देहरादूनः उत्तराखंड के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है. इसीलिए इसे देवभूमि कहा जाता है. उत्तराखंड में चारों धामों के अलावा दुनिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिरों में से एक तुंगनाथ मंदिर भी है. तुंगनाथ मंदिर पंच केदार मंदिरों में से सबसे ऊंचा है. खास बात ये है कि दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा मानी जाने वाली कैलाश मानसरोवर यात्रा भी उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से आगे बढ़ती है. इसके लिए श्रद्धालुओं को कई किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है. इस कठिन कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए शिव भक्तों को तिब्बत और चीन की ओर देखना पड़ता है. लेकिन अब भगवान शिव उत्तराखंड के पर्वतों से ही भक्तों को दर्शन देंगे.
2020 में कोविड-19 के बाद से लगातार रद्द हो रही कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए हाल ही में एक खुशखबरी सामने आई थी. हाल ही में उत्तराखंड पर्यटन विभाग के अधिकारियों, जिला अधिकारियों, साहसिक पर्यटन विशेषज्ञों और सीमा सड़क संगठन के अधिकारियों की एक टीम ने पुरानी लिपुलेख चोटी का दौरा किया था. यहां से भव्य कैलाश पर्वत का स्पष्ट दृश्य दिखाई देता है. इसके बाद स्थानीय लोग और जिला प्रशासन के साथ-साथ सरकार भी बेहद खुश नजर आ रही है. लेकिन अब खबर आ रही है कि कैलाश पर्वत के दर्शन एक और दर्रे से भी हो सकते हैं.
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दो स्थानों से भगवान शिव के दर्शन: उत्तराखंड के धारचूला स्थित व्यास घाटी के लिंपियाधुरा दर्रे से भगवान कैलाश मानसरोवर का ओम पर्वत साफ दिखाई दे रहा है. बताया जा रहा है कि कुछ लोगों ने साल 2015 में भी व्यास घाटी के लिंपियाधुरा दर्रे से कैलाश मानसरोवर का पर्वत दिखने की बात कही थी. हालांकि तब सुरक्षा कारणों से यह कवायद आगे नहीं बढ़ पाई. लेकिन एक बार फिर से व्यास घाटी के लोग इस बात से बेहद प्रसन्न हैं कि कैलाश पर्वत उनके क्षेत्र से न केवल दिखाई दे रहा है, बल्कि साक्षात भगवान शिव के दर्शन भी हो रहे हैं. बताया जाता है एक समय में कैलाश मानसरोवर की यात्रा व्यास घाटी से ही होकर गुजरती थी. लेकिन कुछ कारणों की वजह से इसे बंद कर दिया गया और रास्ता दूसरा तैयार किया गया.
बेहद ऊंचे स्थान से दिख रहे बाबा कैलाश: व्यास घाटी इसलिए भी बेहद चर्चित है, क्योंकि इसी घाटी से होते हुए आदि कैलाश की यात्रा सरकार द्वारा संचालित की जाती है. इस पर्वत से ना केवल ओम पर्वत और काली नदी का उद्गम स्थल दिखाई देता है, बल्कि बेहद पवित्र मानी जानी वाली व्यास गुफा भी यहीं स्थित है. हालांकि, सरकार ने पहले से ही यहां पर व्यवस्थाएं बेहतर की हुई हैं. क्योंकि आदि कैलाश जाने वाले पर्यटकों को यहीं पर रुकवाया जाता है. आसपास के जंगलों में भारी तादाद में भोज पत्रों के पेड़ मौजूद हैं. इस वजह से भी इस स्थान को बेहद पवित्र माना जाता है.
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स्थानीय लोग बेहद खुश: एक हफ्ते पहले जिस स्थान को लेकर चर्चा हो रही थी कि उक्त स्थान से कैलाश पर्वत के दर्शन हो रहे हैं, उस जगह से ये नई जगह लगभग 2 से 3 किमी की दूरी पर स्थित है. यहां पर पहुंचकर श्रद्धालुओं को कैलाश पर्वत के दर्शन होंगे. लेकिन कठिनाई इसलिए भी है, क्योंकि इस पर्वत पर काफी तेज गति से बर्फीली हवाएं चलती हैं. इसलिए किसी का भी यहां ज्यादा देर तक रुकना संभव नहीं हो पाता. प्रशासन भी यहां पर अधिक समय तक किसी को रुकने की इजाजत नहीं देता है. व्यास घाटी से कैलाश पर्वत के दर्शन होने के बाद से घाटी के रं जनजाति के लोग बेहद खुश हैं. उनका कहना है कि यहां से पुराने समय में यात्रा हुआ करती थी.
रं जनजाति के अध्यक्ष दीपक बताते हैं कि पहले इस स्थान से तिब्बत और भारत के बीच व्यापार हुआ करता था. लेकिन समय के साथ सब कुछ बंद हो गया. दीपक बताते हैं कि साल 2015 में सरकार को जानकारी दी गई थी इस जगह से कैलाश पर्वत के दर्शन हो रहे हैं, लेकिन सुरक्षा कारणों की वजह से यहां किसी को आने की अनुमति नहीं थी. लेकिन अब उन्हें भी लग रहा है कि सरकार इसको लेकर गंभीर है. आदि कैलाश यात्रा के बाद लोग यहां से कैलाश मानसरोवर के दर्शन भी करने के लिए पहुंचेंगे.
कुमाऊं को होगा बेहद फायदा: सरकार में पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि गढ़वाल के साथ-साथ कुमाऊं की धरती बेहद पवित्र है. यहां तो सभी जगह भगवान शिव का वास है. हमें खुशी है कि कुमाऊं से भी कैलाश बाबा के दर्शन हो रहे हैं. सरकार इस मामले में बेहद गंभीर है और योजना के तहत बाबा के दर्शन करवाएंगे. ताकि, लोगों को कम समय में ही कैलाश पर्वत के दर्शन हों. राज्य सरकार इस मामले में केंद्र के साथ जल्द पत्राचार करेगी. इससे कुमाऊं को पर्यटन के क्षेत्र में बेहद फायदा होगा.
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