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नोटबंदी के चार साल : क्या नकली नोटों पर लगी लगाम ?

आठ नवंबर 2016 की आधी रात से देश भर में 500 और 1,000 रुपये के नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया गया. इसके कुछ दिनों बाद तक देश में अफरा-तफरी का माहौल रहा और बैंकों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगीं रहीं. बाद में आरबीआई ने 500 और 2000 के नए नोट जारी किए. कितनी प्रभावकारी रही पीएम मोदी की यह महत्वाकांक्षी योजना, एक नजर.

नोटबंदी को हुए चार साल, कितनी प्रभावी हुई मोदी की महत्वकांक्षी योजना
नोटबंदी को हुए चार साल, कितनी प्रभावी हुई मोदी की महत्वकांक्षी योजना
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Published : Nov 8, 2020, 7:54 AM IST

Updated : Nov 8, 2020, 9:00 AM IST

नई दिल्ली : आठ नवंबर का दिन देश की अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक खास दिन के तौर पर दर्ज है. यह वह दिन है जब चार साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रात आठ बजे 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट बंद करने का एलान किया.

नोटबंदी की यह घोषणा उसी दिन आधी रात से लागू हो गई. इससे कुछ दिन देश में अफरा-तफरी का माहौल रहा और बैंकों के बाहर लंबी कतारें लगीं रहीं. बाद में 500 और 2000 के नए नोट जारी किए गए. इसी क्रम में 200, 100, 50 और 10 रुपये के भी नए नोट जारी किए गए.

सरकार ने एलान किया कि उसने देश में मौजूद काले धन और नकली मुद्रा की समस्या को समाप्त करने के लिए यह कदम उठाया है.

कितनी बार हुई देश में नोटबंदी

ऐसा नहीं है कि 2016 में हुई नोटबंदी देश में अभूतपूर्व हो, इससे पहले भी देश में नोटबंदी के कई उदाहरण मिलते हैं.

  • 1946 में, भारतीय रिजर्व बैंक ने 1,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया था, जो उस वक्त चलन में थे.
  • 1954 में, सरकार ने 1,000 रुपये, 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नए मुद्रा नोट पेश किए.
  • 1978 में, मोराजी देसाई सरकार ने 1,000 रुपये, 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया, जिसका उद्देश्य अवैध लेनदेन और असामाजिक गतिविधियों पर अंकुश लगाना था.

देश में विमुद्रीकरण को व्यापक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया गया था, जिसमें काले धन को अर्थव्यवस्था से बाहर निकालना, लोगों के बेहिसाब धन को हिसाब में लाकर कर प्राप्त करना, आतंकवाद पर अंकुश लगाना. डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देना और भारत को कैशलेस बनाना जैसे उद्देश्य शामिल थे.

क्या नकली नोटों पर लगी लगाम

  • भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वार्षिक रिपोर्ट 2019-20 में आरबीआई ने कहा कि उच्चतम मूल्य मूल्यवर्ग वाले 2000 रुपये के नोटों का प्रचलन पिछले दो वर्षों में तेजी से गिर रहा है.
  • नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2019 में ज्यादातर नकली नोट 2000 रुपये के नोट हैं.
  • भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि पिछले वित्त वर्ष में 2,000 रुपये का एक भी नोट नहीं छापा गया था.
  • आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-20 में 200 रुपये के नकली नोट की प्राप्ति में 151% की बढ़ोतरी हुई है. आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 500 ​​रुपये की नई श्रृंखला के नकली नोटों में 2019-20 में 37% की वृद्धि देखी गई और 2,000 रुपये के नोटों के प्रचलन में कमी आई.
  • 2019-20 में तमाम सुरक्षा सुविधाओं के बावजूद 200 रुपये और 500 रुपये के नकली नोटों में तेजी से वृद्धि हुई थी.

कितना डिजिटल बना इंडिया

लोकल सर्किल्स के एक सर्वेक्षण के अनुसार प्राथमिक रूप से नकद लेनदेन का उपयोग करने वाले भारतीयों में 50 प्रतिशत की कमी आई है.

इस वर्ष अक्टूबर में प्रकाशित, भारतीय रिजर्व बैंक से प्राप्त आंकड़ों का हवाला देते हुए, सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है, वित्त वर्ष 20 में भारत डिजिटल भुगतान की मात्रा में 3,434.56 करोड़ की भारी वृद्धि हुई है. पांच साल में, यानी 2015-16 से 2019-20 के बीच की अवधि में, डिजिटल भुगतान में लेनदेन की मात्रा के मामले में 55.1 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर और मूल्य के संदर्भ में 15.2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. केवल अक्टूबर 2020 में, यूपीआई- आधारित भुगतानों ने 207 करोड़ लेनदेन के साथ एक नया मील का पत्थर स्थापित किया.

ये भी पढ़ें: आधार कार्ड को संपत्ति से जोड़ने से काले धन में बड़ी कमी आएगी: सर्वे

नई दिल्ली : आठ नवंबर का दिन देश की अर्थव्यवस्था के इतिहास में एक खास दिन के तौर पर दर्ज है. यह वह दिन है जब चार साल पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रात आठ बजे 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट बंद करने का एलान किया.

नोटबंदी की यह घोषणा उसी दिन आधी रात से लागू हो गई. इससे कुछ दिन देश में अफरा-तफरी का माहौल रहा और बैंकों के बाहर लंबी कतारें लगीं रहीं. बाद में 500 और 2000 के नए नोट जारी किए गए. इसी क्रम में 200, 100, 50 और 10 रुपये के भी नए नोट जारी किए गए.

सरकार ने एलान किया कि उसने देश में मौजूद काले धन और नकली मुद्रा की समस्या को समाप्त करने के लिए यह कदम उठाया है.

कितनी बार हुई देश में नोटबंदी

ऐसा नहीं है कि 2016 में हुई नोटबंदी देश में अभूतपूर्व हो, इससे पहले भी देश में नोटबंदी के कई उदाहरण मिलते हैं.

  • 1946 में, भारतीय रिजर्व बैंक ने 1,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया था, जो उस वक्त चलन में थे.
  • 1954 में, सरकार ने 1,000 रुपये, 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नए मुद्रा नोट पेश किए.
  • 1978 में, मोराजी देसाई सरकार ने 1,000 रुपये, 5,000 रुपये और 10,000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया, जिसका उद्देश्य अवैध लेनदेन और असामाजिक गतिविधियों पर अंकुश लगाना था.

देश में विमुद्रीकरण को व्यापक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया गया था, जिसमें काले धन को अर्थव्यवस्था से बाहर निकालना, लोगों के बेहिसाब धन को हिसाब में लाकर कर प्राप्त करना, आतंकवाद पर अंकुश लगाना. डिजिटल इंडिया को बढ़ावा देना और भारत को कैशलेस बनाना जैसे उद्देश्य शामिल थे.

क्या नकली नोटों पर लगी लगाम

  • भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वार्षिक रिपोर्ट 2019-20 में आरबीआई ने कहा कि उच्चतम मूल्य मूल्यवर्ग वाले 2000 रुपये के नोटों का प्रचलन पिछले दो वर्षों में तेजी से गिर रहा है.
  • नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 2019 में ज्यादातर नकली नोट 2000 रुपये के नोट हैं.
  • भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि पिछले वित्त वर्ष में 2,000 रुपये का एक भी नोट नहीं छापा गया था.
  • आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-20 में 200 रुपये के नकली नोट की प्राप्ति में 151% की बढ़ोतरी हुई है. आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 500 ​​रुपये की नई श्रृंखला के नकली नोटों में 2019-20 में 37% की वृद्धि देखी गई और 2,000 रुपये के नोटों के प्रचलन में कमी आई.
  • 2019-20 में तमाम सुरक्षा सुविधाओं के बावजूद 200 रुपये और 500 रुपये के नकली नोटों में तेजी से वृद्धि हुई थी.

कितना डिजिटल बना इंडिया

लोकल सर्किल्स के एक सर्वेक्षण के अनुसार प्राथमिक रूप से नकद लेनदेन का उपयोग करने वाले भारतीयों में 50 प्रतिशत की कमी आई है.

इस वर्ष अक्टूबर में प्रकाशित, भारतीय रिजर्व बैंक से प्राप्त आंकड़ों का हवाला देते हुए, सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है, वित्त वर्ष 20 में भारत डिजिटल भुगतान की मात्रा में 3,434.56 करोड़ की भारी वृद्धि हुई है. पांच साल में, यानी 2015-16 से 2019-20 के बीच की अवधि में, डिजिटल भुगतान में लेनदेन की मात्रा के मामले में 55.1 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर और मूल्य के संदर्भ में 15.2 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. केवल अक्टूबर 2020 में, यूपीआई- आधारित भुगतानों ने 207 करोड़ लेनदेन के साथ एक नया मील का पत्थर स्थापित किया.

ये भी पढ़ें: आधार कार्ड को संपत्ति से जोड़ने से काले धन में बड़ी कमी आएगी: सर्वे

Last Updated : Nov 8, 2020, 9:00 AM IST
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