पद्मश्री वागीश शास्त्री पंचतत्व में विलीन, काशीवासियों ने नम आंखों से दी अंतिम विदाई - वाराणसी लेटेस्ट न्यूज
🎬 Watch Now: Feature Video
वाराणसी : वाराणसी के प्रसिद्ध महा श्मशान हरिश्चंद्र घाट पर पद्मश्री प्रो. भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी 'वागीश शास्त्री' का पार्थिक शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया. इससे पहले उन्हें पूरे राजकीय सम्मान के साथ गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया. फिर उनका अंतिम संस्कार किया गया. उनके बड़े बेटे वाचस्पति शास्त्री ने मुखाग्नि दी. काशी के तमाम विद्वानों और जनता ने उन्हें अंतिम विदाई दी. इस दौरान कैंट विधानसभा के विधायक सौरभ श्रीवास्तव मौजूद रहे. पद्मश्री वागी शास्त्री की आयु 88 वर्ष थी और काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. इसके चलते बुधवार रात उनका निधन हो गया. पद्मश्री वागीश शास्त्री अपने पीछे पूरा परिवार छोड़ गए. उनके 3 बेटे वाचस्पति शास्त्री, वाशुतोषपति शास्त्री और आशापति शास्त्री हैं. बताया जाता है कि पद्मश्री वागीश शास्त्री तंत्र विद्या के मर्मज्ञ थे. उन्होंने धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी से संस्कृत को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई. वागीश शास्त्री को राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत, साहित्य, व्याकरण, भाषा-वैज्ञानिक और तंत्र विद्या में योगदान के लिए पद्मश्री से पुरुस्कृत किया गया था. वागीश शास्त्री का जन्म 24 जुलाई 1934 में मध्यप्रदेश के सागर जनपद के बिलइया गांव में हुआ था. उन्होंने 1959 में वाराणसी के टीकामणि संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत प्राध्यापक के रूप में अध्यापकीय जीवन की शुरुआत की थी. इसके बाद वह संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में अनुसंधान संस्थान के निदेशक व प्रोफेसर के पद पर 1970 में नियुक्त हुए और 1996 तक यहां पर कार्यरत रहे. वागीश शास्त्री ने 1983 में बाग्योगचेतनापीठम नामक संस्था की स्थापना की थी. यहां पर वह सरल विधि से बिना रटे पाणिनी व्याकरण का ज्ञान देते थे. कई विदेशियों को उन्होंने संस्कृत सिखाई. बाद में कई देशों का भ्रमण भी किया और कई विदेशी शिष्य भी बने. उन्हें राष्ट्रपति से सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट सम्मान मिल चुका है. 2014 में प्रदेश सरकार की तरफ से उन्हें यशभारती सम्मान मिला था और 2014 में ही संस्कृत संस्थान ने विश्वभारती सम्मान दिया था. 2017 में दिल्ली संस्कृत अकादमी ने महर्षि वेद व्यास सम्मान से सम्मानित किया था. इसके अलावा अमेरिका ने सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट गोल्ड ऑफ ऑनर से उन्हें 1993 में सम्मानित किया था.