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बनारसी पान दे रहा बनारसियों को खतरनाक बीमारी, बढ़ रही मुंह के कैंसर के मरीजों की संख्या

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Published : Oct 17, 2020, 12:24 AM IST

यूपी के वाराणसी में बनारसी पान अब बनारसियों के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है. बनारस में मुंह के कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. होमी भाभा कैंसर संस्थान के 2017 में किए गए सर्वे के अनुसार, पुरुषों में होने वाला हर तीन में से एक कैंसर मुंह से संबंधित है.

बनारसी पान दे रहा बनारसियों को खतरनाक बीमारी
बनारसी पान दे रहा बनारसियों को खतरनाक बीमारी

वाराणसी: 'खईके पान बनारस वाला खुल जाए बंद अकल का ताला' बंद अकल के ताले को खोलने के लिए बनारस के पान की वाहवाही फिल्मों से लेकर किताबों तक में हुई है, लेकिन बनारसी पान के साथ खाई जाने वाली तंबाकू और बाजार में बिक रहा गुटखा पान मसाला अब बनारसियों के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है. शायद यही वजह है कि बनारस में मुंह के कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. यह हम नहीं कह रहे बल्कि महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर केंद्र और होमी भाभा कैंसर संस्थान की तरफ से 2017 में किए गए सर्वे के आंकड़े बता रहे हैं. संस्थान की तरफ से जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री रिपोर्ट में यह साफ हुआ है कि बनारस के शहरी इलाके में मुंह के कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है.

हर तीन में एक कैंसर मुंह का
वाराणसी में पुरुषों में होने वाला हर तीन में से एक कैंसर मुख से संबंधित है. यहां पुरुषों में मुख का कैंसर जहां सबसे अधिक है, वहीं महिलाओं में स्तन कैंसर, गर्भाशय-ग्रीवा और पित्त की थैली का कैंसर प्रमुख है. यह बात वाराणसी स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर द्वारा किए गए जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री (पॉपुलेशन बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री) की रिपोर्ट 2017 में सामने आई है.

हर ब्लॉक में हुआ सर्वे
वाराणसी में कैंसर की स्थिति और इससे होने वाली मौतों को समझने के लिए 1 अप्रैल 2017 से टाटा मेमोरियल सेंटर, सर सुंदरलाल हॉस्पिटल (बीएचयू) और जिला स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सहयोग से यहां जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री की शुरुआत की गई है, जो इस तरह की उत्तर प्रदेश की पहली रजिस्ट्री है. इस रजिस्ट्री में वाराणसी के 8 ब्लॉक ( अराजीलाईन, बड़ागांव, चिरईगांव, चोलापुर, हरहुआ, काशी विद्यापीठ, पिंडरा और सेवापुरी) के 1295 गांव, नगर महापालिका के 90 वॉर्ड्स, के साथ ही न्यू सेंसस टाउन (एनसीटी), गंगापुर नगर पंचायत और रामनगर पालिका में रहने वाले लगभग 40 लाख लोग शामिल हैं, जिसकी 57 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में है.

लगाई गई लंबी चौड़ी टीम
वाराणसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने जिले के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों को कैंसर मरीजों का आंकड़ा पीबीसीआर को उपलब्ध कराने का आदेश दिया था. इसके बाद कैंसर मरीजों का आंकड़ा प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित टीम के सदस्य समय-समय पर अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों, लैब्स, ग्रामीण और शहरी इलाकों का दौरा कर जरूरी जानकारी इकट्ठा किए. टीम ने 6700 सरपंच, आशा वर्कर, एएनम, आंगनबाड़ी वर्कर, स्कूल टीचर इत्यदि लोगों से व्यक्तिगत स्तर पर मुलाकात कर जानकारी जुटाने का भी काम किया. इस दौरान कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए गए.

होमी भाभा कैंसर अस्पताल के निदेशक डॉ. सत्यजीत प्रधान से खास बातचीत.

महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा
शुक्रवार को पी.बी.सी.आर. की पहली रिपोर्ट जारी की गई, जिसके अनुसार, 2017 में वाराणसी में कैंसर के कुल 1907 मामले पंजीकृत हुए थे. इनमें 1058 पुरुष, जबकि 849 महिला मरीज थीं. वहीं 2017 में कैंसर से वाराणसी में कुल 762 लोगों की मौत हुई थी. कैंसर से जान गंवाने वालों में 429 पुरुष, जबकि 333 महिलाएं थीं. कैंसर दर की बात करें, तो वाराणसी में प्रति एक लाख की आबादी पर पुरुषों में इसकी संख्या 59.2, जबकि महिलाओं में 52.1 रही, जबकि कैंसर से होने वाली मौत की बात करें, तो पुरुषों में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर यह 24.4, वहीं महिलाओं में 20.8 रही. मरीजों के आंकड़ों के साथ ही यह रिपोर्ट उनके इलाज पर भी केंद्रित रही है. इलाज लेने की बात करें, तो पंजीकृत मरीज होमी भाभा कैंसर अस्पताल, सर सुंदरलाल हॉस्पिटल (बीएचयू) सहित वाराणसी के निजी अस्पतालों में इलाज ले रहे थे.

शहरी क्षेत्र में ज्यादा मरीज
वहीं कई मरीज इलाज के लिए प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, चंडीगढ़ और मुंबई भी जाते थे. पुरुषों में होने वाले कैंसर में मुख का कैंसर सबसे अधिक है, रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों में हर तीन मामलों में से एक कैंसर मुख से संबंधित रहा. ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्र में मुख के कैंसर के अधिक मामले सामने आए. वहीं महिलाओं में गर्भाशय-ग्रीवा का कैंसर शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण इलाकों में दोगुना देखने को मिला है.

महिलाओं में गर्भाशय और ब्रेस्ट, पुरुषों में मुंह का कैंसर ज्यादा
महामना कैंसर केंद्र और होमी भाभा कैंसर अस्पताल के निदेशक डॉ. सत्यजीत प्रधान ने कहा कि वाराणसी में कैंसर के मामलों में मुख का कैंसर, स्तन का कैंसर, और गर्भाशय-ग्रीवा का कैंसर प्रमुख है. उनका कहना है यह पहले से ही साफ है कि पान गुटखा और मसाला कैंसर का प्रमुख कारण हो सकता है, क्योंकि लोगों में पान और गुटखे के साथ मसाले को मुंह में दबा कर सो जाने की आदत होती है, जो खतरनाक हो जाती है. ऐसी स्थिति में बनारस में पान खाने की आदत इसकी बड़ी वजह हो सकती है. इनका समय रहते रोकथाम किया जा सकता है, हालांकि इसके लिए कई तरह के जागरूकता अभियान की जरूरत है. वहीं इन इलाकों में तंबाकू का सेवन भी बहुत अधिक है. ऐसे में लोगों को तंबाकू के दुष्प्रभाव के बारे में भी प्रभावी तरीके से बताने की जरूरत है. स्कूल, कॉलेजों के साथ ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर काम करने वाले लोगों के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है. समय रहते कैंसर की पहचान के लिए प्रशासन की ओर से जांच सुविधा को मजबूत किया जाना भी अपेक्षित है.

बनारस में 2017 से अब तक 3000 मौतें
रिपोर्ट के अनुसार, राज्य स्वास्थ्य विभाग को उपरोक्त सुझावों को ध्यान में रखते हुए व्यापक स्तर पर अभियान चलाना चाहिए, इस अभियान को कारगर बनाने के लिए टाटा मेमोरियल सेंटर राज्य स्वास्थ्य विभाग को जरूरत पड़ने पर तकनीकी मदद देने के लिए हमेशा तैयार है. अप्रैल 2017 से लेकर सितंबर 2020 तक पीबीसीआर के तहत कुल 8500 कैंसर के मामले दर्ज हो चुके हैं, जबकि 3000 से अधिक लोगों की कैंसर के कारण मौत भी हो चुकी है.

वाराणसी: 'खईके पान बनारस वाला खुल जाए बंद अकल का ताला' बंद अकल के ताले को खोलने के लिए बनारस के पान की वाहवाही फिल्मों से लेकर किताबों तक में हुई है, लेकिन बनारसी पान के साथ खाई जाने वाली तंबाकू और बाजार में बिक रहा गुटखा पान मसाला अब बनारसियों के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा है. शायद यही वजह है कि बनारस में मुंह के कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. यह हम नहीं कह रहे बल्कि महामना पंडित मदन मोहन मालवीय कैंसर केंद्र और होमी भाभा कैंसर संस्थान की तरफ से 2017 में किए गए सर्वे के आंकड़े बता रहे हैं. संस्थान की तरफ से जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री रिपोर्ट में यह साफ हुआ है कि बनारस के शहरी इलाके में मुंह के कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है.

हर तीन में एक कैंसर मुंह का
वाराणसी में पुरुषों में होने वाला हर तीन में से एक कैंसर मुख से संबंधित है. यहां पुरुषों में मुख का कैंसर जहां सबसे अधिक है, वहीं महिलाओं में स्तन कैंसर, गर्भाशय-ग्रीवा और पित्त की थैली का कैंसर प्रमुख है. यह बात वाराणसी स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर द्वारा किए गए जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री (पॉपुलेशन बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री) की रिपोर्ट 2017 में सामने आई है.

हर ब्लॉक में हुआ सर्वे
वाराणसी में कैंसर की स्थिति और इससे होने वाली मौतों को समझने के लिए 1 अप्रैल 2017 से टाटा मेमोरियल सेंटर, सर सुंदरलाल हॉस्पिटल (बीएचयू) और जिला स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सहयोग से यहां जनसंख्या आधारित कैंसर रजिस्ट्री की शुरुआत की गई है, जो इस तरह की उत्तर प्रदेश की पहली रजिस्ट्री है. इस रजिस्ट्री में वाराणसी के 8 ब्लॉक ( अराजीलाईन, बड़ागांव, चिरईगांव, चोलापुर, हरहुआ, काशी विद्यापीठ, पिंडरा और सेवापुरी) के 1295 गांव, नगर महापालिका के 90 वॉर्ड्स, के साथ ही न्यू सेंसस टाउन (एनसीटी), गंगापुर नगर पंचायत और रामनगर पालिका में रहने वाले लगभग 40 लाख लोग शामिल हैं, जिसकी 57 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में है.

लगाई गई लंबी चौड़ी टीम
वाराणसी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने जिले के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों को कैंसर मरीजों का आंकड़ा पीबीसीआर को उपलब्ध कराने का आदेश दिया था. इसके बाद कैंसर मरीजों का आंकड़ा प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षित टीम के सदस्य समय-समय पर अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों, लैब्स, ग्रामीण और शहरी इलाकों का दौरा कर जरूरी जानकारी इकट्ठा किए. टीम ने 6700 सरपंच, आशा वर्कर, एएनम, आंगनबाड़ी वर्कर, स्कूल टीचर इत्यदि लोगों से व्यक्तिगत स्तर पर मुलाकात कर जानकारी जुटाने का भी काम किया. इस दौरान कई तरह के जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए गए.

होमी भाभा कैंसर अस्पताल के निदेशक डॉ. सत्यजीत प्रधान से खास बातचीत.

महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा
शुक्रवार को पी.बी.सी.आर. की पहली रिपोर्ट जारी की गई, जिसके अनुसार, 2017 में वाराणसी में कैंसर के कुल 1907 मामले पंजीकृत हुए थे. इनमें 1058 पुरुष, जबकि 849 महिला मरीज थीं. वहीं 2017 में कैंसर से वाराणसी में कुल 762 लोगों की मौत हुई थी. कैंसर से जान गंवाने वालों में 429 पुरुष, जबकि 333 महिलाएं थीं. कैंसर दर की बात करें, तो वाराणसी में प्रति एक लाख की आबादी पर पुरुषों में इसकी संख्या 59.2, जबकि महिलाओं में 52.1 रही, जबकि कैंसर से होने वाली मौत की बात करें, तो पुरुषों में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर यह 24.4, वहीं महिलाओं में 20.8 रही. मरीजों के आंकड़ों के साथ ही यह रिपोर्ट उनके इलाज पर भी केंद्रित रही है. इलाज लेने की बात करें, तो पंजीकृत मरीज होमी भाभा कैंसर अस्पताल, सर सुंदरलाल हॉस्पिटल (बीएचयू) सहित वाराणसी के निजी अस्पतालों में इलाज ले रहे थे.

शहरी क्षेत्र में ज्यादा मरीज
वहीं कई मरीज इलाज के लिए प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, चंडीगढ़ और मुंबई भी जाते थे. पुरुषों में होने वाले कैंसर में मुख का कैंसर सबसे अधिक है, रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषों में हर तीन मामलों में से एक कैंसर मुख से संबंधित रहा. ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्र में मुख के कैंसर के अधिक मामले सामने आए. वहीं महिलाओं में गर्भाशय-ग्रीवा का कैंसर शहरी क्षेत्र की तुलना में ग्रामीण इलाकों में दोगुना देखने को मिला है.

महिलाओं में गर्भाशय और ब्रेस्ट, पुरुषों में मुंह का कैंसर ज्यादा
महामना कैंसर केंद्र और होमी भाभा कैंसर अस्पताल के निदेशक डॉ. सत्यजीत प्रधान ने कहा कि वाराणसी में कैंसर के मामलों में मुख का कैंसर, स्तन का कैंसर, और गर्भाशय-ग्रीवा का कैंसर प्रमुख है. उनका कहना है यह पहले से ही साफ है कि पान गुटखा और मसाला कैंसर का प्रमुख कारण हो सकता है, क्योंकि लोगों में पान और गुटखे के साथ मसाले को मुंह में दबा कर सो जाने की आदत होती है, जो खतरनाक हो जाती है. ऐसी स्थिति में बनारस में पान खाने की आदत इसकी बड़ी वजह हो सकती है. इनका समय रहते रोकथाम किया जा सकता है, हालांकि इसके लिए कई तरह के जागरूकता अभियान की जरूरत है. वहीं इन इलाकों में तंबाकू का सेवन भी बहुत अधिक है. ऐसे में लोगों को तंबाकू के दुष्प्रभाव के बारे में भी प्रभावी तरीके से बताने की जरूरत है. स्कूल, कॉलेजों के साथ ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर काम करने वाले लोगों के लिए व्यापक स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है. समय रहते कैंसर की पहचान के लिए प्रशासन की ओर से जांच सुविधा को मजबूत किया जाना भी अपेक्षित है.

बनारस में 2017 से अब तक 3000 मौतें
रिपोर्ट के अनुसार, राज्य स्वास्थ्य विभाग को उपरोक्त सुझावों को ध्यान में रखते हुए व्यापक स्तर पर अभियान चलाना चाहिए, इस अभियान को कारगर बनाने के लिए टाटा मेमोरियल सेंटर राज्य स्वास्थ्य विभाग को जरूरत पड़ने पर तकनीकी मदद देने के लिए हमेशा तैयार है. अप्रैल 2017 से लेकर सितंबर 2020 तक पीबीसीआर के तहत कुल 8500 कैंसर के मामले दर्ज हो चुके हैं, जबकि 3000 से अधिक लोगों की कैंसर के कारण मौत भी हो चुकी है.

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