नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गतिरोध जारी है. दोनों पड़ोसी देश तनाव कम करने को लेकर लगातार सैन्य और राजनयिक स्तर पर बैठक कर रहे हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि दोनों पक्ष सैनिकों को पीछे हटाने के लिए वार्ता जारी रखेंगे और यथास्थिति में बदलाव के किसी भी एकतरफा प्रयास से दूर रहेंगे.
विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत-चीन सीमा मामलों पर विचार-विमर्श और समन्वय के लिए कार्यकारी तंत्र की अगली बैठक जल्द होने की संभावना है.
मंत्रालय के मुताबिक, कोर कमांडर स्तर की वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान से वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव कम करने के लिए दोनों पक्षों की प्रतिबद्धता जाहिर होती है. सैनिकों का पीछे हटना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसके तहत दोनों तरफ नियमित चौकियों पर सैनिकों की फिर से तैनाती की जाती है.
इससे पहले मंगलवार को भारतीय सेना और चीनी सेना के एक संयुक्त बयान में कहा गया था कि भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में तनाव कम करने के मद्देनजर अग्रिम मोर्चे पर और अधिक सैनिक नहीं भेजने, जमीनी स्थिति को एकतरफा ढंग से न बदलने तथा मामले को और जटिल बनाने वाले कदमों से बचने पर राजी हुए थे.
इससे एक दिन पहले ही भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच हुई छठे दौर की वार्ता 14 घंटे तक चली थी.
मई में टकराव के बाद दोनों देशों की सेनाओं ने अपने हजारों सैनिक एलएसी पर तैनात कर दिए हैं. 15 जून को गलवान घाटी में हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने के बाद लद्दाख में स्थिति काफी बिगड़ गई.
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स्थिति तब और बिगड़ गई, जब चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (चीनी सेना) ने बीते तीन हफ्तों में पैंगोंग झील के दक्षिणी और उत्तरी तट पर भारतीय सैनिकों को धमकाने की कम से कम तीन बार कोशिश की है. यहां तक कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 45 साल में पहली बार हवा में गोलियां चलाई गई हैं.