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मोदी सरकार ने 2015 के 'आईओपी' में किए थे अहम बदलाव

बुधवार को संसद में पेश नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि एनडीए सरकार ने मई 2014 में सत्ता में आने के बाद इंडियन ऑफसेट पार्टनर नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
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Published : Sep 25, 2020, 9:04 PM IST

Updated : Sep 25, 2020, 9:20 PM IST

नई दिल्ली : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG ) की नवीनतम रिपोर्ट को लेकर रक्षा कार्यालयों के प्रबंधन पर राफेल विमान निर्माता डिसाल्ट एविएशन की विफलता को लेकर विवाद बढ़ा गया है. बुधवार को संसद में पेश 'कैग' की रिपोर्ट से पता चला है कि एनडीए सरकार ने मई 2014 में सत्ता में आने के एक साल बाद बाद ऑफसेट नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया था.

कैग रिपोर्ट में साफतौर से कहा गया है कि वर्ष 2015 में हुए 36 राफेल एयरक्राफ्ट के सौदे के दौरान डिसाल्ट और एमबीडीए ने इंडियन ऑफसेट पार्टनर के बदले डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च‌ एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) को कावेरी इंजन के लिए तकनीक में मदद का वादा किया था, वह अभी तक पूरा नहीं किया गया है. गौरतलब है कि पांच राफेल एयरक्राफ्ट नौसैना के बेड़े में पहले ही शामिल हो गए हैं.

बता दें कि इंडियन ऑफसेट पार्टनर विदेशी साजो-सामानों की बड़ी खरीद या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में खरीदार देश के संसाधनों के एक महत्वपूर्ण बहिर्वाह के लिए घरेलू उद्योग की क्षमताओं को बेहतर बनाने में मदद करता है.

हालांकि अगस्त 2015 में एनडीए सरकार ने नियम में बदलाव कर दिया है, जो विदेशी सैन्य उपकरण बनाने वाली कंपनी (OEM) को यह विकल्प देता है कि वह इंडियन ऑफसेट पार्टनर (IOP) नीति या उत्पादों के विवरणों का खुलासा बाद में करे. इसलिए अब एक विदेशी विक्रेता ऑफसेट अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के दौरान संबंधित विवरण पर IOP का नाम बताने के लिए बाध्य नहीं है.

बदलाव से पहले ऑफसेट अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद विक्रेता को 60 दिन के भीतर IOP और उसके विवरण के साथ हस्ताक्षरित ऑफसेट अनुबंध प्रस्तुत करना आवश्यक था.

इसे पहले 90 दिनों के लिए बढ़ाया गया था और बाद में यह बदलाव किया गया कि यदि विक्रेता IOP से संबंधित विवरण प्रदान करने में असमर्थ है, तो विक्रेता ऑफसेट क्रेडिट की मांग के समय या ऑफसेट दायित्वों के निर्वहन से एक वर्ष पहले इसे प्रदान कर सकते हैं.

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक यह विक्रेता को IOP के साथ ऑफसेट परियोजना की योजना बनाने के लिए पर्याप्त समय की अनुमति देने के लिए किया गया था.

पढ़ें - मोदी सरकार का बड़ा एलान, पांच राज्यों की उधार लेने की सीमा बढ़ाई

नए नियमों के तहत 23 सितंबर 2019 से डसॉल्ट और MBDA की ऑफसेट की शुरुआत हुई, जबकि पहली वार्षिक प्रतिबद्धता 23 सितंबर 2020 (बुधवार) से शुरू होनी चाहिए थी.

कैग की रिपोर्ट के अनुसार, चूंकि डिस्चार्ज की अवधि शुरू हो गई है, इसलिए रक्षा मंत्रालय को ऑफसेट के उद्देश्यों की निगरानी करने और यह सुनिश्चित करने के लिए ऑफसेट के निर्वहन के लिए दिए जा रहे विशिष्ट उत्पादों या सेवाओं का विवरण प्राप्त करने की आवश्यकता है.

इसके अलावा ऑफसेट का एक और नियम, जो बदल दिया गया है वह न्यूनतम सीमा है. इसके तहत अब ऑफसेट सीमा 300 करोड़ रुपये से 2,000 करोड़ रुपये अनिवार्य है.

नई दिल्ली : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG ) की नवीनतम रिपोर्ट को लेकर रक्षा कार्यालयों के प्रबंधन पर राफेल विमान निर्माता डिसाल्ट एविएशन की विफलता को लेकर विवाद बढ़ा गया है. बुधवार को संसद में पेश 'कैग' की रिपोर्ट से पता चला है कि एनडीए सरकार ने मई 2014 में सत्ता में आने के एक साल बाद बाद ऑफसेट नीति में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया था.

कैग रिपोर्ट में साफतौर से कहा गया है कि वर्ष 2015 में हुए 36 राफेल एयरक्राफ्ट के सौदे के दौरान डिसाल्ट और एमबीडीए ने इंडियन ऑफसेट पार्टनर के बदले डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च‌ एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) को कावेरी इंजन के लिए तकनीक में मदद का वादा किया था, वह अभी तक पूरा नहीं किया गया है. गौरतलब है कि पांच राफेल एयरक्राफ्ट नौसैना के बेड़े में पहले ही शामिल हो गए हैं.

बता दें कि इंडियन ऑफसेट पार्टनर विदेशी साजो-सामानों की बड़ी खरीद या प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में खरीदार देश के संसाधनों के एक महत्वपूर्ण बहिर्वाह के लिए घरेलू उद्योग की क्षमताओं को बेहतर बनाने में मदद करता है.

हालांकि अगस्त 2015 में एनडीए सरकार ने नियम में बदलाव कर दिया है, जो विदेशी सैन्य उपकरण बनाने वाली कंपनी (OEM) को यह विकल्प देता है कि वह इंडियन ऑफसेट पार्टनर (IOP) नीति या उत्पादों के विवरणों का खुलासा बाद में करे. इसलिए अब एक विदेशी विक्रेता ऑफसेट अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के दौरान संबंधित विवरण पर IOP का नाम बताने के लिए बाध्य नहीं है.

बदलाव से पहले ऑफसेट अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद विक्रेता को 60 दिन के भीतर IOP और उसके विवरण के साथ हस्ताक्षरित ऑफसेट अनुबंध प्रस्तुत करना आवश्यक था.

इसे पहले 90 दिनों के लिए बढ़ाया गया था और बाद में यह बदलाव किया गया कि यदि विक्रेता IOP से संबंधित विवरण प्रदान करने में असमर्थ है, तो विक्रेता ऑफसेट क्रेडिट की मांग के समय या ऑफसेट दायित्वों के निर्वहन से एक वर्ष पहले इसे प्रदान कर सकते हैं.

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक यह विक्रेता को IOP के साथ ऑफसेट परियोजना की योजना बनाने के लिए पर्याप्त समय की अनुमति देने के लिए किया गया था.

पढ़ें - मोदी सरकार का बड़ा एलान, पांच राज्यों की उधार लेने की सीमा बढ़ाई

नए नियमों के तहत 23 सितंबर 2019 से डसॉल्ट और MBDA की ऑफसेट की शुरुआत हुई, जबकि पहली वार्षिक प्रतिबद्धता 23 सितंबर 2020 (बुधवार) से शुरू होनी चाहिए थी.

कैग की रिपोर्ट के अनुसार, चूंकि डिस्चार्ज की अवधि शुरू हो गई है, इसलिए रक्षा मंत्रालय को ऑफसेट के उद्देश्यों की निगरानी करने और यह सुनिश्चित करने के लिए ऑफसेट के निर्वहन के लिए दिए जा रहे विशिष्ट उत्पादों या सेवाओं का विवरण प्राप्त करने की आवश्यकता है.

इसके अलावा ऑफसेट का एक और नियम, जो बदल दिया गया है वह न्यूनतम सीमा है. इसके तहत अब ऑफसेट सीमा 300 करोड़ रुपये से 2,000 करोड़ रुपये अनिवार्य है.

Last Updated : Sep 25, 2020, 9:20 PM IST
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