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उत्तरकाशी टनल हादसे की वजह क्या मानते हैं वैज्ञानिक? जानिए हैवी प्रोजेक्ट्स को लेकर क्यों किया आगाह

Uttarkashi Tunnel Collapsed उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन टनल हादसे के बाद तमाम प्रोजेक्ट्स पर सवाल खड़े हो रहे हैं. क्योंकि, उत्तराखंड का हिमालयी क्षेत्र काफी सेंसेटिव और नया है. ऐसे में पहाड़ों पर तैयार किए जा रहे बड़े प्रोजेक्ट सुरक्षित है या नहीं, इस पर ईटीवी भारत से भूवैज्ञानिकों ने अपनी बात रखी है. जानिए उन्होंने बड़े प्रोजेक्ट को लेकर क्या सुझाव दिए और सिलक्यारा टनल हादसे की वजह क्या थी...Geologist Advice on Heavy Project of Uttarakhand

Uttarkashi Tunnel Collapsed Latest Updates
उत्तरकाशी टनल हादसे की वजह
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 13, 2023, 7:50 PM IST

Updated : Nov 13, 2023, 10:26 PM IST

भूवैज्ञानिक सुशील कुमार की राय

देहरादून/हरिद्वार (उत्तराखंड): उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री हाईवे पर सिलक्यारा में निर्माणाधीन टनल में भूधंसाव होने से 40 लोग अंदर ही फंसे हुए हैं. इस घटना के बाद से राहत बचाव का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है, लेकिन इस टनल हादसे के बाद से तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह घटना कैसे हो गई? ऐसे में ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वाडिया से रिटायर्ड भूवैज्ञानिक सुशील कुमार ने बताया कि यह प्राकृतिक आपदा है, लेकिन उत्तराखंड जैसे क्षेत्र में निर्माण कार्य करने के दौरान कार्यदायी संस्थाओं को तमाम अहम पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए.

Uttarkashi Tunnel Collapsed
उत्तरकाशी टनल हादसा

दरअसल, यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा और पोलगांव (बड़कोट) के बीच करीब 4,531 मीटर की लंबी सुरंग बनाई जा रही है. इस टनल निर्माण से यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के बीच की दूरी 25 किलोमीटर कम हो जाएगी. हालांकि, अभी तक सिल्कयारा की तरफ से 2340 मीटर और बड़कोट की तरफ से 1750 मीटर टनल का निर्माण हो चुका है, लेकिन सिलक्यारा की तरफ से करीब 270 मीटर अंदर करीब 30 मीटर क्षेत्र में मलबा गिरने से सुरंग ब्लॉक हो गया. जिसके चलते इस टनल में काम रहे लोग फंस गए हैं. जिन्हें सुरक्षित निकालने के लिए राहत व बचाव का काम जारी है.

वहीं, उत्तरकाशी टनल हादसे की वजह के सवाल पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान से रिटायर्ड भूवैज्ञानिक सुशील कुमार ने अपनी राय रखी. उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि देश में कोई पहली टनल बनाई जा रही हो, लेकिन उत्तराखंड का हिमालय क्षेत्र सॉफ्ट रॉक (नरम चट्टान) से बना हुआ है. जिसके चलते पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के कार्यों पर विशेष ध्यान देना होता है.

  • #उत्तरकाशी- ब्राह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्माणाधीन टनल के हिस्से के अचानक से टूट जाने से लगभग 40 मजदूर अन्दर फंस गये हैं।

    मुनाफे के लिए सरकार द्वारा तथ्यों को नजरंदाज किया जाना , हादसे की सबसे बड़ी वजह

    इस बड़ी लापरवाही का जिम्मेदार कौन?@pushkardhami @News18UPpic.twitter.com/qRVzUfnr1B

    — Karan Mahara (@KaranMahara_INC) November 13, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

मुख्य रूप से अन्य जगहों पर जब टनल निर्माण करते हैं तो पासेस ब्लॉक पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन उत्तराखंड में अगर कोई टनल बनाई जाती है तो यहां पासेस ब्लॉक पर ध्यान देने की जरूरत है. ताकि, अगर कोई घटना होती है तो काम करने वाले को तत्काल सुरक्षित बाहर निकाला जा सके.

ये भी पढ़ेंः उत्तरकाशी टनल हादसा: शिफ्ट खत्म होने से पहले मलबे में दबी जिंदगियां, दिवाली की खुशियों पर लगा 'ग्रहण'

भूवैज्ञानिक सुशील कुमार ने कहा कि अगर कोई टनल बनाते हैं तो उस दौरान खास कर सॉफ्ट रॉक जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में तो कुछ ऐसे स्पॉट भी मिलते है, जो किसी सपोर्ट पर रुके होते हैं. ऐसे में जैसे ही कोई स्पोर्ट हटता है तो सारा मलबा नीचे आ जाता है. जिससे टनल ब्लॉक हो जाती है. ऐसा ही कुछ घटना उत्तरकाशी के इस टनल में देखने को मिली है.

Geologist Sushil Kumar
भूवैज्ञानिक सुशील कुमार

हालांकि, यह एक प्राकृतिक हादसा है. क्योंकि, जब टनल का निर्माण किया जाता है तो तमाम जरूरी एहतियात बरते जाते हैं, लेकिन हर स्टेप पर स्ट्रेस लेवल को चेक करते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है. इस हादसे से तमाम सीख भी मिलेंगे, जिसे भविष्य में बनने वाले टनल के दौरान सुधारने की जरूरत होगी.

वहीं, सुशील कुमार ने कहा कि उत्तराखंड का हिमालय सॉफ्ट रॉक से बना हुआ है. लिहाजा, सड़क कटिंग या फिर टनल निर्माण के दौरान जो अनस्टेबलिटी की जा रही है, उसे स्टेबल करते हुए काम करना होगा. इसके साथ ही कार्यदायी संस्थाओं को और ज्यादा सावधानी बरतने के साथ ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि, जल्दबाजी में यह काम नहीं होगा.

हरिद्वार के भूवैज्ञानिक बीडी जोशी ने किया आगाह: उत्तरकाशी के यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन सुरंग हादसे के बाद तमाम प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं. खासकर हैवी प्रोजेक्ट को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिरकार उत्तराखंड के पहाड़ों पर ऐसे प्रोजेक्ट सुरक्षित है या नहीं. इसी पर चर्चा करने के लिए ईटीवी भारत ने हरिद्वार के भूवैज्ञानिक बीडी जोशी की राय जानी.

हरिद्वार के भूवैज्ञानिक बीडी जोशी की सलाह

हादसे पर क्या बोले भूवैज्ञानिक: भूवैज्ञानिक बीडी जोशी का कहना है कि यह हादसा कोई आश्चर्यजनक हादसा नहीं है, उनके अनुसार उन्हें पहले से ही अंदाजा था कि कोई न कोई हादसा अवश्य पहाड़ों से छेड़छाड़ करने के दौरान होगा. उन्होंने बताया कि इसके पीछे की वजह उत्तराखंड के पहाड़ों की युवा अवस्था है. उनकी आयु अन्य राज्यों के पहाड़ों के मुकाबले कम है.
ये भी पढ़ेंः ह्यूम पाइप से टल सकता था उत्तरकाशी टनल हादसा! पलभर में बाहर होते मजदूर, नहीं करनी पड़ती मशक्कत

इतना ही नहीं उत्तराखंड के क्लाइमेट में भी अन्य राज्यों के अनुसार काफी चेंज है. यहां पर बारिश, बर्फ और धूप जैसे मौसम लगातार बने रहते हैं. इन पहाड़ों पर पहले की अपेक्षा से ज्यादा अब लोगों की आवाजाही भी बढ़ी है. उत्तराखंड के पहाड़ अभी सही तरह से स्थिर नहीं हुए हैं, यही वजह है कि लगातार इस तरह के हादसे से हो रहे हैं.

कहां हुई चूक और क्या है वजह? भूवैज्ञानिक बीडी जोशी कहते हैं कि किसी भी काम को करने से पहले कई तरह के प्लान और कई तरह के उस प्रोजेक्ट पर वर्क करने होते हैं. जिसमें ये भी देखना होता है कि जहां इस तरह की टनल बनाई जा रही है, वो जगह उस टनल के अनुरूप है या नहीं. वहां की मिट्टी और उस पहाड़ की क्रियाएं किस तरह की है, यह भी अध्ययन करना बेहद जरूरी होता है.

इसके अलावा जियोलॉजिकल स्टेबिलिटी कितनी है? पहाड़ की मिट्टी कितनी लूज है या टाइट है? यह जानना भी अहम होता है. जब टनल का कार्य शुरू होता है तो पहाड़ पर चल रहे वॉटर रिसोर्सेस सिस्टम का दबाव भी पड़ता है. वहीं, टनल निर्माण के लिए जो मिट्टी या पदार्थ इस्तेमाल किए जा रहे हैं, वो किसी नदी या फिर इस पहाड़ के तो नहीं है? यह भी जानना जरूरी होता है. इतना ही नहीं पहाड़ के अनुरूप ही टनल का आकार के साथ उसका स्वरूप भी होना चाहिए.

हादसे का कारण जानना बेहद जरूरीः इस हादसे पर बोलते हुए बीड़ी जोशी ने कहा कि हमें यह जानना बेहद जरूरी है कि हमारी चूक कहां पर हुई है? क्या जिओ टेक्निकल लेवल पर कोई भूल इस हादसे में हुई है या फिर अनुभवी भूल या वर्तमान समय में अचानक भू बदलाव हुआ? इस कारणों को जानना होगा.
ये भी पढ़ेंः सिलक्यारा टनल से हटाया गया 20 मीटर मलबा, मजदूरों के रेस्क्यू में लग सकते हैं दो दिन, 6 दिन के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन

अन्य प्रोजेक्ट्स पर खतरा: वहीं, उत्तराखंड में चल रहे हैवी प्रोजेक्ट्स पर प्रोफेसर बीडी जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड में इस तरह की घटनाएं और ज्यादा होने की संभावनाएं हैं. क्योंकि, जिस तरह के उत्तराखंड के मौसम में बदलाव देखे जा रहे हैं, उसका मूल कारण हिमालय का क्षेत्र ज्यादा सेंसिटिव होना है. इसके अलावा भूस्खलन की दृष्टि हो या भूगर्भीय या फिर भूकंप की दृष्टि से इस तरह की घटनाएं देखी जा सकती है.

भूवैज्ञानिक सुशील कुमार की राय

देहरादून/हरिद्वार (उत्तराखंड): उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री हाईवे पर सिलक्यारा में निर्माणाधीन टनल में भूधंसाव होने से 40 लोग अंदर ही फंसे हुए हैं. इस घटना के बाद से राहत बचाव का कार्य युद्धस्तर पर चल रहा है, लेकिन इस टनल हादसे के बाद से तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यह घटना कैसे हो गई? ऐसे में ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए वाडिया से रिटायर्ड भूवैज्ञानिक सुशील कुमार ने बताया कि यह प्राकृतिक आपदा है, लेकिन उत्तराखंड जैसे क्षेत्र में निर्माण कार्य करने के दौरान कार्यदायी संस्थाओं को तमाम अहम पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए.

Uttarkashi Tunnel Collapsed
उत्तरकाशी टनल हादसा

दरअसल, यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा और पोलगांव (बड़कोट) के बीच करीब 4,531 मीटर की लंबी सुरंग बनाई जा रही है. इस टनल निर्माण से यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के बीच की दूरी 25 किलोमीटर कम हो जाएगी. हालांकि, अभी तक सिल्कयारा की तरफ से 2340 मीटर और बड़कोट की तरफ से 1750 मीटर टनल का निर्माण हो चुका है, लेकिन सिलक्यारा की तरफ से करीब 270 मीटर अंदर करीब 30 मीटर क्षेत्र में मलबा गिरने से सुरंग ब्लॉक हो गया. जिसके चलते इस टनल में काम रहे लोग फंस गए हैं. जिन्हें सुरक्षित निकालने के लिए राहत व बचाव का काम जारी है.

वहीं, उत्तरकाशी टनल हादसे की वजह के सवाल पर वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान से रिटायर्ड भूवैज्ञानिक सुशील कुमार ने अपनी राय रखी. उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं है कि देश में कोई पहली टनल बनाई जा रही हो, लेकिन उत्तराखंड का हिमालय क्षेत्र सॉफ्ट रॉक (नरम चट्टान) से बना हुआ है. जिसके चलते पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के कार्यों पर विशेष ध्यान देना होता है.

  • #उत्तरकाशी- ब्राह्मखाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्माणाधीन टनल के हिस्से के अचानक से टूट जाने से लगभग 40 मजदूर अन्दर फंस गये हैं।

    मुनाफे के लिए सरकार द्वारा तथ्यों को नजरंदाज किया जाना , हादसे की सबसे बड़ी वजह

    इस बड़ी लापरवाही का जिम्मेदार कौन?@pushkardhami @News18UPpic.twitter.com/qRVzUfnr1B

    — Karan Mahara (@KaranMahara_INC) November 13, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

मुख्य रूप से अन्य जगहों पर जब टनल निर्माण करते हैं तो पासेस ब्लॉक पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, लेकिन उत्तराखंड में अगर कोई टनल बनाई जाती है तो यहां पासेस ब्लॉक पर ध्यान देने की जरूरत है. ताकि, अगर कोई घटना होती है तो काम करने वाले को तत्काल सुरक्षित बाहर निकाला जा सके.

ये भी पढ़ेंः उत्तरकाशी टनल हादसा: शिफ्ट खत्म होने से पहले मलबे में दबी जिंदगियां, दिवाली की खुशियों पर लगा 'ग्रहण'

भूवैज्ञानिक सुशील कुमार ने कहा कि अगर कोई टनल बनाते हैं तो उस दौरान खास कर सॉफ्ट रॉक जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में तो कुछ ऐसे स्पॉट भी मिलते है, जो किसी सपोर्ट पर रुके होते हैं. ऐसे में जैसे ही कोई स्पोर्ट हटता है तो सारा मलबा नीचे आ जाता है. जिससे टनल ब्लॉक हो जाती है. ऐसा ही कुछ घटना उत्तरकाशी के इस टनल में देखने को मिली है.

Geologist Sushil Kumar
भूवैज्ञानिक सुशील कुमार

हालांकि, यह एक प्राकृतिक हादसा है. क्योंकि, जब टनल का निर्माण किया जाता है तो तमाम जरूरी एहतियात बरते जाते हैं, लेकिन हर स्टेप पर स्ट्रेस लेवल को चेक करते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है. इस हादसे से तमाम सीख भी मिलेंगे, जिसे भविष्य में बनने वाले टनल के दौरान सुधारने की जरूरत होगी.

वहीं, सुशील कुमार ने कहा कि उत्तराखंड का हिमालय सॉफ्ट रॉक से बना हुआ है. लिहाजा, सड़क कटिंग या फिर टनल निर्माण के दौरान जो अनस्टेबलिटी की जा रही है, उसे स्टेबल करते हुए काम करना होगा. इसके साथ ही कार्यदायी संस्थाओं को और ज्यादा सावधानी बरतने के साथ ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि, जल्दबाजी में यह काम नहीं होगा.

हरिद्वार के भूवैज्ञानिक बीडी जोशी ने किया आगाह: उत्तरकाशी के यमुनोत्री हाईवे पर निर्माणाधीन सुरंग हादसे के बाद तमाम प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं. खासकर हैवी प्रोजेक्ट को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिरकार उत्तराखंड के पहाड़ों पर ऐसे प्रोजेक्ट सुरक्षित है या नहीं. इसी पर चर्चा करने के लिए ईटीवी भारत ने हरिद्वार के भूवैज्ञानिक बीडी जोशी की राय जानी.

हरिद्वार के भूवैज्ञानिक बीडी जोशी की सलाह

हादसे पर क्या बोले भूवैज्ञानिक: भूवैज्ञानिक बीडी जोशी का कहना है कि यह हादसा कोई आश्चर्यजनक हादसा नहीं है, उनके अनुसार उन्हें पहले से ही अंदाजा था कि कोई न कोई हादसा अवश्य पहाड़ों से छेड़छाड़ करने के दौरान होगा. उन्होंने बताया कि इसके पीछे की वजह उत्तराखंड के पहाड़ों की युवा अवस्था है. उनकी आयु अन्य राज्यों के पहाड़ों के मुकाबले कम है.
ये भी पढ़ेंः ह्यूम पाइप से टल सकता था उत्तरकाशी टनल हादसा! पलभर में बाहर होते मजदूर, नहीं करनी पड़ती मशक्कत

इतना ही नहीं उत्तराखंड के क्लाइमेट में भी अन्य राज्यों के अनुसार काफी चेंज है. यहां पर बारिश, बर्फ और धूप जैसे मौसम लगातार बने रहते हैं. इन पहाड़ों पर पहले की अपेक्षा से ज्यादा अब लोगों की आवाजाही भी बढ़ी है. उत्तराखंड के पहाड़ अभी सही तरह से स्थिर नहीं हुए हैं, यही वजह है कि लगातार इस तरह के हादसे से हो रहे हैं.

कहां हुई चूक और क्या है वजह? भूवैज्ञानिक बीडी जोशी कहते हैं कि किसी भी काम को करने से पहले कई तरह के प्लान और कई तरह के उस प्रोजेक्ट पर वर्क करने होते हैं. जिसमें ये भी देखना होता है कि जहां इस तरह की टनल बनाई जा रही है, वो जगह उस टनल के अनुरूप है या नहीं. वहां की मिट्टी और उस पहाड़ की क्रियाएं किस तरह की है, यह भी अध्ययन करना बेहद जरूरी होता है.

इसके अलावा जियोलॉजिकल स्टेबिलिटी कितनी है? पहाड़ की मिट्टी कितनी लूज है या टाइट है? यह जानना भी अहम होता है. जब टनल का कार्य शुरू होता है तो पहाड़ पर चल रहे वॉटर रिसोर्सेस सिस्टम का दबाव भी पड़ता है. वहीं, टनल निर्माण के लिए जो मिट्टी या पदार्थ इस्तेमाल किए जा रहे हैं, वो किसी नदी या फिर इस पहाड़ के तो नहीं है? यह भी जानना जरूरी होता है. इतना ही नहीं पहाड़ के अनुरूप ही टनल का आकार के साथ उसका स्वरूप भी होना चाहिए.

हादसे का कारण जानना बेहद जरूरीः इस हादसे पर बोलते हुए बीड़ी जोशी ने कहा कि हमें यह जानना बेहद जरूरी है कि हमारी चूक कहां पर हुई है? क्या जिओ टेक्निकल लेवल पर कोई भूल इस हादसे में हुई है या फिर अनुभवी भूल या वर्तमान समय में अचानक भू बदलाव हुआ? इस कारणों को जानना होगा.
ये भी पढ़ेंः सिलक्यारा टनल से हटाया गया 20 मीटर मलबा, मजदूरों के रेस्क्यू में लग सकते हैं दो दिन, 6 दिन के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन

अन्य प्रोजेक्ट्स पर खतरा: वहीं, उत्तराखंड में चल रहे हैवी प्रोजेक्ट्स पर प्रोफेसर बीडी जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड में इस तरह की घटनाएं और ज्यादा होने की संभावनाएं हैं. क्योंकि, जिस तरह के उत्तराखंड के मौसम में बदलाव देखे जा रहे हैं, उसका मूल कारण हिमालय का क्षेत्र ज्यादा सेंसिटिव होना है. इसके अलावा भूस्खलन की दृष्टि हो या भूगर्भीय या फिर भूकंप की दृष्टि से इस तरह की घटनाएं देखी जा सकती है.

Last Updated : Nov 13, 2023, 10:26 PM IST
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