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नेपाल के प्रधानमंत्री ओली पर पद छोड़ने का दबाव, उठा सकते हैं यह कदम

नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली पर पार्टी से इस्तीफा देने का काफी दबाव है. विशेषज्ञों का मानना है कि ओली के पास दो ही विकल्प बचे हैं, या तो वह प्रधानमंत्री पद या फिर पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दें. पढ़ें विशेष खबर...

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Published : Jul 2, 2020, 5:51 PM IST

Updated : Jul 2, 2020, 6:10 PM IST

ओली
ओली

काठमांडू : नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली पर पार्टी से इस्तीफा देने का काफी दबाव है. इसके चलते ओली ने राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से मुलाकात की. जिसमें नो कॉन्फिडेंस मोशन से बचने के लिए संसद के बजट सत्र को विघटित किए बिना रद्द करने का फैसला किया गया. इस बीच, सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) की स्थायी समिति ने गुरुवार को ओली की अनुपस्थिति में गुरुवार को मुलाकात की.

काठमांडू स्थित राजनीतिक विश्लेषक हरि रोका ने ईटीवी भारत को बताया कि फिलहाल ओली के पास दो ही विकल्प बचे हैं. या तो वह प्रधानमंत्री पद या फिर पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दें.

काठमांडु के पत्रकार ने फोन पर बताया कि ओली के लिए अंतिम विकल्प पार्टी को विभाजित करना है.

इससे पहले सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (राकांपा) की स्थायी समिति के अधिकतर सदस्यों ने बुधवार को प्रधानमंत्री के पी ओली की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं. जिससे नेपाली पीएम को आने वाले दिनों में अपने पद को बचाने के लिए और अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

हालांकि बुधवार को काठमांडू में हुई स्थायी समिति की बैठक को लेकर केवल पांच लोगों ने ही मीडिया से बात की. इस दौरान इन सभी ने ओली को प्रधानमंत्री बने रहने पर आशंका जताई.

द काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, इनमें से तीन नेताओं, पेशल खतीवाड़ा, मत्रिका यादव और लीलामणि पोखरेल ने ओली के इस्तीफे की मांग की, जबकि दो अन्य, नंद कुमार प्रसाद और योगेश भट्टराई ने उनसे अपनी कार्यशैली में सुधार करने की बात कही है.

गौरतलब है कि यह बैठक, जो प्रधानमंत्री के आधिकारिक निवास पर आयोजित की गई थी. इसे समिति के सदस्यों की टिप्पणी के बाद रोक दिया गया. इसके बाद यह बैठक गुरूवार को फिर से शुरू हुई.

बता दें कि ओली के चीन समर्थित गतिविधियों के कारण हाल ही में भारत-चीन संबंधों काफी दबाव पड़ा है.

बता दें कि पिछले महीने, ओली ने कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा सहित देश के एक नए राजनीतिक मानचित्र को संसद में पेश किया, जिसमें भारतीय क्षेत्रों को नेपाल की सीमा में दर्शाया गया.

यह सब मई में भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा कैलाश मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए बनाए गए लिपुलेख तक एक सड़क का उद्घाटन करने के बाद यह हुआ.

ओली के इस कदम के बाद भारत ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इस कदम की कड़ी निंदा की.

इसके बाद रविवार को ओली ने भारत पर आरोप लगाया कि भारत उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटाने की कोशिश कर रहा है.

ओली ने रविवार को काठमांडू में एक कार्यक्रम में कहा, 'कुछ लोग मुझे भारत की मदद से प्रधानमंत्री पद से हटाना चाहते हैं. क्योंकि मैंने सीमा विवाद को लेकर आवाज उठाई. लेकिन किसी को भी यह नहीं समझना चाहिए कि वह अपनी इस कोशिश में सफल होगा.'

विशेषज्ञों के अनुसार, नेपाल में कोरोना महामारी से निपटने के लिए ओली द्वारा उठाए गए कदमों के विफल होने के बाद विरोध किया जा रहा है

इससे पहले मंगलवार को स्थायी समिति की बैठक में एनसीपी के सह-अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड और माधव कुमार, झाला नाथ खनाल, बमदेव गौतम और नारायण काजी श्रेष्ठ जैसे वरिष्ठ नेताओं ने 11 अन्य सदस्यों के साथ ओली के इस्तीफे की मांग की.

पढ़ें - नेपाल : चौतरफा दवाब में घिरे पीएम ओली, दे सकते हैं इस्तीफा

रोका के अनुसार, ओली अपनी ही पार्टी में अल्पमत में हैं और 45 सदस्यीय समिति में से केवल 15 ही उनका समर्थन कर रहे हैं.

रोका ने कहा कि पीएम कह रहे हैं कि अगर वह उन्हें उकसाना जारी रखते हैं, तो वे पार्टी को विभाजित कर देंगें.

रोका के अनुसार, यदि ओली प्रधानमंत्री पद को खो देते हैं, तो प्रधानमंत्री और एनसीपी के अध्यक्ष दहल और एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार के बीच यह पद साझा हो सकते हैं.

नई दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो के योहोम के अनुसार, एनसीपी दो भागों में बंटी हुई है. इसमें से एक धड़ा दहल के समर्थन में है.

योहोम ने ईटीवी भारत को बताया, ओली द्वारा कोविड-19 संकट से निपटने के कारण दोनों खेमों के बीच मतभेद बढ़ गए.

उन्होंने यह भी कहा कि भारत के खिलाफ ओली के अधिक आक्रमण का एक अन्य कारण नेपाल की राजनीतिक गतिशीलता में चीन की उभरती भूमिका है. नेपाल ने भारत के खिलाफ अतीत में चीनी कार्ड खेला है, लेकिन उसे छिपाए रखा.

गौर करने वाली बात यह है कि बीजिंग खुले तौर पर पिछले दो वर्षों से कह रहा है कि वह नेपाल में खेल खेलने के लिए तैयार है, जहां तक भारत का संबंध है, तो नेपाल में भू-राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव आया है.

इसके अलावा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल में पेट बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत चीन ने पनबिजली परियोजनाओं और काठमांडू से तिब्बत में केरूंग तक एक रेलवे लाइन का निवेश शुरू किया है.

दूसरी ओर, 2015 में आर्थिक नाकेबंदी के बाद हिमालयी राष्ट्र में भारत विरोधी भावनाओं में उछाल आया है. ओली सरकार ने इस भावना को भुनाया और सत्ता हासिल की.

(अरुनिम भुयान)

काठमांडू : नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली पर पार्टी से इस्तीफा देने का काफी दबाव है. इसके चलते ओली ने राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से मुलाकात की. जिसमें नो कॉन्फिडेंस मोशन से बचने के लिए संसद के बजट सत्र को विघटित किए बिना रद्द करने का फैसला किया गया. इस बीच, सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) की स्थायी समिति ने गुरुवार को ओली की अनुपस्थिति में गुरुवार को मुलाकात की.

काठमांडू स्थित राजनीतिक विश्लेषक हरि रोका ने ईटीवी भारत को बताया कि फिलहाल ओली के पास दो ही विकल्प बचे हैं. या तो वह प्रधानमंत्री पद या फिर पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दें.

काठमांडु के पत्रकार ने फोन पर बताया कि ओली के लिए अंतिम विकल्प पार्टी को विभाजित करना है.

इससे पहले सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (राकांपा) की स्थायी समिति के अधिकतर सदस्यों ने बुधवार को प्रधानमंत्री के पी ओली की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं. जिससे नेपाली पीएम को आने वाले दिनों में अपने पद को बचाने के लिए और अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.

हालांकि बुधवार को काठमांडू में हुई स्थायी समिति की बैठक को लेकर केवल पांच लोगों ने ही मीडिया से बात की. इस दौरान इन सभी ने ओली को प्रधानमंत्री बने रहने पर आशंका जताई.

द काठमांडू पोस्ट के मुताबिक, इनमें से तीन नेताओं, पेशल खतीवाड़ा, मत्रिका यादव और लीलामणि पोखरेल ने ओली के इस्तीफे की मांग की, जबकि दो अन्य, नंद कुमार प्रसाद और योगेश भट्टराई ने उनसे अपनी कार्यशैली में सुधार करने की बात कही है.

गौरतलब है कि यह बैठक, जो प्रधानमंत्री के आधिकारिक निवास पर आयोजित की गई थी. इसे समिति के सदस्यों की टिप्पणी के बाद रोक दिया गया. इसके बाद यह बैठक गुरूवार को फिर से शुरू हुई.

बता दें कि ओली के चीन समर्थित गतिविधियों के कारण हाल ही में भारत-चीन संबंधों काफी दबाव पड़ा है.

बता दें कि पिछले महीने, ओली ने कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा सहित देश के एक नए राजनीतिक मानचित्र को संसद में पेश किया, जिसमें भारतीय क्षेत्रों को नेपाल की सीमा में दर्शाया गया.

यह सब मई में भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा कैलाश मानसरोवर जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए बनाए गए लिपुलेख तक एक सड़क का उद्घाटन करने के बाद यह हुआ.

ओली के इस कदम के बाद भारत ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इस कदम की कड़ी निंदा की.

इसके बाद रविवार को ओली ने भारत पर आरोप लगाया कि भारत उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटाने की कोशिश कर रहा है.

ओली ने रविवार को काठमांडू में एक कार्यक्रम में कहा, 'कुछ लोग मुझे भारत की मदद से प्रधानमंत्री पद से हटाना चाहते हैं. क्योंकि मैंने सीमा विवाद को लेकर आवाज उठाई. लेकिन किसी को भी यह नहीं समझना चाहिए कि वह अपनी इस कोशिश में सफल होगा.'

विशेषज्ञों के अनुसार, नेपाल में कोरोना महामारी से निपटने के लिए ओली द्वारा उठाए गए कदमों के विफल होने के बाद विरोध किया जा रहा है

इससे पहले मंगलवार को स्थायी समिति की बैठक में एनसीपी के सह-अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड और माधव कुमार, झाला नाथ खनाल, बमदेव गौतम और नारायण काजी श्रेष्ठ जैसे वरिष्ठ नेताओं ने 11 अन्य सदस्यों के साथ ओली के इस्तीफे की मांग की.

पढ़ें - नेपाल : चौतरफा दवाब में घिरे पीएम ओली, दे सकते हैं इस्तीफा

रोका के अनुसार, ओली अपनी ही पार्टी में अल्पमत में हैं और 45 सदस्यीय समिति में से केवल 15 ही उनका समर्थन कर रहे हैं.

रोका ने कहा कि पीएम कह रहे हैं कि अगर वह उन्हें उकसाना जारी रखते हैं, तो वे पार्टी को विभाजित कर देंगें.

रोका के अनुसार, यदि ओली प्रधानमंत्री पद को खो देते हैं, तो प्रधानमंत्री और एनसीपी के अध्यक्ष दहल और एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार के बीच यह पद साझा हो सकते हैं.

नई दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो के योहोम के अनुसार, एनसीपी दो भागों में बंटी हुई है. इसमें से एक धड़ा दहल के समर्थन में है.

योहोम ने ईटीवी भारत को बताया, ओली द्वारा कोविड-19 संकट से निपटने के कारण दोनों खेमों के बीच मतभेद बढ़ गए.

उन्होंने यह भी कहा कि भारत के खिलाफ ओली के अधिक आक्रमण का एक अन्य कारण नेपाल की राजनीतिक गतिशीलता में चीन की उभरती भूमिका है. नेपाल ने भारत के खिलाफ अतीत में चीनी कार्ड खेला है, लेकिन उसे छिपाए रखा.

गौर करने वाली बात यह है कि बीजिंग खुले तौर पर पिछले दो वर्षों से कह रहा है कि वह नेपाल में खेल खेलने के लिए तैयार है, जहां तक भारत का संबंध है, तो नेपाल में भू-राजनीतिक गतिशीलता में बदलाव आया है.

इसके अलावा चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नेपाल में पेट बेल्ट और रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत चीन ने पनबिजली परियोजनाओं और काठमांडू से तिब्बत में केरूंग तक एक रेलवे लाइन का निवेश शुरू किया है.

दूसरी ओर, 2015 में आर्थिक नाकेबंदी के बाद हिमालयी राष्ट्र में भारत विरोधी भावनाओं में उछाल आया है. ओली सरकार ने इस भावना को भुनाया और सत्ता हासिल की.

(अरुनिम भुयान)

Last Updated : Jul 2, 2020, 6:10 PM IST
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