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चमोली आपदा की कहानी, 95 साल की अम्मा की जुबानी

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Published : Feb 12, 2021, 10:21 PM IST

चमोली में ग्लेशियर के टूटने से हुए नुकसान का ठीक अनुमान छठे दिन भी नहीं लग सका. लापता लोगों की तलाश में केंद्रीय एजेंसियां राहत और बचाव कार्यों में जुटी हैं. रैणी गांव की बुजुर्ग महिलाओं से सुनिए आपदा की कहानी.

Chamoli Glacier Burst
रैणी गांव में चिपको आंदोलन की नायिका गौरा देवी

चमोली/देहरादून: चमोली में बीते 7 फरवरी को आए सैलाब से अब तक 38 शव बरामद हो चुके हैं और करीब 166 से ज्यादा लोग अब भी लापता हैं. तपोवन टनल में फंसे लोगों के लिए राहत बचाव कार्य जारी है. इस रेस्क्यू ऑपरेशन में जिला प्रशासन की देखरेख में सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी और वायुसेना की भी मदद ली जा रही है.

वहीं, चमोली आपदा की वजह से 25 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोग बेहद डरे हुए हैं. इस डर का आलम इसी से लगाया जा सकता है कि इनके पास अगर कोई व्यक्ति आकर बैठ जाए तो स्थानीय लोग उससे घंटों बात कर अपनी घबराहट छिपाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं. ये हालात अमूमन उन सभी गांवों में देख जा सकते हैं, जो तपोवन से लेकर रैणी तक नदी किनारे बसे हुए हैं.

चमोली आपदा की कहानी अम्मा की जुबानी

खौफ में स्थानीय

ईटीवी भारत ने रैणी गांव में चिपको आंदोलन की नायिका गौरा देवी की सहेलियों से बातचीत करने का प्रयास किया तो बिना देरी उन्हें अपना दर्द और डर बयां करना शुरू कर दिया. गांव की 95 साल की बुजुर्ग डुका देवी और कलावती देवी का कहना है कि 'घटना के समय वह घर के बाहर बैठी हुई थीं. तभी जोरदार बादल के गरजने जैसी आवाज आई. फिर लगा कि पानी का सैलाब बड़ी तेजी से आगे की तरफ बढ़ रहा है. इन सबके कारण पहाड़ियों के बीच धुंध दिखाई देने लगी और उस सफेद धुंध ने पूरे गांव को अपनी आगोश में ले लिया'.

स्थानीय कलावती देवी कहती हैं कि 'जल सैलाब और मलबे की वजह की वजह से पूरे गांव में चीख पुकार मच गई. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में इस तरह की घटना की पहले कभी नहीं देखी'. रैणी गांव के लोगों में इस आपदा का इतना डर बैठ गया है कि बीते पांच दिनों से सभी ग्रामीण अपने घरों के बाहर गुजर-बसर कर रहे हैं.

रैणी के आसपास के गांवों की यह स्थिति हो गई है कि अगर कोई रेस्क्यू हेलीकॉप्टर भी उनके गांव से ऊपर से गुजरता है तो सभी भयभीत हो जाते हैं. ये उन आंखों का खौफ दिखाता है, जिन्होंने दिन के उजाले में अपनों को बिछड़ते देखा है.

पढ़ें : आंध्र प्रदेश : पर्यटकों को ले जा रही बस पलटी, आठ की मौत

नियमों की अनदेखी का आरोप

रैणी में जिस ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट को इससे नुकसान पहुंचा, उस पर भी नियमों की अनदेखी करके बनाने के आरोप हैं. उस इलाके में नंदादेवी बायोस्फियर रिजर्व है, जहां से लोगों को कंकड़ उठाकर ले जाने की इजाजत नहीं है. इस इलाके में इतने बड़े प्रोजेक्ट चलाए जाने के खिलाफ स्थानीय शुरू से रहे हैं.

चमोली में ग्लेशियर के टूटने से हुए नुकसान का ठीक अनुमान छठे दिन भी नहीं लग सका है. लापता लोगों की तलाश अब भी जारी है तो केंद्रीय एजेंसियां राहत बचाव कार्यों में जुटी हुई हैं. इस हादसे ने 2013 के केदारनाथ हादसे की झलक दिखलाने का काम किया है. हालांकि, वह इससे कहीं बड़ी और भीषण आपदा थी.

चमोली/देहरादून: चमोली में बीते 7 फरवरी को आए सैलाब से अब तक 38 शव बरामद हो चुके हैं और करीब 166 से ज्यादा लोग अब भी लापता हैं. तपोवन टनल में फंसे लोगों के लिए राहत बचाव कार्य जारी है. इस रेस्क्यू ऑपरेशन में जिला प्रशासन की देखरेख में सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आईटीबीपी और वायुसेना की भी मदद ली जा रही है.

वहीं, चमोली आपदा की वजह से 25 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोग बेहद डरे हुए हैं. इस डर का आलम इसी से लगाया जा सकता है कि इनके पास अगर कोई व्यक्ति आकर बैठ जाए तो स्थानीय लोग उससे घंटों बात कर अपनी घबराहट छिपाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं. ये हालात अमूमन उन सभी गांवों में देख जा सकते हैं, जो तपोवन से लेकर रैणी तक नदी किनारे बसे हुए हैं.

चमोली आपदा की कहानी अम्मा की जुबानी

खौफ में स्थानीय

ईटीवी भारत ने रैणी गांव में चिपको आंदोलन की नायिका गौरा देवी की सहेलियों से बातचीत करने का प्रयास किया तो बिना देरी उन्हें अपना दर्द और डर बयां करना शुरू कर दिया. गांव की 95 साल की बुजुर्ग डुका देवी और कलावती देवी का कहना है कि 'घटना के समय वह घर के बाहर बैठी हुई थीं. तभी जोरदार बादल के गरजने जैसी आवाज आई. फिर लगा कि पानी का सैलाब बड़ी तेजी से आगे की तरफ बढ़ रहा है. इन सबके कारण पहाड़ियों के बीच धुंध दिखाई देने लगी और उस सफेद धुंध ने पूरे गांव को अपनी आगोश में ले लिया'.

स्थानीय कलावती देवी कहती हैं कि 'जल सैलाब और मलबे की वजह की वजह से पूरे गांव में चीख पुकार मच गई. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में इस तरह की घटना की पहले कभी नहीं देखी'. रैणी गांव के लोगों में इस आपदा का इतना डर बैठ गया है कि बीते पांच दिनों से सभी ग्रामीण अपने घरों के बाहर गुजर-बसर कर रहे हैं.

रैणी के आसपास के गांवों की यह स्थिति हो गई है कि अगर कोई रेस्क्यू हेलीकॉप्टर भी उनके गांव से ऊपर से गुजरता है तो सभी भयभीत हो जाते हैं. ये उन आंखों का खौफ दिखाता है, जिन्होंने दिन के उजाले में अपनों को बिछड़ते देखा है.

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नियमों की अनदेखी का आरोप

रैणी में जिस ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट को इससे नुकसान पहुंचा, उस पर भी नियमों की अनदेखी करके बनाने के आरोप हैं. उस इलाके में नंदादेवी बायोस्फियर रिजर्व है, जहां से लोगों को कंकड़ उठाकर ले जाने की इजाजत नहीं है. इस इलाके में इतने बड़े प्रोजेक्ट चलाए जाने के खिलाफ स्थानीय शुरू से रहे हैं.

चमोली में ग्लेशियर के टूटने से हुए नुकसान का ठीक अनुमान छठे दिन भी नहीं लग सका है. लापता लोगों की तलाश अब भी जारी है तो केंद्रीय एजेंसियां राहत बचाव कार्यों में जुटी हुई हैं. इस हादसे ने 2013 के केदारनाथ हादसे की झलक दिखलाने का काम किया है. हालांकि, वह इससे कहीं बड़ी और भीषण आपदा थी.

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