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महात्मा गांधी और विनोबा भावे की विरासत पर चलेगा बुलडोजर! सर्व सेवा संघ के भवन को कराया गया खाली

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Published : Jul 22, 2023, 1:57 PM IST

वाराणसी में शनिवार को सर्व सेवा संघ (Sarva Seva Sangh) के भवन को खाली कराया गया. पिछले माह ही इस भवन को लेकर सर्व सेवा संघ और उत्तर रेलवे के बीच मालिकाना हक को लेकर सुनवाई हुई थी. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भवन में रहने वाले लोगों की याचिका को खारिज कर दिया था.

Varanasi Sarva Seva Sangh case
Varanasi Sarva Seva Sangh case
परिषद के सदस्य राम धीरज ने प्रशासन की कार्रवाई को लेकर धरने पर बैठे.

वाराणसीः जिले में रेलवे प्रशासन ने सर्व सेवा संघ भवन (Sarva Seva Sangh) के ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है. इसके बाद से बीते 63 दिनों से इसे बचाने की लड़ाई जारी है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद शनिवार को प्रशासन ने परिसर खाली कराने की भी कवायद शुरू कर दी है. भवन खाली कराने के लिए एडीएम सिटी समेत कई थानों की पुलिस फोर्स मौके पर पहुंची. परिसर को खाली कराने के लिए मौके पर पहुंची पुलिस को देखकर यहां मौजूद लोगों ने भी धरना प्रदर्शन की शुरुआत कर दी है.

गौरतलब है कि वाराणसी में शनिवार सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद प्रशासनिक कार्रवाई की शुरुआत की जा रही है. परिसर में रहने वाले लोगों का मकान खाली कराने के बाद बुलडोजर चलने की भी उम्मीद है. 27 जून 2023 को जिला प्रशासन की ओर से भवन को खाली कराने का आदेश दे दिया गया था. इसके बाद से संघ के सभी सदस्य धरने पर बैठे थे. मौके पर मौजूद परिषद के सदस्य राम धीरज ने कहा, 'प्रशासन हमारे साथ मनमानी कर रही है. हमने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशानुसार सिविल कोर्ट में वाद डाला है. शुक्रवार को जज के मौजूद न होने पर सुनवाई नहीं हो सकी थी. ऐसे में शनिवार को बिना किसी सूचना के हमारे भवन को खाली कराने के लिए पुलिस वाले पहुंचे. हमें घरों से बाहर निकाल दिया. हमने जब सवाल किया, तो कह रहे हैं वकील को बुलाइए.'

Varanasi Sarva Seva Sangh case
जिला प्रशासन ने 27 जून 2023 को जारी किया था नोटिस

राम धीरज ने आगे कहा, 'जब हमारा वकील आया तो वो हमें कुछ भी बताने से इंकार कर रहे हैं. हमने उनसे बस कुछ समय का मौका मांगा, ताकि हम यहां जिला जज से वाद पर बात कर सके. यदि यहां से भी से खारिज किया जाता है, तो हम हाईकोर्ट चले जाएं, वहां से भी खारिज किया जाता है, तो हम सुप्रीम कोर्ट चले जाएं. यदि उसके बाद भी मामला खारिज हो जाता है, तो बुलडोजर के जरिए हम सभी को कुचल के इस भवन को नेस्तनाबूत कर दें. हम कुछ नहीं कहेंगे.'

मालिकाना हक को लेकर विवाद दरअसल, सर्व सेवा संघ और उत्तर रेलवे के बीच मालिकाना हक को लेकर बीते माह सुनवाई हुई थी. वाराणसी जिलाधिकारी एस राजलिंगम ने सुनवाई करते हुए रेलवे के हक में फैसला दे दिया. उन्होंने बकायदा संघ की भवन को अवैध निर्माण घोषित करते हुए. जमीन को खाली कराने के निर्देश भी दे दिए. इसके बाद रेलवे प्रशासन ने 30 जून को संघ भवन को ध्वस्त करने की तिथि भी निर्धारित कर दी थी. शुरुआत के क्रम में यहां के लोगों ने जिला प्रशासन के फैसले पर आपत्ति जताते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की. हाईकोर्ट ने इसे खारिज करते हुए मामले की सुनवाई निचली कोर्ट में करने का आदेश दिया. इसके बाद इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जस्टिस ऋषिकेश राय और जस्टिस पंकज मित्तल ने भी वादी पक्ष की याचिका खारिज कर दी थी. अंत में इन्होंने हाईकोर्ट के निर्देशानुसार निचली अदालत में सुनवाई के लिए याचिका डाला. लेकिन, शुक्रवार को जज मौजूद न होने के कारण सुनावई नहीं हो सकी.

प्रियंका गांधी ने जताया विरोधः इस मामले में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी भी प्रशासन की कार्रवाई का विरोध कर रही है. उन्होंने सर्व सेवा संघ परिसर को ढहाने की कार्रवाई को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विरासत पर हमला बताया. प्रियंका ने कहा, 'ये संघ आचार्य विनोबा भावे, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री और बाबू जगजीवन राम के प्रयासों का परिणाम है. इसका मकसद गांधी जी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था. इन्हीं महापुरुषों के नेतृत्व में यह जमीन भी खरीदी गई थी. आज भाजपाई प्रशासन ने इसे अवैध बताकर कार्रवाई शुरू कर दी है. महात्मा गांधी जी के विचारों और उनकी विरासत पर एक और हमला करने की कोशिश की गई है. हम संकल्प लेते हैं कि महात्मा गांधी की विरासत पर हो रहे हर हमले के खिलाफ डटकर खड़े रहेंगे.'

गांधी की विरासत को बचाने की अपीलः मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने इस कार्रवाई का विरोध करते हुए कहा कि गांधी विचार के विरासत वाली संस्था सर्व सेवा संघ, वाराणसी परिसर को बुलडोजर से रौंदने के लिए पुलिस पहुंच चुकी है. मोदी जी दुनिया भर में जाकर गांधी के नामों पर राजनीति करना बंद कीजिए. देश और दुनिया के लिए शर्म की बात है कि जिस गांधी ने देश को आजादी दिलाई. उसी देश में उनके विरासत पर वाराणसी में बुलडोजर की कार्रवाई हो रही है. विदेशों में महात्मा गांधी का केवल शब्दों से सम्मान करते है. लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री काल में और अब प्रधानमंत्री काल में हमेशा उनके विचारों की हत्या की है.

सरकार पर फर्जी दस्तावेज बनाने का आरोपः इस बारे में सर्व सेवा संघ से जुड़े हुए राम धीरज ने बताया कि सेवा भवन को तोड़ना सरकार की साजिश है. हमने रेलवे से 3 भाग में 1960, 1961 और 1970 ने यह जमीन खरीदी थी. हमारे पास ट्रेजरी फंड में जमा किए गए पैसों की रसीद और तमाम दस्तावेज है. लेकिन वर्तमान सरकार और जिला प्रशासन इन दस्तावेजों को मानने से पूरी तरीके से इंकार कर रही है. यही नही फर्जी दस्तावेजों को तैयार कर हमें हमारे भवन से निकालने का षड्यंत्र भी कर रही है. यह सरकार की सुनियोजित प्लानिंग है कि किस तरीके से गांधीवादी विचार को समाप्त किया जाए. हम डर के साये में जी रहे हैं कि कभी भी हमारा यह भवन तोड़ा जा सकता है और हमें बेघर किया जा सकता है.

ऐसे हुई संघ के स्थापनाः 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई थी. उसके बाद 1960 में यह जमीन ली गई. विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण और लाल बहादुर शास्त्री के निर्देशन में लगभग 62 साल पहले सर्व सेवा संघ के भवन की नींव रखी गई. इसका उद्देश्य महात्मा गांधी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाना और उनके आदर्शों को स्थापित करना था.

क्या है पुराना विवादः संघ के सदस्यों की मानें तो उनका कहना है कि संघ की स्थापना से लेकर 2007 तक यहां का वातावरण ठीक था. यहां किसी भी तरीके की कोई समस्या नहीं थी. लेकिन, इस बीच रेलवे ने अपनी प्रोजेक्ट के लिए जमीन की तलाश शुरू कर दी. इसमें पुराने दस्तावेज मिले, जिस पर सर्व सेवा संघ की नींव रखी गई थी. इस जमीन पर रेलवे का मालिकाना हक बना और उसके बाद रेलवे की ओर से बकायदा इस जमीन को अवैध बताया गया. यहां के भवन पर 2007 में ताला लटका दिया गया. हमने इसको लेकर के जिला न्यायालय में न्याय की गुहार लगाई. उसके बाद कोर्ट ने एक संचालक मंडल बना दिया. कोर्ट ने कहा मंडल की ओर से फैसला लिया जाएगा की भवन किसे मिलेगा. इसके बाद से अब तक यहां के भवनो में ताला लगा हुआ है. यहां पर प्रिंटिंग भी नहीं हो रही है. लाइब्रेरी में रखी गई कई सारी किताबें खराब हो रही है. लेकिन इसके बावजूद भी बात सुनी नहीं गई.

2020 में पुनः शुरू हुआ विवादः संघ के सदस्यों ने बताया कि हैरान करने वाली बात यह है कि रेलवे को खुद नहीं पता था कि यह उनकी जमीन है. हमने दस्तावेजों के जरिए रेलवे को इस बात की जानकारी दी और आज रेलवे हमें उजाड़ने पर तुल गए हैं. 2020 में यह विवाद फिर शुरू हुआ. जब कॉरिडोर को लेकर के विकास की रणनीति बनाई गई. इस विवाद में जिला प्रशासन की ओर से रेलवे के हक में फैसला दिया गया. जबकि हाईकोर्ट में हम उसको लेकर के अर्जी लगाए हुए हैं.

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परिषद के सदस्य राम धीरज ने प्रशासन की कार्रवाई को लेकर धरने पर बैठे.

वाराणसीः जिले में रेलवे प्रशासन ने सर्व सेवा संघ भवन (Sarva Seva Sangh) के ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है. इसके बाद से बीते 63 दिनों से इसे बचाने की लड़ाई जारी है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद शनिवार को प्रशासन ने परिसर खाली कराने की भी कवायद शुरू कर दी है. भवन खाली कराने के लिए एडीएम सिटी समेत कई थानों की पुलिस फोर्स मौके पर पहुंची. परिसर को खाली कराने के लिए मौके पर पहुंची पुलिस को देखकर यहां मौजूद लोगों ने भी धरना प्रदर्शन की शुरुआत कर दी है.

गौरतलब है कि वाराणसी में शनिवार सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद प्रशासनिक कार्रवाई की शुरुआत की जा रही है. परिसर में रहने वाले लोगों का मकान खाली कराने के बाद बुलडोजर चलने की भी उम्मीद है. 27 जून 2023 को जिला प्रशासन की ओर से भवन को खाली कराने का आदेश दे दिया गया था. इसके बाद से संघ के सभी सदस्य धरने पर बैठे थे. मौके पर मौजूद परिषद के सदस्य राम धीरज ने कहा, 'प्रशासन हमारे साथ मनमानी कर रही है. हमने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के निर्देशानुसार सिविल कोर्ट में वाद डाला है. शुक्रवार को जज के मौजूद न होने पर सुनवाई नहीं हो सकी थी. ऐसे में शनिवार को बिना किसी सूचना के हमारे भवन को खाली कराने के लिए पुलिस वाले पहुंचे. हमें घरों से बाहर निकाल दिया. हमने जब सवाल किया, तो कह रहे हैं वकील को बुलाइए.'

Varanasi Sarva Seva Sangh case
जिला प्रशासन ने 27 जून 2023 को जारी किया था नोटिस

राम धीरज ने आगे कहा, 'जब हमारा वकील आया तो वो हमें कुछ भी बताने से इंकार कर रहे हैं. हमने उनसे बस कुछ समय का मौका मांगा, ताकि हम यहां जिला जज से वाद पर बात कर सके. यदि यहां से भी से खारिज किया जाता है, तो हम हाईकोर्ट चले जाएं, वहां से भी खारिज किया जाता है, तो हम सुप्रीम कोर्ट चले जाएं. यदि उसके बाद भी मामला खारिज हो जाता है, तो बुलडोजर के जरिए हम सभी को कुचल के इस भवन को नेस्तनाबूत कर दें. हम कुछ नहीं कहेंगे.'

मालिकाना हक को लेकर विवाद दरअसल, सर्व सेवा संघ और उत्तर रेलवे के बीच मालिकाना हक को लेकर बीते माह सुनवाई हुई थी. वाराणसी जिलाधिकारी एस राजलिंगम ने सुनवाई करते हुए रेलवे के हक में फैसला दे दिया. उन्होंने बकायदा संघ की भवन को अवैध निर्माण घोषित करते हुए. जमीन को खाली कराने के निर्देश भी दे दिए. इसके बाद रेलवे प्रशासन ने 30 जून को संघ भवन को ध्वस्त करने की तिथि भी निर्धारित कर दी थी. शुरुआत के क्रम में यहां के लोगों ने जिला प्रशासन के फैसले पर आपत्ति जताते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की. हाईकोर्ट ने इसे खारिज करते हुए मामले की सुनवाई निचली कोर्ट में करने का आदेश दिया. इसके बाद इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जस्टिस ऋषिकेश राय और जस्टिस पंकज मित्तल ने भी वादी पक्ष की याचिका खारिज कर दी थी. अंत में इन्होंने हाईकोर्ट के निर्देशानुसार निचली अदालत में सुनवाई के लिए याचिका डाला. लेकिन, शुक्रवार को जज मौजूद न होने के कारण सुनावई नहीं हो सकी.

प्रियंका गांधी ने जताया विरोधः इस मामले में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी भी प्रशासन की कार्रवाई का विरोध कर रही है. उन्होंने सर्व सेवा संघ परिसर को ढहाने की कार्रवाई को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की विरासत पर हमला बताया. प्रियंका ने कहा, 'ये संघ आचार्य विनोबा भावे, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री और बाबू जगजीवन राम के प्रयासों का परिणाम है. इसका मकसद गांधी जी के विचारों का प्रचार-प्रसार करना था. इन्हीं महापुरुषों के नेतृत्व में यह जमीन भी खरीदी गई थी. आज भाजपाई प्रशासन ने इसे अवैध बताकर कार्रवाई शुरू कर दी है. महात्मा गांधी जी के विचारों और उनकी विरासत पर एक और हमला करने की कोशिश की गई है. हम संकल्प लेते हैं कि महात्मा गांधी की विरासत पर हो रहे हर हमले के खिलाफ डटकर खड़े रहेंगे.'

गांधी की विरासत को बचाने की अपीलः मध्यप्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने इस कार्रवाई का विरोध करते हुए कहा कि गांधी विचार के विरासत वाली संस्था सर्व सेवा संघ, वाराणसी परिसर को बुलडोजर से रौंदने के लिए पुलिस पहुंच चुकी है. मोदी जी दुनिया भर में जाकर गांधी के नामों पर राजनीति करना बंद कीजिए. देश और दुनिया के लिए शर्म की बात है कि जिस गांधी ने देश को आजादी दिलाई. उसी देश में उनके विरासत पर वाराणसी में बुलडोजर की कार्रवाई हो रही है. विदेशों में महात्मा गांधी का केवल शब्दों से सम्मान करते है. लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री काल में और अब प्रधानमंत्री काल में हमेशा उनके विचारों की हत्या की है.

सरकार पर फर्जी दस्तावेज बनाने का आरोपः इस बारे में सर्व सेवा संघ से जुड़े हुए राम धीरज ने बताया कि सेवा भवन को तोड़ना सरकार की साजिश है. हमने रेलवे से 3 भाग में 1960, 1961 और 1970 ने यह जमीन खरीदी थी. हमारे पास ट्रेजरी फंड में जमा किए गए पैसों की रसीद और तमाम दस्तावेज है. लेकिन वर्तमान सरकार और जिला प्रशासन इन दस्तावेजों को मानने से पूरी तरीके से इंकार कर रही है. यही नही फर्जी दस्तावेजों को तैयार कर हमें हमारे भवन से निकालने का षड्यंत्र भी कर रही है. यह सरकार की सुनियोजित प्लानिंग है कि किस तरीके से गांधीवादी विचार को समाप्त किया जाए. हम डर के साये में जी रहे हैं कि कभी भी हमारा यह भवन तोड़ा जा सकता है और हमें बेघर किया जा सकता है.

ऐसे हुई संघ के स्थापनाः 1948 में सर्व सेवा संघ की स्थापना भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में हुई थी. उसके बाद 1960 में यह जमीन ली गई. विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण और लाल बहादुर शास्त्री के निर्देशन में लगभग 62 साल पहले सर्व सेवा संघ के भवन की नींव रखी गई. इसका उद्देश्य महात्मा गांधी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाना और उनके आदर्शों को स्थापित करना था.

क्या है पुराना विवादः संघ के सदस्यों की मानें तो उनका कहना है कि संघ की स्थापना से लेकर 2007 तक यहां का वातावरण ठीक था. यहां किसी भी तरीके की कोई समस्या नहीं थी. लेकिन, इस बीच रेलवे ने अपनी प्रोजेक्ट के लिए जमीन की तलाश शुरू कर दी. इसमें पुराने दस्तावेज मिले, जिस पर सर्व सेवा संघ की नींव रखी गई थी. इस जमीन पर रेलवे का मालिकाना हक बना और उसके बाद रेलवे की ओर से बकायदा इस जमीन को अवैध बताया गया. यहां के भवन पर 2007 में ताला लटका दिया गया. हमने इसको लेकर के जिला न्यायालय में न्याय की गुहार लगाई. उसके बाद कोर्ट ने एक संचालक मंडल बना दिया. कोर्ट ने कहा मंडल की ओर से फैसला लिया जाएगा की भवन किसे मिलेगा. इसके बाद से अब तक यहां के भवनो में ताला लगा हुआ है. यहां पर प्रिंटिंग भी नहीं हो रही है. लाइब्रेरी में रखी गई कई सारी किताबें खराब हो रही है. लेकिन इसके बावजूद भी बात सुनी नहीं गई.

2020 में पुनः शुरू हुआ विवादः संघ के सदस्यों ने बताया कि हैरान करने वाली बात यह है कि रेलवे को खुद नहीं पता था कि यह उनकी जमीन है. हमने दस्तावेजों के जरिए रेलवे को इस बात की जानकारी दी और आज रेलवे हमें उजाड़ने पर तुल गए हैं. 2020 में यह विवाद फिर शुरू हुआ. जब कॉरिडोर को लेकर के विकास की रणनीति बनाई गई. इस विवाद में जिला प्रशासन की ओर से रेलवे के हक में फैसला दिया गया. जबकि हाईकोर्ट में हम उसको लेकर के अर्जी लगाए हुए हैं.

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