वाराणसी: बनारस शहर धर्म और अध्यात्म के लिए विश्व भर में विख्यात है, लेकिन जिले को राजनैतिक दृष्टि से भी बड़ा नाम मिला है. दरअसल, नरेंद्र मोदी लगातार दो बार बनारस संसदीय क्षेत्र से चुनकर संसद पहुंचे हैं. ज्यादातर यही अनुमान लगाया जाता है कि जिस क्षेत्र से देश का मुखिया चुना गया हो, वहां विकास की धारा अनायास ही बहेगी. हालांकि ऐसा कम ही देखने को मिलता है. ऐसा ही हाल है कुछ बनारस शहर का, जिस काशी ने देश को प्रधानमंत्री दिया, वह इन दिनों समस्याओं से दो-चार हो रहा है. यहां कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जो लंबे वक्त से काशी वासियों के लिए परेशानी का सबब बनी हुई हैं.
वाराणसी में कचरा निस्तारण की व्यवस्था बेहद खराब है. पूर्व में समाजवादी पार्टी की सरकार में प्राइवेट कंपनी ए टू जेड के हाथों डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के काम को बखूबी अंजाम दिया गया. समाजवादी सरकार में घर से कूड़ा उठाए जाने और सड़कों की साफ-सफाई की व्यवस्था थी, जिससे सड़कें और गलियां साफ सुथरी नजर आती थी, जो काशी वासियों को राहत महसूस कराती थी, लेकिन सत्ता परिवर्तन होते ही कचरा प्रबंधन पर ग्रहण लग गया. साफ-सफाई से लेकर कचरा निस्तारण का काम लगभग ठप हो गया, जिसकी वजह से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. सामान्य दिनों से बुरी हालत कोरोना काल में देखने को मिल रही है. लोगों का कहना है नगर निगम ने डोर टू डोर कचरा कलेक्शन की व्यवस्था खत्म कर दी है. इस महामारी के दौर में घरों में कई दिनों तक कूड़ा रखने से सड़ रहा है, जिससे बीमारियां पनपने का खतरा बना हुआ है. वहीं सड़क पर कूड़ा फेंकने के बाद जुर्माने का दंश झेलना महंगा साबित हो रहा है.
आंकड़ों के मुताबिक, वाराणसी शहर में प्रतिदिन 550 मैट्रिक टन कचरा निकलता है. 75 फीसदी कूड़ा गलियों-सड़कों से इकट्ठा किया जाता है. नियमित रूप से 1040 सफाईकर्मी सफाई व्यवस्था के लिए लगाए गए हैं. साथ ही 1000 संविदा कर्मियों को सफाई की जिम्मेदारी सौंपी गई है. करीब 700 कर्मचारी आउटसोर्सिंग के जरिए साफ-सफाई में हाथ बंटा रहे हैं.
निगम के अधिकारियों की दावा है कि शासन से कचरा प्रबंधन की स्वीकृति मिल चुकी है. इस दिशा में सर्वे पूरा होने के बाद काम शुरू होगा. बनारस देश का पहला ऐसा शहर बनेगा, जहां गीले और सूखे कूड़े को अलग-अलग उठाना संभव हो पाएगा. हालांकि डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन के लिए लोगों को लगभग हर महीने 96 रुपये का भुगतान करना पड़ेगा.