देहरादून: बॉलीवुड फिल्म 'छपाक' के रिलीज होने के बाद एक बार पूरे देश में फिर से एसिड चर्चाओं में आ गया है. हर जगह इसकी बिक्री से लेकर और सर्वाइवरों के बारे में बात की जा रही है. बात अगर देवभूमि उत्तराखंड की करें तो यहां भी अब तक एसिड अटैक की 10 से 12 घटनाएं हो चुकी हैं. ऐसे में प्रशासन लगातार अवैध रूप से एसिड बिक्री पर रोक लगाने के लाख दावे करता है, मगर इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आती है. प्रशासन के दावों को परखने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने राजधानी के पॉश इलाकों सहित कई बाजारों में एसिड की बिक्री का रियलिटी चेक किया. इसके लिए ईटीवी भारत ने शासन-प्रशासन के नीति-नियंताओं की नब्ज भी टटोली और जाना कि आखिर क्या देवभूमि में वाकई एसिड की अवैध बिक्री पर रोक लग पाई है या नहीं?
एसिड की अवैध बिक्री को लेकर तमाम सरकारें समय-समय पर कई प्रावधान करती रहती हैं. उत्तराखंड में भी शासन-प्रशासन ने एसिड की अवैध बिक्री को रोकने के लिए कई नियम-कानून बनाए हैं. क्या हैं एसिड की अवैध बिक्री को रोकने के लिए बनाये गये कानून, आईये आपको हुक्मरानों की ही जुबानी सुनाते हैं.
इस बारे में सबसे पहले हमारी टीम ने देहरादून जिलापूर्ति अधिकारी जसवंत सिंह कंडारी से बात की. उन्होंने सबसे पहले वही बात बताई जो हर कोई अधिकारी कहता है. उन्होंने अपनी बात की शुरुआत में कहा अवैध रूप से तेजाब बेचना दंडनीय अपराध है. उन्होंने बताया कि करीब तीन साल पहले तेजाब बिक्री को लेकर नये प्रावधान तय किये गये थे, जिस हिसाब से लाइसेंस जारी किए गए थे.
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तेजाब खरीदने और बेचने के नियमों पर बोलते हुए उन्होंने बताया कि एसिड खरीदने वाले के लिए आधार कार्ड के साथ ही उसके इस्तेमाल की वाजिब जानकारी देना जरूरी होता है. बिना इस जानकारी के एसिड खरीदना और बेचना अवैध माना जाता है. जसवंत सिंह ने बताया कि दुकानों में टॉयलेट क्लीनर के नाम से बेचा जाने वाला तरल भी एसिड ही होता है. जिसमें H2So4 मौजूद होता है. इससे किसी को भी नुकसान पहुंचाया जा सकता है. उन्होंने बताया टॉयलेट क्लीनर को बेचने के लिए दुकानदार को एक रजिस्टर बनाना होता है. जिसमें खरीदने वाले की जानकारी अंकित करनी होती है. ऐसा न करना अपराध की श्रेणी में आता है.
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ये तो थी कार्यालयों में बैठे नीति-नियंताओ और अधिकारियों की बात. उनकी बातों की पुष्टि के लिए हमारी टीम ने देहरादून के बाजारों की ओर रुख करते हुए धरातलीय हकीकत को टटोलने की कोशिश की. इस हकीकत में जो भी निकलकर सामने आया वो वाकई में चौंकाने वाला था. हमारी टीम को तब बड़ा ताजुज्ब हुआ जब हमने अधिकारी से बात करने के बाद राजधानी के पॉश इलाके नेहरू कॉलोनी की एक किराने की दुकान में खुले तौर पर एसिड बिकते देखा. जब हमने दुकानदार से एसिड खरीदा तो उसने बिना झिझक बिना किसी जानकारी के मात्र 25₹ में ये सामान हमारे हाथों में थमा दिया. जब हमने दुकानदार से कहा कि वे ये एसिड खुले तौर पर कैसे बेच रहे हैं तो उन्होंने कहा ये मात्र एक टॉयलेट क्लीनर है, इससे किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचता.
विक्रेताओं के इस मासूम से जवाब ने बिना कहे ही अधिकारियों के दावे की पोल खोल दी. ऐसा सिर्फ एक या दो दुकानों में ही नहीं बल्कि हर दुकान पर यही सिनेरियो नजर आया, जोकि बहुत की चौंकाने वाला था. जिससे एक बार फिर साफ हो जाता है कि नियम और कानून बनाने वाले केवल एसी दफ्तरों तक ही सीमित हैं. उनके बनाये कानून कागजों में कहने को कड़े हो सकते हैं लेकिन धरातल पर ये कानून बिना जहर वाले सांप की तरह हैं. जिनसे किसी को भी कोई फर्क नहीं पड़ता.
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बहरहाल, ईटीवी भारत ने एसिड के रियलिटी चेक में पाया कि राजधानी देहरादून में मुख्य चौक चौराहों को छोड़ दें तो सभी गली-कॉलोनियों में किराने की दुकान पर बड़ी ही आसानी से कम दरों में एसिड मिल जाता है. जोकि अपने आप में बहुत ही बड़ी चिंता का विषय है. ये रियलिटी चेक सरकार और प्रशासन में बैठे उन अधिकारियों के लिए भी एक बड़ा सबक है जो आलीशान दफ्तरों में बैठकर बड़े-बड़े दावे करते हैं, मगर करते कुछ नहीं. एसिड जैसे मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए एक जिम्मेदार मीडिया संस्थान होने के नाते ईटीवी भारत ने बाजार में धड़ल्ले से बेचे जा रहे एसिड की सच्चाई को सबके सामने रखा. अब शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है कि वो भी इसे गंभीरता से लेते हुए इस पर कार्रवाई करते हुए एक नजीर पेश करें.