वाराणसी: ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले में 12 मई के बाद 14 से 16 मई तक की गई कमीशन की कार्यवाही के दौरान अंतिम दिन परिसर के अंदर वजू के लिए बनाए गए तालाब में एक शिवलिंग मिलने का दावा किया गया. हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक अंदर मौजूद शिवलिंग भगवान विश्वेशर का है. वहीं, वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने दावा किया है कि तालाब के अंदर मिलने वाला शिवलिंग भगवान विश्वेश्वर का नहीं बल्कि तारकेश्वर महादेव का है. फिलहाल दावे की हकीकत अभी साबित होना बाकी है.
दरअसल, मामले को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि अंदर मौजूद शिवलिंग भगवान विश्वेशर का है, जिसे औरंगजेब ने पुराना मंदिर तोड़ते वक्त क्षति पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन उसे नुकसान नहीं पहुंचा सका. इसके बाद उस शिवलिंग को फव्वारा का रूप देकर वहीं छोड़ दिया गया, लेकिन इन सबके बीच 1991 से चल रहे लॉर्ड विश्वेश्वर शिवलिंग वर्सेस अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी यानी ज्ञानवापी मस्जिद के पुराने केस में कोर्ट के द्वारा नियुक्त किए गए वाद मित्र विजय शंकर रस्तोगी ने जो दावा किया है वह बिल्कुल अलग है. उनका कहना है तालाब के अंदर मिलने वाला शिवलिंग भगवान विश्वेश्वर का नहीं बल्कि तारकेश्वर महादेव का है जो की ज्ञानवापी के पुराने नक्शे में साफ तौर पर देखा जा सकता है.
नक्शे में समझाई एक-एक बात
वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने ईटीवी भारत से इन बातों को साझा करते हुए बताया कि 1780 में जेम्स प्रिंसेप अंग्रेजी हुकूमत में वाराणसी के कलेक्टर बनकर आए थे. उस वक्त उन्होंने बनारस का पूरा मैप तैयार करवाया था, जिसमें इलस्ट्रेशन के साथ ही कई तस्वीरों के जरिए उन्होंने बनारस के पूरे स्ट्रक्चर को तैयार करके इसकी रूपरेखा इंग्लैंड भेजी थी. जहां से यह एक किताब के रूप में बाद में पब्लिश हुआ. उस दौरान 15वीं शताब्दी के एक पुराने नक्शे जो नारायण भट्ट के द्वारा बनाए गए मंदिर के स्ट्रक्चर के आधार पर था. उसे किताबों में पब्लिश किया गया. वह नक्शा आज भी ऐतिहासिक और इतिहास की कई किताबों में मौजूद है.
नक्शे में वजू स्थान की जगह लिखा है 'तारकेश्वर'
वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बताया कि उस नक्शे के मुताबिक साफ तौर पर दर्शाया गया है कि 2 छोटी गुंबद के बीच में बनी बड़ी गुंबद के नीचे भगवान विश्वेश्वर का पुराना मंदिर का शिखर और विश्वेश्वर का शिवलिंग मौजूद है. जिसे बड़े पत्थरों से ढक कर रखा गया है. विजय शंकर रस्तोगी का कहना है कि नक्शे में साफ तौर पर दिख रहा है कि पूर्वी छोर पर बनाए गए वजू के स्थान को उस वक्त तारकेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता था जो इस नक्शे में नंगी आंखों से भी पढ़ा जा सकता है और जो यह शिवलिंग मिला है वह तारकेश्वर महादेव का शिवलिंग है जो अनादि काल से स्थान पर है.
रिपोर्ट सबमिट होने के बाद हो पुरातात्विक सर्वेक्षण
वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी के मुताबिक अभी यह जांच का विषय है कि अंदर और क्या मिला है. अभी वकील कमिश्नर की तरफ से अपनी रिपोर्ट भी कोर्ट में पेश नहीं की गई है. रिपोर्ट पेश होने के बाद ही उसके वीडियो और फोटोग्राफ देखकर उसकी पहचान करने के बाद और चीजें स्पष्ट हो जाएंगी, लेकिन एक चीज स्पष्ट है कि अंदर की वीडियो और फोटोग्राफ्स आने वाले दिनों में पुराने लॉर्ड विशेश्वर केस में भी काफी काम आने वाली हैं. इनके अलावा केस को मजबूती मिलेगी और पुरातात्विक सर्वेक्षण की जो मार्च 2019 गई थी. उसे आगे बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी और यह अत्यंत आवश्यक भी है.
एएसआई के जरिए यहां खुदाई करके यह पता किया जाए कि आखिर में वास्तविक स्थिति है. जब एक बार की वीडियोग्राफी से ही बहुत सी चीजें स्पष्ट हुई है और तो पुरातात्विक जब सर्वेक्षण होगा तो सब कुछ दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.
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