हैदराबाद : स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने कॉलेज में स्नातक की डिग्री के लिए गणित जैसे विषय को प्राथमिकता दी. उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई 1877 में पुणे के डेक्कन कॉलेज से प्रथम स्थान के साथ पूरी की. सभी जानते हैं कि गणित तर्क, रचनात्मकता, अनुशासन और समस्या सुलझाने की क्षमता में सुधार करता है.
गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से 1879 में एलएलबी कोर्स पूरा करने के बाद, तिलक ने पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में गणित पढ़ाना शुरू किया, जहां से बाद में वे एक पत्रकार बन गए और स्वतंत्रता आंदोलन में कदम रखा.
डक्कन एजुकेशन सोसायटी (डीईएस)
1880 के दशक में उन्होंने अपने कॉलेज के कुछ दोस्तों के साथ डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी का आयोजन किया, जिसमें गोपाल गणेश आगरकर, महादेव बल्लाल नामजोशी और विष्णुशास्त्री चिपलूनकर शामिल थे. उनका लक्ष्य भारत के युवाओं के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना था.
डेक्कन एजुकेशन सोसायटी की स्थापना एक नई प्रणाली बनाने के लिए की गई थी जिसने भारतीय संस्कृति पर जोर देते हुए युवाओं को राष्ट्रवादी विचारों की शिक्षा दी.
सोसाइटी ने 1885 में न्यू इंग्लिश स्कूल फॉर सेकेंडरी एजुकेशन और फर्ग्यूसन कॉलेज की स्थापना की. सोसाइटी का उद्देश्य खासतौर पर अंग्रेजी भाषा में जनता को शिक्षित करना था क्योंकि तिलक और उनके साथी अंग्रेजी को उदार और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रसार के लिए एक शक्तिशाली ताकत मानते थे. उन्होंने खुद फर्ग्यूसन कॉलेज में गणित पढ़ाया.
डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी (1884), जिसे समाज सदस्यों से निस्वार्थ सेवा के एक आदर्श का पालन करने की उम्मीद थी. बाद में तिलक को यह जानकर निराशा हुई कि कुछ सदस्य बाहरी कमाई कर रहे थे इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
न्यू एजुकेशन स्कूल
1880 में न्यू एजुकेशन स्कूल (एनईएस) की स्थापना विष्णु कृष्ण चिपुंकर, बाल गंगाधर तिलक और गोपाल गणेश आगरकर ने की थी. स्कूल 1936 तक सह-शिक्षा (co-education) था, लेकिन जब डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी (डीईएस) ने इसका प्रबंधन अपने हाथों में लिया तो लड़कियों को अहिल्यादेवी हाई स्कूल फॉर गर्ल्स में स्थानांतरित कर दिया गया.
स्वतंत्रता आंदोलन के लिए स्कूल की स्थापना एक महत्वपूर्ण घटना थी, यह शिक्षा पर ब्रिटिश पकड़ को तोड़ने के प्रयास की शुरुआत मात्र नहीं थी, लेकिन शिक्षा पर ब्रिटिश पकड़ को तोड़ने के लिए एक राष्ट्रवादी सोच थी.
एनईएस ने दो जनवरी 1880 को 19 छात्रों के साथ अपने सफर की शुरुआत की. एक वर्ष के भीतर नामांकन में दस गुना वृद्धि हुई. कुछ ही वर्षों में, एनईएस बॉम्बे प्रेसीडेंसी में सबसे बड़ा स्कूल बन गया.
अपने जीवन में लोकमान्य तिलक शिक्षा के विकास और प्रसार के लिए दृढ़ और समर्पित रहे. जो न केवल सतही औपचारिक डिग्री थी, बल्कि एक गहन शोध और विश्लेषण के माध्यम से वास्तविक ज्ञान को विकसित करने और अपनी संस्कृति और इतिहास के बारे में जागरूकता फैलाना भी था.
एक आधुनिक शिक्षा प्रणाली के बारे में उनका नजरिया पश्चिमी तौर पर हर चीज का आंख मूंदकर अनुकरण करने का नहीं था, बल्कि भारत के युवाओं में एक समान मूल्य आधारित विचार प्रक्रिया को विकसित करने का था.