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आसान नहीं वाराणसी में पार्षद की राह, अपराध जगत में भारी पड़ा यह पद

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Published : Dec 15, 2022, 1:48 PM IST

नगर निकाय चुनावों को लेकर इन दिनों उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारे में काफी हलचल है. कोर्ट ने अभी तारीखों को लेकर कुछ साफ नहीं किया है. लेकिन, छुटभैया नेता से लेकर अपराधी तक अपनी धाक जमाने की कोशिश में जुट गए हैं.

वाराणसी नगर निकाय चुनाव
वाराणसी नगर निकाय चुनाव
वाराणसी नगर निकाय चुनाव को लेकर स्पेशल रिपोर्ट

वाराणसी: इन दिनों उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारे में काफी हलचल है. क्योंकि जल्द ही नगर निकाय चुनाव हो सकते हैं. हालांकि, कोर्ट ने अभी इसकी तारीखों को लेकर कुछ साफ नहीं किया है. लेकिन, माना जा रहा है कि जनवरी में निकाय चुनाव की डेट घोषित हो सकती है. यही वजह है कि हर जिले में इस समय पार्षद पद पर जोर आजमाइश तेज हो गई है. क्षेत्र का छुटभैया नेता हो या क्षेत्रीय दबंग या फिर संबंधित थानों के हिस्ट्रीशीटर कहीं न कहीं से हर कोई इस राजनीति की पहली सीढ़ी के जरिए धनबल बाहुबल को मजबूत करते हुए राजनीतिक गलियारे में अपनी धाक बढ़ाने की कोशिशों में जुट गया है. लेकिन, यही कोशिश कई बार अपराध जगत में हंगामे की वजह बन जाती है.

खास तौर पर पूर्वांचल के सबसे बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हो चुके वाराणसी में तो अपराध और राजनीति के संगम के बीच अक्सर पार्षद पद पर जीतने वाले प्रत्याशी या तैयारी कर रहे प्रत्याशियों की हत्याओं ने पूर्वांचल के राजनीतिक गलियारे में काफी हलचल मचाई. इसने पूरे प्रदेश में प्रभाव भी डाला. इसके बाद यह सवाल उठना लाजमी है कि निकाय चुनाव जिसे मिनी सदन के लिए चुने हुए जनप्रतिनिधियों का महत्वपूर्ण इलेक्शन माना जाता है, आखिर उसी मिनी सदन के रास्ते अपराध जगत में सक्रिय अपराधी अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि को मजबूत करने या फिर अपने पुराने बदले को पूरा करने के लिए कैसे इन चुनावों का उपयोग करते हैं.

वाराणसी नगर निगम कार्यालय
वाराणसी नगर निगम कार्यालय

पार्षदी का चुनाव राजनीति की नर्सरी कहलाता है. नर्सरी में इच्छित पौधों के साथ खरपतवार भी उग आते हैं. बनारस के पार्षदी चुनावों का इतिहास भी कुछ ऐसा ही है. आरक्षण सूची जारी होते ही यूपी में नगर निगम चुनावों का बिगुल बज गया है और गली-गली, घर-घर पार्षद बनने के इच्छुक दावेदारों की दौड़ शुरू हो चुकी है. लेकिन, इन सब के बीच एक बात याद रखने वाली है कि काशी में पार्षद होना आसान काम नहीं है. पूर्व में वाराणसी में कई पार्षदों की हत्या हो चुकी है. हत्याओं के पीछे मोटे कारण देखें तो पाएंगे कि ज्यादातर मामले वर्चस्व और अपराध जगत की मारामारी से जुड़े हुए हैं.

पार्षद जैसे छोटे चुनावों में अपना बड़ा रसूख बनाने की कोशिश में जुटे नेता हों या अपराध जगत में लिप्त रहने वाले शातिर इन चुनावों के जरिए सक्रिय राजनीति में आने की तैयारी कर रहे लोग कहीं न कहीं से राजनीति की इस पहली सीढ़ी का उपयोग अपने-अपने हिसाब से करते हैं. इस बारे में एक्सपर्ट और काफी लंबे वक्त तक पूर्वांचल के अपराध जगत को काफी करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार पवन सिंह का मानना है कि मिनी सदन के जरिए अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि को मजबूत करने और अपनी पहचान बनाने के उद्देश्य से एक एन्ट्री पॉइंट के रूप में इन चुनावों का उपयोग दबंग और अपराध जगत से जुड़े लोग अक्सर करते रहे हैं.

वाराणसी में बीजेपी कार्यालय
वाराणसी में बीजेपी कार्यालय

पवन सिंह का कहना है कि 1974 में जब 15 सालों तक निकाय चुनाव नहीं हुए और 1989 में फिर से चुनावों की शुरुआत हुई तो कहीं न कहीं से इसका पूरा फायदा क्षेत्रीय दबंग और अपराधी किस्म के लोगों ने जमकर उठाया. 1989 के चुनावों में डिप्टी मेयर के पद पर अनिल सिंह और पार्षद के रूप में अब्दुल कलाम का चुनकर आना कहीं न कहीं से इसकी शुरुआत मानी जा सकती है. अपराध जगत में यह बड़े नाम जाने जाते थे. लेकिन, यह अब माननीय बनने की ओर अग्रसर हो रहे थे. इसके बाद इसकी शुरुआत अपराध और राजनीति के रूप में पूर्वांचल की बड़ी राजनीतिक धमक के साथ दिखाई देने लगी.

पार्षद के छोटे चुनावों के बाद कई नेता विधायक तक बने. इसमें उदय लाल मौर्या, अब्दुल कलाम जैसे पार्षद शामिल थे जो इनका कद बढ़ाने के साथ ही इनके बाहुबल और धनबल दोनों को बढ़ाने का काम कर रहा था. इसने इनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ अपराध जगत में भी इनके दुश्मनों को बढ़ाना शुरू कर दिया. इसके बाद शुरू हुआ हत्याओं का दौर. दालमंडी में पार्षद की हत्या हो या फिर तुलसीपुर में पार्षद शिव सेठ की दुर्दांत तरीके से राह चलते गोली मारकर की गई हत्या. रक्षा क्षेत्र में अखाड़े के पास पार्षद विजय वर्मा की हत्या ने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी थी. इन हत्याओं ने पूरे सिस्टम पर ही सवाल उठा दिया.

वरिष्ठ पत्रकार पवन सिंह का कहना है कि पार्षद पद पर जीतने के बाद हत्याओं के दौर में कहीं न कहीं से वर्चस्व को भी बढ़ावा दिया गया. उन्होंने कहा कि कितनी घटनाएं ऐसी हैं, जिसमें हत्या करने वाले और इन हत्याओं में शामिल लोग ही बाद में उस क्षेत्र में फिर से पार्षद चुनकर आए. जो क्षेत्र में उनके कद को बढ़ाने के साथ ही मिनी सदन में भीम के वर्चस्व को बढ़ाने का काम करता रहा.

वाराणसी में कब-कब हुई पार्षदों की हत्या

  • सन 2003 में दालमंडी में अल सुबह पार्षद कमाल अंसारी की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी. हत्या के कुछ ही दिन बाद हत्या में वांछित चल रहे हसीन और आलम को पुलिस ने मंडुआडीह थाना क्षेत्र के एफसीआई गोदाम के पास मुठभेड़ में ढेर कर दिया था.
  • 2003 में ही मुकीमगंज से पार्षद रहे अनिल यादव को बदमाशों ने सिगरा थाना क्षेत्र के फातमान रोड पर दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया.
  • पूर्व में उपनगर प्रमुख रहे दबंग अनिल सिंह के खास साथी सुरेश गुप्ता की जैतपुरा क्षेत्र में मुन्ना बजरंगी के शूटरों ने हत्या कर दी थी. कहा जाता है कि बदमाश सुरेश गुप्ता के पार्षद भाई दीना गुप्ता की हत्या करने आए थे और गफलत में सुरेश गुप्ता को गोली मार भाग निकले थे.
  • 2004 में पान दरीबा वार्ड से पार्षद रहे बंशी यादव की जिला जेल के गेट पर कुख्यात बदमाश अन्नू त्रिपाठी और बाबू यादव ने हत्या कर दी थी.
  • बंशी यादव के शिष्य संतोष गुप्ता किट्टू ने अपने गुरु के हत्यारे अन्नू त्रिपाठी को मई 2005 में सेंट्रल जेल में गोली मारकर हत्या करके बदला ले लिया.
  • 5 साल बाद किट्टू डेढ़ लाख का इनामी हो चुका था और 4 जून 2010 को चौकाघाट इलाके में ही अपने साथी सन्तोष सिंह के साथ पुलिस एनकाउंटर में ढेर हो गया था.
  • रामपुरा वार्ड से पार्षद विजय वर्मा की लक्सा के रामकुटी व्ययामशाला के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
  • विजय वर्मा के हत्यारे लालू वर्मा को वाराणसी एसओजी के प्रभारी गिरजाशंकर त्रिपाठी की टीम ने 2008 में यूपी के नोएडा में हुई पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया था. लालू वर्मा 2021 में यूपी एसटीएफ के हाथों ढेर कुख्यात बदमाश दीपक वर्मा का मामा था.
  • 2005 में ही भेलूपुर के सरायनन्दन से सभासद रहे मंगल प्रजापति की हत्या कर दी गई थी.
  • मंगल की हत्या में उसके करीबी बबलू लंबू का नाम आया था. बबलू लंबू भी नहीं बचा. सुदामापुर वार्ड से पार्षद बबलू लंबू की भी 2007 में हत्या हो गई.
  • 2006 में सराय हड़हा में पार्षद मुरारी यादव की सुबह सुबह गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
  • 2008 को मुन्ना बजरंगी का खास साथी बाबू यादव सिद्धागिरी बाग इलाके में धर्मेंद्र सिंह पप्पू के गनर की गोली से मारा गया. पास में ही बृजेश सिंह का घर था. उस समय कहा गया कि बाबू यादव बृजेश सिंह के घर के बाहर घात लगाकर किसी की हत्या की फिराक में था.
  • आमने सामने चली गोली से बाबू यादव तो वहीं ढेर हो गया. भाग रहे उसके दो साथियों को तत्कालीन सिगरा थाना प्रभारी संजय नाथ तिवारी ने लल्लापुरा मोड़ (बिग बाजार) के पास मुठभेड़ में मार गिराया था. बाबू यादव भी सोनारपुरा क्षेत्र से सभासद था.
  • 2015 में लक्सा के रामपुरा वार्ड 64 के लोकप्रिय सभासद शिव सेठ की मंदिर से दर्शन कर वापस आते समय भेलूपुर थाना क्षेत्र के तुलसीपुर इलाके में बदमाशों ने गोलियों से भूनकर हत्या कर दी थी.
  • घटना के 20 दिन बाद यूपी एसटीएफ ने शातिर बदमाश संतोष शुक्ला और दीपक वर्मा को पकड़कर घटना का खुलासा किया था.

कुछ पर हुए हमले पर नसीब था अच्छा

2016 में बेनिया वार्ड के पार्षद अरशद खान उर्फ विक्की औरंगाबाद के डॉक्टर आसिफ की अंतिम यात्रा में शामिल होने चेतगंज थाना क्षेत्र के पिपलानी कटरा क्षेत्र में गए थे. तभी बदमाशों ने भीड़ में से विक्की खान पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. गोलीबारी में विक्की और उसके साथी सुजीत घोष को गोली लगी थी. लेकिन, दोनों बच गए. इस गोलीबारी को कुख्यात बदमाश हैदर अली की हत्या के बदले के रूप में देखा गया था. हैदर की 2015 में सोनभद्र के हाथीनाला क्षेत्र में हत्या कर दी गई थी.

यह भी पढ़ें: नगर पालिका अध्यक्ष बांदा की बर्खास्तगी का आदेश रद्द, इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

2017 की देर रात राजाबाजार (नदेसर) के सभासद विजय जायसवाल की हत्या करने आए बदमाशों ने उनके निवास पर ताबड़तोड़ फायरिंग की थी. विजय जायसवाल तो बाल बाल बच गए. लेकिन, उनके यहां तैनात गार्ड श्रवण मिश्र की फायरिंग में मौत हो गई. इस मामले में पकड़े गए शातिर बदमाश राजकुमार बिंद उर्फ गुड्डू मामा और आबिद सिद्दीकी के पास से 9 एमएम की पिस्टल रिकवर हुई थी. वर्तमान में खूंखार हत्यारा राजकुमार बिंद उर्फ गुड्डू मामा भदोही की ज्ञानपुर जेल में बंद है और उसका साथी आबिद सिद्दीकी प्रयागराज की नैनी जेल में बंद है.


वाराणसी नगर निकाय चुनाव को लेकर स्पेशल रिपोर्ट

वाराणसी: इन दिनों उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारे में काफी हलचल है. क्योंकि जल्द ही नगर निकाय चुनाव हो सकते हैं. हालांकि, कोर्ट ने अभी इसकी तारीखों को लेकर कुछ साफ नहीं किया है. लेकिन, माना जा रहा है कि जनवरी में निकाय चुनाव की डेट घोषित हो सकती है. यही वजह है कि हर जिले में इस समय पार्षद पद पर जोर आजमाइश तेज हो गई है. क्षेत्र का छुटभैया नेता हो या क्षेत्रीय दबंग या फिर संबंधित थानों के हिस्ट्रीशीटर कहीं न कहीं से हर कोई इस राजनीति की पहली सीढ़ी के जरिए धनबल बाहुबल को मजबूत करते हुए राजनीतिक गलियारे में अपनी धाक बढ़ाने की कोशिशों में जुट गया है. लेकिन, यही कोशिश कई बार अपराध जगत में हंगामे की वजह बन जाती है.

खास तौर पर पूर्वांचल के सबसे बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हो चुके वाराणसी में तो अपराध और राजनीति के संगम के बीच अक्सर पार्षद पद पर जीतने वाले प्रत्याशी या तैयारी कर रहे प्रत्याशियों की हत्याओं ने पूर्वांचल के राजनीतिक गलियारे में काफी हलचल मचाई. इसने पूरे प्रदेश में प्रभाव भी डाला. इसके बाद यह सवाल उठना लाजमी है कि निकाय चुनाव जिसे मिनी सदन के लिए चुने हुए जनप्रतिनिधियों का महत्वपूर्ण इलेक्शन माना जाता है, आखिर उसी मिनी सदन के रास्ते अपराध जगत में सक्रिय अपराधी अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि को मजबूत करने या फिर अपने पुराने बदले को पूरा करने के लिए कैसे इन चुनावों का उपयोग करते हैं.

वाराणसी नगर निगम कार्यालय
वाराणसी नगर निगम कार्यालय

पार्षदी का चुनाव राजनीति की नर्सरी कहलाता है. नर्सरी में इच्छित पौधों के साथ खरपतवार भी उग आते हैं. बनारस के पार्षदी चुनावों का इतिहास भी कुछ ऐसा ही है. आरक्षण सूची जारी होते ही यूपी में नगर निगम चुनावों का बिगुल बज गया है और गली-गली, घर-घर पार्षद बनने के इच्छुक दावेदारों की दौड़ शुरू हो चुकी है. लेकिन, इन सब के बीच एक बात याद रखने वाली है कि काशी में पार्षद होना आसान काम नहीं है. पूर्व में वाराणसी में कई पार्षदों की हत्या हो चुकी है. हत्याओं के पीछे मोटे कारण देखें तो पाएंगे कि ज्यादातर मामले वर्चस्व और अपराध जगत की मारामारी से जुड़े हुए हैं.

पार्षद जैसे छोटे चुनावों में अपना बड़ा रसूख बनाने की कोशिश में जुटे नेता हों या अपराध जगत में लिप्त रहने वाले शातिर इन चुनावों के जरिए सक्रिय राजनीति में आने की तैयारी कर रहे लोग कहीं न कहीं से राजनीति की इस पहली सीढ़ी का उपयोग अपने-अपने हिसाब से करते हैं. इस बारे में एक्सपर्ट और काफी लंबे वक्त तक पूर्वांचल के अपराध जगत को काफी करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार पवन सिंह का मानना है कि मिनी सदन के जरिए अपनी राजनीतिक पृष्ठभूमि को मजबूत करने और अपनी पहचान बनाने के उद्देश्य से एक एन्ट्री पॉइंट के रूप में इन चुनावों का उपयोग दबंग और अपराध जगत से जुड़े लोग अक्सर करते रहे हैं.

वाराणसी में बीजेपी कार्यालय
वाराणसी में बीजेपी कार्यालय

पवन सिंह का कहना है कि 1974 में जब 15 सालों तक निकाय चुनाव नहीं हुए और 1989 में फिर से चुनावों की शुरुआत हुई तो कहीं न कहीं से इसका पूरा फायदा क्षेत्रीय दबंग और अपराधी किस्म के लोगों ने जमकर उठाया. 1989 के चुनावों में डिप्टी मेयर के पद पर अनिल सिंह और पार्षद के रूप में अब्दुल कलाम का चुनकर आना कहीं न कहीं से इसकी शुरुआत मानी जा सकती है. अपराध जगत में यह बड़े नाम जाने जाते थे. लेकिन, यह अब माननीय बनने की ओर अग्रसर हो रहे थे. इसके बाद इसकी शुरुआत अपराध और राजनीति के रूप में पूर्वांचल की बड़ी राजनीतिक धमक के साथ दिखाई देने लगी.

पार्षद के छोटे चुनावों के बाद कई नेता विधायक तक बने. इसमें उदय लाल मौर्या, अब्दुल कलाम जैसे पार्षद शामिल थे जो इनका कद बढ़ाने के साथ ही इनके बाहुबल और धनबल दोनों को बढ़ाने का काम कर रहा था. इसने इनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ अपराध जगत में भी इनके दुश्मनों को बढ़ाना शुरू कर दिया. इसके बाद शुरू हुआ हत्याओं का दौर. दालमंडी में पार्षद की हत्या हो या फिर तुलसीपुर में पार्षद शिव सेठ की दुर्दांत तरीके से राह चलते गोली मारकर की गई हत्या. रक्षा क्षेत्र में अखाड़े के पास पार्षद विजय वर्मा की हत्या ने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी थी. इन हत्याओं ने पूरे सिस्टम पर ही सवाल उठा दिया.

वरिष्ठ पत्रकार पवन सिंह का कहना है कि पार्षद पद पर जीतने के बाद हत्याओं के दौर में कहीं न कहीं से वर्चस्व को भी बढ़ावा दिया गया. उन्होंने कहा कि कितनी घटनाएं ऐसी हैं, जिसमें हत्या करने वाले और इन हत्याओं में शामिल लोग ही बाद में उस क्षेत्र में फिर से पार्षद चुनकर आए. जो क्षेत्र में उनके कद को बढ़ाने के साथ ही मिनी सदन में भीम के वर्चस्व को बढ़ाने का काम करता रहा.

वाराणसी में कब-कब हुई पार्षदों की हत्या

  • सन 2003 में दालमंडी में अल सुबह पार्षद कमाल अंसारी की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई थी. हत्या के कुछ ही दिन बाद हत्या में वांछित चल रहे हसीन और आलम को पुलिस ने मंडुआडीह थाना क्षेत्र के एफसीआई गोदाम के पास मुठभेड़ में ढेर कर दिया था.
  • 2003 में ही मुकीमगंज से पार्षद रहे अनिल यादव को बदमाशों ने सिगरा थाना क्षेत्र के फातमान रोड पर दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया.
  • पूर्व में उपनगर प्रमुख रहे दबंग अनिल सिंह के खास साथी सुरेश गुप्ता की जैतपुरा क्षेत्र में मुन्ना बजरंगी के शूटरों ने हत्या कर दी थी. कहा जाता है कि बदमाश सुरेश गुप्ता के पार्षद भाई दीना गुप्ता की हत्या करने आए थे और गफलत में सुरेश गुप्ता को गोली मार भाग निकले थे.
  • 2004 में पान दरीबा वार्ड से पार्षद रहे बंशी यादव की जिला जेल के गेट पर कुख्यात बदमाश अन्नू त्रिपाठी और बाबू यादव ने हत्या कर दी थी.
  • बंशी यादव के शिष्य संतोष गुप्ता किट्टू ने अपने गुरु के हत्यारे अन्नू त्रिपाठी को मई 2005 में सेंट्रल जेल में गोली मारकर हत्या करके बदला ले लिया.
  • 5 साल बाद किट्टू डेढ़ लाख का इनामी हो चुका था और 4 जून 2010 को चौकाघाट इलाके में ही अपने साथी सन्तोष सिंह के साथ पुलिस एनकाउंटर में ढेर हो गया था.
  • रामपुरा वार्ड से पार्षद विजय वर्मा की लक्सा के रामकुटी व्ययामशाला के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
  • विजय वर्मा के हत्यारे लालू वर्मा को वाराणसी एसओजी के प्रभारी गिरजाशंकर त्रिपाठी की टीम ने 2008 में यूपी के नोएडा में हुई पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया था. लालू वर्मा 2021 में यूपी एसटीएफ के हाथों ढेर कुख्यात बदमाश दीपक वर्मा का मामा था.
  • 2005 में ही भेलूपुर के सरायनन्दन से सभासद रहे मंगल प्रजापति की हत्या कर दी गई थी.
  • मंगल की हत्या में उसके करीबी बबलू लंबू का नाम आया था. बबलू लंबू भी नहीं बचा. सुदामापुर वार्ड से पार्षद बबलू लंबू की भी 2007 में हत्या हो गई.
  • 2006 में सराय हड़हा में पार्षद मुरारी यादव की सुबह सुबह गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
  • 2008 को मुन्ना बजरंगी का खास साथी बाबू यादव सिद्धागिरी बाग इलाके में धर्मेंद्र सिंह पप्पू के गनर की गोली से मारा गया. पास में ही बृजेश सिंह का घर था. उस समय कहा गया कि बाबू यादव बृजेश सिंह के घर के बाहर घात लगाकर किसी की हत्या की फिराक में था.
  • आमने सामने चली गोली से बाबू यादव तो वहीं ढेर हो गया. भाग रहे उसके दो साथियों को तत्कालीन सिगरा थाना प्रभारी संजय नाथ तिवारी ने लल्लापुरा मोड़ (बिग बाजार) के पास मुठभेड़ में मार गिराया था. बाबू यादव भी सोनारपुरा क्षेत्र से सभासद था.
  • 2015 में लक्सा के रामपुरा वार्ड 64 के लोकप्रिय सभासद शिव सेठ की मंदिर से दर्शन कर वापस आते समय भेलूपुर थाना क्षेत्र के तुलसीपुर इलाके में बदमाशों ने गोलियों से भूनकर हत्या कर दी थी.
  • घटना के 20 दिन बाद यूपी एसटीएफ ने शातिर बदमाश संतोष शुक्ला और दीपक वर्मा को पकड़कर घटना का खुलासा किया था.

कुछ पर हुए हमले पर नसीब था अच्छा

2016 में बेनिया वार्ड के पार्षद अरशद खान उर्फ विक्की औरंगाबाद के डॉक्टर आसिफ की अंतिम यात्रा में शामिल होने चेतगंज थाना क्षेत्र के पिपलानी कटरा क्षेत्र में गए थे. तभी बदमाशों ने भीड़ में से विक्की खान पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. गोलीबारी में विक्की और उसके साथी सुजीत घोष को गोली लगी थी. लेकिन, दोनों बच गए. इस गोलीबारी को कुख्यात बदमाश हैदर अली की हत्या के बदले के रूप में देखा गया था. हैदर की 2015 में सोनभद्र के हाथीनाला क्षेत्र में हत्या कर दी गई थी.

यह भी पढ़ें: नगर पालिका अध्यक्ष बांदा की बर्खास्तगी का आदेश रद्द, इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

2017 की देर रात राजाबाजार (नदेसर) के सभासद विजय जायसवाल की हत्या करने आए बदमाशों ने उनके निवास पर ताबड़तोड़ फायरिंग की थी. विजय जायसवाल तो बाल बाल बच गए. लेकिन, उनके यहां तैनात गार्ड श्रवण मिश्र की फायरिंग में मौत हो गई. इस मामले में पकड़े गए शातिर बदमाश राजकुमार बिंद उर्फ गुड्डू मामा और आबिद सिद्दीकी के पास से 9 एमएम की पिस्टल रिकवर हुई थी. वर्तमान में खूंखार हत्यारा राजकुमार बिंद उर्फ गुड्डू मामा भदोही की ज्ञानपुर जेल में बंद है और उसका साथी आबिद सिद्दीकी प्रयागराज की नैनी जेल में बंद है.


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