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दिल्ली: तीन पीढ़ियों से अंगदान कर जरूरतमंदों की मदद कर रहा ये परिवार - अंगदान करने का तरीका

दिल्ली में एक परिवार ऐसा है, जो तीन पीढ़ियों से अंगदान और देहदान कर रहा है. इस परिवार के कुल सात सदस्यों ने देहदान या अंगदान किया है. इसके अलावा पिछले तीन पीढ़ियों से अंगदान की यह परंपरा लगातार जारी है.

तीन पीढ़ियों से अंगदान कर रहा दिल्ली का एक परिवार
तीन पीढ़ियों से अंगदान कर रहा दिल्ली का एक परिवार
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Published : Jan 11, 2022, 12:04 AM IST

नई दिल्ली : देश में हर साल अंगों की कमी की वजह से करीब डेढ़ लाख लोगों की असामयिक मौत हो जाती है, लेकिन एक परिवार ऐसा भी है, जो तीन पीढ़ियों से अंगदान और देहदान कर रहा है. रोहिणी सेक्टर-14 निवासी मित्तल परिवार का तीन पीढ़ियों से अंगदान की परंपरा लगातार जारी है. इसके अलावा उनके परिवार के सात सदस्यों ने अंगदान या देहदान किया है. इतना ही नहीं इस परिवार की वर्तमान पीढ़ियों ने भी अंगदान करने का संकल्प लिया है.

दधीचि देहदान समिति (Dadhichi Deh Dan Samiti) के जीडी तायल एवं नई सोच संस्था और राइड ऑफ लाइफ के प्रतिनिधि दिगंबर कुमार और मेल्बिन सनी ने अंगदानी परिवारों से मिलने के क्रम में मित्तल परिवार से भी मुलाकात की और उनके अनुभव के बारे में जानकारी ली. सुशील मित्तल उनकी पत्नी अर्चना मित्तल एवं उनके पुत्र एवं पुत्री शुभम मित्तल और स्वाति मित्तल ने खुलकर अंगदान एवं देहदान को लेकर अपने विचार रखे.

तीन पीढ़ियों से अंगदान कर रहा दिल्ली का एक परिवार

राइड ऑफ लाइफ के संस्थापक और एम्स ओर्बो के ऑर्गन कोऑर्डिनेटर राजीव मैखुरी बताते हैं कि उन्हें एक ऐसा परिवार मिला, जहां अंगदान की परंपरा तीन पीढ़ियों से चली आ रही है. हमें उनसे प्रेरणादायक एवं हृदयस्पर्शी कहानी जानने और सुनने को मिली. मित्तल परिवार के सात सदस्यों ने देहदान या अंगदान किया है. इसके अलावा पिछली तीन पीढ़ियों से अंगदान की यह परंपरा लगातार जारी है एवं वर्तमान पीढ़ी से लेकर भविष्य की पीढ़ियों को भी इस विषय पर जागरूक करने का संकल्प इस परिवार ने लिया है. इस संकल्प को पूरा वे अपने स्थानीय समूह के माध्यम से करते हैं, जो उन्होंने अंगदान से संबंधित समूह का निर्माण किया है. इस समूह में उन सभी परिवारों को शामिल किया जाता है, जिनके परिवार के सदस्यों ने अंगदान या देहदान किया हो. इस तरीके से ही यह परिवार आपस में सुख-दुख के साथी होते हैं. अंगदान की इस परंपरा ने उन्हें एक नया परिवार इस समूह के रूप में भी दिया है.

ये भी पढ़ें : दिल्ली पुलिस का ट्रांसपेरेंट सिस्टम अपडेट, ई-मेल और फोन पर मैसेज से शिकायत की तमाम जानकारी

सुशील मित्तल बताते हैं कि तीन पीढ़ियों से उनके परिवार में अंगदान करने का चलन चलता आ रहा है. सबसे पहले 1987 में उनकी नानी ने अंगदान किया था. उसके बाद उनके पिताजी ने अंगदान किया. फिर उनके बड़े भाई अनिल मित्तल की ब्रेन डेड होने के बाद उनका देहदान किया गया. उनके बड़े भाई के दान किए गए अंगों से 8 लोगों को नई जिंदगी मिली है. उनका मानना है कि उनके बड़े भाई आज भी आठ अलग-अलग शरीर में जीवित हैं.

वहीं, सुशील मित्तल की पत्नी अर्चना मित्तल बताती है कि अंगदान एवं देहदान को लेकर लोग आज भी पुरानी रूढ़ियों में जी रहे हैं. आज अंगों की कमी की वजह से लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती है. मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों को स्टडी के लिए बॉडी नहीं मिल पाती है. लोगों को हमारे परिवार से प्रेरणा लेनी चाहिए और उन्हें अंगदान और देहदान का संकल्प लेकर काम करनी चाहिए.

अंग दान का संकल्प लेने वाली सुशील मित्तल की बेटी स्वाति ने बताया कि उन्हें इस बात का गर्व है कि वह ऐसे परिवार से आती हैं, जहां पीढ़ी दर पीढ़ी अंगदान करना एक रीति बन गई है. स्वाति की शादी हो गई है. जब अपने पति और ससुराल वालों को यह जानकारी दी कि उन्होंने अपने परिवार के रिवाज के मुताबिक देहदान एवं अंग दान का संकल्प लिया है तो वे लोग चकित हो गए और बोले कि उनके परिवार में ऐसा रिवाज नहीं है. ऐसे में स्वाति को अपने ससुराल में चुप रहना पड़ा. इसी बीच स्वाति के ताऊ की ब्रेन डेड हुई, जिसमें परिवार वालों ने रिवाज को कायम रखते हुए अंगदान करने का निर्णय लिया गया. एम्स अस्पताल के ओर्बो डिपार्टमेंट ने उनके शरीर से अंग रिट्रीव किया और उनके अंग आठ अलग-अलग लोगों को प्रत्यारोपित कर उन्हें एक नई जिंदगी दी.

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स्वाति के ससुराल वालों ने यह सब देखने के बाद उसके पति ने भी अंगदान एवं देहदान करने का निर्णय लिया. वहीं, स्वाति की सास भी अब कहती हैं कि जब उनकी मृत्यु होगी तो उनके शरीर और अंग दान कर देना, जिससे कि वह मरने के बाद भी किसी के शरीर में जीवित रह सकें और उसे भी एक नई जिंदगी मिल सके.

सुशील मित्तल के बेटे शुभम मित्तल ने बताया कि अनिल मित्तल उनके ताऊ थे, जिन्होंने अपना अंग दान किया था. अभी वह जिस पार्क में खड़े हैं उस पार्क का नाम उनके ताऊ के सम्मान में अनिल उद्यान रखा गया है. एमसीडी ने उनके अंगदान करने की जिजीविषा से प्रेरणा लेकर एक पार्क का नाम उनके नाम कर दिया. उन्होंने बताया कि वह चौथी पीढ़ी है जो अंग दान का संकल्प लिए है. आने वाली पीढ़ियों को भी इस बात का संकल्प दिलाकर अंगदान एवं देहदान की परंपरा को जीवित रखने की प्रेरणा देंगे.

नई दिल्ली : देश में हर साल अंगों की कमी की वजह से करीब डेढ़ लाख लोगों की असामयिक मौत हो जाती है, लेकिन एक परिवार ऐसा भी है, जो तीन पीढ़ियों से अंगदान और देहदान कर रहा है. रोहिणी सेक्टर-14 निवासी मित्तल परिवार का तीन पीढ़ियों से अंगदान की परंपरा लगातार जारी है. इसके अलावा उनके परिवार के सात सदस्यों ने अंगदान या देहदान किया है. इतना ही नहीं इस परिवार की वर्तमान पीढ़ियों ने भी अंगदान करने का संकल्प लिया है.

दधीचि देहदान समिति (Dadhichi Deh Dan Samiti) के जीडी तायल एवं नई सोच संस्था और राइड ऑफ लाइफ के प्रतिनिधि दिगंबर कुमार और मेल्बिन सनी ने अंगदानी परिवारों से मिलने के क्रम में मित्तल परिवार से भी मुलाकात की और उनके अनुभव के बारे में जानकारी ली. सुशील मित्तल उनकी पत्नी अर्चना मित्तल एवं उनके पुत्र एवं पुत्री शुभम मित्तल और स्वाति मित्तल ने खुलकर अंगदान एवं देहदान को लेकर अपने विचार रखे.

तीन पीढ़ियों से अंगदान कर रहा दिल्ली का एक परिवार

राइड ऑफ लाइफ के संस्थापक और एम्स ओर्बो के ऑर्गन कोऑर्डिनेटर राजीव मैखुरी बताते हैं कि उन्हें एक ऐसा परिवार मिला, जहां अंगदान की परंपरा तीन पीढ़ियों से चली आ रही है. हमें उनसे प्रेरणादायक एवं हृदयस्पर्शी कहानी जानने और सुनने को मिली. मित्तल परिवार के सात सदस्यों ने देहदान या अंगदान किया है. इसके अलावा पिछली तीन पीढ़ियों से अंगदान की यह परंपरा लगातार जारी है एवं वर्तमान पीढ़ी से लेकर भविष्य की पीढ़ियों को भी इस विषय पर जागरूक करने का संकल्प इस परिवार ने लिया है. इस संकल्प को पूरा वे अपने स्थानीय समूह के माध्यम से करते हैं, जो उन्होंने अंगदान से संबंधित समूह का निर्माण किया है. इस समूह में उन सभी परिवारों को शामिल किया जाता है, जिनके परिवार के सदस्यों ने अंगदान या देहदान किया हो. इस तरीके से ही यह परिवार आपस में सुख-दुख के साथी होते हैं. अंगदान की इस परंपरा ने उन्हें एक नया परिवार इस समूह के रूप में भी दिया है.

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सुशील मित्तल बताते हैं कि तीन पीढ़ियों से उनके परिवार में अंगदान करने का चलन चलता आ रहा है. सबसे पहले 1987 में उनकी नानी ने अंगदान किया था. उसके बाद उनके पिताजी ने अंगदान किया. फिर उनके बड़े भाई अनिल मित्तल की ब्रेन डेड होने के बाद उनका देहदान किया गया. उनके बड़े भाई के दान किए गए अंगों से 8 लोगों को नई जिंदगी मिली है. उनका मानना है कि उनके बड़े भाई आज भी आठ अलग-अलग शरीर में जीवित हैं.

वहीं, सुशील मित्तल की पत्नी अर्चना मित्तल बताती है कि अंगदान एवं देहदान को लेकर लोग आज भी पुरानी रूढ़ियों में जी रहे हैं. आज अंगों की कमी की वजह से लाखों लोगों की मृत्यु हो जाती है. मेडिकल की पढ़ाई कर रहे छात्रों को स्टडी के लिए बॉडी नहीं मिल पाती है. लोगों को हमारे परिवार से प्रेरणा लेनी चाहिए और उन्हें अंगदान और देहदान का संकल्प लेकर काम करनी चाहिए.

अंग दान का संकल्प लेने वाली सुशील मित्तल की बेटी स्वाति ने बताया कि उन्हें इस बात का गर्व है कि वह ऐसे परिवार से आती हैं, जहां पीढ़ी दर पीढ़ी अंगदान करना एक रीति बन गई है. स्वाति की शादी हो गई है. जब अपने पति और ससुराल वालों को यह जानकारी दी कि उन्होंने अपने परिवार के रिवाज के मुताबिक देहदान एवं अंग दान का संकल्प लिया है तो वे लोग चकित हो गए और बोले कि उनके परिवार में ऐसा रिवाज नहीं है. ऐसे में स्वाति को अपने ससुराल में चुप रहना पड़ा. इसी बीच स्वाति के ताऊ की ब्रेन डेड हुई, जिसमें परिवार वालों ने रिवाज को कायम रखते हुए अंगदान करने का निर्णय लिया गया. एम्स अस्पताल के ओर्बो डिपार्टमेंट ने उनके शरीर से अंग रिट्रीव किया और उनके अंग आठ अलग-अलग लोगों को प्रत्यारोपित कर उन्हें एक नई जिंदगी दी.

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स्वाति के ससुराल वालों ने यह सब देखने के बाद उसके पति ने भी अंगदान एवं देहदान करने का निर्णय लिया. वहीं, स्वाति की सास भी अब कहती हैं कि जब उनकी मृत्यु होगी तो उनके शरीर और अंग दान कर देना, जिससे कि वह मरने के बाद भी किसी के शरीर में जीवित रह सकें और उसे भी एक नई जिंदगी मिल सके.

सुशील मित्तल के बेटे शुभम मित्तल ने बताया कि अनिल मित्तल उनके ताऊ थे, जिन्होंने अपना अंग दान किया था. अभी वह जिस पार्क में खड़े हैं उस पार्क का नाम उनके ताऊ के सम्मान में अनिल उद्यान रखा गया है. एमसीडी ने उनके अंगदान करने की जिजीविषा से प्रेरणा लेकर एक पार्क का नाम उनके नाम कर दिया. उन्होंने बताया कि वह चौथी पीढ़ी है जो अंग दान का संकल्प लिए है. आने वाली पीढ़ियों को भी इस बात का संकल्प दिलाकर अंगदान एवं देहदान की परंपरा को जीवित रखने की प्रेरणा देंगे.

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