वाराणसी: आजकल की मॉडर्न लाइफ में सुंदर दिखने की चाहत हर किसी को है. सुंदरता को भी समाज में उठने-बैठने का एक पैमाना माना जाने लगा है. मगर यही सुंदर दिखने की चाहत नवजात बच्चों के लिए घातक बनती जा रही है. मॉडर्न दुनिया में सुंदर दिखने की चाहत में माताएं अपने बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग करना भूलती जा रही हैं. यह बातें हम नहीं कह रहे हैं बल्कि यह बातें आंकड़े बता रहे हैं. नेशनल हेल्थ सर्वे ने जो आंकड़े जारी किए हैं, वह चौंकाने वाले हैं.
53 फीसदी महिलाएं नहीं करा रहीं ब्रेस्टफीडिंग: स्वास्थ्य विभाग की तरफ से वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक का आयोजन किया गया था. जिसमें नेशनल हेल्थ सर्वे में एक आंकड़ा सामने आया है, जो काफी चौंकाने वाला है. इस सर्वे में पता चला है कि बच्चों को स्तनपान न कराने वाली सबसे अधिक कामकाजी महिलाएं हैं. वाराणसी शहर में 53 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं, जो अपने बच्चों को ब्रेस्टफीडिंग नहीं करा रही हैं. इनमें से सबसे अधिक महिलाएं ऐसी हैं, जो अपने फिगर को बनाए रखने के चक्कर में ऐसा कर रही हैं. यानी कि वाराणसी में 53 फीसदी नवजात बच्चों को अपनी मां का दूध नहीं मिल पा रहा है. ये महिलाएं अपने बच्चों को पाउडर या सिंथेटिक दूध पिला रही हैं. इससे बच्चों के दिमाग और आंखों पर बुरा असर पड़ रहा है.
फिगर मेंटेन करने के चक्कर में कर रहीं गलती: स्त्री रोग विशेषज्ञ महिलाओं की इस आदत को कहीं से भी सही नहीं ठहराती हैं. डॉ. आरती दिव्या कहती हैं 'महिलाएं जितनी एडवांस होती जा रही हैं, उनमें ब्रेस्टफीडिंग को लेकर जानकारी का अभाव होता जा रहा है. मां का पहले तीन दिनों का दूध बच्चे के लिए बहुत ही ज्यादा गुणकारी होता है. बच्चे के साथ-साथ मां को भी इससे लाभ मिलता है. आजकल महिलाएं सोचती हैं कि मेरा फिगर खराब हो जाएगा. हम थोड़े स्मार्ट हो गए हैं. हम सभी वेस्टर्न कल्चर को अपना रहे हैं. मगर ये भूल रहे हैं कि वेस्टर्न कंट्री हमारे कल्चर को अपना रहे हैं. उन्होंने ब्रेस्टफीडिंग को प्रोमोट करना शुरू कर दिया है.'
36 फीसदी बच्चों को ही तीन साल तक मिल पा रहा मां का दूध: नेशनल हेल्थ सर्वे का आंकड़ा बताता है कि वाराणसी में 47 फीसदी माताएं ही अपने बच्चों के जन्म के एक घंटे बाद उन्हें ब्रेस्टफीडिंग कराती हैं. बनारस में मात्र 5.8 फीसदी बच्चों को ही 6 से 23 माह तक पर्याप्त आहार मिल पा रहा है. जबकि 6.6 फीसदी बच्चों को ही 6 से 23 माह तक मां का दूध मिल रहा है. इतना ही नहीं वाराणसी में सिर्फ 36 फीसदी बच्चों को ही पहले तीन साल तक मां का दूध मिल रहा है. ऐसे में ये आंकड़ा बच्चों की सेहत और उनके मानसिक स्वास्थ्य को लेकर काफी डराता है.
महिलाओं में रहता है ब्रेस्ट कैंसर का खतरा: स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. आरती दिव्या ने बताया कि 'कभी-कभी सिंथेटिक दूध या पाउडर के दूध की वजह से बच्चों के दिमाम पर असर पड़ने लगता है. इसका असर बच्चों के शरीर पर भी पड़ता है. बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते हैं. बच्चों की आंखों के लिए ये दूध घातक साबित होते हैं. वहीं माताओं में स्तनपान न कराने से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा रहता है.' डॉक्टर आरती ने बताया कि 'मां को करवट बदल-बदलकर बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए. इस तरीके मां का खाली स्तन भर जाता है और स्तनपान कराने में परेशानी नहीं होती है. माताओं को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे कम से कम 500 कैलोरी अतिरिक्त पोषकतत्व लें, जिससे उनमें ब्रेस्टफीडिंग की समस्या न आए.'
स्तनपान से महिलाओं का नहीं खराब होता फिगर: डॉ. आरती दिव्या कहती हैं, 'स्तनपान कराने से महिलाओं का फिगर खराब नहीं होता है. बल्कि इससे उन्हें और खूबसूरत करता है. महिलाओं को इस बात की जानकारी होना जरूरी है. हमें इसके लिए महिलाओं को जागरूक करने की आवश्यकता है. स्तनपान कराने से बच्चा बहुत ही स्वस्थ होगा. इसके साथ ही महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर से भी सुरक्षा प्रदान करता है. जो पोषक तत्व मां के दूध में होता है वह पहुत ही पौष्टिक होता है. इसके साथ ही बच्चे के लिए लाभकारी होता है. बाहर के फार्मूला दूध में फैट भी अधिक होता है, जो बच्चों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डालता है.'
आखिर मां का दूध बच्चे के लिए क्यों है जरूरी: मां के दूध में सभी तरह के विटामिन मौजूद होते हैं. बच्चे के जन्म के एक घंटे के अंदर मां का दूध जरूरी होता है. मां के दूध में बच्चे के शरीर को मजबूत करने के पोषक तत्व होते हैं. मां के दूध में एनजाइन, एंटी बॉडीज की मात्रा अधिक होती है. यह बच्चे को कई बीमारियों से दूर रखने में सहायता करता है. सिंथेटिक या पाउडर का दूध बच्चों को मानिसक और शारीरिक रूप से कमजोर करता है. बाहर के दूध से बच्चों की ग्रोथ पर असर पड़ता है.
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