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एनडीए में बढ़ती गांठ, छूट रहा भाजपा के अपनों का साथ

भारतीय जनता पार्टी राजनीति में आज ध्रुव तारा की तरह उदयमान है, लेकिन इस उगते तारे में कितने ही अन्नय सहयोगी दलों की महत्ती भूमिका रही है. हालांकि भाजपा का कारवां बढ़ते जा रहा है मगर अहम सहयोगियों का इस सफर में साथ छूटता दिख रहा है. दरअसल इन सहयोगी दलों का आरोप है कि भाजपा का नव नेतृत्व सत्ता की ठसक और दंभ में अपनों को दरकिनार कर रहा है. हाल ही में दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भी अकाली दल से मनमुटाव हो गया है. आइए जानतें है भाजपा और इसके सहयोगियों से तानाबाना की पृष्ठभूमी...

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Published : Jan 23, 2020, 1:42 PM IST

Updated : Feb 18, 2020, 2:45 AM IST

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एनडीए गठबंधन में बढ़ती गाठ

हैदराबाद : भारतीय जनता पार्टी सत्ता के स्वर्णिम काल से गुजर रही है. भाजपा की केंद्र में स्पष्ट बहुमत की सरकार है, लेकिन सत्ता में शीर्ष पर पहुंचने के लिए बहुत सारी सीढ़ियों का सहयोग होता है. उसमें से एक सीढ़ी राजग रही है. बीजेपी राजग के सहयोग से सत्ता के शीर्ष तक तो पहुंची, लेकिन समय के साथ कुछ पार्टियों ने गठबंधन का साथ छोड़ दिया. जिसमें टीडीपी और शिवसेना प्रमुख दल है.

दरअसल भाजपा का हालिया रवैया राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दलों को खटक रही है. राजग के अन्य दल भाजपा पर संवादहीनता और सत्ता दंभ का आरोप लगा रहे है.

एनडीए में बढ़ती गांठ, छूट रहा भाजपा के अपनों का साथ

राजग निर्माण के प्रमुख सहयोगी नाराज

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एनडीए में बढ़ती गांठ

राजग में भाजपा के साथ करीब तीन दर्जन आज पार्टियां है, लेकिन इनमें प्रमुख सहयोगियों में एक अकाली दल से भी अनबन की खबर आई है.

आइए जानते है राजग में मनमुटाव के कारण :

शिरोमणी अकाली दल से मनमुटाव
शिरोमणी अकाली दल (शिअद) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा से अपने 21 वर्ष पुराने गठबंधन पर रोक लगा दी है. बता दें कि भाजपा और शिअद दल दोनों मिलकर दिल्ली में चुनाव लड़ते है. इस बार शिअद ने सीटों को लेकर भाजपा से सहमति नहीं बन पाने के कारण साथ में चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय किया है. इसके साथ शिअद का यह भी आरोप है कि भाजपा राजग के घटक सदस्यों से किसी विधेयक पर चर्चा नहीं करती. ऐसा माना जा रहा है कि पंजाब में इस खटपट का असर देखने को मिलेगा.

लोजपा जता चुकी है असहमती
लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने राजग में समन्वय समिति बनाने के लिए मांग उठाई थी. चिराग ने कहा था कि गठबंधन नाजुक दौर से गुजर रहा है. समय-समय पर असहमति की दरार दोनों दलों मे देखने को मिलती है.

आजसू से टूटा 20 साल पुराना संबंध
झारखंड राज्य निर्माण के साथ भाजपा का ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) के साथ राज्य में गठबंधन था, लेकिन सीट बंटवारे पर तकरार के कारण झारखंड विधानसभा चुनाव में दोनों दलों में विभेद हो गया. आजसू की शिकायत थी कि सबसे विश्वसनीय सहयोगी दल होने के बावजूद भाजपा उसे सीटें देने को तैयार नहीं है. गठबंधन टूटने से भाजपा को काफी नुकसान बताया जा रहा है.

भाजपा-शिवसेना का बिलगाव
हाल ही में भाजपा के सबसे पुराने और अन्नय सहयोगी शिवसेना ने महाराष्ट्र में गठबंध से किनारा कर लिया है. दरअसल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद शिवसेना भाजपा से महाराष्ट्र मुख्यमंत्री पद के बराबर बंटवारे की मांग कर रही थी. हालांकि भाजपा ने इस मांग को सिरे से नकार दिया और इसके बाद शिवसेना-भाजपा के करीब तीन दशक पुराने संबंध का पटाक्षेप हो गया.

जद (यू) से टकराव
राजग में सबसे बड़ा दल जनता दल (युनाईटेड) है, लेकिन समय-समय पर भाजपा और जद (यू) में भी टकराव की स्थिति उत्पन्न होती रही है. हाल ही में बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए और सीट बंटवारा पर रोज दोनों दल आमने-सामने आते है. हालांकि इसके पहले भी जद (यू) भाजपा दोनों दल अलग हो चुके है.

असम गण परिषद से विच्छेद
उत्तर-पूर्व में भाजपा के एक और सहयोगी असम गण परिषद सहयोगी ही घेरने लगी है. पूवोत्तर में भाजपा की सबसे अहम सयोगी पार्टी असम गण परिषद ने नागरिकता कानून के विरोध का ऐलान किया है. इस दल से भाजपा के संबंध खटाई में है.

तेदेपा रही थी राजग में अहम सहयोगी
2019 लोकसभा चुनाव के पूर्व तेलगूदेशम पार्टी (तेदेपा) भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ चुकी है. बता दें कि तेदेपा राजग में अहम सहयोगी थी.

क्यों टूट रहा है गठबंधन
भाजपा पर यह आरोप लगता है कि मोदी-शाह के कारण पार्टी एक तरफा संवाद करती है. अधिकतर मामलों में वही हो रहा है, जो मोदी और शाह की जोड़ी चाहती है. अन्य दलों से बातचीत की प्रक्रिया बंद कर दी गई है. साथ में भाजपा में बहुमत का ठसक आ गया है.

राजग का इतिहास
हालांकि भाजपा को एक सांप्रदायिक पार्टी के तौर पर देखा जाता था, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करिश्माई व्यक्तित्व के कारण 1998 में राजग का निर्माण हुआ. राजग का कुनबा 13 दलों से शुरू हुआ था, जोकि बढ़कर 1998 में ही 24 दल तक हो गया. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को गठबंधन के 'राजनीति का महायोद्धा' कहा जाता है.

वाजपेयी के दौर में भाजपा के नेतृत्व वाली राजग की कमान हमेशा सहयोगी दलों के पास रही है. राजग के संयोजक की जिम्मेदारी पहले जॉर्ज फर्नांडीज, शरद यादव और फिर चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं ने संभाली थी. इसी का नतीजा था कि 1999 में राजग की सरकार पांच साल सफलतापूर्वक चली. वाजपेयी के समय ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक व बीजू जनतादल भी राजग का हिस्सा रह चुके हैं.

अब राजग में संयोजक बनाने की मांग
शिवसेना के अलग होने के बाद से राजग में संयोजक अथवा अध्यक्ष बनाए जाने की मांग उठने लगी है. संसद के शीतकालीन सत्र से पहले राजग की बैठक में घटक दलों के बीच ज्यादा सहयोग की आवश्यकता जताई गई. लोक जन शक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने हाल ही में यह मांग की. जद (यू) पहले ही राजग में समन्वय के लिए समिति बनाए जाने की मांग कर चुका है.

हैदराबाद : भारतीय जनता पार्टी सत्ता के स्वर्णिम काल से गुजर रही है. भाजपा की केंद्र में स्पष्ट बहुमत की सरकार है, लेकिन सत्ता में शीर्ष पर पहुंचने के लिए बहुत सारी सीढ़ियों का सहयोग होता है. उसमें से एक सीढ़ी राजग रही है. बीजेपी राजग के सहयोग से सत्ता के शीर्ष तक तो पहुंची, लेकिन समय के साथ कुछ पार्टियों ने गठबंधन का साथ छोड़ दिया. जिसमें टीडीपी और शिवसेना प्रमुख दल है.

दरअसल भाजपा का हालिया रवैया राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दलों को खटक रही है. राजग के अन्य दल भाजपा पर संवादहीनता और सत्ता दंभ का आरोप लगा रहे है.

एनडीए में बढ़ती गांठ, छूट रहा भाजपा के अपनों का साथ

राजग निर्माण के प्रमुख सहयोगी नाराज

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एनडीए में बढ़ती गांठ

राजग में भाजपा के साथ करीब तीन दर्जन आज पार्टियां है, लेकिन इनमें प्रमुख सहयोगियों में एक अकाली दल से भी अनबन की खबर आई है.

आइए जानते है राजग में मनमुटाव के कारण :

शिरोमणी अकाली दल से मनमुटाव
शिरोमणी अकाली दल (शिअद) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा से अपने 21 वर्ष पुराने गठबंधन पर रोक लगा दी है. बता दें कि भाजपा और शिअद दल दोनों मिलकर दिल्ली में चुनाव लड़ते है. इस बार शिअद ने सीटों को लेकर भाजपा से सहमति नहीं बन पाने के कारण साथ में चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय किया है. इसके साथ शिअद का यह भी आरोप है कि भाजपा राजग के घटक सदस्यों से किसी विधेयक पर चर्चा नहीं करती. ऐसा माना जा रहा है कि पंजाब में इस खटपट का असर देखने को मिलेगा.

लोजपा जता चुकी है असहमती
लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने राजग में समन्वय समिति बनाने के लिए मांग उठाई थी. चिराग ने कहा था कि गठबंधन नाजुक दौर से गुजर रहा है. समय-समय पर असहमति की दरार दोनों दलों मे देखने को मिलती है.

आजसू से टूटा 20 साल पुराना संबंध
झारखंड राज्य निर्माण के साथ भाजपा का ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) के साथ राज्य में गठबंधन था, लेकिन सीट बंटवारे पर तकरार के कारण झारखंड विधानसभा चुनाव में दोनों दलों में विभेद हो गया. आजसू की शिकायत थी कि सबसे विश्वसनीय सहयोगी दल होने के बावजूद भाजपा उसे सीटें देने को तैयार नहीं है. गठबंधन टूटने से भाजपा को काफी नुकसान बताया जा रहा है.

भाजपा-शिवसेना का बिलगाव
हाल ही में भाजपा के सबसे पुराने और अन्नय सहयोगी शिवसेना ने महाराष्ट्र में गठबंध से किनारा कर लिया है. दरअसल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद शिवसेना भाजपा से महाराष्ट्र मुख्यमंत्री पद के बराबर बंटवारे की मांग कर रही थी. हालांकि भाजपा ने इस मांग को सिरे से नकार दिया और इसके बाद शिवसेना-भाजपा के करीब तीन दशक पुराने संबंध का पटाक्षेप हो गया.

जद (यू) से टकराव
राजग में सबसे बड़ा दल जनता दल (युनाईटेड) है, लेकिन समय-समय पर भाजपा और जद (यू) में भी टकराव की स्थिति उत्पन्न होती रही है. हाल ही में बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए और सीट बंटवारा पर रोज दोनों दल आमने-सामने आते है. हालांकि इसके पहले भी जद (यू) भाजपा दोनों दल अलग हो चुके है.

असम गण परिषद से विच्छेद
उत्तर-पूर्व में भाजपा के एक और सहयोगी असम गण परिषद सहयोगी ही घेरने लगी है. पूवोत्तर में भाजपा की सबसे अहम सयोगी पार्टी असम गण परिषद ने नागरिकता कानून के विरोध का ऐलान किया है. इस दल से भाजपा के संबंध खटाई में है.

तेदेपा रही थी राजग में अहम सहयोगी
2019 लोकसभा चुनाव के पूर्व तेलगूदेशम पार्टी (तेदेपा) भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ चुकी है. बता दें कि तेदेपा राजग में अहम सहयोगी थी.

क्यों टूट रहा है गठबंधन
भाजपा पर यह आरोप लगता है कि मोदी-शाह के कारण पार्टी एक तरफा संवाद करती है. अधिकतर मामलों में वही हो रहा है, जो मोदी और शाह की जोड़ी चाहती है. अन्य दलों से बातचीत की प्रक्रिया बंद कर दी गई है. साथ में भाजपा में बहुमत का ठसक आ गया है.

राजग का इतिहास
हालांकि भाजपा को एक सांप्रदायिक पार्टी के तौर पर देखा जाता था, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करिश्माई व्यक्तित्व के कारण 1998 में राजग का निर्माण हुआ. राजग का कुनबा 13 दलों से शुरू हुआ था, जोकि बढ़कर 1998 में ही 24 दल तक हो गया. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को गठबंधन के 'राजनीति का महायोद्धा' कहा जाता है.

वाजपेयी के दौर में भाजपा के नेतृत्व वाली राजग की कमान हमेशा सहयोगी दलों के पास रही है. राजग के संयोजक की जिम्मेदारी पहले जॉर्ज फर्नांडीज, शरद यादव और फिर चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं ने संभाली थी. इसी का नतीजा था कि 1999 में राजग की सरकार पांच साल सफलतापूर्वक चली. वाजपेयी के समय ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक व बीजू जनतादल भी राजग का हिस्सा रह चुके हैं.

अब राजग में संयोजक बनाने की मांग
शिवसेना के अलग होने के बाद से राजग में संयोजक अथवा अध्यक्ष बनाए जाने की मांग उठने लगी है. संसद के शीतकालीन सत्र से पहले राजग की बैठक में घटक दलों के बीच ज्यादा सहयोग की आवश्यकता जताई गई. लोक जन शक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने हाल ही में यह मांग की. जद (यू) पहले ही राजग में समन्वय के लिए समिति बनाए जाने की मांग कर चुका है.

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Last Updated : Feb 18, 2020, 2:45 AM IST
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