नई दिल्ली : उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल 23 मार्च को खत्म हो जाएगा, उससे पहले 10 मार्च को तय हो जाएगा कि पहाड़ी राज्य में किसकी सरकार बनेगी. राज्य के 82,66,644 वोटर तय करेंगे कि इस बार सरकार की कमान कौन संभालेगा? पिछले 10 साल के दौरान उत्तराखंड के मतदाताओं में करीब 30 फीसदी का इजाफा हुआ है. 2012 उत्तराखंड में कुल 63,77,330 रजिस्टर्ड वोटर थे, अब इसकी तादाद 82,66,644 हो गई है यानी नए सरकार का फैसला कुल मिलाकर युवाओं के हाथ में है. 2022 में 632 प्रत्याशियों में लकी 70 का चुनाव 14 फरवरी को होगा.
उत्तराखंड में विधानसभा की कुल 70 सीटें हैं. स्पष्ट बहुमत के लिए जरूरी संख्या 36 है. अभी तक वहां हुए पिछले चार विधानसभा चुनाव में दो बार ही किसी दल को स्पष्ट बहुमत मिला है. उत्तराखंड 9 नवंबर 2000 को अस्तित्व में आया था. जब उत्तराखंड देश का 27वां राज्य बना, तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार थी. उत्तर प्रदेश से अलग होने के दौरान राज्य में बीजेपी के पास बहुमत था और उसे पहली सरकार बनाने का मौका मिला. 2002 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और इस पहाड़ी प्रदेश के मतदाताओं ने कांग्रेस को 36 सीटें देकर सरकार की कमान सौंप दी थी. उसके 15 साल बाद 2017 में बीजेपी को 57 सीटों पर जीत के साथ पूर्ण बहुमत मिला.
कुल मिलाकर 20 साल में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच मुख्य मुकाबला होता रहा. 2002 में सात सीटें जीतने वाली बहुजन समाजवादी पार्टी और 4 जीतों का विजेता उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) धीरे-धीरे उत्तराखंड की राजनीति में हाशिये पर चले गए. 2002 में बीएसपी को 10.93 और उत्तराखंड क्रांति दल को 5.49 प्रतिशत वोट मिले थे. 2007 के चुनाव में बहुजन समाजवादी पार्टी ने 8 सीट जीतकर चौंका दिया, जबकि उक्रांद ने 3 सीटें जीतीं. 2012 में बीएसपी 3 सीटों पर सिमट गई जबकि उत्तराखंड क्रांति दल एक विधानसभा में ही जीत दर्ज कर सका. 2017 के मोदी लहर में कांग्रेस और दो निर्दलीय के अलावा अन्य दूसरी पार्टियां साफ हो गईं.
उत्तराखंड के 20 साल के सफर में प्रदेश को 10 मुख्यमंत्री मिले हैं. भाजपा ने सात मुख्यमंत्री दिए हैं, तो कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश को तीन मुख्यमंत्री दिए हैं. भाजपा शासन के पहले कार्यकाल में दो और दूसरे कार्यकाल में उत्तराखंड को तीन मुख्यमंत्री मिले. स्थापना के बाद और विधानसभा चुनाव से पहले नित्यानंद स्वामी और भगत सिंह कोश्यारी भी भाजपा के ही मुख्यमंत्री रहे. सभी मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ कांग्रेस के पूर्व सीएम नारायण दत्त तिवारी ही अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर पाए थे.
उत्तराखंड राजनीतिक तौर से दो हिस्सों कुमाऊं और गढ़वाल में बंटा है. गढ़वाल मंडल के 7 जिलों में 41 विधानसभा सीटें हैं, जबकि कुमाऊं मंडल के 6 जिलों में 29 सीटें आती हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान गढ़वाल में भाजपा का वोट शेयर 46.41 प्रतिशत, कांग्रेस का वोट शेयर 31.62 प्रतिशत और अन्य का वोट शेयर 21.97 प्रतिशत था. कुमाऊं मंडल में भाजपा को 46.65 प्रतिशत, कांग्रेस को 31.08 प्रतिशत और अन्य को 17.27 प्रतिशत वोट मिले थे.
सीटों के कारण गढ़वाल से राजनीतिक तौर से मजबूत रहा है, मगर मुख्यमंत्री बनाने में कुमाऊं भी पीछे नहीं है. अब तक 10 में से 5 सीएम पौड़ी गढ़वाल से ही निकले हैं, जबकि 5 कुमाऊं इलाके से हैं. अब तक सीएम रहे भगत सिंह कोश्यारी, विजय बहुगुणा, एनडी तिवारी, हरीश रावत और पुष्कर सिंह धामी कुमाऊं का प्रतिनिधि करते हैं. पहले सीएम नित्यानंद स्वामी और तीरथ सिंह धामी गढ़वाली हैं, मगर दोनों चुनाव नहीं लड़े.
बहुजन समाजवादी पार्टी 2022 में 37 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. वह 2007 से हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर में बड़ी ताकत रही है. इसके अलावा राज्य की सुरक्षित सीटों पर उसके कैंडिडेट दमदार रहे. उत्तराखंड की 13 सीट अनुसूचित जाति और 2 सीटें अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशियों के लिए आरक्षित हैं. मगर 2008 के परिसीमन के बाद बीएसपी को उत्तराखंड में नुकसान उठाना पड़ा. 2017 में वह एक भी सीट हासिल नहीं कर सकी.
उत्तराखंड की राजनीति बीजेपी-कांग्रेस के इर्द-गिर्द ही रही है. अभी तक जारी सभी ओपिनियन पोल भी कांग्रेस और बीजेपी में ही संभावना तलाश रहे हैं. 2022 में आम आदमी पार्टी सीएम के चेहरे के तौर पर रिटायर्ड कर्नल अजय कोठियाल और ढेर सारे मुफ्त के वादे के साथ 70 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. साथ ही आप ने 18 साल से अधिक उम्र की हर महिला के बैंक खाते में पैसा डालने का वादा किया है. माना जा रहा है कि आप का आक्रमक चुनाव प्रचार कांग्रेस और बीजेपी को मुश्किल में डाल सकता है. मगर एक्सपर्ट मानते हैं कि आम आदमी पार्टी के लिए उत्तराखंड आसान नहीं है. वहां के 10 जिले पहाड़ी हैं, जहां कांग्रेस और बीजेपी पैठ बना चुकी है. इन जिलों तक पहुंच आसान नहीं है.
14 फरवरी को उत्तराखंड के लोग नई सरकार के लिए वोट डालेंगे. इस बार कौन जीतेगा, यह 10 मार्च को सामने आएगा.
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