देहरादून: शिक्षा और स्वास्थ्य किसी भी राज्य की दो मूलभूत जरूरतें होती हैं. लेकिन उत्तराखंड बनने के 21 साल बाद भी इन दोनों क्षेत्रों की बदहाली बताती है कि अब तक के हुक्मरानों ने राज्य के विकास के लिए क्या किया. उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था राज्य बनने से पहले जितनी खस्ताहाल थी, उत्तराखंड बनने के बाद भी वैसी ही बदहाल है. राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 654 पद खाली हैं.
सिर्फ 43 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टर हैं तैनात: उत्तराखंड में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 1147 पद स्वीकृत हैं. इसके सापेक्ष सिर्फ 493 डॉक्टर ही राज्य के सरकारी अस्पतालों में तैनात हैं. यानी डॉक्टरों के 654 पद खाली हैं. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देवभूमि में बीमार होने वाले किस तरह भगवान भरोसे हैं.
देहरादून जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 10 पद खाली: अब हम जिलावार सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की तैनाती और खाली पदों के बारे में बताते हैं. सबसे पहले राजधानी देहरादून जिले की बात करते हैं. देहरादून जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 127 पद स्वीकृत हैं. यहां अस्पतालों में 117 पदों पर डॉक्टर तैनात हैं. देहरादून जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 10 पद खाली हैं. ये तो हुए हाथी के खाने के दांत और और दिखाने के दांत और. क्योंकि देहरादून तो राजधानी ठहरी. मुख्यमंत्री और तमाम मंत्रियों समेत बड़े-बड़े अधिकारी इसी जिले में रहते हैं. इसलिए यहां सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की तैनाती 92 फीसदी है.
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रुद्रप्रयाग जिले में महज 63 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टर: अब उन जिलों की बात करते हैं जहां डॉक्टरों की किल्लत की असली तस्वीर राज्य की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलती है. राजधानी देहरादून से मात्र 177 किलोमीटर दूर है रुद्रप्रयाग जिला. इस जिले की जनसंख्या करीब ढाई लाख है. यहां डॉक्टरों के कुल 30 पद स्वीकृत हैं. इसके सापेक्ष यहां सिर्फ 19 डॉक्टर ही कार्यरत हैं. रुद्रप्रयाग जिले में डॉक्टरों के 11 पद रिक्त हैं. यानी यहां डॉक्टरों की तैनाती 63 फीसदी है.
यूएस नगर में स्पेशलिस्ट डॉस्टरों के 48 पद खाली: अब बात करते हैं उधमसिंह नगर जिले की. जनसंख्या के लिहाज से राज्य के तीसरे सबसे बड़े जिले में भी स्वास्थ्य व्यवस्था अन्य जिलों से जुदा नहीं हैं. इस जिले में सरकारी विशेषज्ञ डॉक्टरों के 102 पद सृजित हैं. चौंकाने वाली बात ये है कि इनमें से सिर्फ 54 विशेषज्ञ डॉक्टर ही पदों पर तैनात हैं. स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 48 पद खाली हैं. यानी डॉक्टरों की तैनाती का प्रतिशत बमुश्किल 53 तक पहुंचा है. इसके विपरीत उधमसिंह नगर जिले की आबादी 19,12,276 है.
उत्तरकाशी जिले में 45 के सापेक्ष सिर्फ 22 विशेषज्ञ डॉक्टर: सीमांत और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जिले उत्तरकाशी में विशेषज्ञ डॉक्टरों के कुल 46 पद सृजित हैं. मगर यहां 24 विशेषज्ञ डॉक्टर की तैनात हैं, जबकि स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 22 पद खाली हैं. यहां डॉक्टरों की तैनाती का प्रतिशत 52 है. जिले की आबादी 3,82,900 है.
चंपावत जिले में 23 विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी: चंपावत जिले की बात करें तो यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों के कुल 45 पद हैं. इसके सापेक्ष सिर्फ 22 विशेषज्ञ डॉक्टर ही इस जिले में तैनात हैं. 23 डॉक्टरों के पद खाली हैं. इस पहाड़ी जिले में विशेषज्ञ डॉक्टों की तैनाती का प्रतिशत सिर्फ 49 है. इस कारण यहां के लोग यूपी के अस्पतालों पर निर्भर हैं. या तो यहां से मरीजों को बरेली जाना पड़ता है या फिर उनकी मंजिल लखनऊ होती है.
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बागेश्वर जिले में सिर्फ 41 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टर तैनात: पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के जिले बागेश्वर की बात करें तो विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती के मामले में यहां की हालत दयनीय है. बागेश्वर जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों के कुल 37 पद हैं. इसकी तुलना में यहां सिर्फ 15 डॉक्टर ही तैनात हैं. विशेषज्ञ डॉक्टरों के आधे से बहुत ज्यादा यानी 22 पद खाली हैं. इस जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती का औसत सिर्फ 41 है. एक पूर्व मुख्यमंत्री के जिले का हाल देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि बागेश्वर जिला किस कदर विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी झेल रहा है. इसलिए यहां के अस्पताल महज रेफरल अस्पताल बनकर रह गए हैं.
अल्मोड़ा जिले में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 78 पद खाली: उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में आदम युग में है. यहां से अजय टम्टा सांसद हैं. प्रदीप टम्टा सांसद रहे. लंबे समय तक हरीश रावत यहां का प्रतिनिधित्व करते रहे, इसके बावजूद अल्मोड़ा जिला कभी भी अपनी स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाया. अभी नैनीताल-उधम सिंह नगर संसदीय सीट से सांसद और केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट इसी जिले से आते हैं. इसके बावजूद अल्मोड़ा जिले में स्वीकृत 127 विशेषज्ञ डॉक्टरों में से सिर्फ 49 पदों पर ही डॉक्टरों तैनात हैं. यानी 78 खाली पदों के साथ यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती का प्रतिशत सिर्फ 39 है.
यहां एक कैबिनेट मंत्री सिर्फ अपनी हनक के कारण मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य को इसलिए हटा देती हैं कि उनकी मीटिंग में उसने विधानसभा के डिप्टी स्पीकर का फोन कैसे और क्यों उठा लिया. लेकिन इसी कैबिनेट मंत्री को अल्मोड़ा जिले के विशेषज्ञ डॉक्टरों के खाली पड़े 78 जिले दिखाई नहीं दे रहे हैं. इलाज के लिए मरीज भगवान भरोसे हैं.
हरिद्वार में 21 लाख की आबादी पर सिर्फ 40 विशेषज्ञ डॉक्टर: जनसंख्या की दृष्टि से उत्तराखंड के सबसे बड़े जिले हरिद्वार की बात करें तो यहां 21 लाख से ज्यादा की जनसंख्या पर विशेषज्ञ डॉक्टरों के 105 पद हैं. इसकी तुलना में सिर्फ 40 विशेषज्ञ डॉक्टर पदों पर तैनात हैं. पूरे 65 विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद खाली हैं. कुंभ के दौरान फर्जी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट के लिए बदनाम हुए हरिद्वार जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती का प्रतिशत सिर्फ 38 है. दिलचस्प बात ये है कि हरिद्वार धर्मनगरी है. यहां देश-दुनिया से श्रद्धालुओं की भीड़ अक्सर जुटती है.
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नैनीताल जिले में सिर्फ 38 फीसदी स्पेशलिस्ट डॉक्टर: उत्तराखंड के बड़े हिल स्टेशन के लिए जाने जाने वाले नैनीताल जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों के सबसे ज्यादा 157 पद बनाए गए हैं. मगर अफसोस यहां सिर्फ 59 विशेषज्ञ डॉक्टर ही तैनात हैं. शतक से दो कम यानी 98 विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद खाली हैं. अंग्रेजों की जमाने से देश-दुनिया की नजरों में रहे नैनीताल जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती का प्रतिशत महज 38 फीसदी ही है.
पिथौरागढ़ जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 37 पद खाली: सामरिक दृष्टि से राज्य के एक और महत्वपूर्ण जिले पिथौरागढ़ की त करें तो यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों के 59 पद सृजित हैं. चीन-तिब्बत- नेपाल बॉर्डर से सटे इस जिले में महज 22 विशेषज्ञ डॉक्टर ही तैनात हैं. पूरे 37 पद खाली होने से मरीज भगवान भरोसे हैं. यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती सिर्फ 37 फीसदी है.
VVIP जिले पौड़ी में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 110 पद खाली: उत्तराखंड के VVIP जिले पौड़ी में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 152 पद हैं. यहां 152 पद बना तो दिए गए, लेकिन तैनाती महज 42 पदों पर ही है. यानी फाइलें तो चकाचक तैयार कर दी गईं लेकिन ग्राउंड लेवल पर काम ही नहीं हुआ. पौड़ी जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों के पूरे 110 पद खाली हैं.
उत्तराखंड को 5-5 मुख्यमंत्री देने वाले इस VVIP जिले की बदहाल चिकित्सा व्यवस्था को ये मुख्यमंत्री भी नहीं बदल पाए. पौड़ी जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती का प्रतिशत महज 28 होना इस बात की चुगली करता है कि आप चाहे 5-5 मुख्यमंत्री बना दो लेकिन जब तक जन सरोकार वाला नेता नहीं मिलेगा, जिले का भाग्य नहीं बदल सकता है.
चमोली जिले में हैं सिर्फ 27 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टर: एक और सीमांत जिला चमोली भी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से आदम युग में जी रहा है. यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों के 62 पद हैं. इसकी तुलना में सिर्फ 17 पदों पर विशेषज्ञ डॉक्टर तैनात हैं. बदरीनाथ धाम, हेमकुंड साहिब और फूलों की घाटी जैसे धार्मिक और पर्यटन स्थलों वाला ये जिला 45 विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के कारण अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का मातम मना रहा है. यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती का प्रतिशत सिर्फ 27 है.
विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती में टिहरी फिसड्डी: विशेषज्ञ डॉक्टरों के लिहाज से सबसे दयनीय हालत एक और पहाड़ी जिले टिहरी की है. यहां कहने को तो विशेषज्ञ डॉक्टरों के 98 पद स्वीकृत हैं. मगर तैनाती महज 13 पदों पर ही है. यानी स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के 85 पद खाली हैं. जिले के सीमांत इलाकों के मरीज इसीलिए हिमाचल की स्वास्थ्य सेवाओं के भरोसे रहते हैं.
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इस तरह उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 1147 पदों की तुलना में सिर्फ 493 पदों पर ही विशेषज्ञ डॉक्टर तैनात हैं. पूरे 654 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के पद खाली हैं. तैनाती का प्रतिशत महज 43 फीसदी है. यानी अगर राज्य के स्वास्थ्य महकमे का भी बोर्ड के परीक्षार्थियों की तरह रिजल्ट बनता तो ये महकमा थर्ड डिवीजन आता. आज 99.99 और 100 फीसदी वाले जमाने में ये आंकड़ा वाकई रुलाने वाला है.
ये आंकड़े उत्तराखंड सरकार के मेडिकल, हेल्थ और फेमिली वेलफेयर डिपार्टमेंट से आरटीआई के जरिए मिले हैं. आरटीआई के तहत स्वास्थ्य विभाग से उत्तराखंड में कुल विशेषज्ञ डॉक्टरों के पदों और जिलेवार उनकी तैनाती के बारे में सवाल किया गया था. उसी के जवाब में ये आंकड़े सरकार की ओर से दिए गए हैं.