वाराणसी: जिले में रक्षाबंधन पर्व पर परम्परा अनुसार विप्र समाज हर साल गंगा घाट पर प्रायश्चित संकल्प, स्वाध्याय व संस्कार का उपाकर्म करता है. यहां गंगा घाट पर प्रायश्चित संकल्प, स्वाध्याय व संस्कार के लिए प्राचीन वैदिक काल से ब्राह्मणों का एक विशेष पर्व मनाया जाता रहा है, जिसे 'श्रावणी उपाकर्म' कहा जाता है. इस वैदिक कालीन परम्परा को अक्षुण रखते हुए काशी का विप्र समाज प्रतिवर्ष श्रावण माह के पूर्णिमा तिथि को गंगा तट पर यह उपाकर्म करता चला आ रहा है.
रक्षाबंधन पर्व पर पूर्णिमा के दिन परम्परानुसार प्रात: अहिल्याबाई घाट पर विप्र समाज ने यह उपाकर्म किया. शुक्लयजुर्वेदीय माध्यान्दिनी शाखा के ब्राह्मणों द्वारा शास्त्रार्थ महाविद्यालय के वैदिक आचार्य पंडित विकास दीक्षित के आचार्यत्व में वैदिक मंत्रों के उच्चारण के बीच श्रावणी उपाकर्म मनाया गया.
इस पर्व के दिन गोमय, गौमूत्र, गोदुग्ध, गोदधि, गोघृत मिश्रित पंचगव्य से स्नान कर भस्म लेपन किया गया. कुशा, दुर्वा व अपामार्ग से मार्जन कर ब्राह्मणों ने अंत:करण और बाह्यकरण की शुद्धि के साथ सूर्य का ध्यान कर तेज की कामना की. इसके बाद विप्र समाज ने नूतन यज्ञोपवीत का ऋषि पूजन कर उसे धारण किया.
आचार्य ने दी जानकारी
विप्र समाज के संयोजक आचार्य विकास दीक्षित ने बताया कि श्रावणी द्वारा वर्ष पर्यन्त ज्ञात-अज्ञात पापकर्मों के प्रायश्चित के साथ जगत कल्याण की कामना भी की जाती है. प्रायश्चित संकल्प, स्वाध्याय व संस्कार के लिए यह श्रावणी उपाकर्म मनाया जाता है. प्रतिवर्ष सैकड़ों की संख्या में ब्राह्मण व बटुक इसको करते आ रहे थे, किन्तु इस वर्ष कोरोना संक्रमण को देखते हुए संख्या न्यूनतम की गई है.