव धंनगड़ भी शामिल है. आज भी उन्हें अपने पैतृक गांव धंनगड़ पहुंचने के लिए 20 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है.