ETV Bharat / bharat

Uttarakhand: आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव को नहीं मिला एक अदद पुल, ट्रॉली के सहारे 'जिंदगी'

राजधानी देहरादून से मात्र 22 किलोमीटर दूर धनौल्टी विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत सौंदणा गांव आज भी विकास की बाट जोह रहा है. यहां लोग ट्रॉली के सहारे सफर करने को मजबूर हैं. आलम ये है कि इस गांव में न तो कोई सड़क है और न ही कोई पुल. ऐसे में इस गांव के हालात देखकर तो सरकारों के विकास के दावे हवा होते दिखाई दे रहे हैं.

villagers-forced-to-cross-river-by-trolley-due-to-lack-of-bridge-in-saundana-village-of-tehri
आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव को नहीं मिला एक अदद पुल.
author img

By

Published : Jul 30, 2022, 8:23 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में मॉनसून के सीजन में इन दिनों जब भारी बारिश लोगों के लिए मुसीबत बनी हुई है, तब राजधानी देहरादून से महज 22 किलोमीटर दूर एक ऐसा क्षेत्र भी है जहां हर मौसम में ही लोगों को पानी के तेज बहाव का सामना करना होता है. यहां मॉनसून सीजन में तो जिंदगी और भी दुश्वार हो जाती है. न केवल गांव वालों को घर के किसी भी छोटे-मोटे काम के लिए नदी पार करके जाना होता है, बल्कि स्कूली बच्चे भी लोहे की एक छोटी सी ट्रॉली में जान खतरे में डालते हुए हर रोज नदी पार करते हैं. ईटीवी भारत पर देखिए ग्राउंड जीरो से ये खास रिपोर्ट.

उत्तराखंड में मॉनसून सीजन के दौरान पहाड़ों पर भूस्खलन एक आम बात है. दुर्गम क्षेत्रों में विकास की राह ताकते लोग राजधानी देहरादून की तरफ नजरें लगाएं रहते हैं. लेकिन जब बात राजधानी से महज 22 किलोमीटर दूर एक गांव की हो, तो ऐसे हालातों में आप क्या कहेंगे. भले ही राजधानी देहरादून में सत्ता की चमक दमक प्रदेश को लेकर सुखद अनुभव करवाती है. सचिवालय में बैठे आला अधिकारी प्रदेश के हर गांव के विकास के बड़े-बड़े दावे करते हैं. लेकिन राजधानी देहरादून से सिर्फ 22 किलोमीटर दूर सौंदणा गांव की हकीकत यह बताने के लिए काफी है कि आला अफसर जो कहते हैं, वह सिर्फ कागजी बातों तक ही सीमित है. जबकि, धरातल पर हालात कुछ और ही है.

आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव को नहीं मिला एक अदद पुल.
पढ़ें-
हर बार चौंकाता है BJP हाईकमान, कभी अनजान तो कभी 'हारे' को भी देते हैं 'मुकाम'

हकीकत से कोसों दूर दावे: यकीन नहीं आता तो देहरादून से 22 किमी दूर सौंदणा गांव की हकीकत देख लीजिए. आपको पता चल जाएगा कि प्रदेश में राज्य बनने के बाद कितना विकास हुआ है. इस गांव में पहुंचने के लिए कोई सड़क तक नहीं है. नदी के किनारे से होकर ही आपको गांव तक पहुंचना होता है. यहां गांव के बीचों बीच से सौंग नदी बहती है. जिसका पानी बरसात में काफी बढ़ जाता है. लेकिन इन गांव वालों की किस्मत इतनी खराब है कि यहां कोई पुल भी नदी पार करने के लिए मौजूद नहीं है. आलम ये है कि स्कूली बच्चों को भी इस एकमात्र ट्रॉली के सहारे नदी पार करनी पड़ती है.

सरकार ने थमाया विस्थापन का झुनझुना: सौंदणा गांव के रहने वाले बच्चन सिंह गांव में ही एक छोटी दुकान चलाते हैं. बच्चन सिंह का कहना है कि इस क्षेत्र में सौंग नदी पर डैम बन रहा है, जिसकी वजह से इस गांव का विस्थापन किया जाना है. इस ग्राम सभा में करीब 90 परिवार हैं, जिनकी आबादी 1200 के करीब है. आसपास के गांव मिलाकर करीब 175 परिवारों का यहां से विस्थापन होना है. लेकिन इस प्रस्तावित डैम की वजह से आज तक इस गांव में सड़क तक भी नहीं बनी और ना ही कोई पुल. गांव वालों को सिर्फ झुनझुना दिया जाता है कि आपको कहीं और विस्थापित किया जाएगा. लेकिन हम लोग काला पानी की सजा भुगत रहे हैं. देश के आजाद होने के बाद हमारे क्षेत्र में सिर्फ डेढ़ लाख रुपए की ट्रॉली सरकार की ओर से लगाई गई. यहां बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचाना भी हमारे लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.

क्या है सौंग बांध योजना: सौंग नदी पर 1100 करोड़ की लागत से बांध बनाने की योजना है. इस योजना के बनने से देहरादून जनपद को 24 घंटे पीने का उपलब्ध होगा. धनौल्टी विधानसभा क्षेत्र के सौंदणा गांव में प्रस्तावित बांध परियोजना के तहत सौंग बांध क्षेत्र पर्यटन घाटी के तौर पर विकसित किया जाएगा. यह प्रस्तावित बांध 128 मीटर ऊंचा और साढ़े चार किलोमीटर लंबा होगा. इस योजना से रायपुर क्षेत्र तक ग्रेविटी के आधार पर पानी की आपूर्ति की जाएगी. इससे 100 करोड़ रुपये का बिजली खर्च बचेगा.
पढ़ें- केदारनाथ त्रासदी के 9 साल बाद बना धाम का प्रवेश द्वार, अब घंटी बजाकर एंट्री लेंगे भक्त

रोजाना जान हथेली पर रखकर सफर करते हैं स्कूली बच्चे: सौंदणा गांव टिहरी जनपद के तोल्या काटल ग्राम सभा का एक गांव है. यहां के बच्चों को स्कूल जाने के लिए 12 किमी से ज्यादा सफर तय करना पड़ता है. गांव के बच्चे रांगड़ गांव के इंटर कॉलेज और द्वारा के इंटर कॉलेज में पढ़ने के लिए जाते हैं. गांव के बच्चों का कहना है कि हमें बहुत दिक्कत होती है. घर में कोई बीमार हो जाए तो उसको अस्पताल ले जाना भी बड़ा मुश्किल होता है. पहले तो कई किलोमीटर दूर से स्कूल आते हैं. उसके बाद इस तरह से जद्दोजहद अपने गांव जाने के लिए करनी पड़ती है.

वहीं, गांव के कुछ बच्चे जल्दी की वजह से नदी पार करके भी जाते हैं. उनका कहना है कि अगर अकेले होते हैं तो ट्रॉली खींचने वाला कोई नहीं होता है. इसलिए नदी से होकर चले जाते हैं लेकिन नदी का जलस्तर भी बढ़ता रहता है. कई बार नदी पार करना भी खतरे से कम नहीं होता. इसके लिए प्रशासन जिम्मेदार है. पुल ना होने की वजह से लोगों के लिये आवाजाही का एकमात्र जरिया ट्रॉली ही है.

देहरादून: उत्तराखंड में मॉनसून के सीजन में इन दिनों जब भारी बारिश लोगों के लिए मुसीबत बनी हुई है, तब राजधानी देहरादून से महज 22 किलोमीटर दूर एक ऐसा क्षेत्र भी है जहां हर मौसम में ही लोगों को पानी के तेज बहाव का सामना करना होता है. यहां मॉनसून सीजन में तो जिंदगी और भी दुश्वार हो जाती है. न केवल गांव वालों को घर के किसी भी छोटे-मोटे काम के लिए नदी पार करके जाना होता है, बल्कि स्कूली बच्चे भी लोहे की एक छोटी सी ट्रॉली में जान खतरे में डालते हुए हर रोज नदी पार करते हैं. ईटीवी भारत पर देखिए ग्राउंड जीरो से ये खास रिपोर्ट.

उत्तराखंड में मॉनसून सीजन के दौरान पहाड़ों पर भूस्खलन एक आम बात है. दुर्गम क्षेत्रों में विकास की राह ताकते लोग राजधानी देहरादून की तरफ नजरें लगाएं रहते हैं. लेकिन जब बात राजधानी से महज 22 किलोमीटर दूर एक गांव की हो, तो ऐसे हालातों में आप क्या कहेंगे. भले ही राजधानी देहरादून में सत्ता की चमक दमक प्रदेश को लेकर सुखद अनुभव करवाती है. सचिवालय में बैठे आला अधिकारी प्रदेश के हर गांव के विकास के बड़े-बड़े दावे करते हैं. लेकिन राजधानी देहरादून से सिर्फ 22 किलोमीटर दूर सौंदणा गांव की हकीकत यह बताने के लिए काफी है कि आला अफसर जो कहते हैं, वह सिर्फ कागजी बातों तक ही सीमित है. जबकि, धरातल पर हालात कुछ और ही है.

आजादी के 75 साल बाद भी इस गांव को नहीं मिला एक अदद पुल.
पढ़ें- हर बार चौंकाता है BJP हाईकमान, कभी अनजान तो कभी 'हारे' को भी देते हैं 'मुकाम'

हकीकत से कोसों दूर दावे: यकीन नहीं आता तो देहरादून से 22 किमी दूर सौंदणा गांव की हकीकत देख लीजिए. आपको पता चल जाएगा कि प्रदेश में राज्य बनने के बाद कितना विकास हुआ है. इस गांव में पहुंचने के लिए कोई सड़क तक नहीं है. नदी के किनारे से होकर ही आपको गांव तक पहुंचना होता है. यहां गांव के बीचों बीच से सौंग नदी बहती है. जिसका पानी बरसात में काफी बढ़ जाता है. लेकिन इन गांव वालों की किस्मत इतनी खराब है कि यहां कोई पुल भी नदी पार करने के लिए मौजूद नहीं है. आलम ये है कि स्कूली बच्चों को भी इस एकमात्र ट्रॉली के सहारे नदी पार करनी पड़ती है.

सरकार ने थमाया विस्थापन का झुनझुना: सौंदणा गांव के रहने वाले बच्चन सिंह गांव में ही एक छोटी दुकान चलाते हैं. बच्चन सिंह का कहना है कि इस क्षेत्र में सौंग नदी पर डैम बन रहा है, जिसकी वजह से इस गांव का विस्थापन किया जाना है. इस ग्राम सभा में करीब 90 परिवार हैं, जिनकी आबादी 1200 के करीब है. आसपास के गांव मिलाकर करीब 175 परिवारों का यहां से विस्थापन होना है. लेकिन इस प्रस्तावित डैम की वजह से आज तक इस गांव में सड़क तक भी नहीं बनी और ना ही कोई पुल. गांव वालों को सिर्फ झुनझुना दिया जाता है कि आपको कहीं और विस्थापित किया जाएगा. लेकिन हम लोग काला पानी की सजा भुगत रहे हैं. देश के आजाद होने के बाद हमारे क्षेत्र में सिर्फ डेढ़ लाख रुपए की ट्रॉली सरकार की ओर से लगाई गई. यहां बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचाना भी हमारे लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.

क्या है सौंग बांध योजना: सौंग नदी पर 1100 करोड़ की लागत से बांध बनाने की योजना है. इस योजना के बनने से देहरादून जनपद को 24 घंटे पीने का उपलब्ध होगा. धनौल्टी विधानसभा क्षेत्र के सौंदणा गांव में प्रस्तावित बांध परियोजना के तहत सौंग बांध क्षेत्र पर्यटन घाटी के तौर पर विकसित किया जाएगा. यह प्रस्तावित बांध 128 मीटर ऊंचा और साढ़े चार किलोमीटर लंबा होगा. इस योजना से रायपुर क्षेत्र तक ग्रेविटी के आधार पर पानी की आपूर्ति की जाएगी. इससे 100 करोड़ रुपये का बिजली खर्च बचेगा.
पढ़ें- केदारनाथ त्रासदी के 9 साल बाद बना धाम का प्रवेश द्वार, अब घंटी बजाकर एंट्री लेंगे भक्त

रोजाना जान हथेली पर रखकर सफर करते हैं स्कूली बच्चे: सौंदणा गांव टिहरी जनपद के तोल्या काटल ग्राम सभा का एक गांव है. यहां के बच्चों को स्कूल जाने के लिए 12 किमी से ज्यादा सफर तय करना पड़ता है. गांव के बच्चे रांगड़ गांव के इंटर कॉलेज और द्वारा के इंटर कॉलेज में पढ़ने के लिए जाते हैं. गांव के बच्चों का कहना है कि हमें बहुत दिक्कत होती है. घर में कोई बीमार हो जाए तो उसको अस्पताल ले जाना भी बड़ा मुश्किल होता है. पहले तो कई किलोमीटर दूर से स्कूल आते हैं. उसके बाद इस तरह से जद्दोजहद अपने गांव जाने के लिए करनी पड़ती है.

वहीं, गांव के कुछ बच्चे जल्दी की वजह से नदी पार करके भी जाते हैं. उनका कहना है कि अगर अकेले होते हैं तो ट्रॉली खींचने वाला कोई नहीं होता है. इसलिए नदी से होकर चले जाते हैं लेकिन नदी का जलस्तर भी बढ़ता रहता है. कई बार नदी पार करना भी खतरे से कम नहीं होता. इसके लिए प्रशासन जिम्मेदार है. पुल ना होने की वजह से लोगों के लिये आवाजाही का एकमात्र जरिया ट्रॉली ही है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.