वाराणसी: काशी को धर्म आध्यात्मिक के साथ-साथ गंगा-जमुना तहजीब का शहर माना जाता है. यही वजह है कि यहां त्योहारों से लेकर चुनावी मैदानों में भी गंगा-जमुना तहजीब का स्पष्ट तौर पर असर देखने को मिलता है. इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है वाराणसी का उत्तरी विधानसभा क्षेत्र. कहने को यह मुस्लिम बाहुल्य इलाका है, लेकिन आजादी के बाद अब तक के चुनावी परिणामों की यदि हम बात करें यहां हमेशा से कांग्रेस को बीजेपी टक्कर देती रही है.
यहां पहले जनसंघ ने कांग्रेस से कड़ा मुकाबला किया और उसके बाद बीजेपी ने. इसका परिणाम यह है कि मुस्लिम बहुल इलाके में बीजेपी का हमेशा से परचम लहराया है और छह से अधिक बार बीजेपी ने यहां पर अपनी जीत दर्ज की है. वहीं, 5 बार कांग्रेस ने इस सीट पर अपना कब्जा जमाया है. वर्तमान में भी इस सीट पर बीजेपी का ही कब्जा है.
एक नजर उत्तरी विधानसभा सीट के आंकड़ों पर
वाराणसी उत्तरी विधानसभा सीट जिसकी संख्या नंबर 388 है. विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या चार लाख 33 हजार 25 है. इसमें लगभग दो लाख 40 हजार पुरुष और एक लाख 90 हजार के करीब महिलाएं हैं. वहीं, कुछ लोग अन्य श्रेणी के हैं. यदि हम इसमें जातिगत व्यक्तियों की संख्या की बात करें तो यहां पौने दो लाख के करीब मुसलमान, डेढ़ लाख के करीब वैश्य और लगभग 50 हजार के करीब ब्राह्मण हैं.
बीते कुछ विधानसभा चुनावों के परिणाम
विधानसभा चुनाव 2017 की बात करें तो इसमें भारतीय जनता पार्टी के रविंद्र जायसवाल ने कांग्रेस की अब्दुल समद अंसारी को हराकर इस सीट पर अपना कब्जा जमाया था. 2016 में भारतीय जनता पार्टी के रविंद्र जायसवाल ने बहुजन समाजवादी पार्टी के सुजीत कुमार मौर्या को हराकर सफलता हासिल की थी. वहीं, विधानसभा चुनाव 2007 के नतीजे की बात करें तो समाजवादी पार्टी के हाजी अब्दुल समद ने इस सीट पर अपनी जीत हासिल की थी. उन्होंने बीजेपी के नेता शिवनाथ यादव को हराया था. यदि विधानसभा चुनाव 2002 के नतीजे की बात करें तो इसमें इस सीट पर समाजवादी पार्टी के अब्दुल कलाम ने भारी मतों से जीत हासिल की थी.
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वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य
2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए सभी दल जुट गए हैं और चुनावी सरगर्मी भी धीरे-धीरे बढ़ रही है. यदि हम शहर उत्तरी के विधानसभा सीट की बात करें तो अभी तक किसी भी राजनीतिक दल ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है, लेकिन इस बार कांग्रेस, बीजेपी और सपा तीनों अपनी जोर आजमाइश कर रही हैं और मैदान में कड़ी टक्कर देने के लिए तैयारियों में जुटी हुई हैं. हालांकि 2012 में चुनाव के बाद हुए परिसीमन में शहर उत्तरी से मुस्लिम बहुल बड़ी आबादी विधानसभा से कटकर शहर दक्षिणी में आ गई है, लेकिन अभी भी उस विधानसभा में मुस्लिम और वैश्य वोट हमेशा से निर्णायक साबित हुए हैं. अब यह देखना होगा कि इस बार यहां की जनता किस पार्टी को अपना वोट देकर विजयी बनाती है.