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नियमावली न बनने से अधर में लटका चकबंदी एक्ट, पर्वतीय किसानों में छायी मायूसी

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Published : Apr 20, 2019, 5:44 PM IST

Updated : Apr 20, 2019, 6:26 PM IST

चकबंदी की नई व्यवस्था को लेकर उत्तराखंड में लंबे समय से बहस जारी है. सरकार द्वारा ये भी कहा गया कि उत्तरप्रदेश चकबंदी कानून में भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता के लिहाज से कानून उत्तराखंड के अनुकूल नहीं है. ऐसे में सरकार द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों के लिये चकबंदी व्यवस्था की पहल शुरू की गई थी.

Chakbandi act

देहरादून: सूबे के पर्वतीय क्षेत्रों में बिखरी जोतों को एकीकृत करने के मकसद से सरकार ने चकबंदी एक्ट तो बना दिया, लेकिन 3 साल बाद भी इसे लेकर कोई नियमावली तैयार नहीं हो पाई है. लिहाजा प्रदेश के पर्वतीय किसान चकबंदी को लेकर आज भी ठगा सा महसूस कर रहे हैं. वहीं, किसानों के हितों की बात करने वाली त्रिवेंद्र सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते चकबंदी नियमावली की दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई है. देखिए Etv Bharat की खास रिपोर्ट...

नियमावली न बनने से अधर में लटका चकबंदी एक्ट.

बता दें कि चकबंदी की नई व्यवस्था को लेकर उत्तराखंड में लंबे समय से बहस जारी है. सरकार द्वारा ये भी कहा गया कि उत्तरप्रदेश चकबंदी कानून में भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता के लिहाज से कानून उत्तराखंड के अनुकूल नहीं है. ऐसे में सरकार द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों के लिये चकबंदी व्यवस्था की पहल शुरू की गई थी. आंकड़े बताते हैं कि पहाड़ के लिहाज से चकबंदी व्यवस्था लागू ना होने के चलते पहाड़ी जिलों से बदस्तूर पलायन हुआ है और कृषि उत्पादन में भी कमी आई है.

पढ़ें- उत्तराखंड मौसम: पांच जिलों में बारिश और आंधी-तूफान की संभावना

कृषि से जुड़े महत्वपूर्ण आंकड़े

उत्तराखंड का कुल क्षेत्रफल करीब 53,000 वर्ग किलोमीटर है. जिसमें करीब 63 फीसदी वनभूमि है तो 14 प्रतिशत कृषि भूमि है. इसमें करीब 18 फीसदी बंजर भूमि और 5 फीसदी कृषि अयोग्य भूमि है. हालाकिं, ये आंकड़े बेहद पुराने है और शासन के पास भी सटीक आंकड़ों की कमी दिखाई देती है. राज्य स्थापना के समय उत्तराखंड की 77,6,191 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य थी. जो साल 2011 तक 72,3,164 हेक्टेयर तक सिमट गई यानी 11 सालों में 53 हज़ार हेक्टेयर भूमि कृषि कम हुई है. मतलब प्रदेश में कुल कृषि भूमि का 15 परसेंट तक कम हुआ है.

किसानों की माने तो चकबंदी व्यवस्था लागू होने के बाद किसानों को इसका फायदा होगा. हालांकि, नियमावली न बनने के कारण वह इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं. ऐसे में सरकार से किसान गुहार लगा रहे हैं कि चकबंदी के लिए जल्द से जल्द नियमावली बनाकर इसे लागू किया जाए.

पढ़ें- रोहित शेखर तिवारी की मौत: परिजनों से क्राइम ब्रांच ने की पूछताछ

उधर, चकबंदी समिति के पूर्व अध्यक्ष केदार सिंह रावत ने कहा कि उनके द्वारा 2016 में चकबंदी का ड्राफ्ट बनाया जा चुका है और जुलाई 2016 में ही विधानसभा में चकबंदी एक्ट पास भी हो चुका है. जबकि, चकबंदी व्यवस्था के लिए अलग से पदों की व्यवस्था पर राज्यपाल की सहमति के बाद करीब 500 पदों के अध्ययन लोक सेवा आयोग और अधीनस्थ चयन सेवा आयोग को भी भेजे जा चुके हैं. जिस पर जल्द ही निर्णय होना है.

वहीं, सूबे के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल की मानें तो जून तक सरकार द्वार चकबंदी नियमावली को तैयार कर दिया जाएगा. जिसके बाद पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को इसका लाभ मिलने लगेगा. बहरहाल, 2016 से चकबंदी एक्ट पास होने के बाद नियमावली अभीतक फाइलों में ही दफन है.

देहरादून: सूबे के पर्वतीय क्षेत्रों में बिखरी जोतों को एकीकृत करने के मकसद से सरकार ने चकबंदी एक्ट तो बना दिया, लेकिन 3 साल बाद भी इसे लेकर कोई नियमावली तैयार नहीं हो पाई है. लिहाजा प्रदेश के पर्वतीय किसान चकबंदी को लेकर आज भी ठगा सा महसूस कर रहे हैं. वहीं, किसानों के हितों की बात करने वाली त्रिवेंद्र सरकार राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते चकबंदी नियमावली की दिशा में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई है. देखिए Etv Bharat की खास रिपोर्ट...

नियमावली न बनने से अधर में लटका चकबंदी एक्ट.

बता दें कि चकबंदी की नई व्यवस्था को लेकर उत्तराखंड में लंबे समय से बहस जारी है. सरकार द्वारा ये भी कहा गया कि उत्तरप्रदेश चकबंदी कानून में भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता के लिहाज से कानून उत्तराखंड के अनुकूल नहीं है. ऐसे में सरकार द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों के लिये चकबंदी व्यवस्था की पहल शुरू की गई थी. आंकड़े बताते हैं कि पहाड़ के लिहाज से चकबंदी व्यवस्था लागू ना होने के चलते पहाड़ी जिलों से बदस्तूर पलायन हुआ है और कृषि उत्पादन में भी कमी आई है.

पढ़ें- उत्तराखंड मौसम: पांच जिलों में बारिश और आंधी-तूफान की संभावना

कृषि से जुड़े महत्वपूर्ण आंकड़े

उत्तराखंड का कुल क्षेत्रफल करीब 53,000 वर्ग किलोमीटर है. जिसमें करीब 63 फीसदी वनभूमि है तो 14 प्रतिशत कृषि भूमि है. इसमें करीब 18 फीसदी बंजर भूमि और 5 फीसदी कृषि अयोग्य भूमि है. हालाकिं, ये आंकड़े बेहद पुराने है और शासन के पास भी सटीक आंकड़ों की कमी दिखाई देती है. राज्य स्थापना के समय उत्तराखंड की 77,6,191 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य थी. जो साल 2011 तक 72,3,164 हेक्टेयर तक सिमट गई यानी 11 सालों में 53 हज़ार हेक्टेयर भूमि कृषि कम हुई है. मतलब प्रदेश में कुल कृषि भूमि का 15 परसेंट तक कम हुआ है.

किसानों की माने तो चकबंदी व्यवस्था लागू होने के बाद किसानों को इसका फायदा होगा. हालांकि, नियमावली न बनने के कारण वह इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं. ऐसे में सरकार से किसान गुहार लगा रहे हैं कि चकबंदी के लिए जल्द से जल्द नियमावली बनाकर इसे लागू किया जाए.

पढ़ें- रोहित शेखर तिवारी की मौत: परिजनों से क्राइम ब्रांच ने की पूछताछ

उधर, चकबंदी समिति के पूर्व अध्यक्ष केदार सिंह रावत ने कहा कि उनके द्वारा 2016 में चकबंदी का ड्राफ्ट बनाया जा चुका है और जुलाई 2016 में ही विधानसभा में चकबंदी एक्ट पास भी हो चुका है. जबकि, चकबंदी व्यवस्था के लिए अलग से पदों की व्यवस्था पर राज्यपाल की सहमति के बाद करीब 500 पदों के अध्ययन लोक सेवा आयोग और अधीनस्थ चयन सेवा आयोग को भी भेजे जा चुके हैं. जिस पर जल्द ही निर्णय होना है.

वहीं, सूबे के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल की मानें तो जून तक सरकार द्वार चकबंदी नियमावली को तैयार कर दिया जाएगा. जिसके बाद पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को इसका लाभ मिलने लगेगा. बहरहाल, 2016 से चकबंदी एक्ट पास होने के बाद नियमावली अभीतक फाइलों में ही दफन है.

फीड एफटीपी से भेजी है। folder name-uk_ddn_20 april 2019_Chakbandi rules 

कृषि मंत्री की अलग से बाइट भेजी है।
Folder name-Byte subodh uniyal 


स्लग-नियमावली की बांट जोहते किसान
रिपोर्ट-नवीन उनियाल
देहरादून
एंकर
पर्वतीय क्षेत्रों में बिखरी जोतों को एक करने के मकसद से चकबंदी एक्ट तो बना दिया गया लेकिन करीब 3 साल बाद भी चकबंदी को लेकर कोई नियमावली तैयार नहीं की जा सकी। हालत यह है कि चकबंदी का फायदा उठाने के लिए आज किसान बांट जोह रहे हैं तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते सरकारें सालों बाद भी नियमावली की दिशा में कदम नहीं बढ़ा पाई हैं। ETV Bharat की चकबंदी पर खास रिपोर्ट.....

वीओ1
चकबंदी की नई व्यवस्था को लेकर उत्तराखंड में लंबे समय से एक बहस जारी है...ये कहा गया कि उत्तरप्रदेश चकबंदी कानून भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता के लिहाज से उत्तराखंड के लिए अनुकूल नही है। ऐसे में पहाड़ी क्षेत्रों के लिये चकबंदी व्यवस्था की पहल शुरू की गई। आंकड़े बताते हैं कि पहाड़ के लिहाज से चकबंदी व्यवस्था लागू ना होने के चलते पलायन भी हुआ और कृषि उत्पादन में भी कमी आई। 

कृषि से जुड़े महत्वपूर्ण आंकड़े

उत्तराखंड का कुल क्षेत्रफल करीब 53000 वर्ग किलोमीटर है जिसमें करीब 63 फीसदी वनभूमि है तो 14 प्रतिशत कृषि भूमि है। इसमे करीब 18 फीसदी बंजर भूमि और 5 फीसदी अयोग्य भूमि है। हालाकिं ये आंकड़े बेहद पुराने हैं और शासन के पास भी बेहद सटीक आंकड़ों की कमी दिखाई देती है। राज्य स्थापना के समय उत्तराखंड की 776191 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य थी।  जो 2011 तक 723164 हेक्टेयर तक सिमट गई यानी 11 सालों में 53 हज़ार हेक्टेयर भूमि कृषि कम हुई। यानी कुल कृषि भूमि का 15 परसेंट तक कम हुआ है। 

किसानों की माने तो चकबंदी व्यवस्था लागू होने के बाद किसानों को इसका फायदा होगा हालांकि नियमावली न बनने के कारण वह इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं ऐसे में सरकार से किसान गुहार लगा रहे हैं कि चकबंदी के लिए जल्द से जल्द नियमावली बनाकर इसे लागू किया जाए। 

बाइट-राम लाल, किसान

उधर चकबंदी समिति के पूर्व अध्यक्ष केदार सिंह रावत ने कहा कि उनके द्वारा 2016 में चकबंदी का ड्राफ्ट बनाया जा चुका है और जुलाई 2016 में ही विधानसभा में चकबंदी एक्ट पास भी हो चुका है जबकि चकबंदी व्यवस्था के लिए अलग से पदों की व्यवस्था पर राज्यपाल की सहमति के बाद करीब 500 पदों के अध्ययन लोक सेवा आयोग और अधिनस्थ चयन सेवा आयोग को भी भेजे जा चुके हैं जिस पर जल्द निर्णय होना है

बाइट-केदार सिंह रावत पूर्व अध्यक्ष चकबंदी समिति

यूं तो 2016 में एक्ट पास होने के बाद करीब 3 साल से नियमावली फाइलों में ही दफन है लेकिन अब कृषि मंत्री सुबोध उनियाल जल्द नियमावली लाए जाने की बात कर रहे हैं कृषि मंत्री की मानें तो जून तक नियमावली को तैयार कर दिया जाएगा और इसका फायदा किसानों को मिलने लगेगा। 

बाइट सुबोध उनियाल कृषि मंत्री उत्तराखंड




Last Updated : Apr 20, 2019, 6:26 PM IST
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