ETV Bharat / sukhibhava

सर्द मौसम और प्रदूषण बढ़ाते हैं COPD मरीजों के लिए खतरा - respiratory health

क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज फेफड़ों का एक ऐसा रोग है , जो वैसे तो लंबे समय तक पीड़ित के शरीर में शांत रह सकता है लेकिन किसी भी कारण से ट्रिगर होने पर पीड़ित की जान के लिए खतरा भी बन सकता है. इस रोग के लिए जितना जिम्मेदार सर्द मौसम को माना जाता है उससे कहीं ज्यादा प्रदूषण के कारण रोगियों की अवस्था खराब हो सकती है.

copd,  copd awareness,  what is copd,  Chronic Obstructive Pulmonary Disease,  what is Chronic Obstructive Pulmonary Disease,  what are the symptoms of copd,  what are the causes of copd,  how to prevent copd,  can copd be prevented,  can pollution cause copd,  delhi pollution,  copd and pollution,  smoking,  health,  lungs health,  lung health,  respiratory health,  how to maintain respiratory health
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD)
author img

By

Published : Nov 19, 2021, 2:09 PM IST

सर्दियों का आगमन और उस पर दीपावली के चलते वातावरण में बढ़े प्रदूषण का साथ, ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानी सीओपीडी के रोगियों के लिए काफी भारी रहता है है. तापमान में गिरावट जहां पीड़ित के फेफड़ों को प्रभावित करती है वहीं वायु प्रदूषण स्थिति को और ज्यादा खराब कर देता है. सीओपीडी रोग किस तरह सर्दियों में और ज्यादा प्रदूषण होने पर पीड़ित के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है इस बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए etv भारत सुखीभवा ने ग्वालियर मध्यप्रदेश के नाक कान गला रोग विशेषज्ञ डॉ वीरेंद्र सिंह से बात की.

क्या है सीओपीडी

डॉ वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि सर्दियों में वैसे ही सीओपीडी रोगियों की अस्पताल में आमद बढ़ जाती है लेकिन विशेषकर दीपावली के बाद पटाखों के चलते बढ़े प्रदूषण के कारण ऐसे रोगियों को ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

वह बताते हैं कि दरअसल क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज फेफड़ों का एक ऐसा रोग है, जिसमें मरीज सामान्य रूप से सांस नहीं ले पाता और ऑक्सीजन फेफड़ों तक पूरी मात्रा में नहीं पहुंच पाती है. यह एक ऐसी बीमारी है जिसका पूरी तरह से ठीक होना मुश्किल है . तथा यह कभी भी मौसम में बदलाव, ज्यादा ठंड़, प्रदूषण, पालतू जानवरों से या किसी अन्य चीज से एलर्जी के कारण दौरे के रूप में ट्रिगर हो सकती है, जिसमें पीड़ित को खांसी, सांस लेने में कठिनाई, सीने में दर्द और कभी-कभी बुखार जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन दवा और जीवनशैली में बदलाव कर इस पर नियंत्रण अवश्य किया जा सकता है.

सीओपीडी की समस्या को बढ़ाने वाले कारक

डॉ वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि मौसम बदलने के साथ विशेषकर ठंड बढ़ने के साथ फेफड़ों के रोगियों को ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन सीओपीडी में रोग के ट्रिगर होने के लिए प्रदूषण तथा धूम्रपान को भी अहम कारण माना जाता है. सड़कों पर गाड़ियों या फैक्ट्रियों का धुंआ और उनसे निकलने वाली जहरीली गैसें जब धूल व मिट्टी के साथ सांस के माध्यम से शरीर के अंदर फेफड़ों तक पहुँचती है तो विशेषतौर पर सीओपीडी के मरीजों के लिए ज्यादा परेशानियाँ उत्पन्न कर देती हैं. वहीं धूम्रपान जैसे सिगरेट, बीड़ी या हुक्का पीने की लत भी इस रोग को बढ़ाती है. इसके अलावा कुछ लोगों में इस समस्या के लिए कुछ हद तक आनुवंशिकता भी जिम्मेदार होती है.

सीओपीडी के लक्षण

सीओपीडी के कुछ मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं.

  • हल्के फुल्के कार्यों विशेष रूप से शारीरिक गतिविधियों के दौरान सांस फूल जाना.
  • सांस लेने में समस्या या भारीपन
  • सांस लेते समय सीने में घरघराहट
  • सीने में जकड़न तथा कफ के साथ लगातार खांसी
  • बार-बार श्वसन संबंधी संक्रमण
  • कमजोरी व थकान होना
  • वजन कम होना तथा भूख न लगना
  • टखनों का सूज जाना

सर्दियों में सीओपीडी का प्रबंधन

सर्दियों के मौसम में इस समस्या से पीड़ित लोगों को ज्यादा सावधानी बरतने को आवश्यकता होती है. डॉ वीरेंद्र बताते हैं कि आदतों में थोड़ा बदलाव तथा नियमित जीवन में थोड़ी सी सावधानियाँ बरत कर सीओपीडी पीड़ित काफी हद तक इस समस्या को ट्रिगर होने से रोक सकते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  • सीओपीडी पीड़ितों को विशेषकर ज्यादा उम्र वाले लोगों को जहां तक संभव हो सके घर से बाहर निकलते समय अपनी नाक और मुंह को मास्क से ढक कर रखना चाहिए, जिससे धूल मिट्टी उनकी नाक या मुंह में प्रवेश न कर पाए. यह आदत पीड़ित को अन्य संक्रमणों की चपेट में आने से भी बचाता है.
  • जहां तक संभव हो बहुत ज्यादा प्रदूषित तथा ज्यादा भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से बचना चाहिए.
  • ऐसे लोगों को न सिर्फ धूम्रपान करने से बचना चाहिए बल्कि जहां तक संभव हो सके ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए जो धूम्रपान कर रहें हों.
  • जहां तक हो सके जानवरों के बिल्कुल पास जाने तथा उनके संपर्क में आने से बचना चाहिए . लेकिन यदि घर में पालतू जानवर हो पूरी सावधानी बरतनी चाहिए जैसे घर में उसके बाल नियमित रूप से साफ किए जाए , जानवरों की साफ सफाई का ज्यादा ध्यान रखा जाय आदि.
  • अपने चिकित्सक से सलाह लेकर किसी विशेषज्ञ के निर्देशन में योग विशेषकर श्वास संबंधी व्यायामों को नियमित अभ्यास फायदा पहुँचा सकता है.
  • दिनचर्या को अनुशासित करें जैसे समय पर सोना-जागना , सही समय पर संतुलित भोजन आदि. इसके साथ ही बहुत जरूरी है कि आहार और व्यवहार को लेकर चिकित्सक द्वारा बताई गई सभी सावधानियों का पालन करें.

पढ़ें: सही भोजन से बनाए फेफड़ों को सुरक्षित

सर्दियों का आगमन और उस पर दीपावली के चलते वातावरण में बढ़े प्रदूषण का साथ, ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज यानी सीओपीडी के रोगियों के लिए काफी भारी रहता है है. तापमान में गिरावट जहां पीड़ित के फेफड़ों को प्रभावित करती है वहीं वायु प्रदूषण स्थिति को और ज्यादा खराब कर देता है. सीओपीडी रोग किस तरह सर्दियों में और ज्यादा प्रदूषण होने पर पीड़ित के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है इस बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए etv भारत सुखीभवा ने ग्वालियर मध्यप्रदेश के नाक कान गला रोग विशेषज्ञ डॉ वीरेंद्र सिंह से बात की.

क्या है सीओपीडी

डॉ वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि सर्दियों में वैसे ही सीओपीडी रोगियों की अस्पताल में आमद बढ़ जाती है लेकिन विशेषकर दीपावली के बाद पटाखों के चलते बढ़े प्रदूषण के कारण ऐसे रोगियों को ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

वह बताते हैं कि दरअसल क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज फेफड़ों का एक ऐसा रोग है, जिसमें मरीज सामान्य रूप से सांस नहीं ले पाता और ऑक्सीजन फेफड़ों तक पूरी मात्रा में नहीं पहुंच पाती है. यह एक ऐसी बीमारी है जिसका पूरी तरह से ठीक होना मुश्किल है . तथा यह कभी भी मौसम में बदलाव, ज्यादा ठंड़, प्रदूषण, पालतू जानवरों से या किसी अन्य चीज से एलर्जी के कारण दौरे के रूप में ट्रिगर हो सकती है, जिसमें पीड़ित को खांसी, सांस लेने में कठिनाई, सीने में दर्द और कभी-कभी बुखार जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन दवा और जीवनशैली में बदलाव कर इस पर नियंत्रण अवश्य किया जा सकता है.

सीओपीडी की समस्या को बढ़ाने वाले कारक

डॉ वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि मौसम बदलने के साथ विशेषकर ठंड बढ़ने के साथ फेफड़ों के रोगियों को ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन सीओपीडी में रोग के ट्रिगर होने के लिए प्रदूषण तथा धूम्रपान को भी अहम कारण माना जाता है. सड़कों पर गाड़ियों या फैक्ट्रियों का धुंआ और उनसे निकलने वाली जहरीली गैसें जब धूल व मिट्टी के साथ सांस के माध्यम से शरीर के अंदर फेफड़ों तक पहुँचती है तो विशेषतौर पर सीओपीडी के मरीजों के लिए ज्यादा परेशानियाँ उत्पन्न कर देती हैं. वहीं धूम्रपान जैसे सिगरेट, बीड़ी या हुक्का पीने की लत भी इस रोग को बढ़ाती है. इसके अलावा कुछ लोगों में इस समस्या के लिए कुछ हद तक आनुवंशिकता भी जिम्मेदार होती है.

सीओपीडी के लक्षण

सीओपीडी के कुछ मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं.

  • हल्के फुल्के कार्यों विशेष रूप से शारीरिक गतिविधियों के दौरान सांस फूल जाना.
  • सांस लेने में समस्या या भारीपन
  • सांस लेते समय सीने में घरघराहट
  • सीने में जकड़न तथा कफ के साथ लगातार खांसी
  • बार-बार श्वसन संबंधी संक्रमण
  • कमजोरी व थकान होना
  • वजन कम होना तथा भूख न लगना
  • टखनों का सूज जाना

सर्दियों में सीओपीडी का प्रबंधन

सर्दियों के मौसम में इस समस्या से पीड़ित लोगों को ज्यादा सावधानी बरतने को आवश्यकता होती है. डॉ वीरेंद्र बताते हैं कि आदतों में थोड़ा बदलाव तथा नियमित जीवन में थोड़ी सी सावधानियाँ बरत कर सीओपीडी पीड़ित काफी हद तक इस समस्या को ट्रिगर होने से रोक सकते हैं. जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं.

  • सीओपीडी पीड़ितों को विशेषकर ज्यादा उम्र वाले लोगों को जहां तक संभव हो सके घर से बाहर निकलते समय अपनी नाक और मुंह को मास्क से ढक कर रखना चाहिए, जिससे धूल मिट्टी उनकी नाक या मुंह में प्रवेश न कर पाए. यह आदत पीड़ित को अन्य संक्रमणों की चपेट में आने से भी बचाता है.
  • जहां तक संभव हो बहुत ज्यादा प्रदूषित तथा ज्यादा भीड़भाड़ वाले इलाकों में जाने से बचना चाहिए.
  • ऐसे लोगों को न सिर्फ धूम्रपान करने से बचना चाहिए बल्कि जहां तक संभव हो सके ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए जो धूम्रपान कर रहें हों.
  • जहां तक हो सके जानवरों के बिल्कुल पास जाने तथा उनके संपर्क में आने से बचना चाहिए . लेकिन यदि घर में पालतू जानवर हो पूरी सावधानी बरतनी चाहिए जैसे घर में उसके बाल नियमित रूप से साफ किए जाए , जानवरों की साफ सफाई का ज्यादा ध्यान रखा जाय आदि.
  • अपने चिकित्सक से सलाह लेकर किसी विशेषज्ञ के निर्देशन में योग विशेषकर श्वास संबंधी व्यायामों को नियमित अभ्यास फायदा पहुँचा सकता है.
  • दिनचर्या को अनुशासित करें जैसे समय पर सोना-जागना , सही समय पर संतुलित भोजन आदि. इसके साथ ही बहुत जरूरी है कि आहार और व्यवहार को लेकर चिकित्सक द्वारा बताई गई सभी सावधानियों का पालन करें.

पढ़ें: सही भोजन से बनाए फेफड़ों को सुरक्षित

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.