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World Leprosy Day: जानें क्या है डर्मेटाईटिस बीमारी, आयुर्वेद में कैसे होता है इलाज

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Published : Jan 30, 2022, 12:41 PM IST

त्वचा रोग एक्जिमा, कुष्ठ, एलर्जी, कालापन और लियकोडर्मा जैसी बीमारी आसानी से नहीं होती ठीक. एक्जिमा के गंभीर मामलों में त्वचा के ग्रसित जगहों में से होता है पस और रक्त का स्राव. आयुर्वेद में 18 प्रकार के होते हैं कुष्ठ रोग.

त्वचा रोग एक्जिमा
त्वचा रोग एक्जिमा

वाराणसीः बदलते मौसम और गलत खान-पान के कारण शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो त्वचा रोग (Skin Disease) से परेशान न हो. त्वचा रोगों में एक्जिमा, कुष्ठ, एलर्जी, कालापन और लियकोडर्मा जैसी बहुत सी बीमारी है जो आसानी से ठीक नहीं होती. रोगी परेशान होकर स्टेरॉयड दवाएं (Steroid Drugs Use) लेना शुरू कर देते हैं. शुरुआत में तो सब ठीक रहता है लेकिन कुछ समय बाद स्टेरॉयड दवा समस्या (Steroids Drug Problem) बन जाती है. ऐसी स्थिति में आयुर्वेद के पास बेहतर विकल्प मौजूद है, जो लंबे समय तक त्वचा रोगों से सुरक्षा प्रदान करती है वो भी बिना किसी नुकसान के.

क्या है लेप्रोसी
आजकल त्वचा रोगों में अधिकांश एक्जिमा रोग से पीड़ित मरीज अधिक संख्या में (Eczema Disease Patient) आते हैं. यह एक प्रकार का चर्म रोग है. इस रोग में त्वचा शुष्क हो जाती है और बार-बार खुजली करने का मन करता है. त्वचा की ऊपरी सतह पर नमी की कमी हो जाती है. एक्जिमा के गंभीर मामलों में पस और रक्त स्राव भी होने लगता है. यह रोग डर्मेटाईटिस के नाम से भी जाना जाता है.

डर्मेटाईटिस बीमारी के इलाज, कारण, लक्षण आदि के विषय में वाराणसी चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य अजय कुमार ने विस्तार से बताया.

यह भी पढ़ें- बालू माफियाओं पर कहर बनकर टूटे भाजपा विधायक अजय सिंह


18 प्रकार के होते हैं कुष्ठ रोग
वैद्य अजय कुमार ने बताया कि आयुर्वेद में सभी त्वचा रोगों को कुष्ठ के अंतर्गत कहा गया है. आयुर्वेद में 18 प्रकार के कुष्ठ रोग हैं. इसमें 8 महाकुष्ठ और 11 क्षुद्रकुष्ठ हैं. एक्जिमा की आयुर्वेद में विचर्चिका नामक क्षुद्रकुष्ठ से तुलना की जाती है. मुख्य रूप से यह रोग पित्त और रक्त की अशुद्धि के कारण होता है और चिकित्सा न कराने पर तेजी से शरीर में फैलता है.

एक्जिमा के कारण
आयुर्वेद में खान-पान के साथ ही रहन-सहन भी रोगों के उत्पन्न होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

आहार संबंधित कारण
गलत आहारों का सेवन करना. जैसे- दूध के साथ नमक का प्रयोग, दूध के साथ खट्टे पदार्थों का सेवन, मूली और लहसुन को दूध के साथ खाना. हरी सब्ज़ियों को ज्यादातर दूध के साथ लेना. अत्यधिक शराब का सेवन. पित्तवर्द्धक आहार का अत्यधिक सेवन आदि.

जीवन शैली जन्य कारण
भोजन के बाद व्यायाम करना या धूप में जाना, धूप से आकर तुरंत ठंडे पानी से नहाना. नियमित रूप से दिन में सोना, मल-मूत्र के वेगों को रोकना आदि. अत्यधिक क्रोध करने के साथ ही बड़े बुजुर्गों और गुरुजनों का आदर न करना शामिल है.

बचने के उपाय
कपड़े धोने के पाउडर को नंगे हाथों से बिलकुल भी न छुएं. दस्तानों का प्रयोग करें. एक्जिमा से ग्रसित कसे हुए कपड़े न पहनें, जिससे त्वचा पर रगड़ हो. सिंथेटिक कपड़ों का भी बिलकुल प्रयोग न करें, क्योंकि इससे पसीना सूखता नहीं है. त्वचा पर किसी प्रकार के केमिकल, रंग आदि का इस्तेमाल न करें. बालों को रंगने के लिए डाई का इस्तेमाल न करें. चेहरे पर अनावश्यक क्रीम का इस्तेमाल न करें. धूल मिट्टी के कणों के कारण एलर्जी का खतरा रहता है, इससे बचें. टैटू का त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

आयुर्वेद में क्या है इलाज
यह त्रिदोषज विकार है, जिसमें रक्त दूषित हो जाता है. इसमें ज्यादातर रक्त शोधक औषधियों का प्रयोग किया जाता है. इलाज केवल योग्य वैद्य की निगरानी में ही करना चाहिए. आयुर्वेद में बहुत से औषधि योग कहें गए हैं जो इस रोग में पूर्णत: काम करते हैं जैसे - खदिरारिष्ट, महामंजिष्ठादि क्वाथ, कैशोर गुग्गुलु, त्रिफला गुग्गुलु, गंधकादि मलहर, मरीच्यादि तैल, करंज तैल आदि. इसके अलावा आयुर्वेद में इसकी पंचकर्म चिकित्सा भी बताई गई है जिसमें वमन, विरेचन और रक्तमोक्षण ये तीनों क्रियाएं मुख्य रूप से कराई जाती हैं.

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वाराणसीः बदलते मौसम और गलत खान-पान के कारण शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो त्वचा रोग (Skin Disease) से परेशान न हो. त्वचा रोगों में एक्जिमा, कुष्ठ, एलर्जी, कालापन और लियकोडर्मा जैसी बहुत सी बीमारी है जो आसानी से ठीक नहीं होती. रोगी परेशान होकर स्टेरॉयड दवाएं (Steroid Drugs Use) लेना शुरू कर देते हैं. शुरुआत में तो सब ठीक रहता है लेकिन कुछ समय बाद स्टेरॉयड दवा समस्या (Steroids Drug Problem) बन जाती है. ऐसी स्थिति में आयुर्वेद के पास बेहतर विकल्प मौजूद है, जो लंबे समय तक त्वचा रोगों से सुरक्षा प्रदान करती है वो भी बिना किसी नुकसान के.

क्या है लेप्रोसी
आजकल त्वचा रोगों में अधिकांश एक्जिमा रोग से पीड़ित मरीज अधिक संख्या में (Eczema Disease Patient) आते हैं. यह एक प्रकार का चर्म रोग है. इस रोग में त्वचा शुष्क हो जाती है और बार-बार खुजली करने का मन करता है. त्वचा की ऊपरी सतह पर नमी की कमी हो जाती है. एक्जिमा के गंभीर मामलों में पस और रक्त स्राव भी होने लगता है. यह रोग डर्मेटाईटिस के नाम से भी जाना जाता है.

डर्मेटाईटिस बीमारी के इलाज, कारण, लक्षण आदि के विषय में वाराणसी चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य अजय कुमार ने विस्तार से बताया.

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18 प्रकार के होते हैं कुष्ठ रोग
वैद्य अजय कुमार ने बताया कि आयुर्वेद में सभी त्वचा रोगों को कुष्ठ के अंतर्गत कहा गया है. आयुर्वेद में 18 प्रकार के कुष्ठ रोग हैं. इसमें 8 महाकुष्ठ और 11 क्षुद्रकुष्ठ हैं. एक्जिमा की आयुर्वेद में विचर्चिका नामक क्षुद्रकुष्ठ से तुलना की जाती है. मुख्य रूप से यह रोग पित्त और रक्त की अशुद्धि के कारण होता है और चिकित्सा न कराने पर तेजी से शरीर में फैलता है.

एक्जिमा के कारण
आयुर्वेद में खान-पान के साथ ही रहन-सहन भी रोगों के उत्पन्न होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

आहार संबंधित कारण
गलत आहारों का सेवन करना. जैसे- दूध के साथ नमक का प्रयोग, दूध के साथ खट्टे पदार्थों का सेवन, मूली और लहसुन को दूध के साथ खाना. हरी सब्ज़ियों को ज्यादातर दूध के साथ लेना. अत्यधिक शराब का सेवन. पित्तवर्द्धक आहार का अत्यधिक सेवन आदि.

जीवन शैली जन्य कारण
भोजन के बाद व्यायाम करना या धूप में जाना, धूप से आकर तुरंत ठंडे पानी से नहाना. नियमित रूप से दिन में सोना, मल-मूत्र के वेगों को रोकना आदि. अत्यधिक क्रोध करने के साथ ही बड़े बुजुर्गों और गुरुजनों का आदर न करना शामिल है.

बचने के उपाय
कपड़े धोने के पाउडर को नंगे हाथों से बिलकुल भी न छुएं. दस्तानों का प्रयोग करें. एक्जिमा से ग्रसित कसे हुए कपड़े न पहनें, जिससे त्वचा पर रगड़ हो. सिंथेटिक कपड़ों का भी बिलकुल प्रयोग न करें, क्योंकि इससे पसीना सूखता नहीं है. त्वचा पर किसी प्रकार के केमिकल, रंग आदि का इस्तेमाल न करें. बालों को रंगने के लिए डाई का इस्तेमाल न करें. चेहरे पर अनावश्यक क्रीम का इस्तेमाल न करें. धूल मिट्टी के कणों के कारण एलर्जी का खतरा रहता है, इससे बचें. टैटू का त्वचा पर बुरा प्रभाव पड़ता है.

आयुर्वेद में क्या है इलाज
यह त्रिदोषज विकार है, जिसमें रक्त दूषित हो जाता है. इसमें ज्यादातर रक्त शोधक औषधियों का प्रयोग किया जाता है. इलाज केवल योग्य वैद्य की निगरानी में ही करना चाहिए. आयुर्वेद में बहुत से औषधि योग कहें गए हैं जो इस रोग में पूर्णत: काम करते हैं जैसे - खदिरारिष्ट, महामंजिष्ठादि क्वाथ, कैशोर गुग्गुलु, त्रिफला गुग्गुलु, गंधकादि मलहर, मरीच्यादि तैल, करंज तैल आदि. इसके अलावा आयुर्वेद में इसकी पंचकर्म चिकित्सा भी बताई गई है जिसमें वमन, विरेचन और रक्तमोक्षण ये तीनों क्रियाएं मुख्य रूप से कराई जाती हैं.

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