देहरादूनः दुनियाभर के वैज्ञानिक हिमालय में हो रही घटनाओं पर लगातार शोध कर रहे हैं. खासकर ग्लेशियर और नदियों को लेकर वैज्ञानिक कई बार आगाह भी कर चुके हैं. इस बार गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने चिंता जताई है. संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की मानें तो हिमालय से बहने वाली तीन प्रमुख नदियां आने वाले कुछ दशकों में अपना पानी खो देंगे. इन नदियों के प्रवाह में कमी देखी गई है. संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन 2023 में एंटोनियो गुटेरेस ने ये बातें कहीं. इसके अलावा आने वाले दशकों में ग्लेशियर और बर्फ की चादरें कम हो जाएंगी. जानकार मानते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो करीब 240 करोड़ लोग इससे सीधे तौर पर प्रभावित हो सकते हैं. यूएन की रिपोर्ट भी बताती है कि आने वाले समय में हालात कितने खतरनाक होने वाले हैं.
गंगोत्री ग्लेशियर है गंगा का उद्गम स्थल, 87 सालों में 1700 मीटर पीछे खिसकाः भारत में गंगा प्रमुख नदियों में से एक है. यही जीवनदायिनी गंगा नदी करीब 40 करोड़ लोगों को सीधे तौर पर सिंचाई और पीने का पानी देती है. गंगा नदी उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के गौमुख यानी गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है. वैसे तो भारत में 9,575 ग्लेशियर मौजूद हैं, लेकिन अकेले उत्तराखंड में ही 968 ग्लेशियर हैं. इनसे अनेकों जल धाराएं निकलती हैं, लेकिन चिंता की बात ये है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. गंगोत्री ग्लेशियर साल 1935 से 2022 के बीच यानी इन 87 साल में 1.7 किमी पीछे खिसक गया है.
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क्या कहते हैं वैज्ञानिकः वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान देहरादून के वैज्ञानिक डॉ. राकेश कहते हैं कि हिमालय में लगातार मौसम बदलने की वजह से यह सब हो रहा है. हालांकि, यूएन की रिपोर्ट बता रही है कि मौसम में परिवर्तन का प्रभाव हिमालय के ग्लेशियरों पर पड़ रहा है. जिसके ग्लेशियर पिघल रहे हैं. हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा कभी किनारों तक बहती थी, लेकिन अब हालात ये हैं कि ऋषिकेश से नीचे उतरते ही गंगा सिकुड़ जाती है. जिस तरह मॉनसून के गंगा बहती है, उतनी गंगा कभी अपने स्वरूप में बहती थी, लेकिन धीरे-धीरे कुछ सालों में गंगा की जलधारा में बेहद कमी आई है.
हिमालय में बढ़ रहे तापमान का न केवल गंगा, बल्कि उससे जुड़ी 200 से ज्यादा छोटी-बड़ी जल धाराओं पर भी असर पड़ रहा है. वैज्ञानिक राकेश कहते हैं कि हिमालय क्षेत्र और खासकर गंगोत्री के आसपास जब बारिश होती है तो उस बारिश से और तेजी से हिमालय के ग्लेशियर पर पिघलते हैं. एक आंकड़े के मुताबिक, 17 जुलाई 2017 से लेकर 20 जुलाई 2017 तक लगातार बारिश की वजह से एक बड़ा हिस्सा ग्लेशियर का न केवल पिघला, बल्कि कुछ ग्लेशियर टूट कर नदी में भी समा गए.
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उत्तराखंड का अहम ग्लेशियर है गंगोत्रीः बात अगर गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री ग्लेशियर की करें तो यह उत्तराखंड का सबसे बड़ा ग्लेशियर है. एक रिपोर्ट के मुताबिक गंगोत्री ग्लेशियर की लंबाई करीब 30 किलोमीटर तो चौड़ाई 0.5 से लेकर 2.5 किलोमीटर है. इसका क्षेत्रफल 143 वर्ग किलोमीटर है. गंगोत्री ग्लेशियर से गंगा यानी भागीरथी नदी निकलती है, जो गंगोत्री, हर्षिल, उत्तरकाशी, टिहरी होते हुए देवप्रयाग में अलकनंदा में मिलती है. यहां भागीरथी और अलकनंदा मिलकर गंगा बन जाती है.
पहाड़ों में अभी से हालात खराबः भूवैज्ञानिक बीडी जोशी कहते हैं कि बीते कुछ सालों में पहाड़ों की भौगोलिक स्थिति पूरी तरह से बदली है. इसके चलते कई बार तबाही जैसे हालात पैदा हो रहे हैं. उधर, यूएन की रिपोर्ट भी बताती है कि अंटार्कटिका की बर्फ भी तेजी से पिघल रही है, जहां सिर्फ बर्फ ही बर्फ है. ऐसे में अंदाजा लगाया सकता है कि हिमालय के हालात क्या होंगे? आज उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों के गांवों में टैंकर के जरिए पानी पहुंचाना पड़ रहा है. जल स्रोत लगातार सूख रहे हैं तो भूजल का स्तर भी लगातार गिर रहा है. इसे किसी खतरे की शुरुआत मान सकते हैं. ऐसे में अभी से ही गंभीर कदम उठाने होंगे.
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संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी चेतायाः संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने जो चेतावनी दी है, उसमें कहा है कि मानव गतिविधियों की वजह से ग्लेशियर सिमटते जा रहे हैं. यह न केवल भारत, पाकिस्तान और चीन जैसे देशों के लिए बल्कि अन्य देशों के लिए भी सही नहीं कहा जा सकता है. उन्होंने अंटार्कटिका को लेकर भी कहा है कि हर साल 150 अरब टन बर्फ वहां से घट रही है. इसके साथ ही ग्रीनलैंड की बर्फ भी पिघल रही है.
हिमालय से एशिया की 10 प्रमुख नदियां निकल रही हैं, जो करीब 1.3 अरब लोगों को पानी की आपूर्ति करती हैं. संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन 2023 में यह जानकारी दी गई थी. संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की मानें तो बीते कुछ सालों से पाकिस्तान में लगातार बाढ़ आ रही है. यह बाढ़ समुद्र का जलस्तर भी बढ़ा रही है. इससे समुद्र का खारा पानी विशाल डेल्टा के बड़े हिस्से को खत्म कर रहा है. इसलिए पूरे विश्व को इस बारे में सोचना होगा. खासकर भारत, पाकिस्तान और चीन जैसे देशों को इस ओर विशेष ध्यान देना होगा.