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भारतेंदु हरिश्चंद्र ने छोटे से जीवन काल में हिंदी साहित्य को दिया नया आयाम

हिंदी साहित्य को नया आयाम देने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र 35 वर्ष की आयु में आज के ही दिन 6 जनवरी को 1885 में दुनिया को अलविदा कह दिया था. वाराणसी में जन्मे भारतेंदु हरिश्चंद्र की पुण्यतिथि पर प्रस्तुत है खास रिपोर्ट...

भारतेंदु हरिश्चंद्र की पुण्यतिथि पर विशेष.
भारतेंदु हरिश्चंद्र की पुण्यतिथि पर विशेष.
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Published : Jan 6, 2021, 6:46 PM IST

वाराणसीः हिंदी साहित्य को नया आयाम देने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र 35 वर्ष की आयु में आज के ही दिन 6 जनवरी को 1885 में दुनिया को अलविदा कह दिया था. भारतेंदु ने अपने छोटे से जीवन काल में हिंदी साहित्य में विभिन्न विधाओं को कालजयी बना दिया. भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे. हिंदी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है.

भारतेंदु हरिश्चंद्र की पुण्यतिथि पर विशेष.

पिता से मिली थी साहित्यिक विरासत
धर्म, अध्यात्म व साहित्य-संस्कृति की राजधानी काशी में कई महान साहित्यक विभूतियों ने जन्म लिया. जिसने हिंदी साहित्य की दुनिया को एक नया आयाम दिया. उन्हीं में से एक महान विभूति भारतेंदु हरिश्चंद्र थे. जिनका जन्म काशी के चौखंबा मोहल्ले में 9 सितंबर 1850 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. भारतेंदु को साहित्यिक विरासत उनके पिता गोपालचंद्र से मिली थी. उन्होंने अपनी पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए हिंदी साहित्य को एक नया आयाम दिया. मात्र 35 साल की उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

निज भाषा उन्नति लहै, सब उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल..
यह हिंदी भाषा की उन्नति का मूल मंत्र आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रणेता भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखा था. हिंदी साहित्य की कहानियां, कविता नाटक उपन्यास निबंध सभी क्षेत्रों में उनका योगदान अविस्मरणीय है. वह हिंदी में नवजागरण युग का संदेश लेकर अवतरित हुए. हिंदी भाषा के सर्वांगीण विकास में उनका अहम योगदान रहा. कहते हैं हिंदी साहित्य में नाटकों की सदी का सूत्रपात भारतेंदु द्वारा ही संपन्न किया गया.

काशी के विद्वानों ने 'भारतेंदु' उपाधि से नवाजा
भारतेन्दु बाबू के प्रपौत्र दिपेश चन्द्र चौधरी ने बताया कि भारतेंदु बाबू कई भाषाओं के जानकार थे. उन्होंने संस्कृत, पंजाबी, मराठी, उर्दू, बांग्ला, गुजराती' भाषाएं सीखी. इसके साथ ही मशहूर लेखक राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद से उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी. उनकी लेखनी से प्रभावित होकर 1880 में काशी के विद्वानों ने उन्हें भारतेंदु की उपाधि से नवाजा.उन्होंने बताया कि हिंदी साहित्य में उनके योगदान के कारण 1857 से 1900 तक के काल को भारतेंदु युग के नाम से जाना जाता है. दिपेश ने बताया कि अपने जीवन के अंतिम दिनों में भारतेंदु बाबू ने कहा था कि हर दिन मेरी जिंदगी एक नए नाटक का मंचन कर रही है. पहला दिन ज्वर काल रहा. दूसरा दिन दर्द का, आगे आने वाले दिनों में कब मेरी आंख बंद हो जाएगी यह देखना होगा. उन्होंने बताया कि 6 जनवरी 1885 में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली.

आज भी संरक्षित लेख, कलम और इत्र दानी
प्रपौत्र दीपेश चन्द्र चौधरी ने बताया कि बाबू भारतेंदु की याद में हमारे दिल में आज भी जीवित है .ईश्वर का सौभाग्य है कि हमारे पास उनके द्वारा लिखे हुए कुछ लेख उनकी कलम और इत्र दानी मौजूद है. जो हमें उनके होने का एहसास दिलाते हैं. उन्होंने बताया कि वह वही कलम है जिसका प्रयोग वो लेखों को लिखने में किया करते थे और इसी इत्र दानी से वह इत्र लगाते थे.

कई पत्रिकाओं का किया संपादन
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हरिश्चंद्र मैगजीन, कवि वचन सुधा, बाला बोधिनी जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन और संपादन किया. लेखों के जरिए उन्होंने आधुनिक भारत के समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त किए और नई किस्म की भाषा का विकास किया.उन्होंने पत्रिकाओं के माध्यम से देश प्रेम को लोगों में विकसित करने की कोशिश करते थे. साथ ही अपनी लेखनी के द्वारा समाज की कुरीतियों पर चोट भी करते थे. उन्होंने इन पत्रिकाओं के लिए ढेरों निबंध आलोचना और रिपोतार्ज भी लिखें. उनकी लेखनी को देखकर कहा जाता है कि वह एक पत्रकार रहे हैं.

वाराणसीः हिंदी साहित्य को नया आयाम देने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र 35 वर्ष की आयु में आज के ही दिन 6 जनवरी को 1885 में दुनिया को अलविदा कह दिया था. भारतेंदु ने अपने छोटे से जीवन काल में हिंदी साहित्य में विभिन्न विधाओं को कालजयी बना दिया. भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे. हिंदी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है.

भारतेंदु हरिश्चंद्र की पुण्यतिथि पर विशेष.

पिता से मिली थी साहित्यिक विरासत
धर्म, अध्यात्म व साहित्य-संस्कृति की राजधानी काशी में कई महान साहित्यक विभूतियों ने जन्म लिया. जिसने हिंदी साहित्य की दुनिया को एक नया आयाम दिया. उन्हीं में से एक महान विभूति भारतेंदु हरिश्चंद्र थे. जिनका जन्म काशी के चौखंबा मोहल्ले में 9 सितंबर 1850 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. भारतेंदु को साहित्यिक विरासत उनके पिता गोपालचंद्र से मिली थी. उन्होंने अपनी पारिवारिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए हिंदी साहित्य को एक नया आयाम दिया. मात्र 35 साल की उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

निज भाषा उन्नति लहै, सब उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल..
यह हिंदी भाषा की उन्नति का मूल मंत्र आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रणेता भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखा था. हिंदी साहित्य की कहानियां, कविता नाटक उपन्यास निबंध सभी क्षेत्रों में उनका योगदान अविस्मरणीय है. वह हिंदी में नवजागरण युग का संदेश लेकर अवतरित हुए. हिंदी भाषा के सर्वांगीण विकास में उनका अहम योगदान रहा. कहते हैं हिंदी साहित्य में नाटकों की सदी का सूत्रपात भारतेंदु द्वारा ही संपन्न किया गया.

काशी के विद्वानों ने 'भारतेंदु' उपाधि से नवाजा
भारतेन्दु बाबू के प्रपौत्र दिपेश चन्द्र चौधरी ने बताया कि भारतेंदु बाबू कई भाषाओं के जानकार थे. उन्होंने संस्कृत, पंजाबी, मराठी, उर्दू, बांग्ला, गुजराती' भाषाएं सीखी. इसके साथ ही मशहूर लेखक राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद से उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी. उनकी लेखनी से प्रभावित होकर 1880 में काशी के विद्वानों ने उन्हें भारतेंदु की उपाधि से नवाजा.उन्होंने बताया कि हिंदी साहित्य में उनके योगदान के कारण 1857 से 1900 तक के काल को भारतेंदु युग के नाम से जाना जाता है. दिपेश ने बताया कि अपने जीवन के अंतिम दिनों में भारतेंदु बाबू ने कहा था कि हर दिन मेरी जिंदगी एक नए नाटक का मंचन कर रही है. पहला दिन ज्वर काल रहा. दूसरा दिन दर्द का, आगे आने वाले दिनों में कब मेरी आंख बंद हो जाएगी यह देखना होगा. उन्होंने बताया कि 6 जनवरी 1885 में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली.

आज भी संरक्षित लेख, कलम और इत्र दानी
प्रपौत्र दीपेश चन्द्र चौधरी ने बताया कि बाबू भारतेंदु की याद में हमारे दिल में आज भी जीवित है .ईश्वर का सौभाग्य है कि हमारे पास उनके द्वारा लिखे हुए कुछ लेख उनकी कलम और इत्र दानी मौजूद है. जो हमें उनके होने का एहसास दिलाते हैं. उन्होंने बताया कि वह वही कलम है जिसका प्रयोग वो लेखों को लिखने में किया करते थे और इसी इत्र दानी से वह इत्र लगाते थे.

कई पत्रिकाओं का किया संपादन
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हरिश्चंद्र मैगजीन, कवि वचन सुधा, बाला बोधिनी जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन और संपादन किया. लेखों के जरिए उन्होंने आधुनिक भारत के समस्याओं पर अपने विचार व्यक्त किए और नई किस्म की भाषा का विकास किया.उन्होंने पत्रिकाओं के माध्यम से देश प्रेम को लोगों में विकसित करने की कोशिश करते थे. साथ ही अपनी लेखनी के द्वारा समाज की कुरीतियों पर चोट भी करते थे. उन्होंने इन पत्रिकाओं के लिए ढेरों निबंध आलोचना और रिपोतार्ज भी लिखें. उनकी लेखनी को देखकर कहा जाता है कि वह एक पत्रकार रहे हैं.

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