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वाराणसी: एक ऐसा राजकीय अस्पताल जहां आने से लगता है डर! - वाराणसी राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल पूरी तरह से जर्जर हो गया है. अस्पताल की छतें इतनी खराब हो गई हैं कि कोई भी मरीज यहां आने से पहले डरता है. डॉक्टर्स भी अपनी जान दांव पर लगाकर ही यहां नौकरी करते हैं.

हास्पिटल बना जर्जर भवन
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Published : Aug 1, 2019, 4:47 PM IST

Updated : Aug 1, 2019, 5:28 PM IST

वाराणसी: पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक ऐसा अस्पताल है जहां पर मरीज इस खौफ से आता ही नहीं कि अस्पताल की जर्जर छतें उसकी जान के लिये खतरनाक साबित न हो जायें. राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर से लेकर मेडिकल स्टाफ तक अपनी जान दांव पर लगाकर ही नौकरी करते हैं.

जानकारी देते संवाददाता.

अस्पताल पूरी तरह से हुआ जर्जर-

इस जर्जर और डरावने अस्पताल में मजबूरी में नौकरी करने पर मजबूर अस्पताल के स्टाफ का कहना है हर रोज लगभग 60 से 70 मरीज अभी भी आ रहे हैं. 25 बेड का हॉस्पिटल अब सिर्फ ओपीडी तक ही सीमित रह गया है. सुबह 7 बजे आने वाले डॉक्टर दो 2 बजने का इंतजार करते हैं ताकि वह जल्द से जल्द इस डरावने और कभी भी गिरने वाले अस्पताल से निकलकर सकुशल अपने घर पहुंच सकें.

हालात ये हैं कि हर रोज अस्पताल के ऊपरी मंजिल की छत कहीं ना कहीं से टूट कर गिर रही है. लकड़ी की मोटी मोटी धरन पूरी तरह से क्रेक हो गई है जो कभी भी पूरी छत को लेकर नीचे आ सकती हैं. इस अस्पताल में स्टाफ की भी कमी है जो शेष स्टाफ हैं वो अपनी सकुशल होने की प्रार्थना के साथ यहां नौकरी कर रहे हैं.

वाराणसी: पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक ऐसा अस्पताल है जहां पर मरीज इस खौफ से आता ही नहीं कि अस्पताल की जर्जर छतें उसकी जान के लिये खतरनाक साबित न हो जायें. राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर से लेकर मेडिकल स्टाफ तक अपनी जान दांव पर लगाकर ही नौकरी करते हैं.

जानकारी देते संवाददाता.

अस्पताल पूरी तरह से हुआ जर्जर-

इस जर्जर और डरावने अस्पताल में मजबूरी में नौकरी करने पर मजबूर अस्पताल के स्टाफ का कहना है हर रोज लगभग 60 से 70 मरीज अभी भी आ रहे हैं. 25 बेड का हॉस्पिटल अब सिर्फ ओपीडी तक ही सीमित रह गया है. सुबह 7 बजे आने वाले डॉक्टर दो 2 बजने का इंतजार करते हैं ताकि वह जल्द से जल्द इस डरावने और कभी भी गिरने वाले अस्पताल से निकलकर सकुशल अपने घर पहुंच सकें.

हालात ये हैं कि हर रोज अस्पताल के ऊपरी मंजिल की छत कहीं ना कहीं से टूट कर गिर रही है. लकड़ी की मोटी मोटी धरन पूरी तरह से क्रेक हो गई है जो कभी भी पूरी छत को लेकर नीचे आ सकती हैं. इस अस्पताल में स्टाफ की भी कमी है जो शेष स्टाफ हैं वो अपनी सकुशल होने की प्रार्थना के साथ यहां नौकरी कर रहे हैं.

Intro:वाराणसी: किसी अस्पताल में मरीज अपनी बीमारी को ठीक करने और अपनी जिंदगी बचाने के लिए पहुंचता है, लेकिन अगर हम आपसे यह कहे कि पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक ऐसा अस्पताल है जहां पर मरीज इस खौफ से नहीं आता कि कहीं वह उस जर्जर अस्पताल की दीवारें या छत गिरने से मुसीबत में ना पड़ जाए और तो और इस अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर से लेकर बाकी मेडिकल स्टाफ भी मजबूरी में नौकरी कर अपनी जिंदगी दांव पर लगा रहे हैं तो सुनकर आश्चर्य करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि वाराणसी स्थित राजकीय आयुर्वेदिक अस्पताल सरकारी नजरअंदाजी का जीता जागता उदाहरण है. इस अस्पताल की जर्जर दीवारें और हर दिन भरभरा कर गिर रही छत इसे डरावना बना चुकी हैं और यहां काम करने वाले स्टाफ अब खौफ के साए में नौकरी करने को मजबूर हैं.

ओपनिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र


Body:वीओ-01 दरअसल पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल के ठीक बगल में राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय नगर क्षेत्र में 25 बेड के अस्पताल की स्थिति इतनी ज्यादा खराब है कि यहां आने वाला हर मरीज सही सलामत जिंदा बचकर जाने की उम्मीद के साथ इस अस्पताल के अंदर कदम रखता है. सुबह 7:00 बजे आने वाले डॉक्टर दो 2:00 बजने का इंतजार करते हैं, ताकि वह जल्द से जल्द इस डरावने और कभी भी गिरने वाले अस्पताल से निकलकर सकुशल अपने घर पहुंच सके. हालात ये हैं कि हर रोज अस्पताल के ऊपरी मंजिल की छत कहीं ना कहीं से टूट कर गिर रही है लकड़ी की मोटी मोटी धरन पूरी तरह से क्रेक हो गई है जो कभी भी पूरी छत को लेकर नीचे आ सकती हैं. इतना ही नहीं इस अस्पताल में स्टाफ की भी कमी है जो बचाकुचा स्टाफ है वह सकुशल होने की प्रार्थना के साथ यहां नौकरी कर रहा है और हर पल बस यही मना रहा है, जिंदगी सुरक्षित रहे ताकि दूसरों की जिंदगी भी सुरक्षित रखने का जज्बा इनमें कायम रहे.


Conclusion:वीओ-02 1972 में बनाई गई इस को आयुर्वेदिक विद्यालय के रूप में एक संस्था द्वारा संचालित किया जा रहा था, लेकिन 1975 में संस्था ने इसे प्रदेश सरकार को दान में दिया और इस बिल्डिंग में शुरू हुआ राजकीय आयुर्वेदिक हॉस्पिटल 14 स्टाफ की मौजूदगी के साथ शुरू हुए इस अस्पताल में 4 स्टाफ रिटायर्ड हो चुके हैं और अब 10 ही बचे हैं, जो इस जर्जर और डरावने अस्पताल में मजबूरी में नौकरी करने पर मजबूर अस्पताल के स्टाफ का कहना है हर रोज लगभग 60 से 70 मरीज अभी भी आ रहे हैं 25 बेट के हॉस्पिटल को अब सिर्फ ओपीडी तक समेट दिया गया है, क्योंकि ऊपर जहां कमरों में मरीज भर्ती होते थे उसकी जमीन अब धीरे-धीरे बैठकर नीचे गिरती जा रही है जिसकी वजह से अब या अस्पताल सिर्फ नाम करा गया 2008 के बाद इस अस्पताल में एक भी मरीज को एडमिट नहीं किया गया है.

बाईट- प्रेमलता सिंह, स्टाफ नर्स, राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय
बाईट- हजारीलाल मौर्या, चीफ फार्मेसिस्ट, राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय

क्लोजिंग पीटीसी- गोपाल मिश्र

9839809074
Last Updated : Aug 1, 2019, 5:28 PM IST
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