वाराणसी: काशी के बारे में मान्यता है कि इसके कण-कण में स्वयं भगवान शंकर विराजते हैं. शायद यही वजह है कि सभ्यता और इतिहास की अनोखी नगरी को विश्व का सबसे जीवंत शहर कहा जाता है. जहां एक ओर मां गंगा हैं, तो दूसरी ओर तुलसी हैं, रविदास हैं, कबीर हैं और इन सबके ऊपर खुद भोलेनाथ विश्वनाथ के स्वरूप में विराजमान हैं. वर्षों पुराने इस शहर का उल्लेख हर काल में मिलता है. यहां पर सैकड़ों स्वयंभू शिवलिंग हैं जिनका ज़िक्र पुराणों और वेदों में भी है. यूपी एक खोज में ऐसे ही एक चमत्कारी शिवलिंग के बारे में हम बताएंगे जिसकी हकीकत आपको हैरान कर देगी. काशी में तिलभांडेश्वर महादेव राम मंदिर है और उसमें विराजमान है तिलभांडेश्वर भगवान का शिवलिंग.
द्वापर युग का है तिलभांडेश्वर शिवलिंग
तिलभांडेश्वर शिवलिंग से जुड़ी कई मान्यताएं हैं जो इसे अद्भुत बनाती हैं.स्वामी शिवानंद गिरी महाराज ने बताया कि गुरु परंपरा से जो बात उन्हें पता चली उसके मुताबिक ये शिवलिंग द्वापर युग का है. शिवलिंग एक जंगल में पड़ा था, ये ताड़का जंगल कहलाता था.ये शिवलिंग लगातार बढ़ रहा था. कोई इसे स्पर्श नहीं करता था. यहां पर तिल की खेती होती थी, लोग दूर से ही तिल चढ़ा देते थे. पास में ताड़ का पेड़ था जिसका रस लगातार शिवलिंग पर गिरता था. दिव्य शिवलिंग की वजह से यहां रहने वाले लोगों पर कभी आफत या किसी तरह का कष्ट नहीं हुआ.
विभाण्डक ऋषि ने पाया दिव्य दर्शन
कहा जाता है कि 2000 साल पहले श्रृंगी ऋषि के पिता विभाण्डक ऋषि इसी रास्ते से गुजर रहे थे.उन्होंने देखा कि सब लोग शिव लिंग पर तिल चढ़ा रहे हैं. यह देख कर उनको बहुत ही आनंद आया.हिन्दू मान्यताओंं में तिल का विशेष स्थान है. इसका इस्तेमाल नवग्रह शांति, पितरों को अर्पण करने में किया जाता है. तिल से हर प्रकार के कष्टों का नाश होता है. ऋषि विभाण्डक इस जगह से इतना प्रभावित हुए कि कई वर्षों तक यहां पर तपस्या की. मान्यता है कि एक दिन भविष्यवाणी हुई कि ये शिवलिंग कलयुग में भी हर रोज एक तिल बढ़ता रहेगा. शिवलिंग की प्रकृति और ऋषि का नाम मिलाकर इनका नामकरण तिलभांडेश्वर किया गया. कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति एक बार यहां आकर दर्शन कर ले तो उसके सभी पाप नष्ट हो जाएं.
बौद्ध ने किया खुदाई
अशोक सम्राट के शासनकाल में बौद्ध धर्म के लोगों ने यह जानने के लिए कि शिव लिंग कितना अंदर है, काफी अंदर तक खुदाई की लेकिन काफी खुदाई करने के बाद भी उन्हें यह नहीं पता चला कि शिव लिंग कितनी गहराई तक है, आखिरकार वह थक कर चले गए.
बौद्ध अनुयायियों ने की खुदाई
ये भी कहा जाता है कि अशोक सम्राट के शासनकाल में बौद्ध धर्म के लोगों ने यह जानने के लिए कि शिव लिंग कितना अंदर है काफी अंदर तक खुदाई किया लेकिन काफी खुदाई करने के बाद भी उन्हें यह नहीं पता चला कि शिव लिंग कितना अंदर है वह थक कर चलेंगए.
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मुगलों ने तीन बार किया मंदिर पर आक्रमण
मंदिर के महंत ने बताया कि जब मुगलों ने मंदिर पर हमला बोला तो पहली बार अंदर से पानी निकलने लगा जिसके बाद मुगल सैनिक भाग गए, दूसरी बार रक्त या लाल रंग का कोई पदार्थ शिवलिंग से बहने लगा, उसे देखकर भी वह भाग गए. तीसरी बार जब वह आए तो भंवरे उनके पीछे लग गए. इसके बाद मुगल टुकड़ी वहां से भाग गई और उसने मंदिर को नुकसान नहीं पहुंचाया.
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अंग्रेजों ने किया परीक्षण
महंत शिवानंद गिरि ने बताया कि अंग्रेजों को विश्वास नहीं हुुआ कि कोई शिवलिंग बढ़ सकता है. उन्होंने आरोप लगाया कि शिवलिंग बढ़ने की झूठी अफवाह फैला कर पैसा कमाने का धंधा चलाया जा रहा है. उन्होंने इस बात का प्रमाण मांगा. मंदिर में मौजूद एक विद्वान ब्राह्मण ने कहा कि आपको विश्वास नहीं है तो शिवलिंग को नारे से बांधकर मंदिर के वगर्भग्रह को सील कर दीजिए. अंग्रेजों ने ऐसा ही किया. 2 दिन बाद जब गर्भ गृह खोला गया तो नारा टूटा हुआ था. तब से यह प्रमाणित हो गया कि शिव लिंग का साइज़ लगातार बड़ा हो रहा है.
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अभी भी दिखता है चमत्कार
मंदिर के महंत ने बताया कि दिवाली के बाद आने वाले अन्नकुट के समय बाबा का विशेष श्रृंगार किया जाता है. बाबा का मुखौटा कालांतर में फिट नहीं बैठता था बार-बार गिर जाता है. उसके बाद जमीन के नीचे चांदी का रिंग लगाकर श्रंगार किया जाता. वह रिंग भी कुछ दिन बाद टूट जाता. महंत के मुताबिक रिंग एकदम साफ रहता है, किसी प्रकार की गंदगी नहीं रहती.उन्होंने बताया कि यह शिवलिंग कोई मामूली शिवलिंग नहीं है इसमें साक्षात ईश्वर का वास है.यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है और उसका जीवन धन्य हो जाता है.
स्थानीय लोगों के साथ साथ दक्षिण भारत के भक्त यहां दर्शन पूजन करने जरूर आते हैं. सावन, शिवरात्रि और मकर संक्रांति के समय विशेष प्रकार का अनुष्ठान किया जाता है. मंदिर में श्रृंगार किया जाता है. काशी में भगवान भूतनाथ की बरात के दौरान इसे मंदिर से उठकर शहर के विभिन्न स्थानों पर भ्रमण कराया जाता है.
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