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कोरोना : हार्वर्ड मेडिकल स्कूल को जीन आधारित वैक्सीन के विकास में बड़ी सफलता

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Published : May 8, 2020, 5:16 PM IST

दुनियाभर में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की होड़ लगी हुई है. हार्वर्ड से संबद्ध दो अस्पतालों ने दावा किया है कि उन्हें कोरोना वायरस की प्रयोगात्मक वैक्सीन बनाने में बड़ी सफलता मिली है.

gene based covid vaccine
डिजाइन फोटो

हैदराबाद : कोरोना वायरस से फैली महामारी के बीच हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधार्थियों ने घोषणा की है कि उन्हें कोरोना वायरस की वैक्सीन विकसित करने में बड़ी सफलता मिल है. मैसाचुसेट्स आई एंड इयर और मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल के शोधार्धियों ने दावा किया है कि वह AAVCOVID नाम कि एक प्रयोगात्मक वैक्सीन को विकसित करने में सफल रहे हैं.

यह वैक्सीन जीन आधारित है. वैक्सीन adeno-associated viral (AAV) vector आधारित तकनीक की मदद से जीन को कोशिकाओं के भीतर पहुंचाती है. AAV का इस्तेमाल SARS CoV-2 की सतह पर बनी कीलों के ऐंटिजेन के आनुवांशिक अनुक्रमों को कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए किया जाता है. इससे शरीर कोरोना वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है.

जीन थेरेपी के क्षेत्र में इस तकनीक का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया है. इसलिए AAV आधारित दवाएं बनाने के और उनका क्लिनिकल परीक्षण करने लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन और अनुभव हैं.

मैसाचुसेट्स आई एंड इयर में ग्रॉसबेक जीन थेरेपी सेंटर के निदेशक और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में नेत्र विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर लुक एच वैंडेनबर्घे (Luk H. Vandenberghe) ने बताया कि वैक्सीन का विकास अभी प्रीक्लिनिकल चरण तक हो चुका है. इंसानों में इसका क्लिनिकल परीक्षण इस वर्ष के अंत तक किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि जीन को कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए AAV सुरक्षित, कुशल और बेहतर तकनीक है. वैंडेनबर्घे और उनकी लैब ने जनवरी माह के मध्य में वैक्सीन पर काम शुरू कर दिया था. उन्होंने कहा कि आणविक जीव विज्ञान की मदद से वह हफ्तों में वैक्सीन का ड्राफ्ट तैयार कर सकते हैं. AAV भी ऐसे ही विकसित की गई है. हालांकि वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावकारिता की क्लिनिकल जांच की जानी है.

शोधार्थियों के मुताबिक AAV तकनीक से का एक फायदा यह भी है कि यदि कोई नया SARS-CoV-2 वायरस आ जाता है तो वैक्सीन में मौजूद जेनेटिक कोड की जगह नए जेनेटिक कोड ले सकता है. इससे नए वायरस के लिए वैक्सीन बनाई जा सकती है.

वैक्सीन को इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाएगा. फिलहाल जानवरों पर परीक्षण चल रहे हैं और शुरुआती दौर की विनिर्माण गतिविधियां शुरू हो गई हैं. क्लिनिकल फेज का परीक्षण एक या उससे ज्यादा लोगों पर किया जाएगा.

इन शोधार्थियों का मार्गदर्शन वैक्सीन के विकास के क्षेत्र के विशेषज्ञ कर रहे हैं. बता दें कि इस शोध Wyc Grousbeck, Emilia Fazzalari और अन्य लोगों द्वारा की गई वित्तीय सहायता से हुआ है.

पढ़ें-वायरस के खिलाफ जंग : चीन में बनी कोरोना वैक्सीन बंदरों पर प्रभावी

हैदराबाद : कोरोना वायरस से फैली महामारी के बीच हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोधार्थियों ने घोषणा की है कि उन्हें कोरोना वायरस की वैक्सीन विकसित करने में बड़ी सफलता मिल है. मैसाचुसेट्स आई एंड इयर और मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल के शोधार्धियों ने दावा किया है कि वह AAVCOVID नाम कि एक प्रयोगात्मक वैक्सीन को विकसित करने में सफल रहे हैं.

यह वैक्सीन जीन आधारित है. वैक्सीन adeno-associated viral (AAV) vector आधारित तकनीक की मदद से जीन को कोशिकाओं के भीतर पहुंचाती है. AAV का इस्तेमाल SARS CoV-2 की सतह पर बनी कीलों के ऐंटिजेन के आनुवांशिक अनुक्रमों को कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए किया जाता है. इससे शरीर कोरोना वायरस के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है.

जीन थेरेपी के क्षेत्र में इस तकनीक का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया है. इसलिए AAV आधारित दवाएं बनाने के और उनका क्लिनिकल परीक्षण करने लिए हमारे पास पर्याप्त संसाधन और अनुभव हैं.

मैसाचुसेट्स आई एंड इयर में ग्रॉसबेक जीन थेरेपी सेंटर के निदेशक और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में नेत्र विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर लुक एच वैंडेनबर्घे (Luk H. Vandenberghe) ने बताया कि वैक्सीन का विकास अभी प्रीक्लिनिकल चरण तक हो चुका है. इंसानों में इसका क्लिनिकल परीक्षण इस वर्ष के अंत तक किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि जीन को कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए AAV सुरक्षित, कुशल और बेहतर तकनीक है. वैंडेनबर्घे और उनकी लैब ने जनवरी माह के मध्य में वैक्सीन पर काम शुरू कर दिया था. उन्होंने कहा कि आणविक जीव विज्ञान की मदद से वह हफ्तों में वैक्सीन का ड्राफ्ट तैयार कर सकते हैं. AAV भी ऐसे ही विकसित की गई है. हालांकि वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावकारिता की क्लिनिकल जांच की जानी है.

शोधार्थियों के मुताबिक AAV तकनीक से का एक फायदा यह भी है कि यदि कोई नया SARS-CoV-2 वायरस आ जाता है तो वैक्सीन में मौजूद जेनेटिक कोड की जगह नए जेनेटिक कोड ले सकता है. इससे नए वायरस के लिए वैक्सीन बनाई जा सकती है.

वैक्सीन को इंट्रामस्क्युलर इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाएगा. फिलहाल जानवरों पर परीक्षण चल रहे हैं और शुरुआती दौर की विनिर्माण गतिविधियां शुरू हो गई हैं. क्लिनिकल फेज का परीक्षण एक या उससे ज्यादा लोगों पर किया जाएगा.

इन शोधार्थियों का मार्गदर्शन वैक्सीन के विकास के क्षेत्र के विशेषज्ञ कर रहे हैं. बता दें कि इस शोध Wyc Grousbeck, Emilia Fazzalari और अन्य लोगों द्वारा की गई वित्तीय सहायता से हुआ है.

पढ़ें-वायरस के खिलाफ जंग : चीन में बनी कोरोना वैक्सीन बंदरों पर प्रभावी

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