वाराणसीः 'पहले शौचालय फिर देवालय' प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में अपने वक्तव्य में कहा था कि वह पूरे देश को ओडीएफ बना देंगे. 2019 अक्टूबर तक इस लक्ष्य को पूरा करना था, लेकिन 2020 बीतने को है अभी भी लोग इन सुविधाओं से वंचित हैं. इसकी तस्वीर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में देखने को मिल रही है. जयरामपुर इलाके में आज भी लोग शौचालय के अभाव में खुले में शौच करने को मजबूर हैं.
फोटो खिंचवा के गए अधिकारी
चिरईगांव ब्लॉक के जयरामपुर गांव में सैकड़ों ऐसे परिवार हैं जो खुले में शौच जाते हैं. सरकारी अफसरों की उदासीनता के कारण आज भी बहू-बेटियों को खुले में शौच जाना होता है. खुले में शौच को मजबूर ग्रामीणों का कहना है कि एक साल से ज्यादा हो गया अभी तक शौचालय बनवाया नहीं गया. कोरम पूरा करने के लिए दीवार खड़ी करके फोटो खिंचवा कर सभी लोग चले गए, लेकिन दोबारा कोई भी हकीकत जानने नहीं आया.
ग्राम प्रधान नहीं समझता पीड़ा
ग्रामीणों ने बताया कि इस मामले की कई बार प्रधान से शिकायत भी, लेकिन नशे में धुत प्रधान हम सबकी पीड़ा नहीं समझता. यही वजह है कि बहू-बेटियों को खुले में शौच जाना पड़ रहा है.
बाहर जाने में रहता है खतरा
ग्रामीण महिला रीता ने बताया कि खुले में शौच जाने में हम सबको बेहद डर लगता है. हम सब खेत में रहते हैं तो हमें नहीं पता कि कितने लोग हमें देख रहे होते हैं, लेकिन हमारे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है.
अधिकारी कह रहे काम पूरा
ईटीवी भारत से बातचीत में सहायक विकास अधिकारी ने बताया कि हमने अपने पूरे ब्लॉक में शौचालय बनवा दिया है. कहीं पर भी लोग खुले में शौच को नहीं जाते. उन्होंने बताया कि एक दो जगह शौचालय का निर्माण नहीं हुआ है. वह संबंधित सचिव के अभाव से नहीं हुआ है. जब उनकी नियुक्ति हो जाएगी, तो वह काम भी किया जाएगा. हमने उसको लेकर के जिला अधिकारी को पत्र भी लिखा है.
पीएम के सपने पर पलीता
बहरहाल, यह हाल सिर्फ जयरामपुर का ही नहीं बल्कि कई सारे गांव का है. उन गांवों की स्थिति को देख करके मन में यही सवाल आता है कि आखिर क्यों नहीं अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं? आखिर क्यों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों को उनके मातहत ही पलीता लगा रहे हैं? अधिकारियों की उदासीनता के कारण ही आज भी महिलाएं खुद को असुरक्षित जोन में डालकर खुले में शौच के लिए जा रही हैं. इससे सिर्फ पर्यावरण दूषित होने के साथ महिलाओं की अस्मिता भी खतरे में है.