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कैराना में योगी ने नाराज जाट वोटरों को पलायन और दंगों की याद क्यों दिलाई ? - Jat voters

सीएम योगी का कैराना दौरा सिर्फ संयोग नहीं है. राजनीतिक विश्लेषक इस कैराना यात्रा को 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम यूपी में नाराज जाट बिरादरी को साथ लाने की कोशिश मान रहे हैं.योगी कैराना में पलायन करने वाले उन परिवारों से भी मिले, जो दोबारा वापस अपने घर लौटे हैं.

yogi adityanath kairana
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Published : Nov 9, 2021, 4:41 PM IST

हैदराबाद : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को कैराना में घरवापसी करने वाले उन परिवारों से मिले, जिन्होंने करीब 6-7 साल पहले मुजफ्फरनगर दंगों के बाद घर छोड़कर पलायन किया था. सीएम योगी ने इस मुलाकात के बहाने दंगों का दर्द पर मरहम लगाया. सीएम योगी ने इन परिवारों से कहा कि आप लोगों को डरने की जरूरत नहीं है, सरकार पूरी तरह से आपके साथ है. इस तरह योगी ने वेस्टर्न यूपी में लोगों को 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की याद दिला दी.

  • कैराना में पूर्ववर्ती सरकार में हिंसा के शिकार हुए परिवार अब वापस आ रहे हैं।

    यह लोग अपने पूर्वजों की भूमि पर रहें, यहां की विरासत को संरक्षण देने और व्यापारिक व औद्योगिक माहौल को बढ़ाने हेतु @UPGovt हर संभव सहयोग करेगी।

    अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति निरंतर जारी रहेगी। pic.twitter.com/6SNUcdXhSy

    — Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 8, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

इससे अलग शामली में ही योगी आदित्यनाथ अपने भाषण के दौरान तालिबान और तालिबानीकरण जैसे कड़े शब्दों से राजनीति के कुछ दाने वेस्टर्न यूपी में बो आए. सीएम योगी ने कहा कि जो भी तालिबान का समर्थन उत्तर प्रदेश की धरती पर करेगा, सख्ती के साथ उससे निपटने का काम सरकार करेगी. एक तालिबानी मानसिकता नहीं स्वीकार होनी चाहिए. कतई नहीं होनी चाहिए.

2016 में क्यों बना था कैराना से पलायन का मुद्दा : 2016 में कैराना से तत्कालीन भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने हिंदुओं के पलायन का बम फोड़ा था. उन्होंने एक लिस्ट जारी कर दावा किया था कि मुसलिमों के आतंक के कारण कैराना से 346 हिंदू परिवारों को घर छोड़कर विस्थापित होना पड़ा. उस दौर में कैराना में ' मकान बिकाऊ है ' वाली तस्वीरें भी खूब चर्चित हुई. बीजेपी ने आरोप लगाया कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद कैराना समेत वेस्टर्न यूपी में हिंदू परिवारों पर हमले हो रहे हैं और कारोबारियों से अवैध उगाही हो रही है.

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2016 में हुकुम ने जारी किया था कैराना से पलायन का आंकड़ा.

इस विवाद के बाद 2017 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी ने वेस्टर्न यूपी के 14 जिलों के 71 सीटों में 51 जीत ली. समाजवादी पार्टी को 16, कांग्रेस को दो और बसपा को एक सीट पर जीत मिली थी. कैराना की 5 विधानसभा सीटों में से चार पर बीजेपी का कब्जा है. एस सीट पर समाजवादी पार्टी जीती थी.

कवाल दंगों के बाद ध्वस्त हुआ था रालोद का समीकरण : दरअसल मुजफ्फरनगर के कवाल दंगों के बाद ही पश्चिम उत्तरप्रदेश में जाट-मुस्लिम समीकरण ध्वस्त हो गया था. 27 अगस्त 2013 को मलिकपुरा गांव के दो ममेरे भाई सचिन और गौरव की हत्या कर दी गई थी. इन दोनों पर छेड़खानी के आरोपी शाहनवाज की हत्या करने का आरोप था. दोनों भाइयों की हत्या को बाद मुजफ्फरनगर में दंगे हुए, जिसमें 62 लोगों की मौत हुई थी. 40 हजार से ज्यादा लोग राहत कैंपों में शरण लेने को मजबूर होना पड़ा था.

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2016 की तस्वीर, जिससे कैराना में पलायन का मुद्दा गरमाया.

उपचुनाव में हारे मगर 2019 में फिर खिला कैराना में कमल : इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव हुए और राष्ट्रीय लोकदल, समाजवादी पार्टी और बीएसपी पश्चिम उत्तरप्रदेश से साफ हो गई. मगर हुकुम सिंह के निधन के बाद 2018 में कैराना में उपचुनाव हुए, जिसमें राष्ट्रीय लोकदल और गठबंधन की उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने मृगांका सिंह को हरा दिया था. मृगांका यहां के सांसद रहे हुकुम सिंह की बेटी हैं. मगर 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने कैराना पर दोबारा कब्जा किया. प्रदीप चौधरी 5,66,961 (50.44%) वोट पाकर सांसद बने.

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योगी आदित्यनाथ विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करेंगे.

पश्चिम यूपी में किसे साधने गए थे योगी आदित्यनाथ : पश्चिमी यूपी की सियासत पर जाट बिरादरी का असर है. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट बिरादरी बीजेपी से जुड़ गई. इसके अलावा गुर्जर, त्यागी, ठाकुर, ब्राह्मण के साथ वैश्य समाज भी बीजेपी के पक्ष में लामबंद हुआ. इस कारण 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने अन्य दलों का सफाया कर दिया. मगर किसान आंदोलन के कारण जाट भाजपा से बिदक गए. राकेश टिकैत की अपील पर हुई पंचायतों में 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वोट से चोट देने का ऐलान किया गया. कई इलाकों में बीजेपी नेताओं की एंट्री बंद कर दी गई.

yogi adityanath kairana
योगी ने कैराना से हिंदू वोटरों को गोलबंद करने की मुहिम शुरू की है.

किसान नेता राकेश टिकैत का गढ़ है कैराना : बता दें कि मुजफ्फरनगर और शामली का कैराना किसान नेता राकेश टिकैत का गढ़ भी है. शामली में ही राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने 1986 में किसान आंदोलन शुरू किया था. यह आंदोलन भी लंबा चला था. आंदोलन के दौरान 1987 में सिसौली की पंचायत हुई थी, जिसमें 30 लाख लोग जुटे थे. योगी आदित्यनाथ ने कैराना जाकर जाट वोटरों से तालमेल बैठाने की कोशिश की है. अभी चुनाव में करीब चार महीने बाकी है. किसान नेता राकेश टिकैत के घर में योगी ने हिंदुत्व का कार्ड चल दिया है. देखना यह है कि विधानसभा चुनाव में यह हुक्म का इक्का साबित होगा या नहीं.

हैदराबाद : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को कैराना में घरवापसी करने वाले उन परिवारों से मिले, जिन्होंने करीब 6-7 साल पहले मुजफ्फरनगर दंगों के बाद घर छोड़कर पलायन किया था. सीएम योगी ने इस मुलाकात के बहाने दंगों का दर्द पर मरहम लगाया. सीएम योगी ने इन परिवारों से कहा कि आप लोगों को डरने की जरूरत नहीं है, सरकार पूरी तरह से आपके साथ है. इस तरह योगी ने वेस्टर्न यूपी में लोगों को 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की याद दिला दी.

  • कैराना में पूर्ववर्ती सरकार में हिंसा के शिकार हुए परिवार अब वापस आ रहे हैं।

    यह लोग अपने पूर्वजों की भूमि पर रहें, यहां की विरासत को संरक्षण देने और व्यापारिक व औद्योगिक माहौल को बढ़ाने हेतु @UPGovt हर संभव सहयोग करेगी।

    अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति निरंतर जारी रहेगी। pic.twitter.com/6SNUcdXhSy

    — Yogi Adityanath (@myogiadityanath) November 8, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

इससे अलग शामली में ही योगी आदित्यनाथ अपने भाषण के दौरान तालिबान और तालिबानीकरण जैसे कड़े शब्दों से राजनीति के कुछ दाने वेस्टर्न यूपी में बो आए. सीएम योगी ने कहा कि जो भी तालिबान का समर्थन उत्तर प्रदेश की धरती पर करेगा, सख्ती के साथ उससे निपटने का काम सरकार करेगी. एक तालिबानी मानसिकता नहीं स्वीकार होनी चाहिए. कतई नहीं होनी चाहिए.

2016 में क्यों बना था कैराना से पलायन का मुद्दा : 2016 में कैराना से तत्कालीन भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने हिंदुओं के पलायन का बम फोड़ा था. उन्होंने एक लिस्ट जारी कर दावा किया था कि मुसलिमों के आतंक के कारण कैराना से 346 हिंदू परिवारों को घर छोड़कर विस्थापित होना पड़ा. उस दौर में कैराना में ' मकान बिकाऊ है ' वाली तस्वीरें भी खूब चर्चित हुई. बीजेपी ने आरोप लगाया कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद कैराना समेत वेस्टर्न यूपी में हिंदू परिवारों पर हमले हो रहे हैं और कारोबारियों से अवैध उगाही हो रही है.

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2016 में हुकुम ने जारी किया था कैराना से पलायन का आंकड़ा.

इस विवाद के बाद 2017 में विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी ने वेस्टर्न यूपी के 14 जिलों के 71 सीटों में 51 जीत ली. समाजवादी पार्टी को 16, कांग्रेस को दो और बसपा को एक सीट पर जीत मिली थी. कैराना की 5 विधानसभा सीटों में से चार पर बीजेपी का कब्जा है. एस सीट पर समाजवादी पार्टी जीती थी.

कवाल दंगों के बाद ध्वस्त हुआ था रालोद का समीकरण : दरअसल मुजफ्फरनगर के कवाल दंगों के बाद ही पश्चिम उत्तरप्रदेश में जाट-मुस्लिम समीकरण ध्वस्त हो गया था. 27 अगस्त 2013 को मलिकपुरा गांव के दो ममेरे भाई सचिन और गौरव की हत्या कर दी गई थी. इन दोनों पर छेड़खानी के आरोपी शाहनवाज की हत्या करने का आरोप था. दोनों भाइयों की हत्या को बाद मुजफ्फरनगर में दंगे हुए, जिसमें 62 लोगों की मौत हुई थी. 40 हजार से ज्यादा लोग राहत कैंपों में शरण लेने को मजबूर होना पड़ा था.

yogi adityanath kairana
2016 की तस्वीर, जिससे कैराना में पलायन का मुद्दा गरमाया.

उपचुनाव में हारे मगर 2019 में फिर खिला कैराना में कमल : इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव हुए और राष्ट्रीय लोकदल, समाजवादी पार्टी और बीएसपी पश्चिम उत्तरप्रदेश से साफ हो गई. मगर हुकुम सिंह के निधन के बाद 2018 में कैराना में उपचुनाव हुए, जिसमें राष्ट्रीय लोकदल और गठबंधन की उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने मृगांका सिंह को हरा दिया था. मृगांका यहां के सांसद रहे हुकुम सिंह की बेटी हैं. मगर 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने कैराना पर दोबारा कब्जा किया. प्रदीप चौधरी 5,66,961 (50.44%) वोट पाकर सांसद बने.

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योगी आदित्यनाथ विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करेंगे.

पश्चिम यूपी में किसे साधने गए थे योगी आदित्यनाथ : पश्चिमी यूपी की सियासत पर जाट बिरादरी का असर है. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट बिरादरी बीजेपी से जुड़ गई. इसके अलावा गुर्जर, त्यागी, ठाकुर, ब्राह्मण के साथ वैश्य समाज भी बीजेपी के पक्ष में लामबंद हुआ. इस कारण 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने अन्य दलों का सफाया कर दिया. मगर किसान आंदोलन के कारण जाट भाजपा से बिदक गए. राकेश टिकैत की अपील पर हुई पंचायतों में 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वोट से चोट देने का ऐलान किया गया. कई इलाकों में बीजेपी नेताओं की एंट्री बंद कर दी गई.

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योगी ने कैराना से हिंदू वोटरों को गोलबंद करने की मुहिम शुरू की है.

किसान नेता राकेश टिकैत का गढ़ है कैराना : बता दें कि मुजफ्फरनगर और शामली का कैराना किसान नेता राकेश टिकैत का गढ़ भी है. शामली में ही राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने 1986 में किसान आंदोलन शुरू किया था. यह आंदोलन भी लंबा चला था. आंदोलन के दौरान 1987 में सिसौली की पंचायत हुई थी, जिसमें 30 लाख लोग जुटे थे. योगी आदित्यनाथ ने कैराना जाकर जाट वोटरों से तालमेल बैठाने की कोशिश की है. अभी चुनाव में करीब चार महीने बाकी है. किसान नेता राकेश टिकैत के घर में योगी ने हिंदुत्व का कार्ड चल दिया है. देखना यह है कि विधानसभा चुनाव में यह हुक्म का इक्का साबित होगा या नहीं.

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