वाराणसी: काशी का नाम आए और दूध-दही-छाछ का नाम न आए, ऐसा कैसे संभव है. वाराणसी के लोगों ने अपनी सेहत सुधारने के साथ-साथ जीविकोपार्जन के लिए अपने घरों में पशुधन पालना शुरू कर दिया है. अब लोगों ने घरों में कुत्तों और बिल्लियों को पालने के साथ-साथ पशुधन पालने का भी क्रेज बढ़ता जा रहा है.
दरअसल, पिछले एक साल में बनारसियों में गाय पालने और उससे मिलने वाले दूध-दही के सेवन में भारी मात्रा में इजाफा देखा गया है. इसका सबसे बड़ा कारण यह माना जा रहा है बाजार में मिलने वाले मिलावटी दुग्ध उत्पाद यानी दूध, दही और छाछ. जब से कोरोना ने लोगों के जीवन को और उनकी इम्युनिटी को प्रभावित किया है. तबसे लोगों ने इसके प्रति जागरूक रहना शुरू कर दिया है.
पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. अजय प्रताप सिंह ने बताया कि 'हमारे देश ने पहले से ही गौवंश को माता के रूप में स्वीकार किया हुआ है. हमारा समाज इस आस्था का निर्वहन करता है. योगी आदित्यनाथ जब से मुख्यमंत्री हुए हैं तब से उन्होंने गोवंश की जागरूकता के प्रति उन्होंने एक आंदोलन चलाया है. इस कारण से लोगों में काफी जागरुकता बढ़ी है. अभी हम कोरोना के मामलों से होकर निकले हैं. इसमें यह पता चला कि जितनी इन्युनिटी अच्छी है. उतना ही बीमारियों से बचाव होगा. देखा जाए तो गाय का दूध और गाय का घी इम्युनिटी को काफी मजबूत करता है. इसमें विटामिन ई का काफी रिच सोर्स है. इस लिहाज से लोगों का रुझान काफी बढ़ा है.'
पशु चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि 'मुख्यमंत्री की अपील पर गोवंश के प्रति लोगों की क्रेज बढ़ती जा रही है. गोवंश के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा धनराशि भी दी जा रही है. इससे लोगों में गाय पालने को लेकर जागरुकता बढ़ी है. बनारस एक धार्मिक नगरी है. यहां पर लोग धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत रहते हैं. हम लोग भी प्रयास कर रहे हैं कि लोग इसके प्रति जागरुक हों. वाराणसी में साल 2020-2021 की अपेक्षा साल 2021-2022 में गोवंश पालने में बड़ा इजाफा देखा गया है. रिपोर्ट के मुताबिक वाराणसी में एक साल में 30 हजार गोवंशों का इजाफा हुआ है. इस आंकड़े से ही पता चलता है कि वाराणसी में लोगों में किस तरह से गोवंश को पालने में क्रेज बढ़ा है.'
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