हरिद्वार (उत्तराखंड): मैदानी इलाकों में भले ही बारिश रुक गई हो, लेकिन पहाड़ों में अभी भी बारिश होने की वजह से बरसाती नदी नाले पूरे उफान पर हैं. इसका असर अब और अधिक लक्सर के उन क्षेत्रों में देखा जा रहा है, जो पहले से ही पानी से घिरे हुए थे. मौजूदा समय में 50 से अधिक गांव पूरी तरह से जलमग्न हैं
छत पर शरण लिए हैं बाढ़ प्रभावित: हालत ये है कि लोग छतों पर बैठकर दिन और रात काट रहे हैं. आलम यह है कि अभी भी कई ऐसे गांव हैं, जहां पर एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और प्रशासनिक राहत कार्य नहीं पहुंच पाये हैं. लिहाजा ऐसे में स्थानीय विधायक की पहल पर सेना की 70 जवानों की टुकड़ी ने उन क्षेत्रों को अपने हाथों में लिया है, जहां हालात बेहद कठिन हैं. एक तरफ से बरसाती नदियों का पानी तो दूसरी तरफ से गंगा पूरे उफान पर है.
सेना ने संभाला रेस्क्यू ऑपरेशन: सेना ने सबसे पहले उस गांव का रुख किया, जहां पर अब तक कोई नहीं पहुंच पाया. वह गांव था खानपुर का शेरपुरा गांव. यहां पर कई लोग बीमार हैं. पानी आदमी के डूबने तक भी खत्म ना हो ऐसी स्थिति है. जो सड़कें कभी गांव के लोगों से आबाद होती थी, वहां पर चारों तरफ पानी ही पानी है. ना सड़क का पता और ना ही खेतों का पता.
सड़क बनी समुद्र तो उतरी सेना की नाव: ऐसे में सेना ने जैसे ही पानी में अपनी वोट उतारी, वैसे ही काफी जद्दोजहद और रोमांचक घटनाएं उनके सामने थीं. स्थानीय विधायक उमेश शर्मा और सेना के जवानों के साथ ईटीवी भारत की टीम भी उस जगह पर पहुंचना चाहती थी, जहां पर हालात बेहद खराब हैं. हालांकि यह एक गांव की कहानी थी. आसपास के कई गांव इसी तरह से डूब क्षेत्र में पहुंच चुके हैं.
20 मिनट का रास्ता पूरा करने में लगे 2 घंटे: गांव जाने का सफर लगभग शाम 6:00 बजे शुरू हुआ. जो सफर सड़क से गांव तक का 15 से 20 मिनट तक का था, उस सफर को तय करने में सेना के जवानों को भी 2 घंटे से अधिक लगने लगे थे. पानी में चारों तरफ घूमते जहरीले सांप और पल पल बढ़ता पानी. कई बार ऐसा भी हुआ ऊंची सड़क आने की वजह से सेना की बोट जमीन में लगने लगती थी.
सेना की बोट देख खुश हुए लोग: रात लगभग 8:30 पर हम गांव के आसपास पहुंचे तो गांव वाले सेना की वोट देखकर चहक उठे. अब तक जो लोग निराशा की बाढ़ में डूबे थे उनकी आखों में अब उम्मीद की नाव तैर रही थी. गांव वालों को लगा कि कोई तो है जो उनकी सुध लेने के लिए गांव में पहुंचा है. गांव में कुछ लोग बीमार थे. लिहाजा सेना और स्थानीय विधायक उमेश शर्मा ने तुरंत गांव में पहुंचकर पहले दवाई दी. फिर लोगों का हालचाल भी जाना.
गांव पहुंचते तक हुई कड़ी परीक्षा: वापस लौटने का सफर और भी कठिन था. सेना के जवान भी यह जानते थे कि देर रात को ऑपरेशन में खलल पड़ सकता था. अचानक से जगह जगह पेड़ों से टकराती बोट कई बार रास्ते से भटकी. कई बार बारिश हमारे सफर को और भी कठिन बना रही थी. आसपास से गुजरते पानी के जीव जंतु यह बता रहे थे कि अब रात गहरा चुकी है.
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26 साल बाद हुई ऐसी बारिश: इस इलाके में आस-पास के गांवों में 22,000 से ज्यादा ऐसे लोग हैं जिनका घर का सामान, खाने पीने की जरूरत की चीजें खत्म होने की कगार पर हैं. हालांकि सेना यही चाहती थी कि एक बार क्षेत्र की रेकी कर ली जाए, ताकि अगले दिन उजाले में ऑपरेशन और तेजी से चलाया जा सके. उत्तराखंड के क्षेत्र में सोनाली नदी का बांध टूटने की वजह से ऐसे हालात बने हैं. लक्सर के लोग बताते हैं कि लगभग 26 साल बाद इतनी अधिक बारिश हुई है.
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