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यूपी का माफियाराज: कंपाउन्डर से गैंगस्टर बने संजीव जीवा की अनसुनी कहानी - माफिया डॉन संजीव जीवा की अनसुनी कहानी

'डॉक्टर' के नाम से थर थर कांपते थे कारोबारी...सीना छलनी करने में वो देर नहीं लगाता...मायावती के रक्षक का बन गया भक्षक...बीजेपी विधायक को कर दिया गोलियों से छलनी...कौन है जरायम की दुनिया का ये बेताज बादशाह? यूपी का माफिया राज में आज बात ऐसे सीधे सादे शख्स की जिसने जल्द पैसा कमाने के लालच में जुर्म की अंधी गली का रुख किया तो आगे ही बढ़ता गया. उसने शुरुआत तो की वसूली से लेकिन एक बार हाथ में हथियार पकड़ा तो हत्या, अपहरण जैसे संगीन अपराध करने और पैसा कमाने में पारंगत होता चला गया. फिर एक दिन...

UP Ka Mafia Raaj
यूपी का माफियाराज
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Published : Apr 22, 2022, 1:04 PM IST

वो पढ़ने में माहिर था...टीचर भी उसके दिमाग का लोहा मानते थे...वो बनना चाहता था डॉक्टर लेकिन माली हालत ठीक नहीं होने के चलते अपने सपने को कुर्बान करना पड़ा.गुज़ारा करने के लिए वो एक झोलाछाप डॉक्टर के दवाखाने में कंपाउंडर बन गया. शामली जिले के नगर कोतवाली क्षेत्र के गांव आदमपुर का रहने वाला संजीव माहेश्वरी रोजाना सुबह 10 बजे शंकर दवाखाना पहुंचता, दवाएं पीसता और दवाओं की पुड़िया बनाकर मरीज़ों को देना उसकी रोज़मर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा बन गया था. और फिर उस एक दिन ने संजीव माहेश्वरी की ज़िन्दगी बदल दी, और वो बन गया संजीव उर्फ जीवा उर्फ डॉक्टर. वो कंपाउंडर अपने मालिक के लिए पैसों की वसूली करने गया और जब वापस आया तो खुद के नसीब की नई इबारत लिख चुका था.

वसूली करने निकला तो कुख्यात अपराधी बनकर आया वापस : रोज़ाना की तरह उस दिन भी संजीव ठीक 10 बजे शंकर दवाखाना पहुंच गया. मरीज़ों का आना शुरू हो गया था. लेकिन संजीव के डॉक्टर मालिक ने उस दिन अपने कंपाउन्डर को दवा पीसने की जगह एक दूसरा काम दिया. डॉक्टर ने संजीव को बताया कि एक व्यक्ति ने उससे उधार लिया था लेकिन वापस नहीं कर रहा है. संजीव को पैसे वसूल कर लाने को कहा गया. संजीव गया और जब लौटा तो खाली हाथ नहीं. पूरे पैसे लाकर डॉक्टर के हाथ पर रख दिये. इस एक घटना ने संजीव का हौसला बढ़ा दिया और पश्चिमी यूपी में जन्म हुआ एक नए अपराधी का.

जुर्म के रास्ते पर पहला कदम : डॉक्टर के आदेश पर उधार के पैसे वसूल लाने वाले संजीव के सपने सिर्फ दवा की पुड़िया बनाने तक सीमित नहीं रह गए थे. अब उसे कंपाउंडर से जरायम की दुनिया का डॉक्टर बनना था. वसूली करने का गुण एक झटके में सीखने वाले संजीव ने जुर्म के रास्ते पर पहला कदम उस डॉक्टर पर चोट कर रखा जिसने उसे इस रास्ते पर पहला कदम रखवाया था. जी हां, संजीव ने अपने ही डॉक्टर मालिक को अगवा कर लिया और बड़ी फिरौती लेकर छोड़ा. जल्दी ही संजीव ने अपहरण की विधा भी सीख ली. साल 1992 में संजीव ने बड़ा हाथ मारा. उसने कोलकाता के एक बड़े व्यापारी के बेटे का अपहरण कर लिया. उसने ऐसी फिरौती मांगी की न सिर्फ यूपी और कोलकता बल्कि पूरे देश में सनसनी मच गई. संजीव जीवा ने व्यापारी से बेटे को छोड़ने के एवज में दो करोड़ रुपये की डिमांड रखी थी.

ये खबर आग की तरह शामली से निकलकर उस मुजफ्फरनगर तक पहुंच गयी जहां सिर्फ गन्ने की नहीं बल्कि असलहों की भी खेती हुआ करती थी. मुजफ्फरनगर के हाईप्रोफाइल अपराधी रवि प्रकाश तक संजीव का किस्सा पहुंचा तो उसने संजीव को अपना शागिर्द बना लिया. पहली बार किसी शातिर डॉन का साथ मिलने पर संजीव का ग्राफ तेज़ी से बढ़ने लगा. रवि प्रकाश के संपर्क में आने के बाद वो जुर्म की दुनिया के नए नए हथकंडे सीखता गया. अपराध की दुनिया के सभी दांवपेच सीखते जा रहे संजीव ने हरिद्वार के नाजिम गैंग का साथ पकड़ा. उसके बाद वो सतेंद्र बरनाला नाम के एक गैंगस्टर के लिए काम करने लगा. दूसरों के लिए काम करने वाला संजीव अब बड़ी छलांग लगाने के मूड में था, इसलिए संजीव ने अपना गैंग बनाया. इसमें उसके साथ रवि प्रकाश, जितेंद्र उर्फ भूरी और रमेश ठाकुर जैसे खूंखार अपराधी जुड़ गए.

मायावती के रक्षक का बना भक्षक : 90 के दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिमी यूपी तक मुख्तार अंसारी, ब्रजेश सिंह, मुन्ना बजरंगी, बदन सिंघ बद्दो और भोला जाट जैसे माफ़ियायों का दबदबा था. उस वक्त संजीव जीवा अपने छोटे से गैंग को ऑपरेट कर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाह रहा था. जीवा के दिल में अब पूरे राज्य में अपना परचम लहराने की थी. इसके लिए उसने ऐसा काम किया जिसने उत्तर प्रदेश में भूचाल ला दिया. संजीव जीवा ने उस बीजेपी नेता की हत्या कर दी जिसने कभी पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की जान बचाई थी. साल 1997, तारीख 10 फरवरी, बीजेपी के उभरते हुए नेता और विधायक ब्रहम्मदत्त द्विवेदी फर्रुखाबाद के शहर कोतवाली स्थित अपने घर से कुछ दूर एक तिलक समारोह में शामिल होने गए थे. लौटते वक्त जैसे ही ब्रहम्मदत्त अपनी गाड़ी में बैठने लगे तभी संजीव जीवा ने अपने साथियों रमेश ठाकुर और बलविंदर सिंह के साथ मिलकर उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर उनकी हत्या कर दी. इस हमले में ब्रह्मदत्त द्विवेदी के गनर बीके तिवारी की मौत हो गई. हत्याकांड में सपा विधायक विजय सिंह का नाम सामने आया. जिन ब्रह्मदत्त की हत्या संजीव जीवा ने की थी उनके सियासी कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी अंतिम यात्रा में अटल बिहारी बाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेता शामिल हुए थे.

कहा जाता है कि संजीव जीवा ने जिन ब्रहम्मदत्त की हत्या की थी उन्होंने कभी मायावती की जान बचाई थी. जून 1995 में गेस्ट हाउस कांड के वक़्त मायावती कमरा नंबर 1 में बंद थीं, मायावती ने गेस्ट हाउस के कमरे से मदद के लिए कई लोगों को फोन लगाया. लेकिन किसी ने भी मदद नही की, तब संकटमोचन बन कर ब्रह्मदत्त गेस्टहाउस पहुंचे और पुलिस के पहुँचने तक मायावती के कमरे के बाहर मोर्चा संभाले रहे . इसके बाद से मायावती उन्हें अपना भाई मानती रहीं.

बीजेपी विधायक ब्रह्ह्दत्त द्विवेदी की हत्या के बाद संजीव जीवा हर माफिया की नजरों में छा चुका था. मुख्तार हो या ब्रजेश सिंह हर कोई संजीव जीवा को अपने गैंग में शामिल करने की चाहत रखने लगा था. लेकिन जीवा का रोल मॉडल था मुन्ना बजरंगी. वो मुन्ना बजरंगी जिसके आतंक से पूरा पूर्वांचल कांपता था. मुख्तार अंसारी के सबसे भरोसेमंद शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी के साथ जुड़ने से संजीव जीवा का अपराध जगत का बेताज बादशाह बनने का सपना पूरा होने के करीब पहुंच गया. संजीव जीवा मुन्ना बजरंगी के इशारे पर एक के बाद एक हत्या की वारदातों को अंजाम देने लगा. संजीव जीवा अब मुख्तार अंसारी के खास शूटर्स में शुमार हो चुका था.

बीजेपी विधायक कृष्णनंद राय के सीने में दागी 400 गोलियां : साल 2005 , उत्तर प्रदेश अब एक ऐसी घटना का गवाह बनने वाला था जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. जिस राज्य में 10 साल पहले एक भाजपा विधायक को गोलियों से छलनी कर दिया गया था, वहीं एक बार फिर गोलियों की बारिश होने वाले थी. 10 नहीं 100 नहीं बल्कि 400 राउंड गोलियां चलने वाली थी और इस वारदात को अंजाम देने वाला था वहीं डॉक्टर संजीव जीवा. 25 नवंबर 2005, यूपी के पूर्वांचल में माफ़ियायों और अपराधियों की जिस इलाके में खेती होती थी वो जिला था मऊ. मऊ में एक जगह है मोहम्मदाबाद. इस इलाके के बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन कर वापस लौट रहे थे. तभी सामने से एक गाड़ी उनकी गाड़ी के सामने रुकती है. गाड़ी से 8 लोग नीचे उतरते है और AK47 से गोलियों की बौछार कर देते हैं. कृष्णनंद राय के शरीर का एक भी ऐसा अंग नही बचा जहां गोलियां न लगी हों. कहा जाता है कि कृष्णनंद राय को मारने के लिए 400 राउंड गोलियां चलाई गई थीं. इस शूटआउट में विधायक कृष्णनंद समेत 7 लोगो की मौत हुई थी. इस नृशंस हत्याकांड में मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी और संजीव जीवा का नाम सामने आया. हालांकि बाद में कोर्ट से सभी आरोपी बरी हो गए थे.

जेल को बनाया ऐशगाह : बीजेपी विधायक कृष्णनंद राय की हत्या के बाद संजीव जीवा को गिरफ्तार कर लिया गया. यूपी पुलिस और आम लोगों को लगा कि अब यूपी में गोलियों की तड़तड़ाहट खत्म हो जाएगी. लेकिन संजीव जीवा ने जेल को अपनी ऐशगाह बना लिया था. बाराबंकी जेल में जीवा का बाकायदा दरबार लगता था. जेल से ही संजीव लोगों की सुपारी लेता और अपने शूटर से उनकी हत्या करवाता था. साल 2013 में संजीव जीवा बाराबंकी की जेल में बंद था. जेल प्रशासन तो मानो जीवा के जेल आने का इंतजार ही कर रहा था. संजीव बैरक में कम जेल अस्पताल में ज्यादा रहा. उस वक्त एक अखबार के स्टिंग ऑपरेशन में दिखा था कि जिस वार्ड में बिना किसी बीमारी के संजीव जीवा एडमिट था वहां ऐशोआराम की हर वो चीज मौजूद थी जो लोग अपने आलीशान घरों में रखते हैं. यही नहीं उसके दरबार में रोज दर्जनों लोग उससे मिलने आते थे. बताया जाता था कि वो व्यापारियों से रंगदारी मांगने के लिए उन्हें जेल बुलाया करता था.

पढ़ें-यूपी का माफिया राज: पूर्वांचल का वो खूंखार माफिया जो 9 गोली लगने के बाद मुर्दाघर से बाहर आया जिंदा

गलती से करवाई कंबल व्यापारी की उत्तराखंड में हत्या : साल 2017 में हरिद्वार के कंबल व्यवसायी अभिषेक दीक्षित की घर से दुकान जाते वक्त तीन बदमाशों ने गोली मार कर हत्या कर दी. इस हत्याकांड के तार दुर्दांत अपराधी संजीव जीवा से जाकर जुड़े .इस सनसनीखेज हत्याकांड ने यूपी और उत्तराखंड में हड़कंप मचा दिया. व्यापारी की हत्या करने वाले शूटर की गिरफ्तारी हुई तो पता चला कि इस हत्याकांड को संजीव जीवा के कहने पर अंजाम दिया गया था. यही नहीं जिस अभिषेक दीक्षित की हत्या की गई थी वो भी गलती से हो गयी थी.टार्गेट कोई और था लेकिन हत्या किसी और की हो गई. दरअसल, 6 मार्च 2017 को रोज की तरह शाम को निर्मला छावनी हरिद्वार के रहने वाले कंबल व्यापारी अमित दीक्षित घर से दुकान जा रहे थे. तभी शूटर मुजाहिद उर्फ खान, शूटर शाहरुख उर्फ पठान और विवेक ठाकुर उर्फ विक्की ने अभिषेक के ऊपर गोलियों की बारिश कर दी. जिसमें अभिषेक दीक्षित की मौके पर ही मौत हो गयी. इस हत्याकांड ने उत्तराखंड और यूपी में तहलका मचा दिया. उत्तराखंड पुलिस ने एक हफ्ते के अंदर सभी शूटर व निखिल और रितेश शर्मा को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद जो खुलासा हुआ वो चौकाने वाला था. शूटर्स ने बताया कि उन्हें हत्या करने के लिए मैनपुरी जेल में बंद संजीव जीवा ने कहा था. हरिद्वार पुलिस ने जीवा से पूछताछ की तो उसने बताया कि हत्या तो कनखल के प्रॉपर्टी डीलर सुभाष सैनी की करनी थी लेकिन उसके गुर्गों ने अभिषेक की हत्या कर दी. जीवा ने कहा कि अभिषेक की मौत से वो दुखी है.

मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद डर गया था कुख्यात जीवा : पुलिस से आंख मिचौनी के बाद आखिरकार संजीव जीवा पुलिस के हत्थे चढ़ गया. कोर्ट ने बीजेपी विधायक ब्रहम्मदत्त की हत्या के लिए उसे आजीवन कैद की सज़ा सुनाई है. फिलहाल संजीव जीवा लखनऊ सेंट्रल जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. मुन्ना बजंरगी की बागपत में हत्या होने के बाद दूसरों को अपनी दहशत से डराने वाला संजीव जीवा खुद डरने लगा था. कोर्ट में उसकी पत्नी ने जीवा की सुरक्षा के लिए गुहार भी लगाई थी. संजीव जीवा की शामली में 21 बीघा ज़मीन प्रशासन ने कब्ज़े में ले ली. संजीव जीवा के साथ काम करने वाले उसके सभी साथी आज या तो जेल में हैं या यमराज के पास पहुंच चुके हैं. संजीव जीवा जैसे तमाम माफिया इस समय जेल में ही खुद को सबसे महफूज़ मान रहे हैं.

पढ़ें-मोहब्बत में नाकामी ने कैसे बना दिया कुख्यात हत्यारा, चार राज्यों के लिए बन गया था सिरदर्द

वो पढ़ने में माहिर था...टीचर भी उसके दिमाग का लोहा मानते थे...वो बनना चाहता था डॉक्टर लेकिन माली हालत ठीक नहीं होने के चलते अपने सपने को कुर्बान करना पड़ा.गुज़ारा करने के लिए वो एक झोलाछाप डॉक्टर के दवाखाने में कंपाउंडर बन गया. शामली जिले के नगर कोतवाली क्षेत्र के गांव आदमपुर का रहने वाला संजीव माहेश्वरी रोजाना सुबह 10 बजे शंकर दवाखाना पहुंचता, दवाएं पीसता और दवाओं की पुड़िया बनाकर मरीज़ों को देना उसकी रोज़मर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा बन गया था. और फिर उस एक दिन ने संजीव माहेश्वरी की ज़िन्दगी बदल दी, और वो बन गया संजीव उर्फ जीवा उर्फ डॉक्टर. वो कंपाउंडर अपने मालिक के लिए पैसों की वसूली करने गया और जब वापस आया तो खुद के नसीब की नई इबारत लिख चुका था.

वसूली करने निकला तो कुख्यात अपराधी बनकर आया वापस : रोज़ाना की तरह उस दिन भी संजीव ठीक 10 बजे शंकर दवाखाना पहुंच गया. मरीज़ों का आना शुरू हो गया था. लेकिन संजीव के डॉक्टर मालिक ने उस दिन अपने कंपाउन्डर को दवा पीसने की जगह एक दूसरा काम दिया. डॉक्टर ने संजीव को बताया कि एक व्यक्ति ने उससे उधार लिया था लेकिन वापस नहीं कर रहा है. संजीव को पैसे वसूल कर लाने को कहा गया. संजीव गया और जब लौटा तो खाली हाथ नहीं. पूरे पैसे लाकर डॉक्टर के हाथ पर रख दिये. इस एक घटना ने संजीव का हौसला बढ़ा दिया और पश्चिमी यूपी में जन्म हुआ एक नए अपराधी का.

जुर्म के रास्ते पर पहला कदम : डॉक्टर के आदेश पर उधार के पैसे वसूल लाने वाले संजीव के सपने सिर्फ दवा की पुड़िया बनाने तक सीमित नहीं रह गए थे. अब उसे कंपाउंडर से जरायम की दुनिया का डॉक्टर बनना था. वसूली करने का गुण एक झटके में सीखने वाले संजीव ने जुर्म के रास्ते पर पहला कदम उस डॉक्टर पर चोट कर रखा जिसने उसे इस रास्ते पर पहला कदम रखवाया था. जी हां, संजीव ने अपने ही डॉक्टर मालिक को अगवा कर लिया और बड़ी फिरौती लेकर छोड़ा. जल्दी ही संजीव ने अपहरण की विधा भी सीख ली. साल 1992 में संजीव ने बड़ा हाथ मारा. उसने कोलकाता के एक बड़े व्यापारी के बेटे का अपहरण कर लिया. उसने ऐसी फिरौती मांगी की न सिर्फ यूपी और कोलकता बल्कि पूरे देश में सनसनी मच गई. संजीव जीवा ने व्यापारी से बेटे को छोड़ने के एवज में दो करोड़ रुपये की डिमांड रखी थी.

ये खबर आग की तरह शामली से निकलकर उस मुजफ्फरनगर तक पहुंच गयी जहां सिर्फ गन्ने की नहीं बल्कि असलहों की भी खेती हुआ करती थी. मुजफ्फरनगर के हाईप्रोफाइल अपराधी रवि प्रकाश तक संजीव का किस्सा पहुंचा तो उसने संजीव को अपना शागिर्द बना लिया. पहली बार किसी शातिर डॉन का साथ मिलने पर संजीव का ग्राफ तेज़ी से बढ़ने लगा. रवि प्रकाश के संपर्क में आने के बाद वो जुर्म की दुनिया के नए नए हथकंडे सीखता गया. अपराध की दुनिया के सभी दांवपेच सीखते जा रहे संजीव ने हरिद्वार के नाजिम गैंग का साथ पकड़ा. उसके बाद वो सतेंद्र बरनाला नाम के एक गैंगस्टर के लिए काम करने लगा. दूसरों के लिए काम करने वाला संजीव अब बड़ी छलांग लगाने के मूड में था, इसलिए संजीव ने अपना गैंग बनाया. इसमें उसके साथ रवि प्रकाश, जितेंद्र उर्फ भूरी और रमेश ठाकुर जैसे खूंखार अपराधी जुड़ गए.

मायावती के रक्षक का बना भक्षक : 90 के दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिमी यूपी तक मुख्तार अंसारी, ब्रजेश सिंह, मुन्ना बजरंगी, बदन सिंघ बद्दो और भोला जाट जैसे माफ़ियायों का दबदबा था. उस वक्त संजीव जीवा अपने छोटे से गैंग को ऑपरेट कर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाह रहा था. जीवा के दिल में अब पूरे राज्य में अपना परचम लहराने की थी. इसके लिए उसने ऐसा काम किया जिसने उत्तर प्रदेश में भूचाल ला दिया. संजीव जीवा ने उस बीजेपी नेता की हत्या कर दी जिसने कभी पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की जान बचाई थी. साल 1997, तारीख 10 फरवरी, बीजेपी के उभरते हुए नेता और विधायक ब्रहम्मदत्त द्विवेदी फर्रुखाबाद के शहर कोतवाली स्थित अपने घर से कुछ दूर एक तिलक समारोह में शामिल होने गए थे. लौटते वक्त जैसे ही ब्रहम्मदत्त अपनी गाड़ी में बैठने लगे तभी संजीव जीवा ने अपने साथियों रमेश ठाकुर और बलविंदर सिंह के साथ मिलकर उन पर अंधाधुंध फायरिंग कर उनकी हत्या कर दी. इस हमले में ब्रह्मदत्त द्विवेदी के गनर बीके तिवारी की मौत हो गई. हत्याकांड में सपा विधायक विजय सिंह का नाम सामने आया. जिन ब्रह्मदत्त की हत्या संजीव जीवा ने की थी उनके सियासी कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी अंतिम यात्रा में अटल बिहारी बाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेता शामिल हुए थे.

कहा जाता है कि संजीव जीवा ने जिन ब्रहम्मदत्त की हत्या की थी उन्होंने कभी मायावती की जान बचाई थी. जून 1995 में गेस्ट हाउस कांड के वक़्त मायावती कमरा नंबर 1 में बंद थीं, मायावती ने गेस्ट हाउस के कमरे से मदद के लिए कई लोगों को फोन लगाया. लेकिन किसी ने भी मदद नही की, तब संकटमोचन बन कर ब्रह्मदत्त गेस्टहाउस पहुंचे और पुलिस के पहुँचने तक मायावती के कमरे के बाहर मोर्चा संभाले रहे . इसके बाद से मायावती उन्हें अपना भाई मानती रहीं.

बीजेपी विधायक ब्रह्ह्दत्त द्विवेदी की हत्या के बाद संजीव जीवा हर माफिया की नजरों में छा चुका था. मुख्तार हो या ब्रजेश सिंह हर कोई संजीव जीवा को अपने गैंग में शामिल करने की चाहत रखने लगा था. लेकिन जीवा का रोल मॉडल था मुन्ना बजरंगी. वो मुन्ना बजरंगी जिसके आतंक से पूरा पूर्वांचल कांपता था. मुख्तार अंसारी के सबसे भरोसेमंद शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी के साथ जुड़ने से संजीव जीवा का अपराध जगत का बेताज बादशाह बनने का सपना पूरा होने के करीब पहुंच गया. संजीव जीवा मुन्ना बजरंगी के इशारे पर एक के बाद एक हत्या की वारदातों को अंजाम देने लगा. संजीव जीवा अब मुख्तार अंसारी के खास शूटर्स में शुमार हो चुका था.

बीजेपी विधायक कृष्णनंद राय के सीने में दागी 400 गोलियां : साल 2005 , उत्तर प्रदेश अब एक ऐसी घटना का गवाह बनने वाला था जिसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. जिस राज्य में 10 साल पहले एक भाजपा विधायक को गोलियों से छलनी कर दिया गया था, वहीं एक बार फिर गोलियों की बारिश होने वाले थी. 10 नहीं 100 नहीं बल्कि 400 राउंड गोलियां चलने वाली थी और इस वारदात को अंजाम देने वाला था वहीं डॉक्टर संजीव जीवा. 25 नवंबर 2005, यूपी के पूर्वांचल में माफ़ियायों और अपराधियों की जिस इलाके में खेती होती थी वो जिला था मऊ. मऊ में एक जगह है मोहम्मदाबाद. इस इलाके के बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन कर वापस लौट रहे थे. तभी सामने से एक गाड़ी उनकी गाड़ी के सामने रुकती है. गाड़ी से 8 लोग नीचे उतरते है और AK47 से गोलियों की बौछार कर देते हैं. कृष्णनंद राय के शरीर का एक भी ऐसा अंग नही बचा जहां गोलियां न लगी हों. कहा जाता है कि कृष्णनंद राय को मारने के लिए 400 राउंड गोलियां चलाई गई थीं. इस शूटआउट में विधायक कृष्णनंद समेत 7 लोगो की मौत हुई थी. इस नृशंस हत्याकांड में मुख्तार अंसारी, मुन्ना बजरंगी और संजीव जीवा का नाम सामने आया. हालांकि बाद में कोर्ट से सभी आरोपी बरी हो गए थे.

जेल को बनाया ऐशगाह : बीजेपी विधायक कृष्णनंद राय की हत्या के बाद संजीव जीवा को गिरफ्तार कर लिया गया. यूपी पुलिस और आम लोगों को लगा कि अब यूपी में गोलियों की तड़तड़ाहट खत्म हो जाएगी. लेकिन संजीव जीवा ने जेल को अपनी ऐशगाह बना लिया था. बाराबंकी जेल में जीवा का बाकायदा दरबार लगता था. जेल से ही संजीव लोगों की सुपारी लेता और अपने शूटर से उनकी हत्या करवाता था. साल 2013 में संजीव जीवा बाराबंकी की जेल में बंद था. जेल प्रशासन तो मानो जीवा के जेल आने का इंतजार ही कर रहा था. संजीव बैरक में कम जेल अस्पताल में ज्यादा रहा. उस वक्त एक अखबार के स्टिंग ऑपरेशन में दिखा था कि जिस वार्ड में बिना किसी बीमारी के संजीव जीवा एडमिट था वहां ऐशोआराम की हर वो चीज मौजूद थी जो लोग अपने आलीशान घरों में रखते हैं. यही नहीं उसके दरबार में रोज दर्जनों लोग उससे मिलने आते थे. बताया जाता था कि वो व्यापारियों से रंगदारी मांगने के लिए उन्हें जेल बुलाया करता था.

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गलती से करवाई कंबल व्यापारी की उत्तराखंड में हत्या : साल 2017 में हरिद्वार के कंबल व्यवसायी अभिषेक दीक्षित की घर से दुकान जाते वक्त तीन बदमाशों ने गोली मार कर हत्या कर दी. इस हत्याकांड के तार दुर्दांत अपराधी संजीव जीवा से जाकर जुड़े .इस सनसनीखेज हत्याकांड ने यूपी और उत्तराखंड में हड़कंप मचा दिया. व्यापारी की हत्या करने वाले शूटर की गिरफ्तारी हुई तो पता चला कि इस हत्याकांड को संजीव जीवा के कहने पर अंजाम दिया गया था. यही नहीं जिस अभिषेक दीक्षित की हत्या की गई थी वो भी गलती से हो गयी थी.टार्गेट कोई और था लेकिन हत्या किसी और की हो गई. दरअसल, 6 मार्च 2017 को रोज की तरह शाम को निर्मला छावनी हरिद्वार के रहने वाले कंबल व्यापारी अमित दीक्षित घर से दुकान जा रहे थे. तभी शूटर मुजाहिद उर्फ खान, शूटर शाहरुख उर्फ पठान और विवेक ठाकुर उर्फ विक्की ने अभिषेक के ऊपर गोलियों की बारिश कर दी. जिसमें अभिषेक दीक्षित की मौके पर ही मौत हो गयी. इस हत्याकांड ने उत्तराखंड और यूपी में तहलका मचा दिया. उत्तराखंड पुलिस ने एक हफ्ते के अंदर सभी शूटर व निखिल और रितेश शर्मा को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद जो खुलासा हुआ वो चौकाने वाला था. शूटर्स ने बताया कि उन्हें हत्या करने के लिए मैनपुरी जेल में बंद संजीव जीवा ने कहा था. हरिद्वार पुलिस ने जीवा से पूछताछ की तो उसने बताया कि हत्या तो कनखल के प्रॉपर्टी डीलर सुभाष सैनी की करनी थी लेकिन उसके गुर्गों ने अभिषेक की हत्या कर दी. जीवा ने कहा कि अभिषेक की मौत से वो दुखी है.

मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद डर गया था कुख्यात जीवा : पुलिस से आंख मिचौनी के बाद आखिरकार संजीव जीवा पुलिस के हत्थे चढ़ गया. कोर्ट ने बीजेपी विधायक ब्रहम्मदत्त की हत्या के लिए उसे आजीवन कैद की सज़ा सुनाई है. फिलहाल संजीव जीवा लखनऊ सेंट्रल जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. मुन्ना बजंरगी की बागपत में हत्या होने के बाद दूसरों को अपनी दहशत से डराने वाला संजीव जीवा खुद डरने लगा था. कोर्ट में उसकी पत्नी ने जीवा की सुरक्षा के लिए गुहार भी लगाई थी. संजीव जीवा की शामली में 21 बीघा ज़मीन प्रशासन ने कब्ज़े में ले ली. संजीव जीवा के साथ काम करने वाले उसके सभी साथी आज या तो जेल में हैं या यमराज के पास पहुंच चुके हैं. संजीव जीवा जैसे तमाम माफिया इस समय जेल में ही खुद को सबसे महफूज़ मान रहे हैं.

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