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पांच किमी के खुले मैदान में मंचित होती है वाराणसी की ये रामलीला, विश्व धरोहर सूची में भी शामिल

वाराणसी के रामनगर की रामलीला (Varanasi Ramnagar Ramlila) को देश के सबसे बड़े ओपन थिएटर (Open Theatre) के नाम से भी जाना जाता है. इसके साथ ही इसको यूनेस्को ने भी विश्व धरोहर की सूची ( UNESCO World Heritage List) में शामिल किया हुआ है. आईए जानते हैं कि रामनगर की रामलीला में ऐसा क्या खास है जो इसे विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 28, 2023, 2:11 PM IST

वाराणसी: संस्कृति और सभ्यता के साथ परंपराओं को सहेज कर रखने वाले अद्भुत शहर का नाम है वाराणसी. जहां सदियों पुरानी परंपराओं को आज भी लोग बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं. इन परंपराओं का निर्वहन सैकड़ो सालों से अनवरत किया जा रहा है और ऐसी ही परंपराओं में से एक है वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला. आज अनंत चतुर्दशी के दिन इस रामलीला की शुरुआत रावण जन्म के साथ हो जाती है.

Varanasi
रामलीला के किरदारों को कंधे बर बैठाकर निकाली जाती है शोभायात्रा

रामनगर की रामलीला को यूनेस्को ने माना विश्व धरोहरः 240 साल पुरानी इस लीला को यूनेस्को ने भी विश्व सांस्कृतिक विरासत माना है. 1783 में शुरू हुई इस रामलीला को आज भी उसी अंदाज में मंचित किया जाता है, जैसे सालों पहले मनाया जाता था. यानी न लाइट, न माइक, न भोंपू, सब कुछ बस परंपरा और संस्कृति के अनुसार पुरातन समय के अनुसार रहता है. पुराने अंदाज में मंचित इस रामलीला को दूर-दूर से लोग देखने आते हैं.

काशी के राजा ने शुरू की थी रामलीलाः माना जाता है कि 1783 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने इस लीला की शुरुआत की थी. 240 साल पहले शुरू हुई इस लीला को आज भी वर्तमान कुंवर अनंतनारायणन सिंह पूरे शाही अंदाज से पूर्ण करवाते हैं. राज परिवार के लोग हाथी पर सवार होकर इस लीला का मंचन देखने के लिए पहुंचते हैं. इसके साथ ही लीला के एक-एक किरदार को बड़े ही सोच समझकर चुना जाता है.

Varanasi
काशी के राजा का परिवार हाथी पर सवार होकर रामलीला देखने पहुंचते हैं.

शाम 5 बजे से मंचन होता है शुरूः प्रत्येक दिवस शाम 5:00 बजे से इस लीला की शुरुआत होती है और रात 9:00 बजे तक इसका मंचन होता है. इस लीला का मंचन गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा रचित रामचरितमानस की चौपाइयों के अनुसार किया जाता है. आधुनिक दौर में भी इस लीला का मंचन वैसे ही होता है जैसे 200 साल पहले किया जाता था.

पांच किलोमीटर के दायरे में घूम-घूम कर होता है मंचनः रामनगर के 5 किलोमीटर के दायरे में इस पूरी लीला को घूम-घूम कर पूर्ण किया जाता है. पेट्रोमैक्स की रोशनी में मशाल जलाकर इस लीला को पूर्ण करने वाले लोग आज भी इस लीला के महत्व को बहुत ज्यादा मानते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि इस लीला को देखने के लिए साक्षात प्रभु श्री राम पहुंचते हैं. जिसकी वजह से यहां लोग सज-संवरकर, टीका चंदन इत्र लगाकर आते हैं.

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रामलीला का खुले आसमान के नीचे होता है मंचन

यूनेस्को ने विश्व धरोहर सूची में क्यों किया शामिलः शायद यही वजह है कि काशी राज परिवार के संरक्षण में होने वाली इस विश्व प्रसिद्ध लीला को यूनेस्को के विश्व धरोहर की सूची में भी शामिल किया गया है. महाराज उदित नारायण सिंह के शासनकाल में काशी में कई संस्कृति को संजोकर रखने के साथ ही नई परंपराओं की शुरुआत भी की गई, ताकि आने वाली पीढ़ियां इन प्रथाओं के बल पर अपने सनातन धर्म को करीब से जान सकें.

पूरे रामनगर में रामायण से जुड़े स्थान बनाए जातेः श्री रामलीला रामनगर के नाम से इस लीला से जुड़ी सामग्रियां भी प्रकाशित कराई जाती हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रामनगर के 5 किलोमीटर के दायरे में ही अयोध्या, जनकपुरी, पंचवटी, लंका, चित्रकूट, निषाद राज आश्रम, अशोक वाटिका, रामबाग समेत अन्य वह समस्त स्थल बनाए जाते हैं, जो रामचरितमानस में मौजूद हैं.

ये भी पढ़ेंः Varanasi Dev Diwali: काशी विद्वत परिषद के फैसले के खिलाफ कई समितियां लामबंद, 27 नवंबर को मनाई जाएगी देव दीपावली

वाराणसी: संस्कृति और सभ्यता के साथ परंपराओं को सहेज कर रखने वाले अद्भुत शहर का नाम है वाराणसी. जहां सदियों पुरानी परंपराओं को आज भी लोग बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं. इन परंपराओं का निर्वहन सैकड़ो सालों से अनवरत किया जा रहा है और ऐसी ही परंपराओं में से एक है वाराणसी के विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला. आज अनंत चतुर्दशी के दिन इस रामलीला की शुरुआत रावण जन्म के साथ हो जाती है.

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रामलीला के किरदारों को कंधे बर बैठाकर निकाली जाती है शोभायात्रा

रामनगर की रामलीला को यूनेस्को ने माना विश्व धरोहरः 240 साल पुरानी इस लीला को यूनेस्को ने भी विश्व सांस्कृतिक विरासत माना है. 1783 में शुरू हुई इस रामलीला को आज भी उसी अंदाज में मंचित किया जाता है, जैसे सालों पहले मनाया जाता था. यानी न लाइट, न माइक, न भोंपू, सब कुछ बस परंपरा और संस्कृति के अनुसार पुरातन समय के अनुसार रहता है. पुराने अंदाज में मंचित इस रामलीला को दूर-दूर से लोग देखने आते हैं.

काशी के राजा ने शुरू की थी रामलीलाः माना जाता है कि 1783 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने इस लीला की शुरुआत की थी. 240 साल पहले शुरू हुई इस लीला को आज भी वर्तमान कुंवर अनंतनारायणन सिंह पूरे शाही अंदाज से पूर्ण करवाते हैं. राज परिवार के लोग हाथी पर सवार होकर इस लीला का मंचन देखने के लिए पहुंचते हैं. इसके साथ ही लीला के एक-एक किरदार को बड़े ही सोच समझकर चुना जाता है.

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काशी के राजा का परिवार हाथी पर सवार होकर रामलीला देखने पहुंचते हैं.

शाम 5 बजे से मंचन होता है शुरूः प्रत्येक दिवस शाम 5:00 बजे से इस लीला की शुरुआत होती है और रात 9:00 बजे तक इसका मंचन होता है. इस लीला का मंचन गोस्वामी तुलसीदास जी के द्वारा रचित रामचरितमानस की चौपाइयों के अनुसार किया जाता है. आधुनिक दौर में भी इस लीला का मंचन वैसे ही होता है जैसे 200 साल पहले किया जाता था.

पांच किलोमीटर के दायरे में घूम-घूम कर होता है मंचनः रामनगर के 5 किलोमीटर के दायरे में इस पूरी लीला को घूम-घूम कर पूर्ण किया जाता है. पेट्रोमैक्स की रोशनी में मशाल जलाकर इस लीला को पूर्ण करने वाले लोग आज भी इस लीला के महत्व को बहुत ज्यादा मानते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि इस लीला को देखने के लिए साक्षात प्रभु श्री राम पहुंचते हैं. जिसकी वजह से यहां लोग सज-संवरकर, टीका चंदन इत्र लगाकर आते हैं.

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रामलीला का खुले आसमान के नीचे होता है मंचन

यूनेस्को ने विश्व धरोहर सूची में क्यों किया शामिलः शायद यही वजह है कि काशी राज परिवार के संरक्षण में होने वाली इस विश्व प्रसिद्ध लीला को यूनेस्को के विश्व धरोहर की सूची में भी शामिल किया गया है. महाराज उदित नारायण सिंह के शासनकाल में काशी में कई संस्कृति को संजोकर रखने के साथ ही नई परंपराओं की शुरुआत भी की गई, ताकि आने वाली पीढ़ियां इन प्रथाओं के बल पर अपने सनातन धर्म को करीब से जान सकें.

पूरे रामनगर में रामायण से जुड़े स्थान बनाए जातेः श्री रामलीला रामनगर के नाम से इस लीला से जुड़ी सामग्रियां भी प्रकाशित कराई जाती हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रामनगर के 5 किलोमीटर के दायरे में ही अयोध्या, जनकपुरी, पंचवटी, लंका, चित्रकूट, निषाद राज आश्रम, अशोक वाटिका, रामबाग समेत अन्य वह समस्त स्थल बनाए जाते हैं, जो रामचरितमानस में मौजूद हैं.

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