वाराणसी: सनातन धर्म में धार्मिक व पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक मास को द्वादश मास में सर्वश्रेष्ठ मास माना गया है. यह मास भगवान विष्णुजी एवं भगवती लक्ष्मी जी को समर्पित है, जिसमें इनकी पूजा-अर्चना की विशेष महिमा है. कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन देवता जागृत होते हैं. कार्तिक मास में स्नान-दान और देव अर्चना का भी विशेष महत्व है.
कार्तिक मास क्यों माना जाता है पवित्रः कार्तिक मास को अत्यन्त पावन मास की उपाधि दी गई है. हिन्दू धर्म में उत्सव की श्रृंखला इसी माह से प्रारम्भ होती है. इस बार कार्तिक मास के धार्मिक यम-नियम व्रत संगम आदि 29 अक्टूबर रविवार से प्रारम्भ होकर कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा 27 नवम्बर सोमवार तक रहेंगे. ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि शरद पूर्णिमा से ही भगवती श्रीलक्ष्मीजी की महिमा में उनकी आराधना के साथ दीपदान एवं धार्मिक अनुष्ठान प्रारम्भ हो जाते हैं.
कार्तिक मास के लिए शास्त्रों में क्या कहा गयाः शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि कार्तिक मास के समान कोई दूसरा मास नहीं है, सतयुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है. स्कन्दपुराण के अनुसार यह मास लक्ष्मी प्रदाता, सद्बुद्धिदायक एवं आरोग्यप्रदायक माना गया है. वर्ष के द्वादश मास में कार्तिक मास को ही धर्म-अर्थ-काम और मोक्ष को देने वाला माना गया है. कार्तिक मास में तुलसीजी व पीपल वृक्ष की पूजा की जाती है.
यमदेव को कैसे प्रसन्न करेंः इस मास में यमदेव को प्रसन्न करने के लिए आकाशदीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं. कार्तिक मास में एक माह तक आंवले के वृक्ष का सिंचन व पूजन करना फलदायी माना गया है. मासपर्यन्त भगवान विष्णु को आंवला अर्पित करके उनका पूजन करने पर लक्ष्मीजी की प्राप्ति बताई गई है. ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि काला तिल व आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करने से समस्त पापों का शमन होता है.
गंगा स्नान कितना फलदायीः इस मास में नियमपूर्वक संकल्प के साथ व्रत रखकर गंगा स्नान के पश्चात दान करने से तीर्थयात्रा के समान फल की प्राप्ति होती है. कार्तिक मास में स्नान-दान व पुण्य करने की काफी महिमा है. इस मास में सूर्य के दक्षिणायन होने से असुरिकाल माना जाता है. धर्मशास्त्रों के अनुसार इस मास में स्नान-ध्यान करके, व्रत रखकर भगवान विष्णुजी की पूजा करना विशेष पुण्य फलदायी रहता है.
कार्तिक मास में क्या करेंः धार्मिक मान्यता के मुताबिक श्रीकृष्ण राधा का पूजन अर्चन करने से प्रभु की असीम कृपा मिलती है तथा जीवन में सुख- समृद्धि खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होता है. ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य नियम का पालन करना चाहिए. भूमि पर शयन करें. ब्रह्ममुहूर्त में (सूर्योदय से पूर्व ) उठकर स्नान व ध्यान करें. गंगा में कमर तक जल में खड़े होकर पूर्ण स्नान करें. सात्विक भोजन करें. भगवान विष्णु की आराधना करें. पीपल वृक्ष व तुलसी के पौधे की भी धूप-दीप से पूजा करें.
कार्तिक मास में क्या न करेंः ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि कार्तिक मास में व्रतकर्ता व साधक को अपने परिवार के अतिरिक्त अन्यत्र किसी दूसरे का कुछ भी (अन्न) ग्रहण नहीं करना चाहिए. चना, मटर, उड़द, मूंग, मसूर, राई, लौकी, गाजर, बैंगन, बासी अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. साथ ही लहसुन, प्याज और तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए. शरीर में तेल नहीं लगाना चाहिए. कार्तिक मास की द्वितीया, सप्तमी, नवमी, दशमी, त्रयोदशी व अमावस्या तिथि के दिन तिल व आंवले का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
नरक चतुर्दशी के दिन क्या करना चाहिएः कार्तिक मास में स्नान व्रत करने वालों को केवल कार्तिक कृष्ण (नरक) चतुर्दशी के दिन ही तेल लगाना चाहिए. मास के अन्य दिनों में तेल नहीं लगाना चाहिए. फटे या गन्दे वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए, स्वच्छ वस्त्र ही धारण करना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु की महिमा में व्रत रखने पर ग्रहजनित दोषों से मुक्ति मिलती है तथा संकटों का निवारण होता है.