वाराणसी: अक्सर देखा जाता है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद तमाम परेशानियों की वजह से छात्र अपनी उपाधि लेने के लिए विश्वविद्यालय में नहीं पहुंच पाते हैं. इसकी वजह से उनकी उपाधियां विश्वविद्यालय के कागजों के गट्ठरों में बंधी रह जाती हैं. इन डिग्रियों को बच्चों तक सहजता से उपलब्ध कराने के लिए वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ने एक नई शुरुआत की है. इस नई शुरुआत के तहत आधुनिक और प्राचीन दोनों तकनीकों की सहायता ली जा रही है. इन तकनीकों के जरिए दीक्षांत के पहले ही विद्यार्थी लगभग 10 साल पुरानी डिग्री भी घर बैठे ले सकते हैं.
बता दें कि बीते दिनों कुलाधिपति आनंदीबेन पटेल ने उत्तर प्रदेश के सभी राज्य स्तरीय विश्वविद्यालयों को यह निर्देश दिया था कि वह विश्वविद्यालय में लंबे समय से पड़ी डिग्रियों को छात्र तक उपलब्ध कराकर इस मामले को निस्तारित करें. इसके बाद वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में इसकी शुरुआत की गई. इस नई शुरुआत के तहत विश्वविद्यालय अब सहज उपायों से विद्यार्थियों तक डिग्रियां पहुंचा रहा है. इसके लिए विश्वविद्यालय ने दो अलग-अलग प्रारूप तैयार किए हैं. पहले प्रारूप के तहत जहां डिजिटली बच्चों को डिग्रियां मिल रही हैं, वहीं दूसरा प्रारूप बच्चों को घर पर डिग्रियां उपलब्ध करा रहा है.
घर बैठे 10 साल पुरानी डिग्री भी ले सकते हैं विद्यार्थी
इस बारे में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एके त्यागी ने बताया कि डिग्रियों के निस्तारण को लेकर हमें राजभवन से निर्देश मिला था. इसके लिए हमने त्वरित रूप से डीजी लॉकर की व्यवस्था की है. इसमें लगभग 10 साल पुरानी डिग्रियां उपलब्ध हैं. इसके लिए हर बच्चे को यूजर आईडी और पासवर्ड उपलब्ध कराया गया है. चूंकि अब सरकार ने भी डिजिटल लॉकर से डाउनलोड की गई डिग्रियों को वैध करार दे दिया है. इस वजह से बच्चे आसानी से डिजी लॉकर में जा करके अपना यूजर नेम पासवर्ड डाल करके अपनी डिग्री को डाउनलोड कर सकते हैं.
स्पीड पोस्ट भी कर रहा मदद
उन्होंने बताया कि इसके साथ ही हमने दूसरे तरीके में डाक का भी सहारा लिया है. साथ ही एक प्रोफार्मा भी तैयार किया है. उन्होंने बताया कि इस प्रोफार्मा के तहत विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर एक फॉर्म उपलब्ध कराया गया है. इस फॉर्म में बच्चे को अपनी सारी डिटेल पासिंग ईयर लिख करके सबमिट करना है. सबमिट करने के बाद विश्वविद्यालय बच्चे को उसकी उपाधि उपलब्ध करा देता है. इसके साथ ही यदि कोई स्पीड पोस्ट के जरिए भी अपनी उपाधि अपने घर तक लेना चाहता है तो वह भी विश्वविद्यालय को सूचित कर सकता है. अपना पता दे सकता है. विश्वविद्यालय बच्चे को उसके पते पर डिग्री उपलब्ध करा देगा.
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3 लाख डिग्रियां बच्चों तक कराई गई उपलब्ध
उन्होंने बताया कि सबसे पहले हमने डाक का सहारा लिया था. लेकिन, 80 फीसदी बच्चों के पते बदले हुए थे. इस वजह से वह डिग्रियां वापस आ रही थीं. इसलिए हमने नए तरीके का प्रयोग किया है. गौरतलब हो कि इन तरीकों के प्रयोग से विश्वविद्यालय के जरिए अब तक लगभग तीन लाख से ज्यादा डिग्रियों को वितरित कर दिया गया है और आगामी दीक्षांत से पहले बची हुईं डिग्रियों को बच्चों तक उपलब्ध कराने की योजना विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा बनाई जा रही है.