वाराणसी : संस्कृत और ज्ञान की नगरी काशी में सतत विकास के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. डीएस चौहान ने किया. जिले के एसएमएस कॉलेज में इस कार्यक्रम का आयोजन किया. लगभग 200 से अधिक छात्रों ने अपने शोध पत्र को पढ़ा. और संस्कृत के महत्व को जाना.
पूर्व कुलपति प्रो. डीएस चौहान ने कहा कि प्राचीन सनातन वैदिक परम्परा सदैव से पर्यावरणीय व्यवस्था के अनुकूल ज्ञान के सम्प्रेषण पर केंद्रित रही है. वैदिक मन्त्रों में पर्यावरण के संरक्षण को प्रोत्साहित करने के अनेक उदाहरण मिलते हैं. प्राचीन भारतीय ज्ञान परम्परा में निहित लोकहित के संदर्भों को रेखांकित करते हुए. प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को रोकने के लिए ही इन संसाधनों में 'शान्ति' तत्व का आह्वान किया गया है. आज ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में समय की मांग है कि न सिर्फ वैदिक ग्रंथमाला में सन्निहित तत्वों का समकालीन परिप्रेक्ष्य में खोज की जाए, बल्कि इनको पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित करने पर भी जोर दिया जाए.
कॉन्फ्रेंस में विशिष्ट अतिथि सांस्कृतिक भूगोल और विरासत अध्ययन विभाग, बीएचयू के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राणा पीबी सिंह ने कहा कि सनातन परम्परा में शिव सिर्फ ईश्वर नहीं हैं, बल्कि एक सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है. वाराणसी शहर की भौगोलिक मैपिंग के बारे में बताते हुए प्रोफ़ेसर सिंह ने कहा कि यह शहर रिंगनुमा और तीन जगह पर मुड़ा हुआ है. अब यदि इन तीरों को तीर बनाकर नीचे गंगा तट से जोड़ा जाए तो यह त्रिशूलनुमा होगा, यानी जो पुराणों में कहा गया है वह भौगोलिक रूप से बिलकुल सटीक है. उन्होंने बताया कि भारत की तमाम प्राचीन धरोहरों के बारे में भौगोलिक मैपिंग और जियो मैग्नेटिक विज्ञान द्वारा यह पता लगाया जा चुका है कि दरअसल इन धरोहरों में समूचा कॉस्मिक विज्ञान अंतर्निहित है.
विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के सदस्य सीएम सिंह ने कहा कि आधुनिक विज्ञान को वैदिक ज्ञान के परिप्रेक्ष्य से देखना जरूरी है. दरअसल वेदों के अनुवाद को सिर्फ धार्मिक क्रिया-कलापों के संबंध में ही देखा गया है. 20वीं सदी में दो महान सिद्धांत सामने आए रिलेटिविटी का सिद्धांत और क्वांटम मैकेनिज़्म दोनों का स्थान और समय से गहरा संबंध है. यही स्थान और समय की जुगलबंदी का रहस्य वैदिक ग्रंथों में भी मिलता है जिसमें ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की बात कही गई है.
प्रोफ़ेसर पीएन झा ने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा अकूट ज्ञान का क्षेत्र है. कोई ऐसी विधा नहीं है जो उसके अंतर्गत निहित ना हो. ज्ञानन परंपरा का असली क्षेत्र संस्कृत और कुछ तमिल में है. संस्कृत विश्व का सबसे बड़ी और पहली भाषा है. भारतीय ज्ञान को पाने के लिए संस्कृत की चाबी जरूरी है. इसलिए इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया है जहां पर विभिन्न संस्कृत के विद्वान अपनी बात रख रहे हैं. उदघाटन सत्र का संचालन डॉ. अभय सिंह चौहान ने किया. दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के पहले दिन तीन अलग अलग तकनीकी सत्रों का आयोजन भी हुआ. जिसमें देश-विदेश से आए लगभग 200 प्रतिभागियों ने शोध-पत्र प्रस्तुत किए. इस अवसर एसएमएस वाराणसी के अधिशासी सचिव डॉ. एमपी सिंह, कुलसचिव संजय गुप्ता, कॉन्फ्रेंस के समन्वयक प्रो. अविनाश चंद्र सुपकर, प्रो. संदीप सिंह, प्रोय राजकुमार सिंह सहित समस्त अध्यापक और कर्मचारी उपस्थित रहे.
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