देहरादून : कोरोना कर्फ्यू के चलते मानवीय गतिविधियों पर लगी रोक के कारण जलवायु से लेकर वन्यजीवों तक में कई बदलाव दिखाई दिए हैं. इसी दिशा में स्नो लेपर्ड के व्यवहार में भी कुछ बदलाव महसूस किए जा रहे है.
एक ओर उत्तराखंड में देश का पहला स्नो लेपर्ड कंजर्वेशन सेंटर बनने जा रहा है, तो दूसरी तरफ उनके व्यवहार में आए अंतर ने इन पर अध्ययन के लिए वन्यजीव से जुड़े जानकारों को मजबूर कर दिया है.
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कोरोना से बदला पर्यावरण का स्वरूप
कोरोना संक्रमण के चलते देश में पर्यावरण से लेकर विभिन्न नदियों के स्वरूप में बदलाव महसूस किया जा रहा है. उधर वन्यजीव भी मानवीय गतिविधियों पर लगी रोग के बाद अपने व्यवहार को लेकर कुछ बदले हुए नजर आ रहे हैं.
इसका सीधा कारण जलवायु में आए बदलाव और मानवीय दखल अंदाजी का कम होना माना जा रहा है. वैसे माना जाता है कि स्नो लेपर्ड करीब 15,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर ही मौसमी अनुकूलता के चलते पाया जाता है. इस दौरान डब्ल्यूआईआई समेत दूसरी संस्थाएं भी इनके व्यवहार पर अध्ययन करती रही हैं.
वन विभाग के कर्मी भी स्नो लेपर्ड की मौजूदगी और संख्या को जानने के लिहाज से इनकी मॉनिटरिंग करने की कोशिश करते रहते हैं. इसी निगरानी और वन्यजीवों को लेकर जुटाई जाने वाली जानकारियों के दौरान यह पाया गया है कि अब स्नो लेपर्ड के पद चिन्ह करीब 9,000 फीट तक भी दिखाई दिए हैं.
वन्यजीवों के व्यवहार में आ रहा बदलाव
खास तौर पर चमोली जिले में इस तरह की स्नो लेपर्ड की गतिविधियां भांपी गई हैं. वन्यजीवों के जानकारों के लिए यह एक अध्ययन और चौंकाने वाला विषय है. दरअसल, जलवायु में आ रहे परिवर्तन के चलते स्नो लेपर्ड एक ओर जहां उच्च स्तर तक जा रही है, तो इसी हिसाब से पर्यावरण या मौसम को देखते हुए वन्यजीवों के ठिकानों में भी बदलाव हो रहा है.
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लेकिन पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड की पहाड़ियों पर ज्यादा बर्फबारी और जलवायु में बदलाव इन वन्यजीवों के व्यवहार में भी बदलाव ला रहा है. इसकी दो वजह बताई जा रही है, जिसमें पहला कोरोना कर्फ्यू के कारण पर्यावरण में बदलाव और पिछले साल हुई भारी बर्फबारी है और दूसरा मानवीय गतिविधियों का इस दौरान कम होना है.
वन मंत्री हरक सिंह रावत का कहना है कि यह बेहद चौंकाने वाला विषय है कि 15,000 फीट से अधिक ऊंचाई पर मिलने वाले स्नो लेपर्ड की मौजूदगी निचले स्थानों पर भी दिख रही है. इसके लिए कोरोना कर्फ्यू एक बड़ी वजह मानी जा रही है.