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वाराणसी: आज है सावन माह की महाशिवरात्रि, भोले की आराधना से मिलता है विशेष फल

आज मंगलवार को महाशिवरात्रि यानी महीने की शिवरात्रि है. महाशिवरात्रि फागुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर पड़ती है. इस बार यह सावन के महीने में पड़ी है. इसमें शिव की आराधना का महत्व और बढ़ जाता है.

मास शिवरात्रि
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Published : Jul 30, 2019, 7:51 AM IST

वाराणसी: सावन शिव का प्रिय महीना कहा जाता है. वहीं अगर कोई विशेष तिथि इस महीने में पड़ जाए तो फिर शिव की आराधना का महत्व और बढ़ जाता है. वो तिथि आज यानी मंगलवार को पड़ी है. जिसे महाशिवरात्रि यानी महीने की शिवरात्रि कहा जाता है. महाशिवरात्रि फागुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ती है. जो इस बार शिव के प्रिय सावन के महीने में पड़ी है. शास्त्रों में हर महीने पड़ने वाले शिवरात्रि का भी उतना ही महत्व माना गया है, जितना की महाशिवरात्रि का है.

जानकारी देते पंडित पवन त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य.

क्या है महाशिवरात्रि का महत्व
12 माह में 12 शिवरात्रि होती हैं. इनमें एक महाशिवरात्रि और 11 मास शिवरात्रि होती हैं. जहां महाशिवरात्रि शिव विवाह के साथ शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप के उत्पत्ति का दिन माना जाता है. वहीं महाशिवरात्रि को भी इस शिवरात्रि के छोटे स्वरूप में हर महीने मनाया जाता है. माना गया है कि शिवरात्रि के दौरान ही विष्णु और ब्रह्मा के बीच चल रहे विवाद को खत्म करने के लिए भोलेनाथ ने ज्योतिर्लिंग का स्वरूप लिया था. इस ज्योतिर्लिंग स्वरूप का पूजन महाशिवरात्रि पर किया जाता है. इसलिए आज के दिन सुबह स्नान के बाद संकल्प लेकर भगवान महादेव का पहले जलाभिषेक करें. फिर बेल पत्र चढ़ाकर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आराधना करें.

क्या है महाशिवरात्रि का एक और महत्व

शिव-पार्वती के विवाह के अलावा महाशिवरात्रि का एक और खास महत्व है. ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन सावन के दौरान हुआ था. भोलेनाथ ने मंथन के दौरान निकलने वाले विष को पीया था. इसके बाद उनको शीतलता प्रदान करने के लिए देवताओं के निर्देश पर अलग-अलग तीर्थ स्थलों से शीतल जल लाकर भोलेनाथ पर चढ़ाया गया था. वहीं रावण ने भी महादेव को खुश करने के लिए सामान्य कांवर उठाई थी. इसके बाद से यह प्रथा चली आ रही है.

वाराणसी: सावन शिव का प्रिय महीना कहा जाता है. वहीं अगर कोई विशेष तिथि इस महीने में पड़ जाए तो फिर शिव की आराधना का महत्व और बढ़ जाता है. वो तिथि आज यानी मंगलवार को पड़ी है. जिसे महाशिवरात्रि यानी महीने की शिवरात्रि कहा जाता है. महाशिवरात्रि फागुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ती है. जो इस बार शिव के प्रिय सावन के महीने में पड़ी है. शास्त्रों में हर महीने पड़ने वाले शिवरात्रि का भी उतना ही महत्व माना गया है, जितना की महाशिवरात्रि का है.

जानकारी देते पंडित पवन त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य.

क्या है महाशिवरात्रि का महत्व
12 माह में 12 शिवरात्रि होती हैं. इनमें एक महाशिवरात्रि और 11 मास शिवरात्रि होती हैं. जहां महाशिवरात्रि शिव विवाह के साथ शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप के उत्पत्ति का दिन माना जाता है. वहीं महाशिवरात्रि को भी इस शिवरात्रि के छोटे स्वरूप में हर महीने मनाया जाता है. माना गया है कि शिवरात्रि के दौरान ही विष्णु और ब्रह्मा के बीच चल रहे विवाद को खत्म करने के लिए भोलेनाथ ने ज्योतिर्लिंग का स्वरूप लिया था. इस ज्योतिर्लिंग स्वरूप का पूजन महाशिवरात्रि पर किया जाता है. इसलिए आज के दिन सुबह स्नान के बाद संकल्प लेकर भगवान महादेव का पहले जलाभिषेक करें. फिर बेल पत्र चढ़ाकर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आराधना करें.

क्या है महाशिवरात्रि का एक और महत्व

शिव-पार्वती के विवाह के अलावा महाशिवरात्रि का एक और खास महत्व है. ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन सावन के दौरान हुआ था. भोलेनाथ ने मंथन के दौरान निकलने वाले विष को पीया था. इसके बाद उनको शीतलता प्रदान करने के लिए देवताओं के निर्देश पर अलग-अलग तीर्थ स्थलों से शीतल जल लाकर भोलेनाथ पर चढ़ाया गया था. वहीं रावण ने भी महादेव को खुश करने के लिए सामान्य कांवर उठाई थी. इसके बाद से यह प्रथा चली आ रही है.

Intro:स्पेशल:

वाराणसी: सावन का महीना वैसे तो शिव का महीना कहा जाता है लेकिन अगर कोई विशेष तिथि इस महीने में पड़ जाए तो फिर शिव की आराधना का दुगना फल प्राप्त होता है. ऐसी ही एक तिथि आज यानी मंगलवार को पड़ रही है. यह तिथि है मास शिवरात्रि यानी महीने की शिवरात्रि, वैसे तो शिवरात्रि फागुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ती है लेकिन शास्त्रों में हर महीने पड़ने वाले शिवरात्रि का भी उतना ही महत्व माना गया है जितना महाशिवरात्रि का है. तो क्या है इस मास शिवरात्रि का महत्व और आज पड़ने वाली मास शिव की आराधना से क्या होगा हासिल जानिए.


Body:वीओ-01 इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि 12 माह में 12 शिवरात्रि होते हैं. जिनमें एक शिवरात्रि महाशिवरात्रि जबकि बाकी 11 मास शिवरात्रि के रूप में मनाई जाती है महाशिवरात्रि शिव विवाह के साथ शिव के ज्योतिर्लिंग स्वरूप के उत्पत्ति का दिन माना जाता और मास शिवरात्रि को भी इस शिवरात्रि के छोटे स्वरूप के रूप में हर महीने मनाया जाता है. माना गया है कि शिवरात्रि के दौरान ही विष्णु और ब्रह्मा के बीच चल रहे एक विवाद को खत्म करने के लिए भोलेनाथ ने ज्योतिर्लिंग का स्वरूप लिया था और ज्योतिर्लिंग स्वरूप आदि और अंत से दूर होने की वजह से भगवान भोलेनाथ के इस स्वरूप का पूजन मास शिवरात्रि के दौरान किया जाता है इसलिए आज के दिन सुबह स्नान करने के बाद संकल्प लेकर भगवान महादेव का पहले जलाभिषेक करें फिर तीन पत्ती वाली विल्व पत्र चढ़ाकर भगवान से अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आराधना करें.


Conclusion:वीओ-02 ज्योतिषाचार्य पंडित पवन त्रिपाठी का कहना है कि महाशिवरात्रि को एक और खास ग्रुप के लिए जाना जाता है ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन सावन के दौरान हुआ था और भगवान भोलेनाथ ने भी मंथन के दौरान निकलने वाले विष का पान इसी दौरान किया था. जिसके बाद उनको शीतलता प्रदान करने के लिए देवताओं के निर्देश पर अलग-अलग तीर्थ स्थलों से शीतल जल लाकर भगवान भोलेनाथ पर चढ़ाया गया था और दशानन रावण ने महादेव को खुश करने के लिए सामान्य कावर उठाई थी इसके बाद से यह प्रथा चली आ रही है और शिवरात्रि के दौरान विशेष फल पाने के लिए लोग भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक कर पूजन करते हैं.

बाईट- पंडित पवन त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य

gopal mishra
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