देहरादूनः उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ी जिले पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, बागेश्वर, उत्तरकाशी, चमोली और रुद्रप्रयाग के कर्मचारियों की तरह ही देहरादून सचिवालय में बैठे बड़े अधिकारी भी हिल अलाउंस का लाभ ले रहे हैं. जी हां, पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में हिल अलाउंस को लेकर कुछ ऐसी ही व्यवस्था बनाई गई है. जिसके चलते ऑल इंडिया सर्विस के इन अधिकारियों को भी पर्वतीय विकास भत्ते का फायदा मिल रहा है. वैसे तो नियमों के लिहाज से इसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन हिल अलाउंस के नाम पर मैदानी क्षेत्रों में तैनात IAS, IPS, PCS और IFS का ये लाभ लेना सबको हैरान कर रहा है.
बता दें कि हिल अलाउंस की व्यवस्था का लाभ अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से ही उत्तराखंड में तैनात अफसर लेते रहे हैं. लेकिन राज्य स्थापना के बाद उत्तराखंड को मैदान और पहाड़ी क्षेत्र के रूप में अलग से वर्गीकृत किया जा चुका है. सबसे बड़ी बात ये है कि कई अफसरों और मंत्रियों को भी इस बात का आभास नहीं है कि राज्य में हिल अलाउंस के नाम पर पूरे प्रदेश के अफसरों और कर्मचारियों को एक समान लाभ दिया जा रहा है.
कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी का जवाब सुनिएः कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी भी देहरादून, उधम सिंह नगर और हरिद्वार जिले में तैनात बड़े अफसरों को मिल रहे हिल अलाउंस के सवाल पर कुछ ऐसा ही जवाब देते हैं. गणेश जोशी का कहना है उन्हें जानकारी नहीं कि किन लोगों को हिल अलाउंस दिया जा रहा है? यदि किसी अधिकारी को हिल अलाउंस अनुमन्य नहीं है और इसके बावजूद उन्हें ऐसा भत्ता मिल रहा है तो उसे रोकने का काम किया जाएगा. इसके लिए वो मुख्यमंत्री से भी बात करेंगे.
हिल अलाउंस को इस तरह किया गया वर्गीकृतः उत्तराखंड में पर्वतीय विकास भत्ते से जुड़े समय समय पर अलग-अलग आदेश हुए हैं. राज्य स्थापना के बाद साल 2002 में एक शासनादेश के माध्यम से पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में राज्य को वर्गीकृत किया गया था, इसमें 1500 मीटर या इससे ज्यादा की ऊंचाई वाले क्षेत्रों को पर्वतीय मानते हुए हिल अलाउंस अनुमन्य किया गया था. इसके बाद साल 2009 में पर्वतीय क्षेत्र को लेकर कुछ शिथिलता बढ़ाते हुए इसकी ऊंचाई में कमी की गई थी. नए आदेश में 1000 मीटर या इससे ज्यादा के ऊंचे क्षेत्रों को पहाड़ी क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया था.
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उत्तराखंड विकास भत्ता दिया नामः खास बात ये है कि इसके बाद साल 2013 में अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा ने एक आदेश किया. जिसके बाद पूरे प्रदेश को ही पर्वतीय विकास भत्ता दिए जाने पर मुहर लगा दी गई. आदेश में बताया गया कि 1000 मीटर की ऊंचाई के नियम के चलते कई लोगों को इस भत्ते का लाभ नहीं मिल पा रहा है. लिहाजा, हिल अलाउंस का नाम बदल कर इसे उत्तराखंड विकास भत्ता नाम देते हुए पूरे प्रदेश में सभी के लिए यह भत्ता अनुमन्य कर दिया गया.
अगला आदेश साल 2019 जनवरी में हुआ, जो कि सातवें वेतनमान को लेकर अनुमन्य भत्तों को लेकर था. इस दौरान वित्त सचिव अमित नेगी ने सातवें वेतनमान में भी 12 बिंदुओं वाले अलग-अलग भत्ते को वेतनमान में जारी रखने से जुड़ा आदेश किया. खास बात ये है कि इसमें पर्वतीय विकास भत्ते का भी नाम था. राज्य में हिल अलाउंस उच्चतम पद वाले आईएएस अफसरों, आईपीएस, आईएफएस और पीसीएस अफसरों को भी मिल रहा है. हिल अलाउंस अधिकतम करीब ₹550 और न्यूनतम ₹200 प्रति माह तक राज्य कर्मचारियों और अफसरों को मिल रहा है. ये वो अफसर हैं, जिन्हें प्रतिमाह भत्ते मिलाकर 1.5 लाख से 4 लाख तक का वेतन मिलता है.
बहरहाल, हिल अलाउंस को लेकर नियमों के लिहाज से तो कोई परेशानी नहीं है, लेकिन इसका नाम मौजूदा व्यवस्था पर सवाल जरूर खड़े करता है. सवाल इस बात का कि आखिरकार मैदानी जिलों और क्षेत्रों में तैनात अफसरों व कर्मचारियों को ऐसे भत्ते देने का क्या औचित्य है? सबसे ज्यादा सवाल तो तब पैदा होता है, जब खुद नियम बनाने और उनका पालन करवाने वाले बड़े अफसर भी इसका लाभ लेते हुए दिखाई देते हैं.
वहीं, मामले को लेकर ईटीवी भारत ने कई अफसरों से भी मुलाकात की. कई बड़े अफसरों ने तो यह माना कि मैदानी जिलों में ऐसे भत्ते को देने का कोई औचित्य नहीं है. उधर, वित्त सेवा के बड़े अधिकारी ने इस भत्ते के नाम को राइटिंग मिस्टेक बताते हुए भत्ते का नाम उत्तराखंड विकास भत्ता होने तक की बात कह दी. इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार नीरज कोहली कहते हैं कि भले ही नियम के आधार पर यह भत्ता सही दिया जा रहा हो, लेकिन असल में जिसका नाम पर्वतीय विकास भत्ता हो, वो भत्ता पर्वतीय क्षेत्र के लिए ही होना चाहिए.
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