वाराणसी: भारत अपनी प्रतिभा का लोहा समय-समय पर पूरे विश्व को दिखाता रहा है. कोविड-19 के दौर में जिस तरह से भारत ने धैर्य पूर्वक काम किया और इस संक्रमण को फैलने से बचाया उसकी तारीफ हर किसी ने की. अब विश्व में सबसे लंबी एलपीजी पाइप लाइन बिछाने के मामले में भी भारत एक कीर्तिमान स्थापित करने जा रहा है. गुजरात के कांडला पोर्ट से लेकर गोरखपुर तक 2805 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन बिछाने की योजना की शुरुआत 2019 में हुई थी. यह योजना अब उत्तर प्रदेश में शुरू होने जा रही है, जिसके लिए 2 दिन पहले ही पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में इस प्रोजेक्ट का भूमि पूजन पिंडरा इलाके में किया गया है. इसके बाद अब यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर यह गैस पाइप लाइन योजना क्यों इतनी खास है, क्या है इस पूरी योजना में और इसका लाभ कैसे और किस को मिलेगा.
कई राज्यों को मिलेगा योजना का लाभ
गुजरात के कांडला पोर्ट से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर तक बिछाई जाने वाली इस पूरी गैस पाइपलाइन की लंबाई 2805 किलोमीटर बताई जा रही है. इस गैस पाइप लाइन योजना से सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश और गुजरात के राज्यों को भी फायदा मिलेगा. इसकी बड़ी वजह यह है कि इस पूरी योजना में 10000 करोड़ रुपये का इन्वेस्टमेंट तीन बड़ी ऑयल और गैस कंपनियां मिलकर कर रही हैं. जिनमें इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम शामिल हैं. इनमें सबसे ज्यादा 50 फीसदी की हिस्सेदारी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की है, जबकि 25-25 फीसदी की हिस्सेदारी भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम की होगी. बताया जा रहा है कि यह पूरा प्रोजेक्ट 2024 से पहले तैयार हो जाएगा.
यूपी को मिलेगा अधिक फायदा
इस योजना का सबसे बड़ा लाभ सीधे तौर पर उत्तर प्रदेश को मिलने जा रहा है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक विश्व की सबसे लंबी एलपीजी पाइप लाइन योजना से उत्तर प्रदेश के 18 जिलों को सीधे तौर पर लाभ मिलेगा. जिसमें ललितपुर, झांसी, जालौन, कानपुर देहात, कानपुर नगर, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़, प्रयागराज, भदोही, जौनपुर, वाराणसी, गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ, गोरखपुर, लखनऊ और देवरिया शामिल हैं. उत्तर प्रदेश के इन सभी जिलों से गैस पाइपलाइन होकर गुजरेगी. इस गैस पाइपलाइन से 3 राज्यों के कुल 22 गैस रिफलिंग प्लांट को गैस की सप्लाई दी जाएगी. जिनमें गुजरात के 03 गैस रिफिलिंग प्लांट, मध्य प्रदेश के 06 रिफलिंग प्लांट, उत्तर प्रदेश के अकेले 13 गैस रिफलिंग प्लांट शामिल है.
सबसे लंबी पाइप लाइन झांसी से गुजरेगी
सबसे बड़ी बात यह है कि उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिले में गैस पाइपलाइन की कम और ज्यादा किलोमीटर संख्या भी बताई जा रही है. जिनमें सबसे ज्यादा लंबी गैस पाइपलाइन झांसी से गुजरेगी. जिसकी लंबाई 132.3 किलोमीटर होगी. जबकि वाराणसी से 59.2 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन गुजरेगी. लखनऊ से 102 किलोमीटर और प्रयागराज से 102.6 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन गुजरेगी. कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश से 1110 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन पास होगी. वही अहमदाबाद, उज्जैन, भोपाल से होकर ही यह गैस पाइपलाइन गुजरेगी.
समय से मिल सकेगी गैस
अधिकारियों का कहना है कि इस पाइप लाइन का निर्माण पूरा करने में लगभग 36 महीने का वक्त लग सकता है. इसके पूरे होने के बाद सबसे बड़ा फायदा गैस की किल्लत से जूझ रहे राज्यों को होगा. क्योंकि अब तक टैंकर के जरिए या फिर छोटी-छोटी गैस पाइपलाइन के जरिए रिफलिंग प्लांट को गैस की सप्लाई दी जाती है. जिसकी वजह से कई बार दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. लेकिन इस गैस पाइपलाइन के शुरू होने के बाद 8.25 मिलियन टन एलपीजी की सप्लाई संभव हो पाएगी. वह भी बिना किसी रुकावट के, जिससे हर परिवार के लिए स्वच्छ रसोई गैस उपलब्ध कराने का सरकार का सपना और वादा भी समय पर पूरा किया जा सकेगा.
इसलिए होगी विश्व की सबसे लंबी एलपीजी गैस पाइपलाइन
इस पूरी योजना से लोगों को लाभ तो मिलेगा ही साथ ही भारत का सर दुनिया में और ऊंचा होगा. क्योंकि अब तक भारत के पास 1415 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन मौजूद है. जिसका निर्माण गैस कंपनी गेल ने गुजरात के जामनगर से यूपी के गाजियाबाद स्थित लोनी तक किया था. इसके बाद गेल के पास ही 623 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन विशाखापट्टनम से सिकंदराबाद तक संचालित हो रही है. इंडियन ऑयल ने भी हरियाणा के पानीपत से जालंधर तक 274 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन डाल रखी है, लेकिन 2805 किलोमीटर लंबी यह गैस पाइपलाइन देश की ही नहीं बल्कि विश्व की पहली सबसे लंबी एलपीजी गैस पाइपलाइन मानी जा रही है. हालांकि इसके पहले लगभग 8200 किलोमीटर लंबी गैस पाइपलाइन बीजिंग में मौजूद है. लेकिन यह एलपीजी नहीं बल्कि प्राकृतिक गैस पाइपलाइन है. इसलिए यह दावा किया जा रहा है कि विश्व की प्रथम एलपीजी पाइपलाइन को बिछाने का काम भारत कर रहा है.
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34 करोड़ जनता को मिलेगा फायदा
अधिकारियों का कहना है कि इस परियोजना का काम समय से खत्म होना महत्वपूर्ण है. क्योंकि इसके जारी होने के बाद लगभग 34 करोड लोगों को इस योजना का लाभ सीधे तौर पर मिलेगा. क्योंकि अब तक टैंकर के जरिए आने वाली एलपीजी सीधे गैस पाइपलाइन के जरिए जब प्लांट तक पहुंचेगी तो लोगों की जिंदगी आसान भी होगी और समय से की डिलीवरी संभव हो पाएगी. फिलहाल वाराणसी में पिंडरा इलाके में इसकी शुरुआत हुई है और यहां पर 4600 टन क्षमता का बॉटलिंग प्लांट इससे लाभान्वित होगा. जिससे 40,000 गैस सिलेंडर को भरने की क्षमता पूरी हो सकेगी.
इस तकनीक का होगा इस्तेमाल
ईटीवी भारत ने संबंधित अधिकारियों से बातचीत करने की कोशिश की तो अधिकारी कैमरे पर तो बोलने से बचते रहे लेकिन ऑफ द कैमरा इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के आधिकारिक सूत्रों ने यह बताया कि इस गैस पाइप लाइन योजना के लिए इंटरनेशनल मानकों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है. इस पूरी तकनीक के लिए सबसे हाईफाई टेक्नोलॉजी स्काडा का प्रयोग किया जाएगा. यह वह तकनीक है जिसके जरिए डिजिटल तरीके से गैस की सप्लाई की मॉनिटरिंग की जाती है. इस पूरी परियोजना में इस तकनीक के जरिए 2800 किलोमीटर से ज्यादा लंबी गैस पाइपलाइन बिछाए जाने के दौरान हर 10 किलोमीटर पर सेफ्टी वाल्व का प्रयोग किया जाएगा.
सेफ्टी वाल्व से गैस का प्रेशर होगा मैनेज
सेफ्टी वाल्व के जरिए एक ऐसी दीवार बनाई जाती है जो गैस के प्रेशर को मैनेज करती है. इसके लिए बूस्टर तकनीक का यूज किया जाएगा. सेफ्टी बॉल के साथ बूस्टर लगाकर गैस की सप्लाई को कहीं कम कहीं ज्यादा करने का काम किया जाएगा. सबसे बड़ी बात यह है कि हल्की लीकेज होने पर भी कंट्रोल रूम में प्रेशर कम होने की जानकारी पहुंच जाएगी. जिसके बाद यदि सप्लाई बंद भी करनी पड़े तो उस पर तत्काल एक्शन लिया जा सकेगा, क्योंकि जिस तरह से रेलवे स्टेशनों पर ट्रेनों की निगरानी के लिए कंट्रोल रूम में बड़ी स्क्रीन पर ट्रेनों की लोकेशन देखने के लिए तकनीक का प्रयोग किया जाता है. वैसे ही गैस पाइपलाइन में होने वाली गैस की सप्लाई की निगरानी के लिए भी कंपनियों के बड़े कंट्रोल रूम में गैस की उपलब्धता पाइप में बराबर बनी है या नहीं इसकी निगरानी भी की जाती है.
सुरक्षा मानकों का ध्यान
यदि गैस की सप्लाई में जरा सी भी दिक्कत आती है प्रेशर कम होता है और लीकेज ऐसी समस्या आती है तो कंट्रोल रूम में अलार्म बजने लगता है. अलार्म बजने के साथ ही संबंधित लोकेशन जहां पर भी दिक्कत होने पर उसे रोकने के लिए तकनीकी टीम को लगाकर उसे कंट्रोल किया जाता है, लेकिन यह बहुत ही रेयर होता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि जितनी भी गैस पाइपलाइन बिछाई जाती है वह जमीन से कम से कम 3 से 5 फीट नीचे होती है और जिस जगह से भी गैस पाइपलाइन जाती है वहां किसी भी तरह के निर्माण की या फिर कंस्ट्रक्शन की अनुमति नहीं दी जाती है. इतना ही नहीं पावर मैनेज करने के लिए दोनों छोर पर अनुमति होती है, यानी यदि गुजरात यूपी के गोरखपुर से किसी भी दिक्कत होने पर पाइप में गैस की सप्लाई को रोका जा सकता है. फिलहाल गैस पाइपलाइन बिछाने के दौरान हाईटेक और इंटरनेशनल मानकों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है, ताकि कहीं कोई दिक्कत न आए.