नई दिल्ली : कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी के कारण पूरे विश्व में 59 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और दस लाख से ज्यादा लोग इस खतरनाक वायरस से संक्रमित हैं. कोरोना के मुद्दे पर शोधकर्ताओं की तरह दुनिया के नेताओं को भी आगे आने की जरूरत है और महामारी को खत्म करने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर काम करने के आवश्यकता है. इस वायरस ने आज पूरी दुनिया में एक ठहराव सा ला दिया है.
शोधकर्ताओं की प्रशंसा करते हुए एक साप्ताहिक पत्रिका ने कहा है कि, दुनिया भर में हजारों शोधकर्ता हुए हैं, जिन्होंने अपने समय में आगे आकर जानलेवा वायरस से मानवजाति को बचाने का स्थायी समाधान खोजा. रिपोर्ट ने विभिन्न देशों के प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों पर इन मामले पर गंभीरता से ध्यान न देने का आरोप भी लगाया है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिस तरह से 2008 में वित्तीय संकट से निपटने का उपाय नेताओं ने निकाला था, ठीक उसी प्रकार से आज विश्व के नेताओं को कोरोना वायरस को समाप्त करने की दिशा में कारगर कदम उठाने चाहिए.
हालांकि, रिपोर्ट ने कोविड-19 से लड़ने की दिशा में किए गए परीक्षण के लिए कुछ विश्वविद्यालयों की सराहना भी की है. इनमें यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट-आधारित प्रयोगशालाओं जैसे कि कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स में ब्रॉड इंस्टीट्यूट ऑफ एमआईटी और हार्वर्ड, और बोगोटा में कोलम्बिया के नेशनल यूनिवर्सिटी शामिल हैं.
इस बीच, रिसर्च-संबंधित कार्यों के लिए स्वयंसेवकों का पता लगाने हेतु शोधकर्ताओं ने क्राउडफाइट कोविड-19 नाम से एक ऑनलाइन मंच स्थापित किया है. यह मंच अब लोकप्रियता हासिल कर रहा है.
अब तक इस मंच ने 35,000 से अधिक स्वयंसेवकों के पंजीकरण की सूचना दी है. आज पूरा विश्व कोरोना संकट से जूझ रहा है और ऐसे में दुनिया के नेताओं को एक साथ कदम बढ़ाने चाहिए. ताकि शोधकर्ताओं के पदचिन्हों पर चलकर कोरोना वायरस जैसी महामारी को समाप्त किया जा सके.